आजकल
चीन की कल की खबर है कि एक भूतपूर्व छात्र ने एक रोजगार प्रशिक्षण कॉलेज में चाकू से हमला करके 8 लोगों को मार डाला, और 17 को जख्मी कर दिया। पता लगा है कि वह इम्तिहान में फेल हो जाने, और डिग्री न मिलने की वजह से खफा था। मौके पर पकड़ लिए जाने के बाद 21 बरस के इस छात्र ने अपना जुर्म कुबूल भी कर लिया। अब दो ही दिन पहले की बात है कि चीन में ही तलाक से परेशान 65 बरस के एक बुजुर्ग ने एक सार्वजनिक जगह पर कसरत करते हुए लोगों पर अपनी कार चढ़ा दी जिसमें 35 लोग मारे गए, और 43 जख्मी हुए। बाद में उसने चाकू से खुद को भी नुकसान पहुंचाया, लेकिन उसे जिंदा गिरफ्तार करके इलाज करवाया जा रहा है। चीन से बहुत अलग अमरीका का हाल यह है कि वहां नागरिकों से अधिक संख्या में निजी हथियार लोगों के पास हैं, और हर बरस वहां सैकड़ों गोलीबारी होती हैं जिनमें बड़ी संख्या में लोग मारे जाते हैं। बहुत से मामलों में तो ऐसे हत्यारे किसी निजी कुंठा के शिकार रहते हैं, और जिन लोगों से उन्हें शिकायतें रहती हैं, जिस स्कूल या कॉलेज में उन्हें लगता है कि उनके साथ अच्छा बर्ताव नहीं हुआ था, वहां जाकर वे ढेर सारे लोगों को एक साथ मार डालते हैं।
कई देशों के संघर्षों में हम देखते हैं कि कई हमलावर आत्मघाती जैकेट पहनकर चले जाते हैं, और भीड़ के बीच अपने को भी उड़ा देते हैं, और कई और लोगों को मारने की चाह में वे अपनी जिंदगी भी खत्म कर लेते हैं। इन घटनाओं से यह लगता है कि बहुत से आम लोग भी अगर हिंसा पर उतारू हो जाते हैं, तो वे बिना किसी संगठन की मदद के भी, अकेले ही बड़ा खून-खराबा कर सकते हैं। और ऐसा खून-खराबा कई बार सचमुच की किसी बेइंसाफी के खिलाफ रहता है, और कई बार वह अपने निजी तनाव की वजह से की गई हिंसा रहती है।
दुनिया भर में जगह-जगह ऐसी लगभग-आत्मघाती घटनाएं यह बताती हैं कि समाज के भीतर किसी ज्यादती, बेइंसाफी, या हिंसा की वजह से पैदा तनाव कितना खतरनाक हो सकता है। जिन लोगों को किसी धर्म या जाति, देश या प्रदेश की आबादी की गिनती से उसके खतरनाक होने या न होने का हिसाब-किताब अच्छा लगता है, उन्हें यह समझना चाहिए कि सिर पर कफन बांधे हुए जो हमलावर काम करते हैं, वे अकेले ही किसी भीड़ को भी खत्म कर सकते हैं। आज अगर इजराइल को यह लगता है कि उसकी फौजी ताकत तमाम फिलीस्तीनी लोगों को खत्म कर देगी, तो यह उसकी खुशफहमी हो सकती है। गिनती के बचे हुए फिलीस्तीनी भी दुनिया के किसी भी कोने में किसी इजराइली-भीड़ पर भारी पड़ सकते हैं। इसलिए यह याद रखने की जरूरत है कि कोई हिंसक तबका हमेशा के लिए सुरक्षित नहीं रह सकता, फिर चाहे वह कितना ही ताकतवर क्यों न हो।
जो अमरीका अपने आपको दुनिया का बेताज बादशाह मानकर चलता है, उस अमरीका को चाहे एक छोटे अरसे के लिए, एक अकेले ओसामा-बिन-लादेन ने घुटनों पर ला दिया था, और उसकी सारी तैयारियां धरी रह गई थीं। जो देश अपने आपको दुनिया की सबसे बड़ी फौजी ताकत जानते हुए सुरक्षित होने के दंभ में जीता था, उसे ओसामा के विमानों ने चूर-चूर कर दिया था। इसी तरह अपने आपको सौ फीसदी सुरक्षित मानने वाले इजराइल को हमास के आतंकियों ने जमीन, पानी, और हवा, तीनों तरफ से मारा था, यह एक अलग बात है कि इजराइल की फौजी ताकत ने उसका सैकड़ों गुना अधिक हिसाब चुकता कर दिया। लेकिन हम आज यहां किसी मुल्क की फौजी की ताकत की बात नहीं कर रहे, हम ऐसे अकेले हमलावरों, या छोटे आतंकी संगठनों की बात कर रहे हैं जो कि सतह के नीचे छुपे रहकर भी एकदम से सामने आकर हमला कर सकते हैं, और अपने निशाने का बहुत बड़ा नुकसान कर सकते हैं।
अमरीका और इजराइल दुनिया में जिस दर्जे की बेइंसाफी करने के लिए जाने जाते हैं, उससे वे ऐसे अनगिनत दुश्मन भी पैदा करते चल रहे हैं जिनकी जिंदगी का अकेला मकसद इन देशों का नुकसान पहुंचाना रहेगा। और एक वक्त के बाद किसी देश के नागरिकों को नुकसान पहुंचाना उस देश को नुकसान पहुंचाना मान लिया जाता है। यह नौबत किसी को भी नहीं भूलना चाहिए कि 11 सितंबर को अमरीका के न्यूयॉर्क में क्या हुआ था, 26 नवंबर को मुम्बई पर किस तरह हमला हुआ था, 13 दिसंबर को भारतीय संसद पर कैसे हमला हुआ था, और 7 अक्टूबर को इजराइल पर हमास का हमला कैसे हुआ था। इनमें से किसी भी हमले के पीछे किसी देश की फौज नहीं थी, लेकिन उस देश को नुकसान पहुंचाने की नीयत जरूर थी, और देश का कोई मूर्त रूप तो होता नहीं है, इसलिए उस देश के नागरिकों को निशाना बनाना ही एक जरिया मान लिया जाता है।
अमरीका में जगह-जगह होने वाले सामूहिक शूट-आऊट देखें, या चीन के इन दो ताजा हमलों को देखें, एक बात साफ है कि किसी जायज वजह से, या निजी विचलन के कारण, जिस वजह से भी हो, अगर अकेले हमलावर भी नुकसान पहुंचाने को कमर कस लें, तो वे कुछ भी कर सकते हैं। आज किसी व्यक्ति को नाजायज तरीके से प्रताडि़त करने के पहले यह भी सोचना चाहिए कि अगर वे लोग आत्मघाती हद तक जाकर नुकसान पहुंचाने की सोचेंगे, तो क्या-क्या नहीं कर सकते? अधिकतर देशों में धार्मिक या दूसरे किस्म की सार्वजनिक भीड़ लगती ही है, और आत्मघाती लोग ऐसी भीड़ में दुनिया भर में जानलेवा हमले करते आए हैं।
लेकिन आखिर में आज की दुनिया में छाए एक अनोखे खतरे की चर्चा जरूरी है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ने अच्छे और बुरे, हर किस्म के काम के लिए लोगों के हाथ अंधाधुंध ताकत दे दी है। दुनिया में मुजरिमों या आतंकियों के ऐसे समूह हो सकते हैं जिनके साथ कुछ साइबर-घुसपैठिए हों, और कुछ एआई एक्सपर्ट। इन दोनों की ताकत से लैस आतंकी दुनिया में इतनी बड़ी तबाही कर सकते हैं जिसकी कल्पना भी मुश्किल है। यह सोचकर देखें कि अगर किसी देश में अस्पतालों के सारे रिकॉर्ड खत्म हो जाएं, बैंकों के खाते मिट जाएं, ट्रेन और प्लेन का नियंत्रण करने वाले सिस्टम खत्म कर दिए जाएं, इंटरनेट और टेलीफोन कंपनियों का काम चौपट कर दिया जाए, क्रेडिट और डेबिट कार्ड काम करना बंद कर दें, तो क्या होगा? जो लोग साइबर-घुसपैठ और एआई की अलग-अलग ताकत को जानते हैं, वे इस बात का अंदाज लगा सकते हैं कि एक और एक मिलकर ये तबाही का 11 कैसे बन सकते हैं। इसलिए आज दुनिया को सुरक्षित रखने के लिए कम से कम सामाजिक बेइंसाफी तो खत्म करनी चाहिए, क्योंकि इससे लोगों को दुनिया के किसी एक खास तबके या इलाके, सरकार या कारोबार को खत्म करने की जायज वजह भी मिलती है। शांति और सुरक्षा का रास्ता कभी भी सरकारी या कारोबारी हिंसा से होकर नहीं निकल सकता।