स्थायी स्तंभ
बैचमेट अब अगल-बगल मुखिया
मुख्य सचिव अमिताभ जैन के बैचमेट अनुराग जैन मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव नियुक्त हुए हैं। 89 बैच के अफसर अनुराग जैन का छत्तीसगढ़ से भी नाता रहा है। वो कांकेर के एडिशनल कलेक्टर रह चुके हैं। दोनों के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं।
आईएएस के 89 बैच के अफसर केन्द्र सरकार के कई विभागों में सचिव हैं, तो इस बैच के अफसर रिटायरमेंट के बाद पांच राज्यों में रेरा के चेयरमैन बन चुके हैं। अनुराग से परे अमिताभ जैन को मुख्य सचिव के पद पर तीन साल हो चुके हैं। अगले साल जून में उनका रिटायरमेंट है।
छत्तीसगढ़ के अब तक के सभी मुख्य सचिवों में आरपी बगई को छोडक़र बाकी सभी को कुछ न कुछ दायित्व मिला है। ऐसे में किसी तरह के विवादों से दूर रहने वाले अमिताभ जैन को भी रिटायरमेंट के बाद जिम्मेदारी मिलना तय माना जा रहा है। वैसे भी नीति आयोग के उपाध्यक्ष का अतिरिक्त दायित्व है ही।
पंजाब के विवाद का यहां से रिश्ता
छत्तीसगढ़ की रहने वाली पंजाब कैडर की आईएएस अनिंदिता मित्रा की पोस्टिंग को लेकर केंद्र, और पंजाब सरकार के बीच ठन गई है। अनिंदिता, छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस एसके राजू की पत्नी हैं। अनिंदिता के आईएएस बनने के बाद राजू ने भी अपना कैडर चेंज करा पंजाब चले गए थे।
केन्द्र ने अनिंदिता की पोस्टिंग चंडीगढ़ में निगम आयुक्त के पद पर की थी। उन्हें तीन माह का एक्सटेंशन भी दिया जा चुका था। एक्सटेंशन खत्म होने के बाद पंजाब सरकार ने उनकी एक विभाग में पोस्टिंग भी कर दी। इसके बाद फिर उन्हें एक्सटेंशन दिया गया है। चूंकि केन्द्र सरकार ने एक महीना देर से ऑर्डर जारी किया है। इसलिए पंजाब सरकार उन्हें रिलीव करने से मना कर दिया है। यह अपनी तरह का एक अलग मामला है, जिसकी अफसरों के बीच काफी चर्चा है।
हड़ताल के किस्से
शुक्रवार को पांच लाख कर्मचारियों की काम बंद कलम बंद हड़ताल सफल रही। जैसा कि 110 संगठनों वाले फेडरेशन में आशंका जताई जा रही कि शुक्रवार को सामूहिक अवकाश लेकर बहुतेरे तीन दिन के टूर पर निकल जाएंगे। उसके सच होने की खबरें आ रही हैं। हालांकि ऐसे लोगों पर नजर रखने फेडरेशन और अन्य कर्मचारी संगठन के नेताओं को जिम्मेदारी दी गई थी। बावजूद इसके राजधानी से लेकर सुदूर ब्लाक के कर्मचारी ने वही किया। कुछ तीन दिन के लिए निकल गए तो कुछ घंटे दो घंटे पंडाल में बिताकर लौट गए । यह तो बात हुई व्यक्तिगत हिस्सेदारी की। लेकिन यहां तो दो संगठनों के नदारद होने की चर्चाएं वाट्सएप ग्रुप में चल रही है । बताया गया है कि नियमित व्याख्याता संघ और वाहन चालक संघ का एक भी पदाधिकारी शामिल नहीं हुआ। यह गैरहाजिरी ,पूरे प्रदेश स्तर पर रही या किसी एक जिले में फेडरेशन इसकी पड़ताल कर रहा है। हालांकि दोनों ही संघों के मुखिया रिप्लाई में खारिज कर रहे हैं। सवाल जवाब के दौर चल रहे हैं। ऐसे में यह विवाद थमता नजर नहीं आ रहा।
अब भगवान का ही सहारा
थाने का शुद्धिकरण और अपराध नियंत्रण के लिए श्रीफल विच्छेदन के बाद से पुलिस को जवाब देते नहीं बन रहा। बड़े साहब भी नाराज हैं। लेकिन थाना स्टाफ कहता है, जिस पर गुजरती है न वही जानता है । सब कुछ ठीक चल रहा था, जब से नए थानेदार आए थे। करीब चार महीने तक मॉल की सैर, पीवीआर में सिनेमा, परिवार के साथ लंच डिनर हो रहा था। फिर अचानक पीआरए शूट आउट ने सारा रूटीन बदल दिया। और उस पर चोरियां, हिट एंड रन, हत्या के प्रयास और फिर 7 दिन में 2 हत्याकांड। बल को पेट्रोलिंग के बजाए श्रीमानों की ड्यूटी में लगाया जाए तो अपराधियों को मैदान खाली मिलेगा ही। पुलिस परेशान न हो तो क्या करे? भौतिक उपाय काम न आए तो पूजा पाठ, ज्योतिष का सहारा तो लेना ही होगा न। क्या गलत किया।
मवेशियों की मुसीबत
हाईवे पर मवेशियों के चलते हो रही लगातार दुर्घटनाएं हो रही हैं। मवेशी सडक़ों से हटने का नाम नहीं ले रहे हैं और हाईकोर्ट ने इन्हें हटाने के लिए अफसरों को कई बार डांट पिला दी है। यहां तक कि अदालत ने राजधानी से लेकर पंचायत तक की समितियां बनाने का निर्देश दिया है। जिलों में इन दिनों कलेक्टर्स ने तहसीलदार और एसडीएम को मवेशी खदेडऩे के काम में लगा दिया है। हाईवे पर अफसर मवेशियों को डेरा डाले देखते हैं तो उन्हें हटाते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। लौटते में देखते हैं कि मवेशी फिर वहीं पर, सडक़ पर आकर जम गए हैं। दरअसल, हो यह रहा है कि किसानों की फसल इन दिनों पकने के लिए तैयार है। मवेशी उनकी कमाई को चट न कर जाएं इसलिये उन्हें भीतर घुसने नहीं दिया जा रहा है। जो अनुपयोगी हो चुके मवेशियों को बेचना चाहते हैं, उन्हें खरीदार नहीं मिल रहे। गौरक्षकों का डर सताता है। इन रक्षकों को सडक़ में हो रही दुर्घटनाएं दिखाई नहीं दे रही है। थोड़ी ही संख्या ऐसे पशुपालकों की है, जो घर में मवेशियों को बांधकर रख रहे हैं। पिछली सरकार ने ढेरों की संख्या में गौठान बनाए थे। इनमें से बहुत से तो उसी समय उजड़ चुके थे, अब बचे हुए गौठान भी उजाड़ हो चुके हैं। मवेशी हटाने के काम में फंसे एक अफसर का कहना है कि अब हाईकोर्ट लाठी दिखाए या कलेक्टर, मवेशी तो फसल कटने के बाद ही सडक़ से हटेंगे।
बेकार भी नहीं स्काई वाक
राजधानी रायपुर के स्काई वॉक के विवादित ढांचे का मामला भले ही छह साल से अधर में लटका हुआ हो, लेकिन इसकी उपयोगिता बारिश होने पर समझ में आती है।
पार्टी सदस्यता और चुनौतियाँ
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भले ही सदस्यता अभियान को लेकर प्रदेश के नेताओं की पीठ थपथपा दी है, और सदस्यता का टारगेट बढ़ा दिया है। मगर पार्टी के अंदरखाने में सदस्यता पर नई उलझन पैदा हो गई है। चर्चा है कि जितना सदस्य बनना बताया गया था, उतने नहीं बने हैं।
नड्डा की समीक्षा बैठक में प्रदेश के नेताओं ने बताया था कि अब तक 27 लाख सदस्य बने हैं। लेकिन वस्तु स्थिति यह है कि अभी सिर्फ 17 लाख सदस्य को ही मान्यता मिली है।
ऐसा नहीं है कि सदस्यता अभियान में कोई फर्जीवाड़ा हुआ है। दरअसल, 17 लाख सदस्य ऑनलाइन बने हैं, और हरेक का रिकॉर्ड मौजूद है। बाकी 10 लाख सदस्य मैन्युअल बने हैं। हाईकमान का स्पष्ट निर्देश है कि केवल ऑनलाइन को ही सदस्य माना जाएगा।
मैन्युअल सदस्य दूर दराज के इलाके जहां मोबाइल नेटवर्क आदि की समस्या थी वहां के लिए अनुमति दी गई थी, लेकिन उनकी भी ऑनलाइन एंट्री करनी होगी तभी उन्हें सदस्य माना जाएगा। यानी उनकी ऑनलाइन एंट्री अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही है। इसके बाद सदस्यता के नए टारगेट को लेकर पार्टी नेताओं का पसीना छूट रहा है।
न्याय यात्रा का माहौल
कांग्रेस की न्याय यात्रा गिरौदपुरी धाम से निकलकर कसडोल, और बलौदाबाजार के गांवों से होकर रायपुर के नजदीक खरोरा पहुंच चुकी है। दो तारीख को रायपुर में समापन होगा। न्याय यात्रा की अगुवाई वैसे तो प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज कर रहे हैं, लेकिन पार्टी के बड़े नेता भी अलग-अलग जगहों पर यात्रा में शिरकत कर रहे हैं।
पहले दिन नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम साथ थे। जैसे-जैसे यात्रा बढ़ी, तेज धूप और उमस की वजह से यात्रियों का बुरा हाल रहा। बैज ने तो रविवार को दोपहर भोजन के बाद कुछ देर एसी चालू कर कार में आराम किया, और फिर घंटे भर बाद फिर पदयात्रा शुरू की।
पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी कल लाव लश्कर के साथ यात्रा में शामिल हुए। वो करीब 5 किमी बैज के साथ चले। इसके बाद वो दिल्ली के लिए निकल गए। उनका अंदाज कुछ हद तक दिवंगत पूर्व सीएम अजीत जोगी जैसा ही था। जोगी भी लाव लश्कर के साथ कार्यक्रम में आते थे, और फिर उनके जाते ही साथ आए लोग भी निकल जाते थे। भूपेश के साथ आए लोग भी निकल गए। फिर भी यात्रा उत्साह देखने को मिल रहा हैै। इससे दीपक बैज, और उनकी टीम काफी खुश भी हैं।
एंटी इनकंबेंसी से जूझ रहे पार्षद
सब कुछ समयानुकूल रहा तो निकाय चुनाव दिसंबर के तीसरे सप्ताह कराए जाएंगे। इसे देखते हुए विपक्ष में बैठे भाजपा के पार्षद, कांग्रेसी महापौर को और कांग्रेस के पार्षद-महापौर, सरकार को कोसने लगे हैं। यह सभी निगम, पालिका और नगर पंचायतों में हो रहा है। पांच वर्ष तक सबने मिलकर खीर खाई और चुनाव के समय खीर को कड़वा बताने में लग गए हैं। जनवरी-19 से 1825 दिन अपनी इनकम बढ़ाने में व्यस्त रहे दोनों ही दलों के पार्षद इस समय ज़बरदस्त एंटी इनकंबेंसी से गुजर रहे।
आउटर कहे जाने वाले वार्डों के पार्षद अधिक जूझ रहे। गांव से वार्ड बने इलाकों में लोगों में पार्षदों के लिए नाराजगी गले तक भरी हुई है।खासकर इन वार्डों के अंतिम छोर वाले इलाकों के लोग सबक सिखाने इंतजार कर रहे हैं। पार्षद कांग्रेस का हो या भाजपा का, इनको निपटाने की ठान चुके हैं। बिना स्ट्रीट लाइट की गलियां, मुख्य सडक़ें। एक-एक स्ट्रीट लाइट के लिए महीनों चक्कर लगवाया है इन पार्षदों ने। अब वोटर की बारी आ रही है। फिर भी इनका कहना है मैंने अपने वार्ड में विकास की गंगा बहाई। सडक़,सफाई बाग बगीचे बनवाए आदि आदि।
इंदौर, दिल्ली चंडीगढ़, बेंगलुरु मैसूर पिकनिक कर आए यह बोलकर कि अपने वार्ड को भी कनॉट प्लेस, लोधी रोड, पैलेस वार्ड, रेसीडेंसी बनाएंगे। लेकिन सच्चाई सबने देखा, हाल की बारिश में शहर, असम होकर रह गया। लोगों को स्कूलों में ठहरना पड़ा। सडक़ों पर बोट चलाना पड़ा। गलत नहीं हैं, नि:संदेह विकास तो हुआ है, इन पार्षदों के बैंक एकाउंट का, इनके स्वयं के मकानों का, स्कूटी, बाइक से अब एक्सयूवी,एसयूवी में चल रहे। जनता सब देख रही, बस आने वाला है उसका समय।
मेहनत का मोल नहीं
पंजाब के किसान, जो अनाज की भरपूर पैदावार के लिए जाने जाते हैं, आज अपनी मेहनत का सही मूल्य न मिलने पर धान को सडक़ों पर फेंककर विरोध कर रहे हैं। यह धान भी कोई साधारण किस्म नहीं, बल्कि सुगंधित बासमती है। किसानों का कहना है कि पिछले साल बासमती की कीमत 917 डॉलर प्रति टन थी, तब उन्हें 3500 रुपये प्रति क्विंटल मिले थे। अब जब इसकी अंतरराष्ट्रीय कीमत 1037 डॉलर प्रति टन हो गई है, तो उन्हें 2200 रुपये से ज्यादा नहीं मिल रहा है।
बासमती की खेती में लागत भी ज्यादा आती है, और बाजार में यह महंगा बिकता है। फिर भी किसानों को इसका फायदा नहीं मिल रहा। उनके अनुसार सारा मुनाफा बिचौलियों और आढ़तियों की जेब में जा रहा है। अगर छत्तीसगढ़ की बात करें, तो यहां ज्यादातर किसान सरकारी खरीद को ध्यान में रखते हुए मोटा धान उगाते हैं। खुले बाजार में बिकने वाले धान की यहां भी कोई खास कीमत नहीं मिलती, चाहे वह सुगंधित हो या मोटा।
इस कठिन परिस्थिति के बावजूद बाजार में चावल की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है। बासमती तो बस खास लोगों और खास मौकों के लिए शाही चावल बनकर रह गया है, जबकि मेहनत करने वाले किसानों को उनके पसीने की असली कीमत नहीं मिल रही।
अधूरे आवासों का भविष्य क्या होगा?
छत्तीसगढ़ के पिछले विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री आवास योजना के ठप पडऩे को भाजपा ने बड़ा मुद्दा बनाया था। इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा। अब नई भाजपा सरकार ने इस योजना को पुन: गति देने के लिए राशि जारी करनी शुरू कर दी है। हाल ही में केंद्र सरकार ने 2400 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की है, जो प्रस्तावित 5 लाख 11 हजार आवासों की पहली किश्त है। मुख्यमंत्री साय ने कलेक्टरों को निर्देश दिया है कि किसी भी प्रकार की लेन-देन या भ्रष्टाचार की शिकायत मिलने पर सख्त कार्रवाई की जाए।
हालांकि, प्रधानमंत्री आवास योजना में भ्रष्टाचार की शुरुआत लाभार्थियों की सूची में नाम दर्ज होने के समय से ही हो जाती है। बंदरबांट तो किश्त जारी होने के बाद भी कम नहीं। ठेकेदार काम की जिम्मेदारी तो लेते हैं, पर अक्सर उसे अधूरा छोड़ देते हैं। पहली किश्त मिलने के बाद दूसरी किश्त तब जारी होती है जब निर्माण छत की ऊंचाई तक पहुंचता है, और तीसरी किश्त काम के और आगे बढऩे पर। चौथी और अंतिम किश्त तब मिलती है जब मकान पूरी तरह तैयार हो जाता है। फिलहाल, लाभार्थियों के खातों में पहली किश्त जमा कर दी गई है, लेकिन वह राशि अभी फ्रीज है, यानी उसे निकाला नहीं जा सकता। काम की प्रगति के साथ ही पहली किश्त जारी की जाएंगी। पिछले अनुभव बताते हैं कि शुरुआत में निगरानी तो होती है, परंतु बाद में निरीक्षण करने अधिकारी और कर्मचारी खुद ठेकेदारों से मिल जाते हैं। पूरे प्रदेश में ऐसे हजारों मकान हैं, जिनका निर्माण अधूरा पड़ा है क्योंकि अगली किश्त काम अधूरा होने के कारण रुक गई है। ठेकेदार और दलाल पहली किश्त हड़प कर गायब हो चुके हैं। वर्ष 2021 के बाद राज्य सरकार की ओर से हिस्सेदारी न मिलने और कोविड-19 के कारण केंद्र द्वारा धनराशि न भेजे जाने से योजना ठप हो गई। नतीजा यह हुआ कि अब इन लाभार्थियों के पास अपने अधूरे मकानों को पूरा करने के लिए धन नहीं है। प्रदेश में ऐसे ठेकेदारों से शायद ही कभी वसूली की गई हो, जिन्होंने लाभार्थियों की रकम हड़प ली। इस समस्या का हल क्या होगा?
दक्षिण में सामाजिक दबाव
रायपुर दक्षिण सीट उपचुनाव को लेकर हलचल तेज हो गई है। सामाजिक बैठकों का दौर भी चल रहा है। सबसे पहले अग्रवाल समाज ने कांग्रेस, और भाजपा से टिकट के लिए दबाव बनाया है। यहां से बृजमोहन अग्रवाल विधायक रहे हैं। ऐसे में अग्रवाल समाज के नेता विशेषकर भाजपा की टिकट पर स्वाभाविक हक मान रहे हैं।
भाजपा से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल, प्रदेश कोषाध्यक्ष नंदन जैन (अग्रवाल), प्रदेश प्रवक्ता अनुराग अग्रवाल, बृजमोहन अग्रवाल के छोटे भाई विजय अग्रवाल के अलावा भी कई व्यापारी नेता दावेदारी कर रहे हैं। जबकि कांग्रेस से कन्हैया अग्रवाल, और सन्नी अग्रवाल की दावेदारी है। इससे परे ब्राम्हण समाज भी पीछे नहीं है।
सर्व ब्राम्हण समाज के बैनर तले ब्राम्हण नेताओं की एक बैठक हो चुकी है। रायपुर दक्षिण में करीब 35 हजार ब्राम्हण वोटर हैं। इन सबको देखते हुए सामाजिक रूप से एकजुट कर दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों से टिकट के लिए दबाव बनाने की रणनीति पर काम हो रहा है। कांग्रेस से सभापति प्रमोद दुबे, ज्ञानेश शर्मा सहित कई नाम चर्चा में हैं, तो भाजपा से मीनल चौबे, सुभाष तिवारी, मृत्युंजय दुबे और मनोज शुक्ला के नाम चर्चा में हैं।
दूसरी तरफ, पिछड़ा वर्ग, और अल्पसंख्यक नेता दोनों ही पार्टियों में सक्रिय हैं, और वो टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। सामाजिक दबाव का राजनीतिक दलों पर कितना असर होता है, यह तो प्रत्याशी की घोषणा के बाद ही पता चल पाएगा।
सत्ता और संघ
छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के सीएम विष्णुदेव साय निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिए गए। यहां ओलंपिक संघ का तो कोई काम नहीं है, क्योंकि अलग-अलग खेलों के संघ के मार्फत टूर्नामेंट होते रहते हैं। मगर सीएम के अध्यक्ष बनने से पद जरूर प्रतिष्ठापूर्ण रहा है। खास बात यह है कि राज्य बनने के बाद से ओलंपिक संघ के अध्यक्ष सीएम ही बनते आए हैं। बाकी राज्यों में ऐसा नहीं है।
ओलंपिक संघ अध्यक्ष पद पर सीएम के बनने के पीछे खेल संघों की अपनी राजनीति है। राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के अध्यक्ष के पद पर अजीत जोगी निर्वाचित हुए। मगर उन्हें अध्यक्ष बनने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी, और अंत तक उनका निर्वाचन विवादों से घिरे रहा।
विवाद की शुरुआत तत्कालीन मंत्री विधान मिश्रा के महासचिव बनाने के प्रस्ताव पर हुई। तब ओलंपिक संघ के अध्यक्ष पद पर खेल संघ के शंकर सोढ़ी, और महासचिव विधान मिश्रा बनने वाले थे, तब खेल संघ के कुछ पदाधिकारियों ने सीधे अजीत जोगी से संपर्क साधकर उन्हें अध्यक्ष बनाने के लिए तैयार कर लिया।
जोगी अध्यक्ष तो बन गए, लेकिन भारतीय ओलंपिक संघ से मान्यता नहीं मिली। क्योंकि उस वक्त दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल भारतीय ओलंपिक संघ के आजीवन अध्यक्ष थे। शुक्ल ने जोगी को रोकने के लिए अपने करीबी पूर्व महापौर बलवीर जुनेजा को अध्यक्ष, और सलाम रिजवी को महासचिव बनवा दिया। भारतीय ओलंपिक संघ ने शुक्ल समर्थक संघ के पदाधिकारियों को मान्यता दे दी। बाद में यह लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक गई। सरकार बदलने के बाद डॉ. रमन सिंह ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बने। उन्हें अध्यक्ष बनवाने में डॉ. अनिल वर्मा ने भूमिका निभाई।
कांग्रेस सरकार आने के बाद भूपेश बघेल ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बन गए। कुछ समय के लिए गुरुचरण सिंह होरा महासचिव बने, बाद में उनकी जगह देवेन्द्र यादव महासचिव बनाए गए। कांग्रेस सरकार के जाते ही भूपेश बघेल को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया, और उनकी जगह सीएम विष्णुदेव साय अध्यक्ष बने। महासचिव पद पर विक्रम सिसोदिया का निर्वाचन हुआ, जो कि इस चुनाव के केन्द्र में रहे हैं। यानी सरकार बदलने के साथ-साथ ओलंपिक संघ के पदाधिकारी भी बदलते रहे हैं।
आस्था पर ज्यादा खर्च होगा...
तीन अक्टूबर से शुरू हो रहे नवरात्रि पर्व पर तिरुपति लड्डू प्रकरण की छाया दिखाई दे रही है। राज्य सरकार की ओर से घी के मामले में तो यह कहा गया है कि देवभोग ब्रांड, जो सरकार का ही एक सहकारी उत्पाद है उसका घी जलाने में काम लिया जाए, मगर तेल का क्या होगा? उनमें भी मिलावट की शिकायत है। अप्रैल महीने में आने वाले चैत्र नवरात्रि के दौरान अंबिकापुर में खाद्य विभाग ने करीब 8 हजार लीटर नकली तेल जब्त किया था। अन्य अखाद्य तत्वों के अलावा इसमें खतरनाक एसिड मिला होने की भी आशंका थी। जब्ती के बाद लैब रिपोर्ट क्या आई, इसकी जानकारी नहीं है। पर, इन्हें मंदिरों में खपाने से पहले जब्त कर लिया गया था। यहां पर नकली घी का भी भंडार मिला था। महंगाई के इस दौर में लोगों का ध्यान आस्था की अभिव्यक्ति के दौरान भी बजट की ओर ध्यान रहता है। प्राय: सभी मंदिर समितियां नौ दिन जलने वाले घी व तेल के ज्योति कलश के लिए शुल्क का निर्धारण करते समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि इनका शुल्क कम ही रखा जाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रद्धालु ज्योत प्रज्ज्वलित करा सकें। जब तक तिरुपति का मामला सामने नहीं आया था मंदिर समितियां रेट सूची मंगाकर सप्लायर या निर्माताओं को सीधे ऑर्डर कर देती थीं। पर इस बार भक्तों की आस्था डगमगा गई है। वे पूछताछ कर रहे हैं कि किस ब्रांड के तेल या घी से ज्योति जलने वाली है।
चैत्र व क्वांर नवरात्रि पर घी और तेल का कारोबार करोड़ों में है। रतनपुर स्थित महामाया मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां देश में सबसे ज्यादा ज्योति कलश प्रज्ज्वलित होती है। पिछली चैत्र नवरात्रि में 500 टिन घी और 3 हजार टिन तेल की खरीदी की गई थी। पहले आपूर्ति करने वाली कंपनियों की जगह इस बार देवभोग घी का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया गया है। तेल भी इस बार केवल ब्रांडेड कंपनियों का होगा। इसी तरह की खबर दूसरे जगहों से भी है। बालोद जिले के गंगा मईया मंदिर में घी और तेल का पहले लैब टेस्ट कराया जाएगा, फिर इस्तेमाल किया जाएगा।
ज्योति कलश के लिए खरीदे जाने वाले घी, तेल की गुणवत्ता पर पहली बार इतनी सावधानी बरती जा रही है। इसके पहले श्रद्धालुओं को विभिन्न मंदिरों में जो प्रतिस्पर्धी शुल्क दिखाई देते थे, आने वाले दिनों में हो सकता है उन्हें ज्यादा खर्च करना पड़े। शुद्धता की कीमत तो चुकानी होगी।
एक माह में इतनी उछाल !
राशन, सब्जी, सीमेंट. छड़ की महंगाई पर रोजाना चर्चा हो जाती है पर दवाओं की कीमत अचानक बढ़ जाती है और कुछ खबर भी नहीं लगती। यह दवा सितंबर में 195 रुपये में मिलती थी। अगले महीने अक्टूबर में इसका दाम हो गया 350 रुपये। क्यों, क्या इस एक महीने में कच्चा माल महंगा हो गया। सरकार ने टैक्स बढ़ा दिया? लोग सवाल नहीं कर पाते। जवाब देने वाला कोई होता भी नहीं। एक बात जरूर ध्यान में आती है कि दवा कंपनियों ने जमकर इलेक्टोरल बांड खरीदे थे। ([email protected])
29 सितंबर : भारत ने ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ कर आतंकवादियों को सिखाया सबक
नयी दिल्ली, 29 सितंबर (भाषा)। इतिहास में 29 सितंबर का दिन भारत द्वारा पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर उसके आतंकवादी शिविरों को नेस्तनाबूद करने के साहसिक कदम के गवाह के तौर पर दर्ज है। भारत ने जहां इस अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम देने का दावा किया, वहीं पाकिस्तान ने ऐसी किसी भी कार्रवाई से इनकार किया।
जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर आतंकवादी हमले में 18 जवान शहीद हो गए थे। इसे भारतीय सेना पर सबसे बड़े हमलों में से एक माना गया। 18 सितंबर 2016 को हुए उरी हमले में सीमा पार बैठे आतंकवादियों का हाथ बताया गया। भारत ने इस हमले का बदला लेने के लिए 29 सितंबर को पाकिस्तान के खिलाफ ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ को अंजाम दिया।
इसके अलावा 29 सितंबर 2023 की विधि मंत्रालय की एक अधिसूचना में बताया गया कि राष्ट्रपति ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण प्रदान करने के प्रावधान वाले महिला आरक्षण विधेयक को 28 सितंबर 2023 को अपनी मंजूरी दे दी, जिसके बाद यह कानून बन गया।
देश दुनिया के इतिहास में 29 सितंबर की तारीख पर दर्ज कुछ अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है:-
1836 : मद्रास चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की स्थापना।
1942 : मातंगिनी हाजरा की 72 वर्ष की आयु में बंगाल के तमलुक में अगस्त आंदोलन में कांग्रेस के जुलूस का नेतृत्व करते हुए गोली मारकर हत्या कर दी गई।
1923 : बालफोर घोषणा (1917) के अनुसार ब्रिटेन द्वारा फलस्तीन में एक यहूदी बस्ती की स्थापना की सहमति को अंतत: काउंसिल ऑफ द लीड ऑफ नेशंस ने मंजूरी दी, जो आज के दिन अस्तित्व में आई।
1938 : पोलैंड ने टेश्चेन पर अपना अधिकार दोहराया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद इस संपन्न इलाके को पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया के बीच बांट दिया गया था। इस क्षेत्र पर अधिकार को लेकर दोनों देशों के रिश्तों में खिंचाव बना रहा।
1959 : भारत की आरती साहा ने ‘इंग्लिश चैनल’ को तैरकर पार किया। ऐसा करने वाली वह एशिया की पहली महिला बनीं। उफनती लहरों और बर्फीले पानी के कारण इस विशाल जलराशि को तैरकर पार करना एक कठिन चुनौती थी और ‘इसे तैराकी का माउंट एवरेस्ट’ कहा जाता है। आरती ने 19 बरस की आयु में इस खतरनाक यात्रा को सफलतापूर्वक पूरा किया।
1961 : ऑस्ट्रेलिया की पहली महिला प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड का जन्म। वेल्स में जन्मीं जूलिया 2010 में ऑस्ट्रेलिया की प्रधानमंत्री बनीं।
1962 : कलकत्ता में बिरला तारामंडल की शुरुआत।
1970 : यूनियन कार्बाइड ने बम्बई स्थित अपने केमिकल्स एंड प्लास्टिक्स संयंत्र में पहला जलशोधन संस्थान स्थापित किया। इसमें साफ किए जाने वाले सीवेज के पानी को औद्योगिक कार्यों में इस्तेमाल किया जाना था।
1977 : भारत और बांग्लादेश ने गंगा नदी जल बंटवारे पर एक संधि पर हस्ताक्षर किए।
1988 : चैलेंजर के दुर्घटनाग्रस्त होने के ढाई साल के बाद अमेरिका ने अपना पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष यान सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया।
2016 : भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक कर घुसपैठ की फिराक में सीमा के इर्द -गिर्द छिपे आतंकवादियों के ठिकाने पर हमला करने का दावा किया। पाकिस्तान ने भारत के दावे का खंडन किया।
2020: कुवैत के अमीर (शासक) शेख सबाह अल अहमद अल सबाह का 91 वर्ष की उम्र में इंतकाल हो गया। वह 2006 में कुवैत के अमीर बने थे।
2023: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के महिला आरक्षण विधेयक को अपनी मंजूरी देने के बाद विधि मंत्रालय ने अधिसूचना जारी की। यह कानून लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण प्रदान करने का प्रावधान करता है।
किचकिच के बाद एयरपोर्ट का जिम्मा
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा गुरुवार को रायपुर आए, तो एयरपोर्ट में अंदर प्रवेश के लिए पार्टी नेताओं में काफी किचकिच हुई। यह मामला उस वक्त और बढ़ गया जब प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन को छोडऩ़े के लिए एयरपोर्ट पहुंचे महामंत्री (संगठन) पवन साय को बाहर रोक दिया गया। चर्चा है कि इन घटनाक्रमों से नितिन नबीन काफी खफा हैं, और उनके हस्तक्षेप के बाद एयरपोर्ट में स्वागत-सत्कार प्रबंधन की जिम्मेदारी प्रीतेश गांधी को दे दी गई है।
पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के रायपुर आगमन पर एयरपोर्ट में स्वागत-सत्कार आदि की व्यवस्था अब तक प्रदेश कार्यालय मंत्री देखते रहे हैं। प्रदेश कार्यालय मंत्री की शिकायत रही है कि पार्टी दफ्तर से नाम भेजे जाने के बावजूद एयरपोर्ट प्रबंधन अपनी तरफ से कई नाम काट देता है। जिससे वो अंदर प्रवेश करने से वंचित रह जाते हैं। इस मसले पर एयरपोर्ट अधिकारियों के अपने तर्क हैं। उनका कहना है कि नियमों को ताक पर रखकर अधिक संख्या में नेताओं को अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
विवाद के बाद प्रदेश भाजपा के नेता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि स्वागत-सत्कार के लिए एयरपोर्ट के अफसरों के साथ तालमेल बिठाकर काम करने की जरूरत है। इसके लिए प्रीतेश गांधी को उपयुक्त पाया गया। प्रीतेश एयरपोर्ट सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे हैं। न सिर्फ रायपुर बल्कि इंदौर एयरपोर्ट के भी सदस्य रहे हैं। उनके एयरपोर्ट अफसरों से अच्छे संबंध बताए जाते हैं। चर्चा है कि अब एयरपोर्ट में अंदर प्रवेश के लिए पार्टी की तरफ से सूची प्रीतेश ही फायनल करेंगे। देखना है कि नई व्यवस्था के बाद स्वागत-सत्कार को लेकर विवाद खत्म होता है या नहीं।
नड्डा से दोस्ती तो ठीक है, लेकिन आगे?
बीजापुर के पूर्व कलेक्टर अनुराग पांडेय गुरुवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा से मिले, तो नड्डा ने उनके साथ अपने पुराने रिश्तों को अन्य नेताओं से साझा किया।
नड्डा 90 के दशक में जेएनयू में एबीवीपी के प्रमुख थे। उस वक्त अनुराग भी वहां अध्ययनरत थे। तब से अनुराग के नड्डा से परिचित हैं। यही नहीं, नड्डा ने उनसे बीजापुर का हाल जाना। इस दौरान वहां मौजूद प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव ने अनुराग पांडेय की तारीफ करते हुए कहा कि बहुत कम समय में अंदरूनी इलाकों में अच्छा काम हुआ है। कुछ और नेताओं ने भी किरणदेव के सुर में सुर मिलाया।
ये अलग बात है कि रिटायर होने के बाद अनुराग को कोई जिम्मेदारी नहीं मिली है। सरकार उन्हें कोई दायित्व सौंपती है या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
7 दिन में 3 दिन की कमाई ..!
दुर्ग- विशाखा वंदेभारत एक्सप्रेस को शुरू हुए एक सप्ताह पूरा हो गया । इस दौरान इस द्रुतगामी ट्रेन में सप्ताह भर ड्यूटी करने वाले टिकिट कलेक्टर्स के मुताबिक इन 7 दिनों में तीन दिन का भी आपरेशनल कास्ट नहीं मिला रेलवे को।वैसे इस ट्रेन को अच्छे प्रतिसाद दिलाने वाट्सएप चैटिंग में कुछ का कहना है कि इसका रूट दुर्ग के बजाए कोरबा से चलाने का सुझाव दे रहे हैं। और टाइमिंग भी बता रहे सुबह 5 बजे कोरबा से स्टार्ट किया जाए तो दो बजे विशाखा पहुंचा जा सकता है। इससे कोरबा से विशाखापट्टनम के लिए एक और ट्रेन उपलब्ध रहेगी। दुर्ग से तो विशाखा के लिए समता,भगत की कोठी,साईंनगर एक्सप्रेस और रायपुर आकर रात लिंक एक्स्प्रेस की कनेक्टिविटी है ही।
बताया गया है कि इसके साथ 16 और 20 सितंबर से शुरू हुए नौ अन्य ट्रेनों का भी यही हाल बताया गया है। दिल्ली के एक राष्ट्रीय दैनिक ने दो दिन पहले ही इन ट्रेनों का पैसेंजर रिस्पांस प्रकाशित किया था। सिकंदराबाद- नागपुर जैसे महानगरों को जोडऩे वाली वंदेभारत भी अपनी कुल सीट क्षमता के मुकाबले सिर्फ 20 फीसदी यात्रियों के साथ दौड़ी।यानी यह ट्रेन 80 फीसदी से ज्यादा खाली सीटों के साथ चल रही है। इस पर रेल कर्मियों का कहना है कि शुरू के दो तीन महीने सभी का यही हाल रहता है। आने वाले दिन त्यौहारी, शीतकालीन अवकाश, न्यू ईयर ट्रिप के हैं, भीड़ बढ़ेगी बुकिंग बढ़ेगी।
साइबर ठगी का नया तरीका
साइबर अपराध की एक चाल को लोग समझने की कोशिश करते हैं, तभी दूसरी और तीसरी चालबाजियां सामने आ जाती हैं। हाल ही में इसका एक उदाहरण फर्जी ई-चालान के मेसेज के रूप में देखा जा रहा है। छत्तीसगढ़ के कई शहरों में चौक-चौराहों पर लगे सीसीटीवी कैमरों से सिग्नल तोडऩे पर कंट्रोल रूम में रिकॉर्ड दर्ज होता है, और तुरंत वाहन के पंजीकृत मोबाइल नंबर पर ई-चालान का मेसेज भेज दिया जाता है। इस प्रक्रिया में ऑनलाइन जुर्माना भरने की सुविधा भी दी गई है।
लेकिन अब इस प्रक्रिया को भी ठगी का जरिया बना लिया गया है। आपके मोबाइल पर चालान का मेसेज आएगा। आपको लगेगा कि आपने अनजाने में कोई ट्रैफिक नियम तोड़ा है। जैसे ही आप लिंक पर क्लिक करेंगे, आप ठगी के जाल में फंस सकते हैं। जालसाजों ने मिलते-जुलते नाम से फर्जी वेबसाइटें भी बना रखी हैं। गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (जीपीएम) जिले की पुलिस ने लोगों को इस बारे में सतर्क किया है, लेकिन संभव है कि छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों में भी ऐसा हो रहा हो। सभी के लिए यह जानकारी बेहद जरूरी है।
अभिभावकों की चिंता
छत्तीसगढ़ ही नहीं देशभर के स्कूलों से ऐसी खबरें लगातार आ रही हैं जिसने अभिभावकों को अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता पैदा कर दी है। मध्यप्रदेश सरकार ने हाल ही में एक आदेश जारी कर सभी निजी और सरकारी स्कूल के टीचिंग, नॉन टीचिंग स्टाफ यहां तक कि अस्थायी रूप से रखे जाने वाले कर्मचारियों का पुलिस वेरिफिकेशन अनिवार्य कर दिया है। अब ऐसी ही मांग कोरबा से उठी है। बीते दिनों शिक्षा मंत्री टंकराम वर्मा से पैरेंट्स एसोसियेशन ने ऐसा ही प्रावधान छत्तीसगढ़ में भी लागू करने की मांग की। उनका कहना है कि वे विशेषकर छात्राओं को लेकर चिंतित हैं। यदि यह पहल की गई तो यौन शोषण व दुर्व्यवहार की घटनाओं में नियंत्रण रखा जा सकेगा। यह जरूर है कि पुलिस वेरिफिकेशन स्कूलों का माहौल सुधारने के लिए पूरी तरह कारगर नहीं होगा। अनेक शिक्षक तो नशे की हालत में स्कूल पहुंचकर बच्चों का भविष्य खराब कर रहे हैं। उन पर कैसे निगरानी होगी? इसके बावजूद अभिभावकों की मांग गौर करने लायक है। ([email protected])
हड़ताल और आदतन गैरहाजिर
आज कलम बंद काम बंद हड़ताल की सफलता पर व कहीं कोई संदेह नहीं रह गया है। सुबह से राजधानी समेत प्रदेश के सभी स्कूलों में तालाबंदी हैं। मठपुरैना स्कूल में तो सांड, बैल घूमते रहे। तहसील, कलेक्टोरेट, निगम के जोन-मुख्यालय सब खुले तो थे लेकिन कुर्सियां खाली पड़ी रही। अब ये सोमवार को ही भरेंगी। अगले दो दिन साप्ताहिक अवकाश है ही। हड़ताल को यह स्वरूप देने, फेडरेशन के नेताओं को कई यत्न करने पड़े, और आज सुबह तक भी। सामूहिक अवकाश का आवेदन देकर कहीं कोई कर्मचारी तीन दिन की टूर पर न निकल जाए। इस पर विशेष नजर रखी गई। वाट्सएप ग्रुप में बड़े नेता यही मेसेज वायरल करते रहे। ऐसे लोगों के लिए निगरानी भी बिठाई गई। हालांकि जो नहीं आया उस पर कार्रवाई तो कर नहीं सकते। और किया गया तो एक व्यक्ति भी पूरा संघ संगठन को नुकसान पहुंचा सकता है। अब ऐसे आदतन तो मेरे अकेले के न जाने से क्या होगा सोचकर, गए तीन दिन के लिए। क्योंकि इनका मानना है कि डीए मिलेगा ही, कुछ देर से ही सही। बाकी आठ माँगें, जब पूरी होंगी तब मुझे भी मिल जाएगा फायदा। आज जिला, तहसील, ब्लाक के धरना स्थलों पर कर्मचारी नेता ऐसे लोगों की लिखित न सही जेहन में अवश्य सूची बनाते रहे। ताकि भविष्य में इनके व्यक्तिगत काम पडऩे पर आज की गैरहाजिरी याद दिलाई जा सके।
नड्डा और पुराने परिचित
राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा यहां आए, तो पार्टी के प्रमुख नेताओं के साथ अलग-अलग बैठक की। उन्होंने सीएम विष्णुदेव साय, प्रभारी नितिन नबीन, प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव और पवन साय के साथ करीब 15 मिनट तक अलग से चर्चा की। कहा जा रहा है कि इस बैठक में संगठन की गतिविधियों पर मंत्रणा हुई है।
नड्डा जैसे ही कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में उतरे, उन्होंने स्वागत के लिए मौजूद सांसद बृजमोहन अग्रवाल के कान में कुछ कहा। बाद में दोनों की अलग से चर्चा भी हुई। नड्डा पार्टी, और सरकार के कामकाज के साथ-साथ उपचुनाव की तैयारियों पर भी मंत्रणा की है।
नड्डा प्रदेश भाजपा के प्रभारी भी रह चुके हैं। लिहाजा, वो छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं से व्यक्तिगत तौर पर परिचित भी हैं। यही वजह है कि एयरपोर्ट से लेकर पार्टी दफ्तर में उनसे मिलने के लिए होड़ मची रही। कई नेताओं को स्वागत के लिए एयरपोर्ट में प्रवेश नहीं मिला, इस पर कुछ नेताओं ने संगठन के नेताओं से शिकायत भी की।
सही-गलत अलग है, लेकिन....
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा यहां आए, तो उन्होंने सदस्यता अभियान की समीक्षा की। वे नालंदा परिसर भी गए, जहां यूपीएससी-पीएससी, और अन्य प्रतियोगी परीक्षा की तैयारियों में जुटे युवाओं से भी मुलाकात की। कई युवाओं ने तो भाजपा की सदस्यता भी ली।
नालंदा परिसर में भाजपा के सदस्यता अभियान की आलोचना भी हो रही है। नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ये तो (नालंदा परिसर) लाइब्रेरी का दुरुपयोग हो रहा है। वह पढऩे की जगह है, न कि राजनीतिक सदस्यता दिलाने की। हर जगह इस प्रकार का आयोजन होना अच्छा संदेश नहीं है। कांग्रेस नेता चाहे कुछ भी कहे, लेकिन नौकरी के लिए पढ़ाई कर रहे युवाओं का राजनीतिक दल का सदस्य बनना चौंका भी रहा है।
दंड देने का यह कौन सा तरीका?
स्कूलों में बच्चों के साथ अमानवीय बर्ताव की घटनाएं रुक नहीं रही है। दंड देने के नए-नए तरीके आजमाए जा रहे हैं। जशपुर जिले के बगीचा स्थित एक पब्लिक स्कूल में चौथी कक्षा की बच्ची को होम वर्क पूरा करके नहीं लाने पर शिक्षिका 200 बार ऊठक-बैठक लगाने के लिए कहा। डरी-सहमी नन्हीं सी जान ने दंड भुगतना शुरू किया। जैसे तैसे व 70 दंड बैठक ही लगा पाई। उसके बाद उसकी ताकत जवाब दे गई और गिर पड़ी। बच्ची को घर भेज दिया गया। अब बच्ची का पैर सूज गया है और चल नहीं पा रही है। परिजन उसका अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। मगर उस शिक्षिका पर कोई कार्रवाई अब तक नहीं हुई है। इस तरह के बढ़ते मामलों पर हाईकोर्ट को संज्ञान लेने की जरूरत पड़ रही है। नई शिक्षा नीति में छोटे बच्चों को होम वर्क नहीं देने और मनोरंजक वातावरण में पढ़ाने का सुझाव दिया गया है। इसके बावजूद जशपुर जैसी घटनाएं हो रही हैं।
विधायक पुराने दिनों में लौटी..
सरायपाली की विधायक चातुरी नंद राजनीति में कदम रखने से पहले शिक्षिका थी। वह अपने क्षेत्र के एक स्कूल पहुंची। बच्चों से उन्होंने प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के बारे में सवाल पूछा। फिर चाक लेकर ब्लैक बोर्ड पर खुद ही पढ़ाने लगीं। इसका एक वीडियो सामने आया है।
कमरे की दीवारें हैरान
लोगों की जिंदगी में कुछ घटनाएं बड़ा संयोग लेकर आती हैं। अब छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल के एक सबसे नौजवान मंत्री ओ.पी.चौधरी राजनीति में आने के पहले आईएएस अफसर थे, और राजधानी रायपुर के कलेक्टर थे। फिर उन्होंने रमन सिंह सरकार के रहते हुए ही राजनीति में आना तय किया, और नौकरी से इस्तीफा दिया। उस वक्त मुख्य सचिव के बंगले पर जाकर उन्होंने बंगला-दफ्तर कहे जाने वाले कमरे में सीएस की टेबिल पर सामने बैठकर इस्तीफा लिखा था, और उन्हें दे दिया था। इसके मंजूर होते ही वे राजनीति में आए, पहला चुनाव हारा, और दूसरा चुनाव जीतकर वे मंत्री बने।
अब जिस बंगले के जिस कमरे में बैठकर उन्होंने मुख्य सचिव के सामने इस्तीफा लिखा था, आज वे उसी बंगले में मंत्री की हैसियत से रहते हैं, और बंगले का वही कमरा उनका आज का बंगला-दफ्तर है। मेज बदल गई है, लेकिन कमरा वही है, और उस कमरे में पहला दस्तखत उन्होंने अपने इस्तीफे पर किया था, और अब वे रोजाना वहां दर्जनों दस्तखत करते हैं। कमरे की दीवारें भी कुछ हैरान होती होंगी।
नई लीडरशिप?
साय सरकार ने युवा आयोग के अध्यक्ष पद पर अंबिकापुर के पार्षद विश्व विजय सिंह तोमर की नियुक्ति कर स्थानीय बड़े नेताओं को चौंका दिया है। तोमर अंबिकापुर के युवा मोर्चा के शहर अध्यक्ष हैं। चर्चा है कि उनकी नियुक्ति में प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन की अहम भूमिका रही है। यही नहीं, महामंत्री (संगठन) पवन साय, और डिप्टी सीएम विजय शर्मा की सहमति रही है।
तोमर, डिप्टी सीएम विजय शर्मा जब युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष थे, तब उनकी कार्यसमिति में भी थे। नितिन नबीन जब प्रदेश भाजपा के सहप्रभारी के तौर पर काम कर रहे थे, तब से तोमर उनसे जुड़े थे। ये अलग बात है कि ‘लाल बत्ती’ के दावेदारों में सरगुजा के जिन नेताओं के नाम की चर्चा रही है उनमें ज्यादातर नेता रायपुर में देखे जा सकते हैं। ऐसे में वहां तोमर को ‘लाल बत्ती’ देकर एक नई लाइन तैयार करने की कोशिश की गई है। देखना है कि तोमर बतौर युवा आयोग के अध्यक्ष कितने सफल रहते हैं।
हाईकमान जल्दबाजी में नहीं
राजीव भवन से मिल रही खबरों पर भरोसा करें तो पीसीसी में कोई बदलाव नहीं होना है। दीपक बैज और उनकी कार्यकारिणी को कम से कम छ माह का अभयदान मिल गया है। चर्चा है कि अध्यक्ष के लिए जो नाम चल रहे हैं वो भी अभी नहीं बनना चाहते। इसका पहला कारण -अभी बने तो अगले चार वर्ष संगठन को चलाने खर्च अपनी जेब से करना होगा।( क्योंकि पार्टी कोष में विधायकों के अंशदान की हिस्सेदारी का हाल सब जानते)।
दूसरा कारण- सामने निगम पंचायत चुनाव में सत्ताधारी दल के मुकाबले हार जीत के आरोप से बचा जा सकेगा। ये चुनाव दिसंबर से फरवरी मार्च तक होंगे।
तीसरा कारण- नए प्रभारी सचिवों के प्रदेश व्यापी दौरे भी होने हैं। उसके बाद ही उनका मशविरा भी होगा। इन्हें देखते हुए अध्यक्ष की नई नियुक्ति मार्च के बाद ही हो पाएगी। तब तक दीपक बैज को अभयदान मिल गया है, यह भी स्पष्ट है कि संगठन में रिक्त पद भी वे भर नहीं पाएंगे। वैसे दिल्ली से जुड़े सूत्र बताते हैं कि हाईकमान भी महाराष्ट्र, झारखंड विधानसभा चुनाव तक छत्तीसगढ़ जैसे छोटे और हारे हुए राज्य को लेकर नई नियुक्तियों को लेकर जल्दबाजी में नहीं है।
तबादले का मौसम आया भी नहीं, और चले गया
सामान्य प्रशासन विभाग ने तबादले पर से बैन हटाने का प्रस्ताव तो तैयार किया था लेकिन कैबिनेट में नहीं रखा जा सकता है। प्रस्ताव में एक सितंबर से दस सितंबर तक तबादले के लिए आवेदन लिया जाना था और माह के आखिरी में तबादला सूची जारी होनी थी। जिले के भीतर के तबादले के अधिकार प्रभारी मंत्री को देने का प्रस्ताव था मगर इसको अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका।
तबादले की प्रस्तावित समय-सीमा निकल चुकी है। तबादला पर से बैन नहीं खुलने से न सिर्फ भाजपा कार्यकर्ता बल्कि वे अफसर और कर्मचारी निराश हैं जो अपने तबादले के लिए प्रयासरत थे। हालांकि समन्वय के अनुमोदन से कुछ विभागों की सूची जारी भी हुई है। स्कूल शिक्षा विभाग के करीब 3 हजार शिक्षक-कर्मचारियों के तबादले के प्रस्ताव पर कोई फैसला नहीं हो पाया है। अब शिक्षा सत्र आगे बढ़ चुका है। इसलिए अब शिक्षकों के तबादले पर संशय बना हुआ है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
नए आए लोगों की क्या जगह होगी?
विधानसभा, लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा प्रवेश करने वाले नेता कार्यकर्ता गुमनामी में चल रहे हैं। भाजपा का दावा था कि करीब 23 हजार लोगों ने प्रवेश किया था। इनमें पूर्व सांसद-विधायक, महापौर, पालिका-जिला पंचायत अध्यक्ष समेत अन्यान्य पदाधिकारी भी रहे। दोनों ही चुनावों में इनका छत्तीसगढ़ से हरियाणा राजस्थान तक में इस्तेमाल किया गया और अब असली निकाय चुनाव सामने आ रहे हैं, जो इनके ग्राउंड कनेक्ट को साबित करेगा। लेकिन उससे पहले ही सभी सुषुप्तावस्था में नजर आ रहे है।
सदस्यता अभियान में भी कहीं नाम, काम नजर नहीं आ रहा। सभी नेपथ्य में नजर आ रहे हैं। जबकि निकाय चुनाव में टिकट का सबसे बड़ा क्राइटेरिया, किसने कितने अधिक सदस्य बनाए, होने जा रहा है। इसमें कितने सफल होंगे यह तो जल्द बताएगा। लेकिन भाजपा प्रवेश के समय इनके पुराने कांग्रेसी साथी कहते रहे कि विभागों में अटके बिल पास करवाने के लिए भगवा दुपट्टा पहना है। और कांग्रेस में रुमाल छोड़ गए हैं। वैसे किरण देव इन बातों को खारिज कर कह चुके हैं सबकी योग्यता और विशेष योग्यता अनुसार संगठन काम ले रहा है और आगे भी लेगा। अब कांग्रेसी यह देख रहे हैं कि इनमें कितनों को भाजपा पार्षद का टिकट देती है।
हसदेव की गोद में हाथी
हसदेव अरण्य के घने पेड़ों के बीच की यह तस्वीर एक वनरक्षक अशोक श्रीवास ने खींची है। बड़े इत्मीनान से अपने ठिकाने पर हाथियों का झुंड आराम फरमा रहा है। मगर, जिस तेजी से कोयला खदानों के लिए वहां जंगल काटे जा रहे हैं और भविष्य में काटे जाने की आशंका है, इन्हें इस तरह का आराम मिल पाएगा भी या नहीं, यह सोचना पड़ेगा।
हरियाणा में छत्तीसगढ़ जैसा होगा?
दिसंबर 2023 में जब तक छत्तीसगढ़ का विधानसभा चुनाव परिणाम नहीं आ गया, किसी को नहीं लग रहा था कि कांग्रेस सत्ता बचा नहीं पाएगी। तमाम राजनीतिक विश्लेषक और एग्जिट पोल 50 प्लस सीट तो दे ही रहे थे। मगर, जब नतीजा आया तो कांग्रेस को अब तक की सबसे कम सीटें मिलीं। इस समय हरियाणा को लेकर बड़ी चर्चा है कि कांग्रेस वहां 10 साल बाद सत्ता में वापसी कर सकती है। इसके तमाम कारण गिनाये जा रहे हैं, जैसा सन् 2018 के चुनाव में भाजपा को लेकर छत्तीसगढ़ में कहा गया, एंटी इंकमबेसी। इसके अलावा अग्निवीर योजना से नौजवानों में रोष, किसान आंदोलन में केंद्र के रुख के चलते किसानों में गुस्सा और महिला पहलवानों से ज्यादती। तमाम टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर विश्लेषक कह रहे हैं कि कांग्रेस सत्ता में वापसी कर रही है।
मगर, कुछ गहराई से नजर रखने वाले कह रहे हैं कि कुमारी सैलजा के साथ जो हुआ, वह कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी भी फेर सकता है। कांग्रेस हाईकमान पर भूपेंद्र हुड्डा की चली। उनकी मर्जी से 70-75 टिकट तय हो गए। सैलजा समर्थकों के टिकट काट दिए गए, उनके हिस्से में 15-16 टिकट ही आए। यह भी कहा जा रहा है कि सैलजा खुद भी चुनाव लडऩा चाहती थी लेकिन उनको ऑफर नहीं किया गया। भाजपा ने उन्हें अपनी पार्टी में आने का न्यौता दे दिया।
वहां दलित वोटों का करीब 20 फीसदी हिस्सेदारी है, जो करीब 17 सीटों में निर्णायक हैं। बसपा और इनेलो के बीच वहां साझेदारी हो गई है जो कांग्रेस का खेल पहले ही बिगाड़ रही थी, अब सैलजा कुमारी मामला और असर डाल रहा है।
याद करें, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस एक तरह से जीती हुई बाजी कैसे हार गई थी। टिकट बांटने और काटने का कैसा खेल हुआ था। कुछ ने तो खुला आरोप लगाया कि टिकटें बेटी गईं। फिर, किस-किस समाज, समुदाय के वोट कांग्रेस से छिटककर एक झटके में भाजपा के साथ चले गए थे। विधानसभा चुनाव तक चूंकि कुमारी सैलजा छत्तीसगढ़ की प्रभारी महासचिव थी, यहां कांग्रेस के लोग उनकी हरियाणा में भूमिका को बड़ी दिलचस्पी से देख रहे हैं।
अफसरों का अफसरों के लिए
कोई भी आयोग, निगम मंडल, प्राधिकरण, ट्रिब्यूनल, अथारिटी का गठन का प्रारूप बनाने वाले अफसर अपने और अपने साथियों के आफ्टर रिटायरमेंट पुनर्वास को देखते हुए ही, इनके गठन की सिफारिश करते हैं। इनमें से कई में सेवारत तो अधिकांश में रिटायर्ड ही बिठाए जाते हैं। बस फर्क इतना रहता है कि सेवारत रहते हुए मिला अंतिम वेतन या पेंशन के बराबर ही मानदेय मिलेगा। वैसे भी अफसरों को भी वेतन राशि से नहीं रिटायर होने के बाद भी बंगला, कार-पेट्रोल, नौकर और सरकारी जलवा बने रहना चाहिए। हम यह इसलिए कह रहे हैं कि रिटायर हो चुके या होने वाले अफसरों के लिए एक और सरकारी पद अधिसूचित कर दिया गया है।
वाणिज्यिक कर विभाग ने राज्य जीएसटी अपीलेट ट्रिब्यूनल में सदस्य तकनीकी ये पद के लिए आज से 15 अक्टूबर तक इच्छुक अफसर, जीएसटी कानून को जानने वाले कर सलाहकारों से आवेदन आमंत्रित किया है। वैसे बता दें कि अघोषित रूप से सरकार और उसके अफसरों ने नाम भी तय कर रखा होगा। यह केवल औपचारिकता ही होगी। आवेदक एक्स आफिशियो हो तो वह कम से कम अतिरिक्त आयुक्त वैट या जीएसटी के पद से रिटायर हुआ हो।
नियुक्ति के बाद के लाभ, आवेदन पत्र में पढक़र तो हर कोई जोड़ तोड़ में लग जाएंगे। इन्हें, 2.25 लाख वेतन, 30 दिनों का ईएल, 8 दिन का सीएल, कर प्रणाली के अध्ययन के लिए विदेश दौरे की सुविधा आदि आदि। चूंकि सरकारी करा रोपण के खिलाफ अपील होगी, तो पार्टी से आउट आफ ट्रिब्यूनल नेगोसिएशन भी। इसके लिए आयु सीमा 50-67 वर्ष, और पहले 4 वर्ष के नियमित कार्यकाल (अनहोनी न होने पर) और सरकार चाहे तो, 2 वर्ष और बढ़ा सकती है। अब देखना होगा कि लॉटरी किसकी लगती है।
ओलंपिक संघ और दिग्गज
छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के चुनाव को लेकर हलचल मची हुई है। चर्चा है कि ओलंपिक संघ के मसले पर सीएम विष्णुदेव साय की पिछले दिनों सांसद बृजमोहन अग्रवाल से बातचीत भी हुई है। साय प्रदेश तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष हैं, तो बृजमोहन तैराकी संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं। अब ओलंपिक संघ के अध्यक्ष, और महासचिव का 29 तारीख को चुनाव होना है। पदाधिकारियों का निर्वाचन निर्विरोध कराने के लिए बैठकों का दौर चल रहा है।
सीएम साय का निर्विरोध ओलंपिक संघ अध्यक्ष बनना तय है। मगर सारा दांवपेंच महासचिव को लेकर है। इसके लिए बैडमिंटन संघ के अध्यक्ष विक्रम सिसोदिया की मजबूत दावेदारी है। सिसोदिया भी सीएम के साथ-साथ बृजमोहन अग्रवाल से मिल चुके हैं। हालांकि कई लोग ऐसे भी हैं जो चाहते हैं कि बृजमोहन अग्रवाल को महासचिव बनाया जाए। ऐसे कई पदाधिकारी बृजमोहन के साथ बैठक भी कर चुके हैं।
हालांकि बृजमोहन ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन चर्चा है कि वो सिसोदिया के नाम पर सहमत होते हैं, तो उन्हें (बृजमोहन) को भारतीय ओलंपिक संघ के प्रतिनिधि के रूप में नामांकित किया जा सकता है। कुल मिलाकर बृजमोहन की ओलंपिक संघ में दखल रहेगी। अब आगे क्या कुछ होता है यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा।
ईमानदार चेतावनी
इस घी निर्माता को अंतर्यामी भगवान का डर हो या न हो, लेकिन आपकी सेहत की चिंता अवश्य है। वह अपने डिब्बे पर साफ-साफ नहीं बताता कि यह घी मिलावटी है। अगर यह घी शुद्ध होता, तो क्यों लिखता कि इसे खाने या दवाई के रूप में इस्तेमाल न करें? साथ ही, यह भी साफ लिखा है कि यह खाद्य पदार्थ नहीं है और केवल पूजा के लिए है।फूड वाला इस पर किस आधार पर रेड मारेगा?
बेचने वाले को अंदाजा है कि वह क्या बेच रहा है, खरीदने वाले को भी पता है कि वह सस्ते में कौन सा घी खरीद रहा है।
इस ईमानदारी की सराहना की जानी चाहिए। उसने चुनावी चंदा दिया या नहीं पता नहीं, पर यदि परवाह न होती तो डिब्बे पर ‘सर्वश्रेष्ठ खाने योग्य’ लिखा होता। तिरुपति मामले के बाद यूपी से कई खबरें आ रही हैं, जिनमें बताया जा रहा है कि पशुओं के चमड़े से घी बनाने के वहां कई ठिकाने हैं। ऐसी घी बहुत सस्ते में मिल भी रहे हैं।
दामिनी ऐप का कम उपयोग
छत्तीसगढ़ में कल आकाशीय बिजली गिरने से 10 लोगों की मौत हो गई। राजनांदगांव में आठ और बिलासपुर में दो लोगों की जान गई। इसके अलावा, एक दिन पहले जांजगीर-चांपा में भी बिजली गिरने से एक मौत हुई और आठ लोग घायल हो गए। इन मौतों में पांच बच्चे और एक गर्भवती महिला शामिल हैं। शहरों में ऊंचे मकान, इलेक्ट्रिक पोल और टावर तडि़त चालक का काम करते हैं, जिससे नुकसान कम होता है। गांवों में यह जनहानि का एक ऐसा सिलसिला है, जिसे रोकने पर कभी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया।
हालांकि, भारत सरकार के मौसम विज्ञान विभाग ने कुछ कदम उठाए हैं। इनमें से एक प्रमुख प्रयास है ‘दामिनी ऐप’, जो 2020 से कार्यरत है। यह ऐप बिजली गिरने से 30-40 मिनट पहले अलर्ट जारी करता है, लेकिन ज्यादातर लोग इसका उपयोग नहीं करते।
आंकड़ों के मुताबिक, हर साल भारत में आकाशीय बिजली गिरने से लगभग 2000 लोगों की मौत हो जाती है। छत्तीसगढ़ के लिए कोई स्पष्ट आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन हर वर्ष 20-25 घटनाओं की खबरें आती ही हैं।
सरकारी प्रयासों की बात करें, तो जागरूकता केवल रेडियो पर मिलने वाली सूचनाओं तक सीमित है। ‘दामिनी ऐप’ का प्रचार-प्रसार करना बेहद आसान है, खासकर जब हर किसी के पास स्मार्टफोन है। हादसे कम करने में इससे मदद मिल सकती है।
नए चुनाव की तैयारी
ऐसी प्रचलित परंपरा है कि किसी भी इवेंट का काउंटडाउन 90 दिन पहले शुरू हो जाता है। सो निकाय चुनावों की भी उल्टी गिनती शुरू हो गई है। उसी सिलसिले में 2019 में गठित वर्तमान सामान्य सभा की अंतिम विदाई बैठकें भी होने लगीं हैं। रायपुर की बैठक तीन अक्टूबर को होनी है। उसमें टाटा, बाय बाय होगा। ऐसी बैठकें प्रदेश के अन्य निगमों, पालिकाओं में भी होंगी। और उधर नगरीय निकाय विभाग, राज्य निर्वाचन आयोग ने नए चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी है। पहले वोटर लिस्ट बनेगी। अंतिम प्रकाशन 29 नवंबर के बाद, वार्ड परिसीमन, महापौर, अध्यक्ष पार्षद पदों का आरक्षण। और फिर चुनाव कार्यक्रम की घोषणा होगी। वार्ड आरक्षण के लिए ओबीसी वर्गो की आबादी का सर्वे चल रहा है। जो 25 सितंबर को पूरा हो जाएगा।
नेताओं की शंकाओं के बीच दोनों आयोग प्रमुखों का कहना है सब कुछ समय पर होगा,चुनाव भी समय पर ही कराए जाएंगे। अभी यह उधेड़बुन चल रही है कि चुनावों का समय क्या होगा? वहीं पिछले 2019 के टाइम टेबल से दो तीन या 7 दिन आगे पीछे। पिछले चुनाव की घोषणा 30 नवंबर को हुई थी। पूरे प्रदेश भर के निकायों के चुनाव एक ही चरण में हुए थे। 6 दिसंबर 19 तक नामांकन, 21 दिसंबर को मतदान और 24 दिसंबर को मतगणना हुई थी। अब देखना है कि इस बार का टाइम टेबल क्या होगा। वैसे, 6 जनवरी से पहले सभी निकायों कि नई सामान्य सभा का गठन
करना होगा।
युवक कांग्रेस में अब कौन से पद मिलेंगे?
आखिरकार युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर जम्मू कश्मीर के उदयभानु चिब को नियुक्त कर दिया गया। इस पद की दौड़ में छत्तीसगढ़ से शशि सिंह, मोहम्मद शाहिद, और कोको पाढ़ी भी थे।
तीनों का इंटरव्यू भी हुआ था। अब जब अध्यक्ष की नियुक्ति हो गई है, तो प्रदेश के तीनों नेताओं को राष्ट्रीय पदाधिकारी बनाया जा सकता है। कोको पाढ़ी, छत्तीसगढ़ प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। जबकि शशि सिंह राष्ट्रीय सचिव रही हैं। मोहम्मद शाहिद प्रदेश संगठन में दायित्व संभाल रहे थे। खास बात यह है कि प्रदेश के इन तीनों युवा नेताओं से पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी व्यक्तिगत तौर पर परिचित भी हैं। इन तीनों को अलग-अलग राज्यों का प्रभारी बनाया जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
भाई साहब के साथ हाई टी
रायपुर दक्षिण के उपचुनाव की घोषणा 5, 6 अक्टूबर को हो सकती है। इसके साथ ही कांग्रेस, भाजपा की ओर से टिकट के दावेदार एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं। सर्वाधिक दावेदार भाजपा में नजर आ रहे हैं। एक अनार सौ बीमार। सरकार में होने का फायदा जो दिख रहा है, खर्च लिमिट ये 40 लाख में काम हो जाएगा। वहीं कांग्रेस में भी दावेदार कम नहीं हैं। पकड़ कर देने की स्थिति नहीं है।
भाजपा ने अब तक दौड़ में चल रहे 45 नामों में से अब आधा दर्जन ही शार्ट लिस्ट किए गए हैं। दो नए नहीं पुराने जुड़ते नजर आ रहे हैं। इनमें से दोनों ही पूर्व में संवैधानिक पद पर भी रहे हैं। एक, सांसद के बेहद करीबी दोस्त, दूसरे समाज के दिग्गज। कल इन्होंने संगठन खेमे के माने जाने वाले अपने साथियों के साथ हाई टी की। जो चंडीगढ़ वाले भाई साहब के साथ हुई। कभी ये सभी मिलकर सरकार संगठन चलाते रहे हैं। बस उन्हीं दिनों की यादें, सद्कर्म की बिना पर टिकट हासिल करने की जोड़ तोड़ है। देखें आगे क्या होता है।
गजब सर का कोचिंग सेंटर
यह पोस्टर वाकई अजब-गजब है। दिल्ली के राजेंद्र नगर और मुखर्जी नगर जैसे इलाकों में भारतीय प्रशासनिक सेवा की कोचिंग के लिए ऐसे विज्ञापन आम हैं। इस पोस्टर पर दावा किया गया है कि 2500 से अधिक छात्र चयनित हुए हैं। यानी, हाल के कुछ वर्षों में जितने भी आईएएस और आईपीएस बने हैं, लगभग सभी यहीं से निकले होंगे! यह कोचिंग सेंटर ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों मोड में पढ़ाई करवाता है, और हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में।
दिल्ली ही नहीं, छत्तीसगढ़ जैसे अन्य राज्यों में भी ऐसे कई कोचिंग संस्थान मिल जाएंगे जो इसी तरह के बड़े-बड़े दावे करते हैं। जैसे ही प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम घोषित होते हैं, ये संस्थान चयनित छात्रों को अपना बताते हुए विज्ञापन निकालते हैं। छात्र सलेक्ट हो गया तो कोचिंग सेंटर की काबिल पढ़ाने वालों की वजह से, नहीं हुए तो वह तो उसकी कमजोरी थी।
इस स्थिति के बावजूद कई कोचिंग संस्थानों में एडमिशन की मारामारी है। उसमें भी प्रवेश के लिए टेस्ट, एग्जाम से गुजरना होता है।
बात दोषियों पर नरमी की भी है
लोहारीडीह में प्रशांत साहू की पुलिस की कथित पिटाई से हुई मौत ने पहले से सुलग रही स्थिति में आग में घी का काम किया है। प्रशिक्षु आईपीएस को निलंबित करने के बावजूद लोहारीडीह के ग्रामीण और साहू समाज संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहे हैं। प्रदेशभर में साहू समाज ने राजनीतिक झुकाव से परे जाकर विरोध प्रदर्शन किया है।
लोहारीडीह में दोनों उपमुख्यमंत्रियों के सामने कई प्रमुख मांगें रखी गई हैं, जिनमें प्रशांत साहू के बच्चे को कैबिनेट प्रस्ताव लाकर नौकरी देने, एक करोड़ रुपये मुआवजा देने और कचरू साहू के पांच बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी सरकार को सौंपने की मांग शामिल है। लेकिन सबसे अहम मांग यह है कि हटाए गए एसपी अभिषेक पल्लव को बर्खास्त किया जाए और पिटाई के दोषी पुलिसकर्मियों पर हत्या का मामला दर्ज हो।
लोहारीडीह की घटना ने इतना तूल पकड़ लिया है कि टोनही और अंधविश्वास से जुड़ी दो बड़ी घटनाओं पर कोई चर्चा तक नहीं हो रही है। परंपरागत रूप से भाजपा का समर्थन करने वाला साहू समाज इस घटना से बेहद आक्रोशित है। कांग्रेस के नेताओं ने बिरनपुर की पिछली घटना के बाद वहां पीडि़तों से मिलने की जरूरत तक नहीं समझी थी, लेकिन यह सरकार लगातार पीडि़तों और प्रभावित ग्रामीणों के साथ संवाद कर रही है।
कार्यशैली में इस बदलाव का ही था कि 10 लाख रुपये का मुआवजा और निष्पक्ष कार्रवाई के आश्वासन हाथों हाथ दिया गया। लोगों का गुस्सा कम नहीं हुआ है। खासकर पुलिस पर कथित हत्या और बेकसूरों से मारपीट के मामले में की गई कार्रवाई को ग्रामीण नाकाफी मान रहे हैं। आगजनी के बाद यदि स्थिति को बेहतर ढंग से संभाल लिया जाता, तो शायद लोहारीडीह में शांति जल्द लौट आती। लेकिन पुलिस की ज्यादती करके निपटाना चाहा। अब ठोस कार्रवाई के बिना ग्रामीणों का गुस्सा ठंडा होगा ऐसा लग नहीं रहा।