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एडसमेटा मुठभेड़ रिपोर्ट पेश, आयोग ने माना सुरक्षा बलों ने घबराहट में की थी गोलीबारी, खुफिया सूचना का अभाव....
14-Mar-2022 7:03 PM
 एडसमेटा मुठभेड़ रिपोर्ट पेश, आयोग ने माना सुरक्षा बलों ने घबराहट में की थी गोलीबारी, खुफिया सूचना का अभाव....

  9 साल बाद आई विस में रिपोर्ट, 10 बिन्दुओं पर सुझाव भी 
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 14 मार्च।
नौ साल पहले बीजापुर के एडसमेटा में मुठभेड़ प्रकरण की न्यायिक जांच आयोग का प्रतिवेदन सोमवार को विधानसभा में पेश किया गया। घटना में 9 लोगों के अलावा सीआरपीएफ के एक जवान की भी मृत्यु हुई थी। आयोग ने माना है कि सुरक्षा बलों द्वारा गोलीबारी आत्मरक्षा में नहीं की गई थी बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि उनके द्वारा गोलीबारी पहचानने में हुई गलती,  तथा घबराहट  के कारण हुई थी। प्रतिवेदन में यह भी कहा गया कि यदि बेहतर खुफिया जानकारी दी गई होती, तथा वे उचित सावधानी बरतते तो संभवत: गोलीबारी को टाला जा सकता था। आयोग ने दस बिन्दुओं पर सुझाव भी दिए।

जस्टिस वीके अग्रवाल की एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का प्रतिवेदन सीएम भूपेश बघेल ने विधानसभा के पटल पर रखा। यह घटना 17 और 18 मई 2013  की दरमियानी रात को बीजापुर जिले के जगरगुंडा के ग्राम एडसमेटा में हुई थी। इस घटना में सुरक्षा बल की गोली से 8 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। 5 व्यक्ति घायल हो गए, और घायल हुए व्यक्तियों में से एक की बाद में मृत्यु हो गई। घटना में सीआरपीएफ  के एक सदस्य की भी मृत्यु हुई।

गृह विभाग के पालन प्रतिवेदन में यह बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 6 सितंबर 2019 को प्रकरण सीबीआई जबलपुर को सौंप दिया गया। सीबीआई प्रकरण की विवेचना कर रही है।
आयोग ने जांच के बिंदु तय किए थे उनमें नक्सलियों के साथ मुठभेड़ हुई थी? घटना कब और किन परिस्थितियों में घटित हुई? सहित आयोग ने 7 बिन्दुओं पर जांच की, और भविष्य को लेकर सुझाव भी दिए। 99 पेज के प्रतिवेदन में यह उल्लेखित है कि सुरक्षा बलों ने आग के आसपास लोगों के जमाव को देखा, संभवत: उन्होंने उन्हें नक्सल संगठन का सदस्य मान लिया। जिसके परिणाम स्वरूप उन्होंने और तथाकथित आत्मरक्षा में गोलियां चलानी शुरू कर दी। यद्यपि जैसा कि पहले भी विचार किया जा चुका है। प्रस्तुता सुरक्षा बलों के सदस्यों की जान को कोई खतरा नहीं था, क्योंकि यह संतोषजनक रूप से सुस्थापित नहीं किया गया है कि जमाव के सदस्यों ने सुरक्षा बलों के संचालन दल पर हमला किया या उन पर गोलियां चलाना प्रारंभ किया।

प्रतिवेदन में आगे कहा गया है कि जैसा कि पहले भी गौर किया गया है तथा माना गया है कि सुरक्षा बलों द्वारा की गई गोलीबारी आत्मरक्षा में नहीं की गई थी। बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि उनके द्वारा गोलीबारी उनसे पहचानने में हुई गलती तथा घबराहट के कारण हुई थी। जैसा की पहले इस बात पर गौर किया जा चुका है, कि यदि सुरक्षा बल आत्मरक्षा के पर्याप्त उपकरणों से सुसज्जित होते तथा उन्हें बेहतर यह जानकारी दी गई होती तो तथा यदि वे सावधानी बरतते, तो गोलीबारी को टाला जा सकता था।

आयोग ने अपने प्रतिवेदन में सुझाव दिए हैं कि सुरक्षा बलों को ऐसे मोड्यूल निर्मित तथा निरूपित कर बेहतर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि सुरक्षा कर्मी न केवल बस्तर की सामाजिक स्थितियों तथा धार्मिक त्योहारों से परिचित हो, बल्कि वहां के पहाड़ी तथा अन्य वन क्षेत्रों से भी परिचित हो। अन्य सुझावों में यह भी कहा गया है कि इलाके में ऐसी घटनाओं की तीव्रता को देखते हुए खुफिया तंत्र को और अधिक मजबूत और विश्वसनीय बनाया जाना चाहिए। जिसके पास सुरक्षा बलों द्वारा संपूर्ण प्रस्तावित अभियान के संबंध में जानकारी समय से पहले एकत्रित कर प्रदान करने के लिए बेहतर ढंग से तैयार रहे। ऐसी खुफिया जानकारी संभवत: समय पूर्व किए गए वृहद सर्वेक्षण से एकत्रित की जा सकती है। बस्तर के ग्रामीण और अंदुरूनी इलाकों में सामान्य विकास, और विशेषकर सडक़ों की संयोजकता में युद्ध स्तर में सुझाव किया जाना चाहिए। पालन प्रतिवेदन में गृहविभाग ने सरकार द्वारा सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण और खुफिया तंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में उठाए गए कदमों की जानकारी दी।


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