दोनों पार्टियां देख रही हैं, गांठ के पूरे
नगरीय निकाय चुनाव की तिथि अभी घोषित नहीं हुई है, लेकिन कांग्रेस, और भाजपा में मेयर-पार्षद प्रत्याशियों के नामों पर मंथन चल रहा है। कांग्रेस ने सभी निकायों में पर्यवेक्षक भेजे हैं, जो कि स्थानीय संगठन, विधायक या पराजित प्रत्याशियों से चर्चा कर दावेदारों के नामों पर चर्चा कर रहे हैं।
कांग्रेस पर्यवेक्षक दावेदारों से एक सवाल जरूर कर रहे हैं कि आप कितना खर्च कर सकेंगे? साथ ही उन्हें बता दे रहे हैं कि पार्टी किसी तरह आर्थिक मदद नहीं करेगी, उन्हें चुनाव खर्च खुद करना होगा। भाजपा में भी कुछ इसी तरह की चर्चा हो रही है।
भाजपा में मेयर टिकट के दावेदारों से सामाजिक, और राजनीतिक समीकरण के अलावा उनकी आर्थिक ताकत को लेकर भी जानकारी ली जा रही है। संकेत साफ है कि कांग्रेस, और भाजपा में जो भी चुनाव मैदान में उतरेंगे वो आर्थिक रूप से मजबूत होंगे।
दिलचस्प बात यह है कि पार्षद प्रत्याशी के लिए खर्च की कोई सीमा नहीं है। जबकि मेयर प्रत्याशी अधिकतम 10 लाख, नगर पालिका अध्यक्ष पांच लाख, और नगर पंचायत अध्यक्ष प्रत्याशी तीन लाख तक ही खर्च कर सकेंगे। ये अलग बात है कि चुनाव में निर्धारित सीमा से कई गुना ज्यादा खर्च होता है।
इतने रेट में ऐसाइच मिलेंगा
सरकार के निर्माण विभागों में रोजाना घपले-घोटाले के प्रकरण सामने आ रहे हैं। बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या की मुख्य वजह भी यही रही है। मुकेश चंद्राकर ने पीडब्ल्यूडी के सडक़ निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार का खुलासा किया था। जानकार लोग घटिया निर्माण के लिए सरकार की पॉलिसी को भी काफी हद तक जिम्मेदार मान रहे हैं।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सरकारी ठेकों में प्रतिस्पर्धा काफी ज्यादा है। हाल यह है कि ठेकेदार एसओआर रेट से 30-35 फीसदी तक कम में काम करने के लिए तैयार रहते हैं। इस वजह से निर्माण कार्यों में गुणवत्ता नहीं रह जा रही है। इससे परे ओडिशा सरकार ने नियम बना दिया है कि एसओआर दर से 15 फीसदी कम रेट नहीं भरे जा सकेंगे। टेंडर हासिल करने के लिए इससे ज्यादा कम रेट भरा नहीं जा सकता है। बराबर रेट भरे होने की दशा में लॉटरी निकालकर टेंडर दिए जा सकते हैं।
वेतन आयोग और 7 राज्यों के चुनाव
बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में केंद्रीय कैबिनेट ने उम्मीद से विपरीत आठवें वेतन आयोग के गठन का फैसला किया। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मीडिया को बताया थाकि यह कैबिनेट का निर्धारित एजेंडे में नहीं था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अलग से यह प्रस्ताव रखा। यह केंद्र और राज्य सरकारों के करोड़ों कार्मिकों के लिए नए वर्ष की शुरूआत में ही खुशखबरी रही। मगर जिस प्रधानमंत्री ने दो वर्ष पहले यह कह दिया हो कि अब नया वेतन आयोग नहीं बनेगा। उसका ऐसा न्यू ईयर गिफ्ट , बिना रिटर्न गिफ्ट के मिले यह संभव नहीं। यह रिटर्न गिफ्ट कार्मिकों को वोट के रूप में देना होगा। इसलिए तो घोषणा की । इस वर्ष केंद्र सरकार के नजरिए से दो अहम राज्यों पहले दिल्ली और फिर बिहार के चुनाव होने हैं। जाहिर हैं वोट बैंक ये कर्मचारी ही होंगे। पहले नई दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली इलाकों में बड़ी संख्या में मतदाताओं पर पडऩे वाला है। ये सरकारी कर्मचारी मध्य और दक्षिण दिल्ली में चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं। ऐसा ही गणित बिहार में भी है । झारखण्ड गंवाने के बाद सुशासन बाबू (नीतिश कुमार)की दलबदलू वाली नकारात्मक छवि से निपटने वेतन आयोग ही कारगर हो सकता है?। और अगले वर्ष 2026 में आयोग की रिपोर्ट आने के दौरान केरल,पुडुचेरी ,तमिलनाडु, असम के बाद पश्चिम बंगाल में भी चुनावी खेला होना है।यह उसी की तैयारी है। नए वेतन आयोग से हजारों कर्मचारियों, पेंशनभोगियों और रक्षा कर्मियों को लाभ होगा।
इससे पहले भी पूर्व प्रधानमंत्री स्व.मनमोहन सिंह ने 2014 में भी लोकसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले फरवरी में सातवें वेतन आयोग की घोषणा की थी। उस आयोग ने 2.57 गुना फिटमेंट फैक्टर की सिफारिश की थी। और वेतन मैट्रिक्स 1 में वेतन 7000 रुपये से बढ़ाकर 18000 रुपये प्रति माह किया गया था। वर्तमान सरकार आने वाले हफ्तों में थोड़ी अधिक बढ़ोतरी कर सकती है। आम तौर पर वेतन पैनल का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश द्वारा किया जाता है, जिसमें सेवानिवृत्त सचिव और वरिष्ठ अर्थशास्त्री इसके सदस्य होते हैं। सातवें वेतन आयोग के कारण 2016-17 के दौरान एक लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च हुआ।
बाघों के लिए बचाएं जंगल
वन्यप्राणियों, विशेषकर बाघों के संदर्भ में छत्तीसगढ़ में कुछ असामान्य गतिविधियां दिख रही हैं। बारनवापारा में एक बाघ कहीं से आ गया। यहां तेंदुआ तो हैं, पर बाघ पहली बार देखा गया। उसे बाद में गुरु घासीदास अभयारण्य में ले जाकर छोड़ दिया गया। इसके बाद करीब एक पखवाड़े तक मरवाही वन मंडल और अचानकमार अभयारण्य में एक गर्भवती बाघिन विचरण कर रही थी। वह घूमते, फिरते भटकते भनवारटंक के पास आ गई, जो उसलापुर-कटनी रेल मार्ग में पड़ता है। यह बाघिन कुछ दिन बाद अमरकंटक की तराई में दिखी। फिर उसे कटनी मार्ग पर ही शहडोल के पास देखा गया। अभी उसका कुछ पता नहीं है। अब एक बाघ को साजा के रिहायशी इलाके में पूर्व मंत्री रविंद्र चौबे के फार्म हाउस के पास पाया गया। बाघ किसी को नजर नहीं आया लेकिन पंजों के निशान से वन विभाग ने बाघ की पुष्टि की है। जिला प्रशासन और वन विभाग ने अलर्ट भी जारी किया है।
ये खबरें उसी दौरान आ रही हैं जब दावा किया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में जंगल का 3 प्रतिशत विस्तार हो गया है। यह विस्तार हुआ है तो बाघ-बाघिनों को इतना भटकना क्यों पड़ रहा है? विस्तार के दावे को कई पर्यावरण प्रेमियों ने तथ्यों के साथ नकारा भी है। बाघों का मनुष्यों की आबादी के बीच दिखना कौतूहल और सनसनी की बात जरूर हो सकती है लेकिन इन जीवों को किस तरह से अपना अस्तित्व बचाने की चिंता सता रही है, इस पर भी सोचने की जरूरत है। सुकून भरा घना जंगल मिले, जहां इनके लिए पर्याप्त आहार हों, तो ये शायद हमें नहीं दिखेंगे। बाघ एक शीर्ष मांसाहारी जीव है। पारिस्थितिकी तंत्र के लिए उनका होना बहुत जरूरी है। जिस जंगल में बाघ होते हैं, माना जाता है कि वह तस्करों से सुरक्षित रहता है। पर जब ये ही जंगल छोड़ रहे हों तो गहरी चिंता होनी चाहिए। विडंबना है, जंगल बचाने वाले बाघों के लिए जंगल नहीं बच रहे।
भविष्य ही जोखिम भरा, जान की क्या परवाह..
बीएड प्रशिक्षित विरोध कर रहे हैं, जब उन्हें राजधानी रायपुर के तूता स्थित धरनास्थल से उठाकर ले जाया जा रहा है। अदालती आदेश के बाद इनकी नौकरी छिन गई है। नौकरी देने के बाद 2900 लोग हटा दिए गए हैं। हजारों पद शिक्षकों के खाली है, समायोजन की मांग कर रहे हैं। अपनी कोई राय नहीं। बस, तस्वीर देख लीजिए।
डेपुटेशन और बेरुखी
केंद्र सरकार खासकर गृह मंत्रालय छत्तीसगढ़ समेत अधिकांश राज्य सरकारों से खफा है। वो इसलिए कि आईपीएस अफसरों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजने में राज्य आनाकानी कर रहे। दरअसल, राज्य सरकारें इन अभा संवर्ग के केंद्रीय अफसरों को अपना मानकर, प्रतिनियुक्ति के लिए अनुमति नहीं देती। इससे न तो राज्यों का कोटा पूरा हो रहा न केंद्रीय एजेंसियों में अफसरों की पूर्ति हो पा रही। इससे बड़ी संख्या में कई और जांच एजेंसियां अमले की कमी से जूझ रही है। और गृह मंत्री अमित शाह के लिए ये दोनों ही महकमे प्राथमिकता वाले हैं। कहीं ऐसा न हो कि वो किसी दिन राज्यवार संख्या और नाम भेजकर 24 घंटे में रिलीव करने का ही आदेश भेज दे।
गृह मंत्रालय के पास इस समय प्रतिनियुक्ति के लिए 234 पद रिक्त हैं। इनमें सीबीआई, सीआरपीएफ, एनआईए, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, बीएसएफ, एनएसजी, एसएसबी सहित विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों और बलों में 114 एसपी, 77 डीआईजी, 40 आईजी, दो एडीजी और एक एसडीजी के पद खाली पड़े हैं। और भी दूसरे पद हैं।आईपीएस (कैडर) नियमों के तहत, प्रत्येक राज्य में उनके कुल कैडर स्ट्रेंथ से 15 से 40 प्रतिशत वरिष्ठ ड्यूटी पद केंद्रीय प्रतिनियुक्ति रिजर्व (सीडीआर) के रूप में निर्धारित किए जाते हैं। इस आधार पर छत्तीसगढ़ से 15 फीसदी के मान से 30 अफसर जाने चाहिए, लेकिन हैं केवल 6 अफसर ही हैं।
गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को पत्र लिखकर कहा, ऐसा अनुभव रहा है कि कुछ राज्य/कैडर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए पर्याप्त संख्या में नाम नहीं भेजते हैं। इसके अलावा, कई बार राज्य सरकारें वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के अधिक नाम भेजती हैं, लेकिन वे एसपी से लेकर आईजी तक के पदों पर नियुक्ति के लिए नाम प्रस्तावित नहीं करती हैं।
गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों से कहा कि 2025 के लिए नाम प्राथमिकता के आधार पर भेजे जाएं। पिछले साल जून में गृह मंत्रालय ने इसी तरह का अनुरोध किया था लेकिन केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए आईपीएस अधिकारियों को नामित करने पर राज्यों की ओर से ठंडी प्रतिक्रिया मिली थी। इस मुद्दे को हल करने के लिए, गृह मंत्रालय ने उन अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की कोशिश की है जो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए प्रस्ताव पर अपना नाम रखे जाने के बाद भी आने से मना करते हैं या रद्द कराने में जुटे रहते हैं। अब ऐसे अफसरों के सीआर में इस पर रिमार्क करने की पर विचार चल रहा है। या फिर सीधे रिलीविंग आर्डर ही न कर दें।
थोड़ी कमी, बाकी सब खुशी
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद पर शनिवार को किरण देव की दोबारा ताजपोशी हुई। छत्तीसगढ़ पहला राज्य है जहां संगठन चुनाव पूरे हुए, और प्रदेश अध्यक्ष का भी चुनाव हुआ है। पार्टी हाईकमान ने राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े को चुनाव अधिकारी बनाया था। तावड़े यहां आए, तो उनकी अच्छी खातिरदारी भी हुई। मगर थोड़ी चूक भी हो गई, जिसको लेकर कुछ नेताओं ने अपनी नाराजगी भी जताई।
तावड़े के लिए भोजन का इंतजाम किया गया था, वह गुणवत्ता की नजरिए से हल्का था। सुनते हैं कि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडेय इसको लेकर काफी नाराज रहीं। सरोज महाराष्ट्र की प्रभारी रही हैं। लिहाजा, तावड़े से उनके अच्छे संबंध हैं। सरोज के अलावा और कुछ और अन्य नेताओं ने भी खाना अच्छा न होने पर कार्यालय में मौजूद नेताओं पर अपनी नाराजगी जताई।
कार्यक्रम निपटने के बाद तावड़े, स्पीकर डॉ. रमन सिंह से मिलने भी गए। और फिर बाद में रवाना होने से पहले रमन सिंह के सीएम रहते उनके ओएसडी रहे विवेक सक्सेना के घर भी गए। विवेक सक्सेना और विनोद तावड़े, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में साथ-साथ काम कर चुके हैं। जाते-जाते सांसद बृजमोहन अग्रवाल, तावड़े से एयरपोर्ट पर मिले, और उन्हें बेटे की शादी में आने का न्योता भी दिया। कुल मिलाकर मेल मुलाकात से तावड़े काफी खुश थे, लेकिन यहां के नेता खातिरदारी में थोड़ी कमी के चलते नाखुश रहे।
बस्तर में हालात जस के तस
बस्तर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की निर्मम हत्या के बावजूद प्रशासन ने कोई सबक लिया हो, ऐसा नहीं लगता। अफसरों और ठेकेदारों के बीच की साठगांठ पहले जैसी ही है। ताजा मामला गीदम नगर पंचायत का है, जहां 81 लाख रुपये की लागत से पार्क का निर्माण होना है। इसके लिए टेंडर निकाला गया, लेकिन हैरानी की बात यह है कि टेंडर का विज्ञापन बस्तर के किसी अखबार में प्रकाशित नहीं किया गया। यह विज्ञापन 400 किलोमीटर दूर बिलासपुर के अखबारों में छपा, जबकि बस्तर के स्थानीय अखबारों से पूरी तरह गायब रहा।
चुनाव आ जाने के कारण नगर निकायों में निर्वाचित प्रतिनिधियों की भूमिका लगभग समाप्त हो गई है। सारे निर्णय प्रभारी अधिकारियों द्वारा लिए जा रहे हैं। जब विज्ञापन के बस्तर में न छपने को लेकर सवाल किया गया, तो मुख्य नगर पंचायत अधिकारी का जवाब था कि वह इस पर कलेक्टर से पूछकर बताएंगे। उनके इस बयान ने कलेक्टर को भी इस विवाद में घसीट लिया, भले ही इसमें कलेक्टर की कोई भूमिका रही हो या नहीं।
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि टेंडर प्रक्रिया में किसी खास ठेकेदार को लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई थी। यह कार्यप्रणाली न केवल पारदर्शिता पर सवाल है, बल्कि यह भी है कि बस्तर में हालात अभी नहीं बदलेंगे।
ऐसे अद्भुत पक्षियों को भगाया जा रहा
हंस (बार-हेडेड गूज, प्रवासी), सुरखाब (रुडी शेल्डक, प्रवासी) और महान पनकौवे (ग्रेट कार्मोरेंट, स्थानीय प्रवासी) जैसे बड़े जलीय पक्षी बिलासपुर के गनियारी स्थित शिवसागर जलाशय में एक छोटे से टीले पर धूप सेंकते हुए देखे गए।
प्रवासी और स्थानीय पक्षियों के इस विश्राम स्थल के पास जिस तेज़ी से मुरुम का उत्खनन और ट्रकों से परिवहन हो रहा है, वह उनके प्राकृतिक आवास में भारी हस्तक्षेप का कारण बन रहा है। ऐसा लगता है कि इसी कारण से ये पक्षी यहां से जल्द ही रुखसत हो गए। पिछले साल भी इनकी संख्या में कमी देखी गई थी और यदि यही स्थिति बनी रही, तो आशंका है कि ये पक्षी भविष्य में यहां आना बंद कर देंगे। ([email protected])
नहले पे दहला
कल वन कर्मचारी संघ की नई कार्यकारिणी ने शपथ ली। दीनदयाल ऑडिटोरियम में आयोजित भव्य कार्यक्रम में मुख्य अतिथि वन मंत्री केदार कश्यप थे, और अध्यक्षता विधायक पुरंदर मिश्रा ने की। वन कर्मचारियों को संबोधित करते हुए दोनों ने ही वन और वनवासियों की पौराणिक और ऐतिहासिक बातें रखीं। पहले बोले पुरंदर मिश्रा, कहा- वन सभी के लिए आश्रय स्थल रहे हैं। भगवानों ने भी वनों में दिन गुजारे। जन कल्याण के लिए ऋषि मुनियों ने तपस्याएं। उन्होंने हास-परिहास में कहा इस कलयुग में ईश्वर का सान्निध्य हासिल करना हो, वरदान लेना हो या कुछ लाभ प्राप्त करना हो तो हम ब्राह्मण के पास आएँ, हम ईश्वर तक पहुंचाएंगे।
मिश्रा जी यहीं नहीं रुके करीब आधे घंटे का उनका संबोधन ब्राह्मणों पर ही केंद्रित रहा। आधे घंटे तक ब्राह्मण-ब्राह्मण सुनकर दिग्गज आदिवासी नेता से भी रहा नहीं गया। अपने संबोधन की बारी का पूरा फायदा उठाया और ब्राह्मणवाद पर तीर छोड़े। केदार कश्यप ने आदिवासियों को वनों का मूल निवासी बताया। और कहा अब हालत यह है कि ब्राह्मण, अपने पूर्वज ऋषि मुनियों की वनों-गुफाओं में तपस्या, आश्रम व्यवस्था का हवाला देकर स्वयं को वनवासी बताकर आदिवासी घोषित करने की मांग करने लगे हैं। केदार ने कहा कि बस्तर में तो इसके लिए धरना प्रदर्शन भी किए गए।
इस नहले पे दहले को सुनकर ऑडिटोरियम में हंसी ठ_े गूंजे। सही भी है हाल के वर्षों में केंद्र राज्य सरकारों से वनवासियों को मिल रहे फायदे को देखते हुए ब्राह्मणों का भी हृदय परिवर्तन होना कोई आश्चर्य की बात नहीं।
इस बरस अच्छे दिन, या वादों का खेल?
दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ़ में भाजपा की नई सरकार बनी। चुनावी घोषणा पत्र में हर साल एक लाख नौकरियां देने का वादा प्रमुख था। लेकिन 2024 पूरा बीत गया और छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (सीजीपीएससी) को छोडक़र शायद ही किसी अन्य भर्ती प्रक्रिया का ठोस अंजाम हुआ हो।
जनवरी 2024 में व्यापमं ने मत्स्य निरीक्षक के 70 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया, लेकिन उसकी प्रक्रिया अभी तक अधूरी है। सिपाही भर्ती में धांधली के चलते प्रक्रिया विवादों में उलझ चुकी है। इसके विपरीत, व्यापमं पहले हर साल करीब दर्जनभर विज्ञापन विभिन्न पदों के लिए निकालता था।
अब 2025 में जब नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव नज़दीक हैं, व्यापमं ने कई महत्वपूर्ण पदों जैसे आबकारी आरक्षक, सहायक विस्तार अधिकारी, सहायक परियोजना अधिकारी, सब इंजीनियर आदि के लिए भर्ती कैलेंडर जारी किया है। युवाओं में उम्मीदें जगी हैं कि शायद इस बार कुछ ठोस होगा।
यह स्थिति 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले से मिलती-जुलती है। रेलवे ने भी बड़े पैमाने पर भर्ती कैलेंडर जारी किया था। हालांकि रेल मंत्रालय उस कैलेंडर के तहत अधिकांश भर्तियां पूरी करने में नाकाम रहा।
छत्तीसगढ़ के युवा अब उम्मीद कर रहे हैं कि 2025 में सरकार अपने वादे के मुताबिक भले ही एक लाख नौकरियां न दे पाए, लेकिन भर्ती कैलेंडर में शामिल पदों पर समयबद्ध तरीके से प्रक्रिया पारदर्शिता के साथ पूरी कर ले। 2024 की तरह इस साल का भी खाली गुजर जाना युवाओं की नाराजगी को बढ़ा सकता है। भारत के सबसे बड़े धनिक उद्योगपति गौतम अदाणी 60 हजार करोड़ का निवेश करने का ऐलान करके चले गए, पहले पन्ने में छपी खबरों में बेरोजगार युवा अपनी जगह ढूंढ रहे हैं।
सरकार का एक विभाग साल में तीन-चार बार रोजगार मेला लगाता है। हजारों लोग इंटरव्यू देने पहुंचते हैं, पर नौकरी तो दो चार लोग ही स्वीकार करते हैं। ये उद्योग जिस वेतन का ऑफर दे रहे हैं, वह न्यूनतम मजदूरी से भी कम होती है। सरकार इनकी कान क्यों नहीं उमेठती। ये उद्योग राज्य की जमीन सस्ते दामों पर हासिल करते हैं, प्रदूषण फैलाते हैं, पानी और दूसरे संसाधनों का रियायती दर पर इस्तेमाल करते हैं। पर, स्थानीय युवाओं को उचित पारिश्रामिक देने के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ते हैं।
यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या इस साल वाकई बड़ी संख्या में युवाओं को सम्मानजनक रोजगार मिलेगा?
अमीरी पल भर में खाक
लास एंजिल्स में हाल ही में लगी आग को एक ऐतिहासिक तांडव के रूप में देखा जा सकता है। यह आग, जिसे हाल के वर्षों की सबसे बड़ी आगजनी की घटना माना जा रहा है, हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे मानव निर्मित संरचनाएँ और संपत्तियां, चाहे वे कितनी भी महंगी और भव्य क्यों न हों, प्रकृति के सामने कितनी अस्थायी और असहाय हैं।
लास एंजिल्स में लगी आग ने कई घरों को नष्ट कर दिया, जिनमें से एक घर की कीमत भारतीय मुद्रा में लगभग 300 करोड़ रुपये थी। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि भौतिक संपत्ति और धन का कोई स्थायी मूल्य नहीं है जब प्रकृति अपनी पूरी ताकत दिखाती है। प्रकृति की शक्ति के सामने मानव की सीमाएं सीमित हैं। ([email protected])
कांग्रेस दारू फूंक-फूंककर पीना नहीं सीख रही
प्रदेश में शराब घोटाले पर कांग्रेस घिरी हुई है। पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा समेत आधा दर्जन से अधिक अफसर-कारोबारी ईडी के घेरे में आ चुके हैं। कुछ और को ईडी जल्द गिरफ्तार कर सकती है। इस घटना से कांग्रेस ने कोई सबक सीखा है, ऐसा दिखता नहीं है। पार्टी ने हाल ही में एक जिले में अध्यक्ष पद पर एक ऐसे शख्स को बिठा दिया है, जो कि शराब कोचिए के रूप में जिले में कुख्यात रहा है।
मूलत: बिहार रहवासी नवनियुक्त जिलाध्यक्ष एक बड़े शराब के बड़े ठेकेदार के मैनेजर के रूप में बरसों सेवाएं देते रहा है। जिले के भीतर अवैध शराब बिकवाने में उसकी भूमिका अहम रही है। ये अलग बात है कि वो एक बार वार्ड का चुनाव जीतने में कामयाब रहा। अब पार्टी ने उसे जिले का मुखिया बना दिया है।
चर्चा है कि उसे अध्यक्ष बनवाने में एक भूतपूर्व मंत्री की अहम भूमिका रही है। इसकी शिकायत पार्टी संगठन में अलग-अलग स्तरों पर हुई है। ये अलग बात है कि सुकमा जिले का पार्टी कार्यालय भी शराब के पैसे से ही बनने का खुलासा ईडी ने किया है। और अब पुराने कोचिए के आने से पैसे की कमी नहीं होगी।
मंत्री अकेले नहीं?
अमलीडीह में कॉलेज के लिए आरक्षित जमीन बिल्डर को देने के मसले पर पिछले दिनों खूब हो हल्ला मचा था। सरकार को जांच बिठानी पड़ी थी, और फिर कमिश्नर की रिपोर्ट के बाद उक्त जमीन फिर से कॉलेज के नाम करने पर विचार चल रहा है। मगर राजस्व मंत्री की भूमिका पर अब भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
सुनते हैं कि भाजपा के लोगों ने ही सीधे राजस्व मंत्री से पूछ लिया कि जमीन कॉलेज के लिए आरक्षित की गई थी, फिर भी उसे रामा बिल्डकॉन को कैसे दे दिया गया? इस पर राजस्व मंत्री ने जो मासूम सा जवाब दिया, उसकी पार्टी के अंदरखाने में खूब चर्चा हो रही है।
राजस्व मंत्री ने निजी चर्चा में कहा बताते हैं कि यह फैसला कोई अकेले का नहीं था। आबंटन कमेटी के सभी सदस्य चाहते थे कि बिल्डर को जमीन दे दी जाए, फिर क्या जमीन आबंटन की अनुशंसा कर दी गई। यही वजह है कि आबंटन से जुड़ी फाइल में कई गड़बडिय़ां होने के बाद भी राजस्व मंत्री की कोई जवाबदेही तय नहीं हुई।
बस भाईचारे को याद रखिये
अंबिकापुर में हाल ही में एक भव्य महामाया प्रवेश द्वार का निर्माण हुआ। एक सप्ताह पहले, पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने इस प्रवेश द्वार का लोकार्पण किया था। लेकिन कल मंत्री केदार कश्यप और मंत्री लक्मीपति राजवाड़े के हाथों उसी द्वार का फिर लोकार्पण कर दिया गया।
जब भाजपा के नेताओं से इस दोहरे लोकार्पण के कारण के बारे में पूछा गया, तो जवाब मिला कि पहले यह अधूरा था। मगर स्थानीय लोग इस दावे को खारिज करते हैं। उनका कहना है कि पहले और अब के बीच द्वार पर कोई भी काम नहीं हुआ। अगर पहले यह अधूरा था, तो लोकार्पण क्यों हुआ? और अगर अब यह पूरा है, तो पहले भी इसे पूरा माना जा सकता था।
नगरीय निकाय चुनाव करीब हैं। कांग्रेस ने अपनी उपलब्धियों को दिखाने के लिए लोकार्पण का आयोजन भव्य रूप से किया, लेकिन सत्ता में रहते हुए, भाजपा यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि किसी उद्घाटन या लोकार्पण का श्रेय कांग्रेस को जाए। इस राजनीतिक खींचतान में द्वार सियासी मंच बन गया।
राजनीतिक उठापटक अपनी जगह है, लेकिन अंबिकापुर की सामाजिक समरसता इस पूरे प्रकरण का उज्ज्वल पहलू है। इस द्वार के निर्माण में मुस्लिम पार्षदों ने भी अपनी निधि से एक-एक लाख रुपये का योगदान दिया। यही वह भावना है जिसे याद रखना चाहिए—सामाजिक सौहार्द और
भाईचारे की। ([email protected])
बड़े नेता और छोटे चुनाव!
नगरीय निकाय चुनाव की घोषणा इस हफ्ते हो सकती है। भाजपा ने प्रत्याशी चयन के लिए मापदण्ड भी तय कर लिए हैं। रायपुर जैसे बड़े नगर निगमों में पार्टी विधानसभा टिकट के दावेदार रहे नेताओं को वार्ड चुनाव लड़ा सकती है।
सुनते हैं कि कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में पिछले दिनों पार्टी संगठन के नेताओं की अनौपचारिक बैठक हुई। जिसमें प्रत्याशी चयन से लेकर प्रचार की रणनीति पर चर्चा की गई। विशेषकर नगर निगमों में पार्टी के सीनियर नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने का मन बनाया गया है ताकि मेयर प्रत्याशी को इसका फायदा मिल सके। रायपुर मेयर पद महिला, और बिलासपुर पिछड़ा वर्ग आरक्षित है।
पार्टी की सोच है कि यदि मेयर प्रत्याशी कमजोर रहे, तो भी वार्ड में मजबूत पार्षद प्रत्याशी होने से मेयर प्रत्याशी को इसका फायदा मिल सकता है। हालांकि रायपुर में विधानसभा टिकट के दावेदार नेता निगम-मंडलों में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। ये नेता पार्षद चुनाव लडऩे के लिए तैयार होंगे या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
मंत्रियों की तल्खी, अब तक चार
कोरबा, जांजगीर-चांपा सहित अन्य जिलों में माइक्रो फाइनेंस और चिटफंड कंपनियों के जाल में फंसकर हजारों महिलाओं पर लगभग 125 करोड़ रुपये का कर्ज चढ़ गया है। ये महिलाएं मुख्यत: रोज़ी-मजदूरी या छोटे-मोटे व्यवसाय करने वाली हैं। माइक्रो फाइनेंस कंपनियां बिना जमीन-ज्वेलरी गिरवी रखे, केवल आधार कार्ड के आधार पर 25-30 हजार रुपये तक का लोन देती हैं।
एक फ्रॉड कंपनी, फ्लोरा मैक्स ने इन महिलाओं से यह कहकर लोन निकलवाया कि वह इस रकम से व्यवसाय करेगी और अच्छा मुनाफा देगी। अब कंपनी के लोग कर्ज की रकम लूटकर फरार हैं। फाइनेंस कंपनियां इन महिलाओं पर कर्ज चुकाने का दबाव बना रही हैं, जिससे उनकी परेशानियां बढ़ गई हैं। महिलाओं की रातों की नींद उड़ गई है, वे घबराई हुई हैं, और परिवारों में कलह बढ़ रहा है।
पहले ये महिलाएं रायपुर में प्रदर्शन कर चुकी हैं, लेकिन आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला। अब जब वसूली एजेंटों का दबाव बढ़ा, तो उन्होंने कोरबा में कृषि मंत्री रामविचार नेताम और उद्योग मंत्री लखन लाल देवांगन को घेर लिया। महिलाएं कर्ज माफी की मांग कर रही थीं, जबकि मंत्री समझा रहे थे कि ऐसा संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि कंपनी के लोगों को पकडक़र उनसे पैसा वसूलने का प्रयास किया जाएगा।
हालांकि, यह भी व्यवहारिक नहीं लगता। भाजपा सरकार के कार्यकाल में चिटफंड कंपनियों ने हजारों करोड़ रुपये की उगाही की थी। कांग्रेस सरकार ने इस मुद्दे पर काम शुरू किया, लेकिन अब तक पीडि़तों को 3-4 प्रतिशत रकम भी वापस नहीं मिल सकी है।
कोरबा में, मंत्री संयमित आचरण नहीं रख पाए। महिलाओं से उनका बर्ताव ठीक नहीं था। लखन लाल देवांगन ने तो महिलाओं को ‘फेंकवा देने’ तक की धमकी दे दी। इससे पहले, स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल झोलाछाप डॉक्टरों के मामले में और मंत्री केदार कश्यप नारायपुर के छात्रावासों की दुर्दशा के मामलों में इसी तरह तल्खी दिखा चुके हैं। अब ऐसे मंत्रियों की संख्या बढक़र चार हो गई है, जो जनता के सवालों पर धीरज खो रहे हैं।
सत्तारूढ़ संगठन चुनाव, किसकी चली?
भाजपा के जिला अध्यक्षों के चुनाव निपट गए। सोमवार को कवर्धा जिलाध्यक्ष का चुनाव हुआ। पिछले कुछ दिनों से राजनांदगांव, और कवर्धा जिलाध्यक्ष के चुनाव को लेकर स्थानीय नेताओं में खींचतान चल रही थी। विवाद इतना ज्यादा था कि दोनों जिलों के चुनाव हफ्तेभर टालने पड़े।
राजनांदगांव में स्थानीय सांसद संतोष पाण्डेय, अपने समर्थक सौरभ कोठारी को जिलाध्यक्ष बनवाना चाहते थे। इससे पूर्व सीएम रमन सिंह के समर्थक सहमत नहीं थे। आखिरकार रमन सिंह की पसंद पर कोमल सिंह राजपूत को जिले की कमान सौंपी गई, और सौरभ कोठारी को महामंत्री बनाया गया। दिलचस्प बात यह है कि राजनांदगांव अकेला जिला है जहां अध्यक्ष के साथ महामंत्री भी घोषित किए गए।
कुछ इसी तरह कवर्धा जिलाध्यक्ष को लेकर भी खींचतान चल रही थी। कवर्धा जिलाध्यक्ष के मसले पर डिप्टी सीएम विजय शर्मा, सांसद संतोष पाण्डेय, और विधायक भावना बोहरा के बीच आपस में सहमति नहीं बन पा रही थी। विजय शर्मा, देवकुमारी चंद्रवंशी को अध्यक्ष बनवाना चाह रहे थे, तो संतोष पाण्डेय, और भावना बोहरा, राजेन्द्र चंद्रवंशी को अध्यक्ष बनाने पर जोर दे रहे थे।
आखिरकार प्रदेश संगठन के हस्तक्षेप पर विजय शर्मा को पीछे हटना पड़ा, और राजेन्द्र चंद्रवंशी को अध्यक्ष घोषित किया गया। इस बार जिलाध्यक्षों के चयन में सरकार के ज्यादातर मंत्रियों की नहीं चली है। चर्चा है कि मंत्रियों के जिलों में उनके विरोधी माने जाने वाले नेता संगठन के मुखिया बने हैं। ऐसे में मंत्रियों के इलाके में एक अलग पॉवर सेंटर बन गया। अब संगठन किस तरह चलता है, यह देखना है।
महाकुंभ में छत्तीसगढ़
प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में छत्तीसगढ़ सरकार ने एक विशेष पंडाल का निर्माण किया है। यह राज्य की संस्कृति और परंपराओं को प्रदर्शित करता है। प्रवेश द्वार पर गौर मुकुट की सजावट और छत्तीसगढ़ के आध्यात्मिक स्थलों, आदिवासी कला, पारंपरिक आभूषण, वस्त्र और ग्रामीण जनजीवन की झलक है। पंडाल को छत्तीसगढ़ के विविध रंगों से सजाया गया है। पंडाल में वर्चुअल रियलिटी हेडसेट और 180 डिग्री वीडियो डोम के माध्यम से छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति की जानकारी भी साझा की जा रही है।
भाजपा-कांग्रेस के कई प्रमुख नेता अपना वार्ड आरक्षित होने के बाद अड़ोस-पड़ोस के वार्डों में अपनी संभावना तलाश रहे हैं। इसका वहां अभी से विरोध शुरू हो गया है। स्वामी आत्मानंद वार्ड के लोगों ने तो बकायदा एक बोर्ड लगाकर राजनीतिक दलों से आग्रह किया है कि बाहरी व्यक्ति को प्रत्याशी न बनाया जाए...।
रौशन चंद्राकर की रौशनी
भूपेश सरकार में कस्टम मिलिंग घोटाले की ईडी पड़ताल कर रही है। ईडी ने करीब 5 सौ राइस मिलर्स को नोटिस दिया था, और बारी-बारी से बयान लिए। चर्चा है कि सभी राइस मिलर्स ने लिखित बयान में कहा है कि प्रोत्साहन राशि जारी करने के एवज में प्रति क्विंटल 20 रुपए उगाही की जाती थी।
जानकार बताते हैं कि ईडी के पास घोटाले से जुड़े तमाम साक्ष्य मौजूद हैं। ईडी ने जेल में बंद मार्कफेड के तत्कालीन एमडी मनोज सोनी, और मिलर्स एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष रौशन चंद्राकर के वाट्सएप चैट निकलवाए हैं। रौशन चंद्राकर अपने मोबाइल से मार्कफेड एमडी को मिलर्स का नाम मैसेज करते थे, और फिर अगले दिन मिलर्स के खाते में राशि जारी कर दी जाती थी।
बताते हैं कि चंद्राकर ने ऐसे करीब 5 सौ मिलर्स के नाम अलग-अलग समय में मार्कफेड एमडी को भेजे थे। कुल मिलाकर सवा सौ करोड़ से अधिक की उगाही मिलर्स से की गई। सर्वविदित है कि रौशन चंद्राकर, कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल का करीबी है। और वे रामगोपाल अग्रवाल अभी ईडी की गिरफ्त से बाहर है। अब आगे क्या होता है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
पड़ोस में कूद रहे हैं नेता !
रायपुर नगर निगम के पूर्व मेयर एजाज ढेबर ने सभापति प्रमोद दुबे के वार्ड में नववर्ष पर घर-घर मिठाइयों का पैकेट, और फस्ट एड दवाईयों की किट बटवाए, तो इसकी खूब चर्चा हो रही है। आम तौर पर दिवाली पर मिठाई-गिफ्ट का चलन रहा है, लेकिन पहली बार ढेबर की तरफ से नववर्ष पर मिठाई बंटवाई गई। दिलचस्प बात यह है कि ढेबर, और प्रमोद दुबे एक-दूसरे के धुर विरोधी माने जाते हैं। ऐसे में सभापति के भगवती चरण शुक्ल वार्ड में ढेबर की सक्रियता के मायने तलाशे जा रहे हैं।
चर्चा है कि ढेबर भगवती चरण शुक्ल वार्ड से चुनाव लडऩा चाहते हैं। उनका पैतृक घर भी इसी वार्ड में आता है। जबकि वार्ड पार्षद रहे प्रमोद दुबे यहां के लिए बाहरी रहे हैं। बावजूद इसके वार्ड चुनाव में रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल की थी। अंदर की खबर यह है कि प्रमोद दुबे खुद वार्ड चुनाव लडऩे के बजाए अपनी पत्नी दीप्ति दुबे को मेयर प्रत्याशी बनवाना चाहते हैं। हल्ला यह भी है कि इसके लिए ढेबर, और प्रमोद दुबे के बीच समझौता भी हो गया है। ढेबर, प्रमोद दुबे की पत्नी की उम्मीदवारी का समर्थन कर सकते हैं। इन चर्चाओं में कितना दम है, यह तो पता नहीं, लेकिन वार्डवासी मिठाई-दवाई किट मिलने से काफी खुश हैं।
खतरे में बाघिन की जान
भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) ने वन्यजीव रहवास वाले क्षेत्रों में रेलवे लाइनों की योजना बनाने के लिए कड़े दिशानिर्देश जारी किए हैं। सबसे पहले यही कहा गया है कि ऐसे इलाकों से रेल लाइन गुजारने की योजना जहां तक संभव हो, न बनाएं। इसके बजाय वैकल्पिक मार्गों का चयन करें। यदि अत्यधिक आवश्यकता हो और रेल लाइन ऐसे इलाकों से गुजरनी ही हो, तो वन विभाग की मदद से गहन सर्वेक्षण किया जाए। बाघ, हाथी, तेंदुआ और बायसन जैसे वन्यजीवों के लिए ट्रैक के साथ अंडरपास या ओवरपास का निर्माण किया जाए। इसके साथ ही रेलवे के बुनियादी ढांचे में वन्यजीव-अनुकूल डिजाइन सुविधाओं को शामिल करके वन्यजीवों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
हाल ही में, कटनी मार्ग पर एक मालगाड़ी के लोको पायलट द्वारा शूट किया गया एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। वीडियो में एक बाघिन को बिलासपुर-कटनी मार्ग पर शहडोल के पास तीसरी लाइन को पार करते हुए देखा गया। बाघ-बाघिन का इस तरह दिनदहाड़े दिखना रोमांचक और अद्भुत लगता है। वीडियो बनाने वाले रेलवे कर्मचारी ने भी इसी तरह की भावनाएं व्यक्त कीं। लेकिन इस दृश्य के पीछे रेलवे की लापरवाही उजागर होती है, जिसके चलते बाघिन और अन्य वन्यजीवों को ट्रैक पार करने में जान का खतरा उठाना पड़ रहा है।
यह तीसरी रेलवे लाइन हाल ही में तैयार हुई है, जबकि डब्ल्यूआईआई के निर्देश पहले से मौजूद थे। सवाल उठता है कि निर्माण के दौरान क्या यह पहचान नहीं की गई कि इस क्षेत्र में संवेदनशील वन्यजीव गुजरते हैं? दिन के समय मालगाड़ी के ड्राइवर ने बाघिन को देखकर अपनी गति कम कर ली, लेकिन रात के अंधेरे में ऐसे वन्यजीवों के लिए यह खतरा और बढ़ जाता है। कुछ वर्ष पहले बेलगहना के पास एक तेंदुआ रात में रेलवे ट्रैक पर हादसे का शिकार हो गया था।
यह बाघिन हाल ही में कटनी मार्ग के ही भनवारटंक स्टेशन के आसपास देखी गई थी। इसे गर्भवती बताया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के विभिन्न इलाकों में घूमने के बाद यह मध्यप्रदेश के अमरकंटक की तराई से होते हुए शहडोल क्षेत्र तक पहुंच गई है। शायद इसे अपने प्रजनन के लिए कोई सुरक्षित ठौर नहीं मिल रहा है। यह बाघिन अपनी और अपने होने वाले शावकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित लगती है।