29 नवंबर : आतंकी हमले के स्याह पाश से छूटी मुंबई
नयी दिल्ली, 29 नवंबर (भाषा)। देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई पर आतंकवादी हमले की काली छाया आखिरकार 29 नवंबर, 2008 को उस समय हटी, जब एनएसजी कमांडो दस्ते ने ताज होटल को आतंकियों के कब्जे से मुक्त कराया। आतंकवादियों ने 26 नवंबर, 2008 की रात को महानगर में कई जगह हमले किये और कई विदेशियों समेत बहुत से लोगों को बंधक बना लिया। इस दौरान 150 से ज्यादा लोग मारे गये।
तीन दिन तक जैसे पूरे देश में आतंक का अंधेरा पसरा रहा और देश के कई जांबाज सपूतों ने अपनी जान पर खेलकर इस अंधेरे का खात्मा किया। सेना, मरीन कमांडो और एनएसजी कमांडो की कोशिशों से हमलावर आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया गया और एक आतंकवादी को जिंदा पकड़ लिया गया, जिसे बाद में फांसी की सजा दी गई।
देश-दुनिया के इतिहास में 29 नवंबर की तारीख में दर्ज अन्य प्रमुख घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:-
1947 : फलस्तीन के बंटवारे के लिए संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव पारित किया। हालांकि इसे लागू नहीं किया गया।
1949 : पूर्वी जर्मनी में यूरेनियम की खदान में भीषण विस्फोट से 3700 लोगों की मौत।
1961 : दुनिया के पहले अंतरिक्ष यात्री रूस के यूरी गगारिन भारत की यात्रा पर नयी दिल्ली पहुंचे।
1963 : कनाडा एयरलाइंस के एक विमान के उड़ान भरने के तत्काल बाद दुर्घटनाग्रस्त होने से 118 लोगों की मौत।
1975 : ब्रिटेन के मोटर रेसिंग के महानतम ड्राइवर ग्राहम हिल दक्षिण पूर्व इंग्लैंड में एक विमान दुर्घटना में मारे गये।
1993 : आधुनिक भारत को अपने औद्योगिक कौशल से समृद्ध बनाने वाले उद्योगपतियों में शुमार जे आर डी टाटा का निधन।
2006 : पाकिस्तान ने मध्यम दूरी वाले प्रक्षेपास्त्र का सफल परीक्षण किया। इसे हत्फ-4 का नाम दिया गया और शाहीन-। भी कहा गया।
2008 : गहन अभियान के बाद मुम्बई को तीन दिन से पसरी आतंक की काली छाया से मुक्ति मिली।
2012 : संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फलस्तीन को गैर-सदस्य पर्यवेक्षक का दर्जा दिया।
2023: नेपाल आधिकारिक तौर पर समलैंगिक विवाह का पंजीकरण करने वाला पहला दक्षिण एशियाई देश बना।
जलता मुद्दा और चुप्पी
भरतपुर-सोनहत इलाके में नाबालिग छात्रा से रेप का मामला सुर्खियों में हैं। इस पूरे मामले के आरोपी तीन शिक्षकों, और वन कर्मियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। बावजूद इसके लोगों में पुलिस-प्रशासन के खिलाफ काफी गुस्सा है। पूर्व विधायक गुलाब कमरो ने इस मामले में चुप्पी पर स्थानीय विधायक रेणुका सिंह को निशाने पर लिया है। कमरो ने फेसबुक पर अपने पोस्ट में लिखा कि बेटियों की लूट रही अस्मत। लापता विधायक मंत्री बनने कर रही कसरत।
उन्होंने आगे लिखा कि न सदन में न सडक़ में। आखिर कहां है लापता विधायक रेणुका सिंह। गुलाब कमरो ने रेणुका सिंह की विधानसभा में कम उपस्थिति को लेकर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि रेणुका सिंह अब तक केवल 9 दिन विधानसभा पहुंची है। यानी प्रदेश के 90 विधायकों में सबसे कम। गुलाब कमरो ने लिखा कि काल्पनिक सीएम दीदीजी (रेणुका सिंह) मिले, तो भरतपुर-सोनहत विधानसभा के हवाले कर देवें। अब ऐसे गंभीर विषयों पर जनप्रतिनिधि खामोश रहेंगे, तो विरोधी उनकी सक्रियता पर सवाल उठाएंगे ही।
मुख्य सचिवों से मोदी की वन टू वन
पीएम नरेंद्र मोदी ने 13 दिसंबर को देशभर के मुख्य सचिवों को चर्चा के लिए बुलाया है। आमंत्रण सामूहिक बैठक जैसा होगा या अलग-अलग वन टू वन यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा। हालांकि यह तय है कि यह सालाना होने वाला सीएस कानक्लेव नहीं है । और सीएस दफ्तर के सूत्र बता रहे कि वन टू वन मीटिंग है। ऐसे समय जब देश के 29 राज्यों में से अधिकांश में भाजपा और गठबंधन की डबल इंजन सरकारें हैं। करीब 10 राज्यों में विपक्षी दल सत्तारूढ़ हैं। पीएमओ के पास इनपुट है कि विपक्षी राज्यों में सरकारें केंद्रीय फंड का दुरुपयोग कर रही हैं तो भाजपा गठबंधन सरकारों में कमोबेश ऐसी ही स्थिति है?।
ऐसी ही कवायद कैबिनेट सक्रेटरी शुरू कर चुके हैं। वे हर सप्ताह एक ओपन हाउस कर रहे हैं। जिसमें राज्यों से दिल्ली आने वाले मुख्य सचिव, एसीएस, पीएस और सचिवों और अन्य अभा संवर्ग के अफसरों के व्यक्तिगत और राज्यों के मुद्दों पर चर्चा कर रहे। इन बैठकों का निचोड़ नीति आयोग की बैठक और आम बजट में देखने को मिल सकता है।
बाघों की टहलकदमी
अचानकमार अभयारण्य में मध्यप्रदेश के करंजिया से चहलकदमी करते हुए एक बाघ पहुंच गया है। वन विभाग इसकी निगरानी कर रहा है लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से उसका लोकेशन नहीं बताया गया है। दावा किया जाता है कि अचानकमार में 10 बाघ हैं। यदि इस बाघ ने अपना बसेरा बना लिया तो संख्या बढक़र 11 हो जाएगी। कान्हा नेशनल पार्क से एक घायल बाघिन पहले ही यहां आ चुकी है। वहीं, कसडोल में एक बाघ कस्बे के आसपास मंडराता दिखा। वन विभाग ने उसे रेस्क्यू कर लिया है। सीएम विष्णुदेव साय ने वन कर्मचारियों की उनकी कामयाबी के लिए तारीफ की है। सवाल बना हुआ है कि ये मांसाहारी जीव क्या दाना-पानी के लिए भटक रहे हैं?
जनता को फायदा, श्रेय पर तकरार
चिरमिरी से साजा पहाड़ होते हुए मनेंद्रगढ़ तक की सडक़ परियोजना को राज्य सरकार ने मंजूरी दी है। स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने इस फैसले का ऐलान किया। यह सडक़ परियोजना चिरमिरी और मनेंद्रगढ़ के बीच दूरी कम करेगी, जिससे अस्पताल और रेलवे स्टेशन जाने वालों को खासा फायदा होगा।
लेकिन सवाल यह है कि इस परियोजना का श्रेय किसे दिया जाए—भाजपा सरकार को या कांग्रेस को? इस पर सियासत शुरू हो गई है। पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल का कहना है कि मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल नाहक ही श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं। उनके मुताबिक, इस सडक़ की स्वीकृति कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ही मिल गई थी। अब जब निर्माण कार्य शुरू होने वाला है, तो इसे नया काम बताया जा रहा है। ऐसे हालात अक्सर देखने को मिलते हैं। एक सरकार कोई काम स्वीकृत करती है, तो दूसरी सरकार उसका उद्घाटन करती है। यही सिलसिला कांग्रेस और भाजपा के बीच भी चला आ रहा है। जब कांग्रेस सत्ता में आई, तो उसने भाजपा कार्यकाल में स्वीकृत कई परियोजनाओं का उद्घाटन किया।
मगर, रायपुर के बहुचर्चित स्काई वॉक का उदाहरण लें। भाजपा सरकार ने इसे शुरू किया, फिर कांग्रेस ने सत्ता में आकर इसे अधूरा छोड़ा। अब भाजपा सरकार के लौटने के बावजूद यह परियोजना खंडहर बनी हुई है।
तो हैरान मत होना...
आईपीएस के 89 बैच के अफसर, और डीजीपी अशोक जुनेजा फरवरी के पहले हफ्ते में रिटायर हो रहे हैं। उन्हें छह माह का एक्सटेंशन दिया गया था। जुनेजा के रिटायरमेंट के पहले ही उनके उत्तराधिकारी के नामों पर चर्चा चल रही है। सीएम विष्णुदेव साय ने दो दिन पहले मीडिया से चर्चा में कहा कि समय आने पर डीजीपी की नियुक्ति कर दी जाएगी।
चर्चा यह भी है कि अशोक जुनेजा को छह माह का एक्सटेंशन और दिया जा सकता है। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने बस्तर को नक्सल मुक्त बनाने के लिए अभियान छेड़ा हुआ है, और इसके लिए मार्च-2027 तक नक्सलियों के खात्मे के लिए समय-सीमा निर्धारित की है। इसकी वजह से पहले केन्द्र सरकार में बस्तर आईजी सुंदरराज पी के एनआईए में पोस्टिंग को निरस्त कर दिया गया। उन्हें बस्तर में यथावत रखने के लिए कहा गया है। जबकि सुंदरराज को राज्य सरकार ने पहले प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए हरी झंडी दी थी। इन सबकी वजह से जुनेजा को एक्सटेंशन मिल जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। देखना है आगे क्या होता है।
बिल्डर की ताकत
रायपुर नगर निगम सीमा क्षेत्र के गांव अमलीडीह में कॉलेज के लिए आरक्षित 9 एकड़ सरकारी जमीन को नामी बिल्डर रामा बिल्डकॉन को आबंटित करने का मामला गरमा गया है। पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा ने विधायक रहते ग्रामवासियों की सहमति से कॉलेज के लिए उक्त जमीन को आरक्षित करने के लिए पहल की थी। मगर गुपचुप तरीके से जमीन रामा बिल्डकॉन को आबंटित कर दी गई।
बताते हैं कि कांग्रेस सरकार की सरकारी जमीन के आबंटन की नीति रही है। बाजार दर पर सरकारी जमीन को आबंटित किया जा सकता था। रामा बिल्डकॉन के डायरेक्टर राजेश अग्रवाल ने विधानसभा आम चुनाव की मतगणना के तीन दिन पहले उक्त जमीन को आबंटित करने के लिए आवेदन लगाया था, और तत्कालीन कलेक्टर ने आनन-फानन में आबंटन से जुड़ी सारी प्रक्रिया पूरी कर मंत्रालय भिजवा दिया।
सरकार बदल गई, लेकिन रामा बिल्डकॉन के आवेदन पर कार्रवाई गुपचुप चलती रही। इसी बीच साय सरकार ने कांग्रेस सरकार की जमीन आबंटन की नीति को ही निरस्त कर दिया। दिलचस्प बात यह है कि निरस्तीकरण के आदेश से पहले ही रामा बिल्डकॉन को जमीन आबंटित करने का फैसला हो गया। यह फैसला जून में ही हो गया था, और अब जब बात छनकर बाहर निकली, तो ग्रामीण गुस्से में हैं।
रायपुर ग्रामीण के विधायक मोतीलाल साहू ने राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने सीएम के संज्ञान में मामला लाया है। साहू ने तत्कालीन कलेक्टर को घेरे में लिया है। वे सीएम से इस मामले पर हस्तक्षेप करने के लिए दबाव बनाए हुए हैं। चाहे कुछ भी हो, राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली जग जाहिर हुई है।
आवास के लिए हडक़ंप
प्रदेश में भाजपा की सरकार लौटी तो उसमें प्रधानमंत्री आवास योजना पर किया गया वादा भी एक कारण था। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अध्यक्षता में कैबिनेट की पहली ही बैठक में 18 लाख अधूरे आवासों को पूरा करने की मंजूरी दे दी गई थी। इनमें नगरीय क्षेत्रों के भी आवास शामिल थे। शहरी क्षेत्रों में हितग्राहियों को सीधे राशि न देकर इन निकायों के माध्यम से काम कराया जाता है। हाल ही में जो रिपोर्ट्स मंगाई गई है, उसके अनुसार शहरों में 40 फीसदी से भी कम आवास तैयार हो पाए हैं। अब अल्टीमेटम दिया गया है कि 31 दिसंबर से पहले सभी आवासों का निर्माण पूरा कर लिया जाए। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनको अधूरे आवासों के लिए कोई अनुदान नहीं मिलेगा। निकायों को अपने मद से खर्च कर आवासों को पूरा कराना होगा। इस आदेश के बाद निकायों के अफसरों में हडक़ंप मचा हुआ है। इंजीनियर्स मजदूरों और मिस्त्रियों की तलाश में जुटे हैं। अधिकांश नगरीय निकायों में बिजली बिल पटाने और वेतन देने के लिए पैसेनहीं होते, पर प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए फंड पड़ा होने के बावजूद समय पर काम नहीं कराया जा रहा है। कुछ अभियंता बता रहे हैं कि 31 दिसंबर तक बचा काम पूरा होने की उम्मीद नहीं है, पर वे सर्टिफिकेट बना लेंगे। दूसरी उम्मीद यह भी है कि यह डेटलाइन आगे बढ़ जाएगी।
इतनी साफ-सफाई?
रेलवे जोन बिलासपुर की ओर से सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया गया है। रेल यात्रियों से की गई बातचीत भी इसमें दर्ज है। इसमें बताया गया है कि स्लीपर और जनरल क्लास की बोगियों में अब कितनी स्वच्छता बरती जा रही है। तस्वीर में दिखाई गई साफ-सुथरी बास-बेसिन आपको कभी दिखे तो आप भी रेलवे को टैग करके बताएं।
सबसे बड़ा सौदा?
चर्चा है कि रायपुर के बाहरी इलाके की जमीन का एक बड़ा सौदा फाइनल हुआ है। जमीन के खरीददार भी एक बड़े बिल्डर हैं। जिनके प्रोजेक्ट न सिर्फ रायपुर, बल्कि बिलासपुर में भी चल रहे हैं। डेढ़ सौ एकड़ जमीन का सौदा करीब 12 सौ सीआर में फाइनल हुआ है जिसे अब तक का सबसे बड़ा सौदा करार दिया जा रहा है।
सौदे से जुड़े सभी पक्षकार रायपुर के ही हैं। जिनमें एक उद्योगपति भी हैं। कई दौर की बैठक के बाद जमीन के सौदे पर मुहर लगी है। खरीददार बिल्डर अब यहां हाऊसिंग प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू भी कर दिया है। माना एयरपोर्ट के नजदीक होने की वजह से इसे सबसे महंगा प्रोजेक्ट बताया जा रहा है। फिलहाल तो इस जमीन के सौदे की कारोबारी जगत में जमकर चर्चा है।
पीएससी दागदार, तो निजी एजेंसी कितनी निष्पक्ष?
वन विभाग में 15 सौ से अधिक बीट फारेस्ट आफिसर जो वन रक्षक कहलाते हैं कि भर्ती मंगलवार तडक़े शारीरिक मापदंड परीक्षा (फिजिकल टेस्ट)के साथ से पूरे प्रदेश में शुरू हो गई है। जो 7 दिसंबर तक चलेगी। रायपुर के कोटा स्टेडियम में भी हो रही है। यह भी जानकारी दी गई है कि
यह थर्ड पार्टी भर्ती हो रही है। यानी पीसीसीएफ कार्यालय ने हैदराबाद और दिल्ली की एक निजी एजेंसी से सेलेक्शन के लिए कांट्रेक्ट किया है जो अंतिम सलेक्टेड लिस्ट देगी। जब एनटीए, पीएससी के चयन में भरोसा उठ गया है तो निजी एजेंसी का चयन कितना भरोसेमंद, निष्पक्ष होगा समझा जा सकता है। ये तो उन्हीं नामों पर ब्लू टिक लगाएगा जो नाम वन मंत्रालय, पीसीसीएफ दफ्तर आदि से आएंगे।
अब बात आती है कि जब इस प्रदेश में भृत्य तक की नियुक्त पीएससी, इंजीनियरों, शिक्षकों, लिपिकों की भर्ती व्यापमं करता रहा है तब उसी के समकक्ष पदों पर भर्ती निजी एजेंसी से क्यों की जा रही है? और फिर बीट गार्ड को बीएफओ पद नाम दिया ही जा चुका है। तो अफसर के नाते पीएससी तो कर ही सकता है। खैर, पीएससी भी बदनाम हो चुका है तो निजी एजेंसी पर भरोसे वाले वन विभाग की क्या बिसात,भर्ती संदेह से परे नहीं होगी। और फिर अभ्यर्थियों की वजह से भर्ती प्रक्रिया रात के अंधेरे में भी चल रही है। अंधेरे का काम कब साफ सुथरा होता है।
इसका मतलब समझा जा सकता है। वैसे इस भर्ती को लेकर पिछले पखवाड़े भर से पूरे प्रदेश के वन मंडलों से शंका संदेह उभरे हुए हैं। इसकी शिकायतें जब मीडिया तक पहुंची पड़ताल करने लगे तो डीएफओ, भर्ती स्थलों में प्रवेश के लिए पीसीसीएफ से अनुमति अनिवार्य कर चुके हैं। भर्ती इतनी निष्पक्ष है तो विभाग को क्या उजागर होने का खतरा नजर आ रहा। खैर जो भी हो चयन सूची जारी होने के बाद आरटीआई है, कोर्ट है। सच्चाई तो बाहर आ ही जाएगी।
भर्ती वन विभाग की, ड्यूटी शिक्षकों की
वन रक्षक भर्ती के लिए वन विभाग ने अपने एपीसीसीएफ से लेकर निचले से निचले क्रम के हजारों कर्मचारी तैनात किए हैं। बताया जा रहा है कि ये भी कम पड़ गए हैं। तो स्कूलों के व्यायाम शिक्षकों की भी ड्यूटी लगा दी गई है। ऐसा राज्य के इतिहास में पहली बार हुआ है। रायपुर की भर्ती के लिए शहर के नहीं अभनपुर, आरंग, तिल्दा और अन्य दूरदराज के विकासखंड, संकुल के शिक्षकों की। इनकी ड्यूटी मैदानी तैयारियों और व्यवस्था में सहयोग के लिए लगाई गई है ।
इस भर्ती से इनका क्या लेना-देना, जबरिया ड्यूटी लगाई गई है। रायपुर डीईओ ने इन शिक्षकों की ड्यूटी लगाते हुए भर्ती स्थल में उपस्थिति न होने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी भी जारी कर दी है। 10 दिसंबर तक ये शिक्षक अपने स्कूल से बाहर रहेंगे। तब तक स्कूलों में पीटी-खेल नहीं होंगे। इसे ही कहते हैं शिक्षकों से गैरशिक्षकीय कार्य लेना। और शिक्षक संगठनों के नेता चुनाव, वोटर लिस्ट पुनरीक्षण जैसे राष्ट्रीय कार्यों की ड्यूटी को गैरशिक्षकीय बताकर विरोध बुलंद करते हैं लेकिन राजधानी के ही इनके नेताओं के मुंह से सप्ताह भर बाद भी एक शब्द नहीं निकला है। बढ़ती कडक़ड़ती ठंड में दूरदराज के शिक्षकों के साथ अनहोनी होने पर ये दिखावा करने डीईओ के विरोध में वह भी केवल एक दो दिन के लिए झंडा बुलंद कर अपने नेता होने के कर्तव्य की इतिश्री कर लेंगे । ये व्यथा हमारी नहीं है,ड्यूटी लगे शिक्षकों की है।
अफसरशाही का तमाशा
बिलासपुर में नायब तहसीलदार और थानेदार, दोनों ने अपनी-अपनी ताकत और रुतबे का प्रदर्शन किया। नायब तहसीलदार ने अपने पद का रौब झाड़ा तो थानेदार ने वर्दी की गर्मी दिखाई। बात इतनी बढ़ गई कि दोनों पक्षों के समर्थकों ने एक-दूसरे के खिलाफ तलवारें खींच लीं।
राजस्व विभाग के जूनियर अफसरों ने एक दिन की हड़ताल कर दी, वहीं थानेदार के समर्थन में कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन हुआ। दो लोगों के विवाद में दोनों तरफ के ताकतवर संगठन सामने आ गए। एक के पक्ष में कार्रवाई करते तो दूसरा नाराज हो जाता। दोनों विभागों के मंत्रियों के सामने भी संकट था। उन तक बात चली गई थी। वे अपने-अपने अमले को नाराज नहीं करना चाहते थे। उन्होंने इस तमाशे पर नाराजगी जताते हुए आदेश दिया- तुरंत मामला सुलझाओ।
कलेक्टर और एसपी ने दोनों को बुलाया और समझाया। बंद कमरे में दोनों ने अपने-अपने बर्ताव को लेकर एक-दूसरे से माफी मांगी, मामला सुलझ गया। प्रदर्शन और ज्ञापन का दौर थम गया। अब इससे पहले थानेदार ने गुस्से में जो नायब तहसीलदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, उसके खत्म होने में देर नहीं लगेगी। लाइन अटैच थानेदार को भी नई पोस्टिंग मिल ही जाएगी।
मगर, पूरे घटनाक्रम ने दोनों विभागों की पोल खोलकर रख दी है। जब नायब तहसीलदार थानेदार को उसकी औकात दिखाने की कोशिश करता हो और थानेदार गुस्से में धक्का- मुक्की कर एफआईआर दर्ज कर लेता हो, तो अंदाजा लगाइए कि ऐसे अफसर आम जनता के साथ कैसा सलूक करते होंगे।
सोचिए, आप किसी थानेदार या तहसीलदार से त्रस्त हैं और आपका मामला सुलझाने कलेक्टर या एसपी आपको बंद कमरे में बुलाएं। तहसीलदार या थानेदार आपसे अपने बर्ताव के लिए माफी मांगे। इस घटना को देख-सुनकर, आप उस सुशासन का इंतजार तो नहीं कर रहे हैं?
अद्भुत रंगोली
इंदौर की हुनरमंद शिखा ने नीमच में देश की 100 महान विभूतियों को 84 हजार वर्गफीट की रंगोली में उकेरा। तस्वीर के मध्य में शिखा अपने हाथ फैलाए खड़ी हैं। कृति में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को भी जगह दी गई है। यह कलाकारी एशिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड और इंडिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज की गई है।
आठवां वेतन आयोग फरवरी में
केंद्र के साथ साथ देश भर के राज्य कर्मियों के लिए फिलहाल अच्छी खबर कही जा सकती है। केंद्रीय कैबिनेट सेक्रेटरी ने नया आठवां वेतन आयोग गठित करने के संकेत दिए हैं। यह भी संभावना है कि एक फरवरी को बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इसकी घोषणा कर सकती हैं। फरवरी 2014 को गठित सातवें वेतन आयोग का दस वर्ष का दायरा खत्म होने में अभी एक वर्ष (जनवरी-26) शेष है। केंद्रीय कर्मचारी संगठन नए आयोग के समय पर गठन और समय पर लागू करवाने को लेकर दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
इसी सिलसिले में इनके नेता पिछले दिनों केंद्रीय कैबिनेट सेक्रेटरी टीवीएस (टीवी सोमनाथन) से मुलाकात की थी। इस चर्चा के दौरान कार्मिक नेताओं की मांग पर कैबिनेट सेक्रेटरी के संकेत से सबकी बाँछें खिल गई हैं। उन्होंने कहा कि 2026 बहुत दूर (टू-फार) है,उससे पहले अगले वर्ष क्यों नहीं? इसके बाद से केंद्रीय संगठनों में हलचल बढ़ गई है कि आठवां वेतन आयोग आम बजट के आसपास गठित कर दिया जाएगा। राज्यों में पृथक से वेतन आयोग गठन की व्यवस्था दशकों पहले ही खत्म हो गई थी। इसलिए राज्य सरकारें भी थोड़ी कमी बेसी के साथ केंद्रीय आयोग की सिफारिशों को लागू करती है । सो राज्य के कर्मचारी अधिकारी भी इसके इंतजार में रहते हैं। उन्हें भी उम्मीद है कि पिछले दो वेतन आयोग की वेतन विसंगतियां, अब आठवें आयोग में दूर की जाएंगी।
कहा जाता है कि जब महंगाई भत्ता 50 फीसदी से पार हो जाए तो नए वेतन आयोग के गठन कर दिया जाना चाहिए। लेकिन सरकार को बिना मांग, आंदोलन के कोई काम नहीं करती। वैसे मोदी 2.0 के अपने अंतिम बजट में नए वेतन आयोग से तौबा करने के संकेत दिए थे। अब कैबिनेट सेक्रेटरी का यह कहना, उम्मीद की जानी चाहिए कि फरवरी में नया वेतन आयोग गठित कर दिया जाएगा।
डिनर और वोट का रिश्ता नहीं
रायपुर दक्षिण के चुनाव परिणाम की कांग्रेस, और भाजपा के नेता समीक्षा कर रहे हैं। कांग्रेस प्रत्याशी आकाश शर्मा की बुरी हार चौंका भी रही है। कांग्रेस से जुड़े लोग मानते हैं कि जहां अच्छी लीड मिलने का भरोसा था वहां बुरी तरह पिछड़ गए। मसलन, कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने लाखे नगर इलाके में समाज विशेष के लोगों के लिए मतदान से दो दिन पहले रात्रि भोज रखा था।
बताते हैं कि रात्रि भोज में करीब 5 सौ लोग थे। सभी कारोबार जगत के लोग थे। सबने कांग्रेस को समर्थन देने का वादा किया था, मगर नतीजे आए, तो ठीक इसका उल्टा हुआ। वहां कांग्रेस प्रत्याशी को 122 वोट ही मिले। यानी साफ था कि जितने लोग रात्रि भोज में थे उसका आधा वोट भी कांग्रेस प्रत्याशी को नहीं मिला। मतदान के बाद भाजपा के रणनीतिकारों ने करीब 15 हजार वोटों से जीत का आकलन किया था। लेकिन सुनील सोनी की जीत रायपुर शहर की बाकी तीनों सीटों के भाजपा विधायकों की जीत से बड़ी हो गई। ऐसे में उनके मंत्री बनने को लेकर अटकलें लगाई जा रही है। देखना है आगे क्या होता है।
इन दुर्घटनाओं से कोई सबक?
छत्तीसगढ़ में सडक़ सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। हाल ही में कृषि मंत्री रामविचार नेताम और महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े सडक़ दुर्घटनाओं में गंभीर रूप से घायल हो गए। यह राहत की बात है कि दोनों की जान बच गई, परंतु इन घटनाओं ने प्रदेश में यातायात सुरक्षा की बदतर हालत को फिर उजागर कर दिया।
मंत्रियों के काफिले में पायलट गाडिय़ां रहती हैं और वे अपेक्षाकृत सुरक्षित यात्रा करते हैं। इसके बावजूद वे हादसे का शिकार हुए। ऐसे में सामान्य नागरिकों की सुरक्षा कैसी है, सोचा जा सकता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष सितंबर तक प्रदेश में 11,000 से अधिक सडक़ दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 4,900 से अधिक लोगों की मौत हुई। रायपुर जैसे प्रमुख जिले में प्रतिदिन औसतन 40 दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें 17 लोग अपनी जान गंवाते हैं।
इन हादसों में 70 फीसदी से अधिक मौतें दोपहिया वाहन चालकों की हुई हैं। लेकिन यह कहना गलत होगा कि हर बार गलती दोपहिया चालकों की ही होती है। तेज रफ्तार, भारी वाहनों की ओवरलोडिंग और लापरवाही भी इन मौतों के प्रमुख कारण हैं। हाईवे पर हेलमेट पहनने को सख्ती से लागू करने के लिए पुलिस अभियान चला सकती है, परंतु यह अभियान अक्सर सरकारी निर्देशों पर चलता है, जो कुछ दिन के उत्सव की तरह चलकर बंद हो जाता है।
तीन दिनों में दो मंत्रियों के हादसों के बावजूद सडक़ सुरक्षा को लेकर जिम्मेदार अधिकारियों और सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। यह उदासीनता बताती है कि आम नागरिकों की सुरक्षा की सुध लेना संबंधित अफसरों की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं है।
सैर-सपाटे का एक नया ठिकाना
प्रदेश में एक नया पर्यटन स्थल विकसित हुआ है। यह है जांजगीर-चांपा जिले का कुदरी बैराज। इसी महीने यहां नौका विहार और बोटिंग की सुविधा शुरू की गई है। यहां कैफेटेरिया और स्पोर्ट्स जोन भी तैयार किया गया है। जिला मुख्यालय से इसकी दूरी करीब 10 किलोमीटर है। हॉली डे के अलावा बाकी दिनों में लोग क्वालिटी टाइम बिताने के लिए यहां पहुंच रहे हैं। गांव के ही युवकों ने इसकी व्यवस्था संभाल रखी है। ([email protected])
जीत और हार का सेहरा
छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं ने झारखंड चुनाव में दम लगाया था, लेकिन पार्टी को बुरी हार का सामना करना पड़ा। झारखंड की एक दर्जन विधानसभा सीटें, छत्तीसगढ़ की सीमा से सटी है। इसलिए छत्तीसगढ़ के नेताओं को विशेष रूप से प्रचार में लगाया गया था।
प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन, केंद्रीय राज्यमंत्री तोखन साहू, डिप्टी सीएम अरुण साव, और विजय शर्मा व ओपी चौधरी, लोकसभावार विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। इसमें से ओपी चौधरी को हजारीबाग की जिम्मेदारी दी गई थी। भाजपा भले ही बहुमत के आसपास नहीं पहुंच पाई, लेकिन हजारीबाग की सात में से छह सीट जीतने में कामयाब रही। ऐसे में हार के बावजूद चौधरी की वाहवाही हो रही है।
झारखंड में भाजपा को बड़ा नुकसान यह हुआ कि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 27 में से सिर्फ एक ही सीट जीत पाई। सरगुजा इलाके के तमाम प्रमुख आदिवासी नेताओं को वहां प्रचार के लिए भेजा गया था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अलबत्ता, महाराष्ट्र में जरूर छत्तीसगढ़ के नेताओं ने बेहतर काम किया है। महाराष्ट्र में चुनाव से पहले ही छत्तीसगढ़ भाजपा के क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल ने पुणे के आसपास के 18 सीटों के संगठन को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी संभाली थी, और उसमें वो कामयाब भी रहे।
त्रिपुरा के सीएम माणिक साहा निजी चर्चा में जामवाल की तारीफ करते नहीं थकते हैं। जामवाल लंबे समय तक पूर्वोत्तर राज्यों में पार्टी के संगठन का काम संभालते रहे हैं, और त्रिपुरा जैसे कठिन राज्य में भाजपा की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई थी। ऐसे में महाराष्ट्र में बड़ी जीत में जामवाल के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है।
बस्तर और महिला कलेक्टर
बस्तर के सुकमा, बीजापुर, और नारायणपुर जिले ऐसे हैं जहां अब तक कोई महिला कलेक्टर नहीं रही हैं। जबकि यहां आश्रम-छात्रावासों में छात्राओं की सुरक्षा से जुड़े विषयों, और महिला स्व सहायता समूहों के कार्यों को देखते हुए जिले में महिला अफसरों की जरूरत महसूस की जाती रही हैं। इससे परे बस्तर के बाकी जिले दंतेवाड़ा, बस्तर, कांकेर, और कोंडागांव में महिला कलेक्टर रही हैं, और उन्होंने अपनी अलग ही छाप छोड़ी है।
दंतेवाड़ा में रीना बाबा साहेब कंगाले का काम बड़ा उम्दा रहा है। इसी तरह बस्तर में भी रिचा शर्मा, रितु सेन ने भी थोड़े समय में अपने काम से अलग ही पहचान बनाई है। कांकेर में पहले अलरमेल मंगाई डी और फिर डॉ. प्रियंका शुक्ला ने स्वास्थ्य और शिक्षा व महिला सुरक्षा की क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है।
डॉ. प्रियंका शुक्ला के कामकाज की सार्वजनिक तौर पर तारीफ होती रही है। कोंडागांव में शिखा राजपूत तिवारी कलेक्टर रह चुकी हैं। मगर नक्सल प्रभावित तीनों जिले सुकमा, बीजापुर, और नारायणपुर में अब तक महिला कलेक्टरों की पोस्टिंग नहीं होना कई मायनों में चौंकाता भी है।
साहू के हिस्से में फिफ्टी-फिफ्टी
केंद्रीय राज्य मंत्री और बिलासपुर के सांसद तोखन साहू को झारखंड विधानसभा चुनाव में चार सीटों का प्रभारी बनाया गया था। इनमें से दो पर भाजपा को कामयाबी हासिल हुई है। लातेहार सीट पर बीजेपी के प्रकाश राम जीते। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के बैद्यनाथ राम को 98000 से अधिक वोटों से हराया। सिमरिया सीट पर भाजपा के उज्ज्वल दास ने एक लाख 11 हजार वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की। इस सीट पर पिछली बार बीजेपी चौथे स्थान पर थी। चतरा और मनिका सीट पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। मनिका सीट पर कांग्रेस से बीजेपी का मुकाबला था। बाकी सीटों पर जेएमएम से टक्कर थी। दोनों सीटों पर हार का मार्जिन कम रहा।
प्रभार मिलने के बाद तोखन साहू ने धुंआधार प्रचार अभियान चलाया था। अंतिम दिन तक उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। भाजपा झारखंड में बहुमत जरूर नहीं ला पाई पर साहू का अपना प्रदर्शन बुरा भी नहीं रहा।
किसान हर जगह सडक़ पर
विकासशील और कृषि प्रधान भारत में ही किसान समस्याओं का सामना नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन्नत देशों में भी यह देखने को मिल जाता है। लंदन के व्हाइट हॉल के सामने हजारों किसानों ने प्रदर्शन किया। वे वहां की संसद द्वारा पारित उस कानून का विरोध कर रहे थे, जिसमें प्रावधान किया गया है कि एक मिलियन पाउंड से अधिक की उत्तराधिकार से प्राप्त संपत्ति पर 20 प्रतिशत विरासत टैक्स लगाया जाएगा। किसानों का कहना था कि ऐसा होगा तो वे खेती से दूर होते जाएंगे, जिससे खाद्यान्न संकट पैदा होगा।
याद होगा, बीते लोकसभा चुनाव में विरासत टैक्स का मुद्दा हमारे यहां भी उछला था। चुनाव अभियान के बीच में ही कांग्रेस को अपने ओवरसीज अध्यक्ष सैम पित्रोदा से इस्तीफा लेना पड़ा था।
लंदन में किसानों के प्रदर्शन पर वहां के प्रधानमंत्री चुप नहीं रहे। पहले दिन ही प्रतिक्रिया आ गई। उन्होंने कहा कि वे किसानों की चिंताओं को समझते हैं और उनका समर्थन करना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अधिकांश किसानों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा..। हर एक देश में सत्ता के पास आंदोलनकारियों के लिए ऐसा ही घुमावदार जवाब होता है। मगर यह चुप्पी से बेहतर होता है।
हर कुर्सी पर बैठना नसीब
भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडेय के बाद सुनील सोनी प्रदेश के दूसरे ऐसे नेता बन गए हैं जिन्होंने महापौर, सांसद और विधायक तीनों पदों को सुशोभित किया है। सरोज की तरह सुनील सोनी भी दो बार महापौर रहे।
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद निगम की राजनीति करने वाले कई नेता विधायक बने हैं। इनमें लखनलाल देवांगन, प्रबोध मिंज, किरण देव, और देवेन्द्र यादव व स्व. विद्यारतन भसीन हैं। लखनलाल देवांगन कोरबा के महापौर रहे। बाद में वो पहली बार कटघोरा से विधायक बने और संसदीय सचिव भी रहे। अभी वो कोरबा से चुनाव जीतने के बाद सरकार में उद्योग मंत्री हैं। इसी तरह प्रबोध मिंज अंबिकापुर के दो बार महापौर रहे। वर्तमान में वो लुंड्रा विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
इसी तरह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरण देव भी जगदलपुर के महापौर रहे। वर्तमान में जगदलपुर विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इसके अलावा भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव भी महापौर रह चुके हैं। इसके अलावा भिलाई के महापौर रहे स्व. विद्यारतन भसीन वैशाली नगर से विधायक रहे हैं। सरोज पांडेय पहली बार वैशाली नगर से विधायक बनी थीं। इसके बाद दुर्ग से सांसद निर्वाचित हुई। इससे परे राजनांदगांव के महापौर रहे मधुसुदन यादव सांसद तो बने लेकिन वर्ष 2018 में विधानसभा का चुनाव हार गए।
दूसरी तरफ, सुनील सोनी नगर निगम के पार्षद बने, फिर सभापति चुने गए। दो बार महापौर रहे, फिर सांसद बने, और अब विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं। यानी सुनील सोनी के नाम एक अलग ही रिकार्ड बना है। उनसे जुड़े लोग जीत के बाद अभी से उनके मंत्री बनने की अटकलें लगा रहे हैं। देखना है आगे उन्हें आगे क्या कुछ मिलता है।
चर्चा दो राजनीतिक फिल्मों की
मार्च 2024 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘द नक्सली स्टोरी’ को लेकर समीक्षकों और दर्शकों में खासा विवाद रहा। अप्रैल 2010 में दंतेवाड़ा में हुए माओवादी हमले की पृष्ठभूमि पर आधारित इस फिल्म को -द टाइम्स ऑफ इंडिया ने 5 में से 3 स्टार दिए तो इंडियन एक्सप्रेस ने 0.5 और नेशनल हेराल्ड ने सीधे शून्य रेटिंग दी थी। हाल ही में यह फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म जी-5 पर रिलीज होने के बाद फिर चर्चा में है।
बड़े पर्दे पर जब आई तो फिल्म में सामाजिक कार्यकर्ताओं और अदालतों को नक्सल समर्थक के रूप में दिखाने पर तब कड़ी आलोचना हुई थी। लंबे समय तक बस्तर में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने अब ओटीटी पर आने के बाद प्रतिक्रिया दी है। हाल ही में उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि फिल्म में उनके जैसे पात्र को एक मुस्लिम व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है, जिसका नाम 'इरशाद' रखा गया है। उसे चरखा चलाने वाला, कई एनजीओ के संचालक और नक्सलियों के लिए हथियारों की व्यवस्था करने वाला बताया गया है। हिमांशु के अनुसार, यह फिल्म पूरी तरह से झूठे तथ्यों पर आधारित है।
इसके बावजूद कई भाजपा शासित राज्यों में इस फिल्म की एक वर्ग में बड़ी प्रशंसा हुई। इनमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है। सरकार ने इसे टैक्स फ्री कर दिया था। फिर भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप रही।
अब हाल ही में ‘द साबरमती एक्सप्रेस’ रिलीज़ हुई है, जिसे भी गोधरा कांड की सच्चाई के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। इस फिल्म को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सराहा है। इसके बाद मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़ सहित कई भाजपा शासित राज्यों में इसे टैक्स फ्री किया गया है। हालांकि, रिलीज के शुरुआती सप्ताह में इसका कलेक्शन कमजोर है।
छत्तीसगढ़ के दर्शकों के लिए यह मौका है कि वे टैक्स फ्री टिकट पर सिनेमाघरों में इस फिल्म का आनंद लें। अगर इतना भी महंगा लगे, तो ओटीटी पर इसके आने का इंतजार करें, लेकिन यह इंतजार लंबा हो सकता है।
ऐसी फिल्में टैक्स फ्री होने के बाद भी बॉक्स ऑफिस पर तहलका क्यों नहीं मचा पातीं? इन फिल्मों के एक प्रशंसक का कहना है कि दरअसल, लोगों को व्हाट्सएप पर दिन रात ऐसी जानकारी फ्री में मिलती रहती है। वे सिनेमा हॉल जाकर अपना समय और पैसा खर्च नहीं करना चाहते।
भोजन की बर्बादी का सीजन
शादियों का सीजन शुरू हो गया है। खाने के स्टाल पर भांति-भांति का व्यंजन देखकर कई मेहमान बेकाबू हो जाते हैं, जितना खा नहीं पाते- उससे ज्यादा टेबल पर छोडक़र चले जाते हैं। भोजन तो उतना ही लेना चाहिए जितना हजम हो सके। यह राजधानी रायपुर के एक समारोह के रिसेप्शन की तस्वीर है।
पांच सौ किलो मिठाई बंटी
राज्य मंत्रालय में गुरुवार को कम से कम पांच सौ किलो मिठाई बटीं। हर मंजिल के हर कमरे से अधिकारी कर्मचारी मुंह मीठा कर निकल रहे थे। आप इसे अति,अतिश्योक्ति कह रहे होंगे। मगर बॉटम से टॉप फ्लोर तक 155 लोग बुधवार को पदोन्नत हुए थे। आकलन कर लीजिए। अब मिठाई का हिसाब हम हिसाब बताते हैं। इन 155 में से अब हरेक ने एक किलो भी लिया होगा तो 155 किलो का हिसाब सीधा बैठता है। लेकिन 900 से अधिक अमले वाले मंत्रालय में इन 155 ने बधाई के बदले शेष 745 का मुंह मीठा कराने कम से कम तीन-तीन किलो के डिब्बों का इंतजाम किया था। इस तरह से 465 किलो का सीधा हिसाब मिल गया।
पुराने शहर के हर कोने की मिष्ठान भंडार से मिठाई पहुंची थी। कम पड़ी तो कुछ ने पास के अभनपुर से मंगवाया। वहां से भी 25-30 किलो पेड़े आए ही होंगे। एक कर्मचारी ने तो अपनी वर्किंग टेबल पर कल फाइलें हटाकर मिठाई के डिब्बे रख दिए थे। बधाई देने वालों ने सामान्य से पेड़े से लेकर रसमलाई, मिल्क केक, रसगुल्ले, गुलाब जामुन जैसे हर वैरायटी की मिठाई खाई। हां बहुतायत में काजू कतली ही रही।
मिठाई इतनी अधिक रही कि मधुमेह के इस दौर में कई लोग, मना नहीं कर पाए और पीले रंग के सरकारी बड़े लिफाफे में घर के लिए रखने लगे। एक-एक पीस के हिसाब से इनके पास भी एक-एक किलो तक मिठाई इक_ा हो गई। हंसी ठ_ों के दौर में एक ने कहां इतना हो गया है कि मैं घर लौटने पर शाम को मोहल्ले की दुकान में तीन सौ रुपए किलो में बेच दूंगा। बताया गया है कि 24 वर्षों में पहली बार इतनी अधिक संख्या में पदोन्नतियां हुईं हैं। वर्ना सालाना 10-20 ही होते रहे हैं। खास बात यह है कि पदोन्नत सौ से अधिक तो राज्य गठन के बाद हुई भर्ती परीक्षाओं में चयनित अधिकारी कर्मचारी हैं। यानी यह पूरा मूल छत्तीसगढिय़ा बैच है। सो इतनी खुशी तो बनती ही है।
केवल इनकम टैक्स ही नहीं...
अब केवल जीएसटी, इनकम टैक्स या ईडी की दबिश से छापों की इतिश्री नहीं होगी। किसी भी पहली एजेंसी की रेड के बाद 22 विभाग एक के बाद उस अधिकारी-कर्मचारी, कारोबारी उद्योग समूह पर सिलसिले वार लगातार अपने समयानुकूल छापे जांच करेंगे। इसे कंसिक्वल रेड इंक्वायरी कहा जाता है। दरअसल केंद्रीय वित्त विभाग ने रेवेन्यू चोरी के हर लीकेज को बंद करने एक ग्रुप ऑफ डिपार्टमेंट बनाया है। यह राज्य से लेकर दिल्ली तक बनाया गया है। इसके प्रमुखों को हर माह दो माह कंप्लायंस रिपोर्ट मुख्यालय देनी होती है। कि फलां विभाग के पहली रेड के बाद अन्य विभागों ने अपने-अपने दायरे में क्या-क्या किया? इनकम टैक्स के एक अधिकारी ने बताया कि केंद्र व राज्य के करीब 22 विभागों को मिलाकर यह काम होता है । जैसे इनकम टैक्स ने रेड मारा तो वह अपनी रेड की रिपोर्ट सीबीआई, ईडी, डीआरआई, नारकोटिक्स ब्यूरो, फेमा जैसी एजेंसियों के साथ साथ सी-जीएसटी, से लेकर राज्य के एस-जीएसटी, एसीबी- ईओडब्ल्यू, लैंड रेवेन्यू डिपार्टमेंट से शेयर कर इन मामलों के उल्लंघन पर टैक्स चोरी की जांच करवाएगा। यानी पहली रेड चाहे किसी भी विभाग की हो उसके बाद आरोपित वर्ष-दो वर्ष के लिए डिजिटल न सही डिपार्टमेंटल अरेस्ट तो हो ही गया समझो। इधर इससे रेड करने वाला हर विभाग भी परेशान है। क्या इसे न खाउंगा न खाने दूंगा की गारंटी का हिस्सा माना जाए।
सब कुछ दक्षिण के बाद
मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का पुनर्गठन तो हो चुका है, लेकिन छत्तीसगढ़ में अब तक बदलाव की अनुमति नहीं मिली है। जबकि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने लोकसभा चुनाव के पहले ही हाईकमान से कम से कम जिला, और ब्लॉक अध्यक्षों को बदलने की अनुमति मांगी थी। चर्चा है कि बदलाव पर फैसला कुछ हद तक रायपुर दक्षिण के चुनाव नतीजे पर निर्भर करेगा।
कहा जा रहा है कि रायपुर दक्षिण उपचुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आते हैं, तो इसका काफी हद तक क्रेडिट प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को जाएगा। बैज ने ही युवा कांग्रेस अध्यक्ष आकाश शर्मा को प्रत्याशी बनाने की पुरजोर वकालत की थी। और बैज ताकतवर होकर उभरेंगे। उन्हें कांग्रेस संगठन में बदलाव की अनुमति मिल सकती है, लेकिन यदि नतीजे अनुकूल नहीं आते हैं, तो वो खुद मुश्किल में घिर सकते हैं। उन्हें हटाने की भी मांग हो सकती है। देखना है कि 23 तारीख को क्या कुछ होता है।
धान खरीद के लिए बस्तर में आंदोलन
भाजपा सरकार की नई सरकार की धान खरीदी का यह पहला साल है। प्रति क्विंटल 3100 रुपये भुगतान के आकर्षण ने किसानों में इसकी अधिक से अधिक पैदावार लेने की होड़ मची हुई है। पर उनकी जरूरत के मुताबिक खरीदी केंद्र नहीं खोले गए हैं। बस्तर में एक साथ कई स्थानों पर नए खरीदी केंद्र खोलने के लिए प्रदर्शन हो रहे हैं। भानुप्रतापपुर में संबलपुर इलाके से जुड़े कई गांवों में किसान नजदीक में खरीदी केंद्र नहीं खुलने से नाराज हैं। यहां की आदिम जाति सेवा सहकारी समिति ने बांसला में धान खरीदी केंद्र खोलने का प्रस्ताव सहकारी संस्था के पंजीयक के माध्यम से राज्य सरकार को भेजा था लेकिन नहीं खुला। इसका नतीजा यह है कि संबलपुर खरीदी केंद्र में ऐसे कई गांव शामिल किए गए हैं जिनकी दूरी 12 से 15 किलोमीटर है। इन्होंने प्रदर्शन किया है और चेतावनी दी है कि एक सप्ताह के भीतर नया केंद्र नहीं खोला गया तो मेन रोड पर चक्काजाम किया जाएगा।
सुकमा में कलेक्ट्रेट के सामने कल सैकड़ों किसानों ने प्रदर्शन किया। वे सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे। यहां पहुंचे किसान कह रहे थे कि पिछले कई सालों से वे नए खरीदी केंद्रों की मांग कर रहे हैं लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। हालत यह है कि उनको 30-35 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। उन्हें हर साल आश्वासन दिया जाता है, पर नहीं खोला जाता। पिछली सरकार तो छल कर रही थी, अभी भी सुनवाई नहीं हो रही है।
बस्तर संभाग के कई दूसरे स्थानों से भी इसी तरह की खबरें हैं। दूर-दूर गांवों की बसाहट होने के कारण हो सकता है पर्याप्त संख्या में नहीं खोले जा रहे हों पर यह 20 से 35 किलोमीटर दूरी तय करने की परिस्थिति तो गंभीर ही है। छोटे किसानों के लिए परिवहन की लागत बर्दाश्त करना भी मुश्किल है। ऐसे में फायदा बिचौलियों को मिलेगा और सरकार की 3100 रुपये की खरीदी की महती योजना से वंचित रह जाएंगे।
रेलवे ट्रैक का सी-फा
ट्रेनों में सफर के दौरान ट्रैक, स्टेशन और फाटक पर कई संक्षेप शब्द दिखते हैं लेकिन उनका मतलब पता नहीं होता। उनमें से ही एक है सी फा और उसी के नीचे लिखा डब्ल्यू एल। यह संकेत फाटक या लेवल क्रासिंग आने से पहले पायलट को सतर्क करने के लिए होता है। सी का मतलब सीटी, फा का फाटक। अंग्रेजी में भी यही- व्हिसिल और लेवल क्रासिंग है। इस जगह को क्रॉस करने पर लोको पायलट को ट्रेन की सीटी बजाने का निर्देश दिया गया है। ([email protected])