राजधानी में कांग्रेस दिक्कत में
चर्चा है कि नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन अब तक का सबसे बेहतर हो सकता है। वजह यह है कि पार्टी का चुनाव प्रबंधन अच्छा रहा है। पार्टी के तमाम प्रमुख नेता प्रचार खत्म होने के बाद भी डोर-टू-डोर जाकर मतदाताओं से मिलते रहे हैं। रायपुर नगर निगम के एक हाईप्रोफाइल वार्ड में तो सोमवार की रात खुद महामंत्री (संगठन) पवन साय ने प्रमुख नेताओं के साथ बैठक की।
पार्टी ने सरकार के सभी मंत्रियों को एक-एक निगम का प्रभारी बनाया है। रायपुर के प्रभारी कृषि मंत्री रामविचार नेताम हैं। नेताम ने पूरे समय रायपुर में रहकर वार्डों में झगड़े निपटाते दिखे हैं।
भाजपा नेताओं की रणनीति का प्रतिफल यह रहा कि कांग्रेस के कई-कई बार के पार्षद, जो कि पिछले चुनावों में आसानी से जीत दर्ज करते रहे हैं। इस बार मुश्किल में घिरे दिख रहे हैं। आम आदमी पार्टी की भले ही दिल्ली में सत्ता चली गई, लेकिन रायपुर नगर निगम में खाता खुल सकता है। दो-तीन वार्डों में आप प्रत्याशी मजबूत दिख रहे हैं। कुल मिलाकर इस बार चुनाव में नतीजे चौकाने वाले आ सकते हैं।
बिना कोषाध्यक्ष टिकट बिक्री ?
कांग्रेस का प्रचार तंत्र इस बार बिखरा रहा है। प्रदेश के प्रभारी महामंत्री मलकीत सिंह गेंदू चुनाव लड़ रहे हैं, और कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल चुनावी परिदृश्य से गायब हैं। इसका सीधा असर चुनाव प्रचार पर पड़ा है। पहली बार रिकॉर्ड संख्या में बागी चुनाव मैदान में उतरे हैं। उन्हें मनाकर चुनाव मैदान से हटाने में किसी बड़े नेता ने रुचि नहीं दिखाई।
दिलचस्प बात यह है कि प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट पूरी तरह चुनाव से गायब रहे। वो एक दिन भी यहां पार्टी प्रत्याशियों के प्रचार के लिए नहीं आए। यही नहीं, पार्टी के बड़े नेता एक साथ किसी भी मंच पर नहीं दिखे। यानी एकजुटता का दिखावा नहीं कर पाए। इसका सीधा असर चुनाव पर दिखा है। प्रदेश में तीन नगर निगम ही ऐसे हैं, जहां कांग्रेस कड़ी टक्कर देते दिख रही है। इनमें भी प्रत्याशियों का बड़ा रोल है। टिकट को लेकर लेनदेन की चर्चा रही है। चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस में गदर मचने के आसार दिख रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
दो बड़े चुनावों के बाद सुस्त मतदान
नगरीय निकाय चुनाव में कई जगहों पर बेहतर मतदान हुआ है। मगर रायपुर जैसे बड़े नगर निगमों में मतदाता सूची में गड़बड़ी सामने आई है। वार्डों के परिसीमन के चलते मतदान केन्द्र बदल गए, और इसकी वजह से मतदाताओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है।
बताते हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए चुनाव आयोग ने अभियान चलाया था। मगर नाम जुड़वाने के बावजूद बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम गायब थे। राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। पहले चुनावों में आयोग ने मतदान के आंकड़े जारी करने में तत्परता दिखाती रही है। इस बार वैसा कुछ नजर नहीं आया। सुबह 10 बजे पहली बार आंकड़े जारी किए गए। राजनीतिक दलों के लोग भी आयोग से संतुष्ट नजर नहीं आए।
सांसद के सार्वजनिक गुस्से का सवाल
बस्तर में कई जनप्रतिनिधि जेड प्लस सुरक्षा के घेरे में चलते हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण। कांकेर सांसद भोजराज नाग भी उन्हीं में से एक हैं। जब नक्सल ऑपरेशन की प्रतिक्रिया स्वरूप जनप्रतिनिधियों पर हमले हो रहे हैं, तो यह जरूरी है कि उनकी सुरक्षा को लेकर पुलिस को अतिरिक्त सतर्क रहना चाहिए।
कांकेर-भानुप्रतापपुर मार्ग पर सांसद की गाड़ी करीब एक घंटे तक जाम में फंसी रही। सामने ट्रकों की लंबी कतार थी, जिन्हें पुलिस माइंस से आने वाले भारी वाहनों की चेकिंग में रोक रही थी। इस दौरान सांसद का गुस्सा थाना प्रभारी पर फूट पड़ा। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में वह खुलेआम टीआई पर वसूली के आरोप लगाते दिखे। उन्होंने कहा- ऐसी टीआईगिरी करोगे? वीआईपी को एक घंटे रोकोगे? तमाशा बना दिया है! बदतमीज कहीं के! माइंस की ट्रकों से वसूली करते हो, बहुत शिकायतें हैं तुम्हारी! पुलिस सफाई देती रही कि नो एंट्री में घुसी ट्रकों की संख्या अधिक थी, जिससे व्यवस्थित करने में समय लगा और जाम लग गया।
यह पहली बार नहीं है जब सांसद इस तरह सार्वजनिक रूप से भडक़े हों। कुछ समय पहले रावघाट इलाके के एक ठेकेदार से फोन पर बातचीत के दौरान उन्होंने आपा खो दिया था और अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था। वह वीडियो भी वायरल हुआ था। करीब छह महीने पहले मंच से अधिकारियों को चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा था- कान खोलकर सुन लें, जनता के पैसे से मिलने वाला वेतन मौज करने के लिए नहीं है। मैं सांसद हूं, पुजारी भी हूं। अगर पुरानी मानसिकता नहीं छोड़ते तो भूत उतारूंगा।
सांसद की नाराजगी जायज हो सकती है, पुलिस पर वसूली का आरोप भी सही हो सकता है। जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त निर्वाचित प्रतिनिधि को जाम में फंसना निश्चित रूप से एक सुरक्षा चूक मानी जा सकती है। लेकिन जब दिल्ली से लेकर छत्तीसगढ़ तक अपनी ही सरकार हो, तो इस तरह सार्वजनिक रूप से संयम खोने पर सवाल उठ जाता है। सांसद चाहें तो सीधे डीजीपी से बात कर टीआई को सस्पेंड करने के लिए कह सकते थे। सार्वजनिक मंच पर बार-बार आक्रोश जाहिर करना केवल राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन नहीं माना जाए? ब्यूरोक्रेट से परेशान जनता उनकी नाराजगी से थोड़ी देर के लिए खुश हो सकती है, पर वह समाधान की उम्मीद भी रखती है।
जंगल वॉर आसान नहीं
छत्तीसगढ़ के कांकेर स्थित काउंटर टेररिज्म एंड जंगल वॉरफेयर (सीटीजेडब्ल्यू) कॉलेज देश में आतंकवाद व नक्सलवाद से निपटने के लिए सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक प्रशिक्षण प्रदान करता है। अब तक हजारों केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवान यहां से आतंकवाद विरोधी एवं जंगल युद्ध तकनीकों में प्रशिक्षित हो चुके हैं। यह कॉलेज जंगलों और दुर्गम इलाकों में अभियानों की रणनीति, गुरिल्ला युद्ध तकनीक, आधुनिक हथियारों के संचालन और परिस्थितिजन्य निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाने पर केंद्रित है। सुरक्षा बलों को यहां शारीरिक, मानसिक व सामरिक रूप से सशक्त बनाया जाता है, जिससे वे आतंकवाद और नक्सली हिंसा जैसी चुनौतियों से प्रभावी रूप से निपट सकें। हाल के मुठभेड़ों में सफलता को देखें तो इस तरह का प्रशिक्षण महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। यह तस्वीर वहां चल रहे एक प्रशिक्षण की है।
हम अंग्रेजों के जमाने के टैक्स कलेक्टर हैं
भारत में करीब 200 वर्ष राज करने वाले अंग्रेज देशवासियों से दो तरह से टैक्स लेते थे। एक किसानों से लगान और नौकरीपेशा मुलाजिमों से इनकम टैक्स कह सकते हैं । इनकम टैक्स सबसे पहले अंग्रेजी हुकूमत ने ही लगाया था। वह भी देश छोडऩे से दो वर्ष पहले 1945 से इनकम टैक्स लगाया था। यानी उस वक्त यह टैक्स आठ पैसे से लेकर दो आने तक के अलग-अलग आय पर अलग-अलग स्लैब था। सस्ते के उस जमाने के लोग भी टैक्स से परेशान रहे होंगे। इनकम टैक्स लगे 80 वर्ष बीत चुके हैं। और इस दौरान देशवासियों कि इनकम लाखों गुना बढ़ी और उसी अनुपात में टैक्स भी। पर अंग्रेजी हुकूमत को नहीं पता था कि उनका लगाया टैक्स कभी एक तरह से शून्य भी कर दिया जाएगा। अभी 1 फरवरी को पेश बजट में सरकार ने 12 लाख तक की आय को कर मुक्त कर दिया है। हालांकि इसके गुणा- भाग को लेकर सदन से सडक़ तक बहस जारी है। उस वक्त के टैक्स स्लैब को अंग्रेजों के आदेश की यह दुर्लभ प्रति हमें इनकम टैक्स से ही एक अधिकारी रहे सुरेश मिश्रा ने शेयर की है।
शराब बनाने की छूट का लाभ किसे?
कई राज्यों, विशेष रूप से छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में आदिवासी समुदाय को महुआ से शराब बनाने की छूट दी गई है। सरकारें इसे उनकी परंपरा, रीति-रिवाज और सांस्कृतिक पहचान से जोडक़र इस पर रोक लगाने से बचती रही हैं। लेकिन इस छूट की आड़ में गैर आदिवासी महुआ शराब बनाकर धड़ल्ले से अवैध रूप से बेच रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में कई नेताओं और मंत्रियों ने महुआ शराब के उत्पादन को आदिवासी संस्कृति से जोड़ते हुए इसे जारी रखने का समर्थन किया है, जैसे पूर्व मंत्री कवासी लखमा। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने इसे आदिवासी अधिकारों से जोड़ा था, पर इसे नियंत्रित करने के पक्षधर थे। भाजपा नेता ननकीराम कंवर, नंदकुमार साय आदिवासी समाज में शराबबंदी की पैरवी करते हैं।
मध्य प्रदेश में 2020 में शिवराज सिंह चौहान सरकार ने पारंपरिक शराब को कानूनी मान्यता देने की घोषणा की थी। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार ने 2022 में महुआ लिकर को पारंपरिक मदिरा के रूप में मान्यता देने की योजना बनाई थी। झारखंड में भी इसे आदिवासी समुदाय के अधिकार के रूप में देखा गया है। लेकिन इन राज्यों में महुआ शराब को पारंपरिक उपयोग के नाम पर बनाए जाने की अनुमति इसके बड़े पैमाने पर अवैध कारोबार को शह देती है। कई गैर-आदिवासी इलाकों में पुलिस तथा आबकारी विभाग की मिलीभगत से इसे बेचा जाता है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के लोफंदी गांव में हाल ही में महुआ शराब के सेवन से आठ लोगों की मौत हुई, जिन लोगों की अवैध महुआ शराब के निर्माण की बात आ रही है।
शराब के दूसरे फॉर्मेट की तरह महुआ शराब भी कम नुकसानदायक नहीं है। बल्कि, इसे बनाने के तरीके पर किसी भी तरह की निगरानी ही नहीं होती। बेचने के लिए बनाई जाने वाली कच्ची महुआ शराब में नशा बढ़ाने के लिए यूरिया खाद, तंबाकू और कीटनाशक दवा का उपयोग किया जाता है। तंबाकू में निकोटिन होता है, जो दिमाग और स्नायु तंत्र को प्रभावित करता है, और सड़ाया गया महुआ पाचन तंत्र को नष्ट कर देता है। तंबाकू एवं महुए के रस से बना नशीला पेय पेट में अल्सर पैदा कर सकता है। अधिक तेज महुआ शराब आमाशय, छोटी और बड़ी आंत में छाले पैदा करती है, जिनसे खून की उल्टी होती है। आंतरिक अंगों को इतनी बुरी तरह नुकसान पहुंचाती है कि मौत हो जाती है। इधर छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बीच एनीमिया एक बड़ी समस्या बनकर आई है। सरगुजा, बस्तर से आदिवासियों की मौत की खबर रक्त की कमी के कारण हो जाने की खबरें अक्सर आती रहती है। शराब रक्त अल्पता की एक बड़ी वजह है।
बिलासपुर जिले में हुई मौतों के पीछे विषाक्त हो चुकी शराब है या नहीं, इस पर प्रशासन ने अब तक कुछ भी साफ-साफ जवाब नहीं दिया है। पर इसके दुष्परिणाम तो जगजाहिर हैं। आबकारी और पुलिस की अवैध कमाई का जरिया बने इस धंधे को रोकना शायद तभी मुमकिन है, जब महुआ शराब पर दी गई छूट पर निगरानी बढ़ाई जाए, दुरुपयोग रोका जाए।
सडक़ पर बिखरे रंग-बिरंगे सपने
रायपुर की एक सडक़ पर यह गुब्बारा विक्रेता अपने दोपहिया वाहन पर ढेर सारे रंग-बिरंगे गुब्बारे लेकर जा रहा है। लाल, नीले और हरे गुब्बारों से भरा यह दृश्य जितना आकर्षक है, उतना ही यह व्यक्ति के संघर्ष और जीवटता का प्रतीक भी है। सडक़ पर संतुलन साधते हुए यह विक्रेता अपनी रोजी-रोटी की तलाश में निकला है, जो महानगर का रूप लेते शहर में आत्मनिर्भर छोटे व्यवसायियों की बढ़ती भूमिका को व्यक्त करता है। यह तस्वीर रोज़मर्रा की जद्दोजहद और सपनों को साकार करने की जिद बनकर उभरती है। भले ही उसका अपना जीवन अपनी आजीविका की चिंता से घिरा हो।
10 फरवरी : भारत में लोकतंत्र की स्थापना का शंखनाद
नयी दिल्ली, 10 फरवरी (भाषा)। दुनिया का सबसे विशाल लोकतंत्र होने का दर्जा रखने वाले भारत के नागरिक हर पांच साल में वोट के जरिए अपनी पसंद की सरकार चुनते हैं, लेकिन लोकतंत्र का रास्ता चुनने वाले देश के सामने 1952 में लोकसभा का पहला चुनाव एक बड़ी चुनौती था।
पंडित जवाहरलाल नेहरू 1947 में आजादी के बाद से ही देश की अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर रहे थे। दस फरवरी 1952 का दिन देश के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे बड़ा दिन था, जब नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने लोकसभा की 489 में से 249 सीट पर विजय हासिल कर बहुमत प्राप्त कर लिया। अभी 133 सीट के नतीजे आने बाकी थे।
इन चुनावों को भारत में लोकतंत्र की स्थापना की दिशा में एक बड़ी सफलता के तौर पर देखा गया।
देश-दुनिया के इतिहास में 10 फरवरी की तारीख पर दर्ज महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है:-
जय जगन्नाथ
ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक को विधानसभा चुनाव में हराकर सुर्खियों में आए काटाभांजी के भाजपा विधायक लक्ष्मण बाग रायपुर नगर निगम चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों के प्रचार के लिए पहुंचे, तो विशेषकर उत्कल मोहल्लों में अच्छा स्वागत हुआ। लक्ष्मण बाग ने प्रचार की शुरूआत हाईप्रोफाइल वार्ड भगवतीचरण शुक्ल के उत्कल मोहल्लों से की। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में निवर्तमान मेयर एजाज ढेबर चुनाव मैदान में हैं।
बाग भाजपा प्रत्याशी अमर गिदवानी को साथ लेकर उत्कल मोहल्लों की तंग गलियों में घूमे, वो अपने साथ पूरी जगन्नाथ मंदिर का प्रसाद लेकर आए थे, और हर घर में अपने हाथों से प्रसाद वितरित किया। लोग काफी भावुक हो गए और कई लोगों ने बाग का पैर धोकर आरती भी उतारी। बाग के साथ ओडिशा भाषी भाजपा नेता अमर बंसल, और विश्वदिनी पांडेय भी थे। बाग ने कुछ घंटों में ही वहां का माहौल एक तरह से बदल दिया। कांग्रेस के परंपरागत उत्कल मोहल्लों में जिस तरह भाजपा ने सेंध लगाई है, उससे ढेबर मुश्किल में पड़ गए हैं। देखना है आगे क्या होता है।
चाँदी का शिवलिंग!!
रायपुर नगर निगम में चुनाव प्रचार खत्म होने के कुछ घंटे पहले शहर के बीचोंबीच के एक वार्ड के निर्दलीय प्रत्याशी ने जो कुछ किया उससे कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी हैरान रह गए हैं। निर्दलीय प्रत्याशी ने घर-घर जाकर चांदी का शिवलिंग दिया है। लोगों ने उत्साहपूर्वक इसको स्वीकार भी किया है।
वैसे भी इस वार्ड में पंडित प्रदीप मिश्रा के अनुयायी निर्णायक भूमिका में है। ऐसे में निर्दलीय प्रत्याशी के शिवलिंग वितरण को एक मास्टर स्टोक माना जा रहा है। इससे पहले वर्ष 94 के वार्ड चुनाव को छोडक़र यहां से कांग्रेस या भाजपा से ही पार्षद बनते रहे हैं। मगर इस बार निर्दलीय ने दलीय प्रत्याशियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है।
रायपुर नगर निगम में करीब दर्जनभर वार्डों में निर्दलीय प्रत्याशी, कांग्रेस और भाजपा उम्मीदवारों पर भारी दिख रहे हैं। वर्ष 2009 में सबसे ज्यादा 10 निर्दलीय पार्षद चुनकर आए थे। देखना है कि इस बार क्या होता है।
मतदाता सूची विश्लेषक की मांग
छत्तीसगढ़ में इस समय स्थानीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का माहौल है। शहर, गांव-गली सब तरफ चुनाव प्रचार तेज है। मगर, प्रचार में लगे किसी प्रत्याशी के लिए सिर्फ अपने इलाके की मतदाता सूची हासिल लेना पर्याप्त नहीं होता, उसे अपने इलाके की भौगोलिक सीमा, जातिगत, सामाजिक और पारिवारिक संरचना का भी अध्ययन करना पड़ता है। यह काम जटिल होता है। मगर चुनावी मार्केट में एक नया पेशा शुरू हो गया है, मतदाता सूची विश्लेषक' का। ये युवाओं के समूह होते हैं जिनका काम मतदाता सूची का अध्ययन करना ही होता है। यह टीम मतदाता सूची की छानबीन करके बताती है कि किस मोहल्ले में किस समुदाय, जाति के कितने वोट हैं, कौन किसके प्रभाव में वोट डाल सकता है और किस परिवार का वोट बैंक बड़ा और मजबूत है, वार्ड की सीमा किस गली से शुरू होकर किस गली में खत्म होती है, आदि।
जातीय समीकरण, रिश्तेदारी का गणित और प्रभावशाली मुखियाओं की पकड़ ही चुनावी सफलता का असली मंत्र है। प्रत्याशियों को इसके हिसाब से रणनीति तैयार करनी पड़ती है। पर वे खुद इस रिसर्च में समय नहीं गंवा सकते, इसलिए इन विशेषज्ञों की सेवाएं ली जा रही हैं, जो बाकायदा कीमत लेकर उन्हें वोटरों का एक स्पष्ट खाका तैयार करके दे रहे हैं। प्रमुख दलों के अलावा निर्दलीय भी इनसे सेवाएं ले रहे हैं। इस बार वोटर लिस्ट विश्लेषकों की बाजार में मांग इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि नामांकन से मतदान के बीच का समय कम मिला है। प्रत्याशियों को इन विश्लेषकों से मदद मिल रही है कि उनके संभावित वोटर कौन हैं और उन्हें साधने के लिए किन प्रभावशाली लोगों को अपने पक्ष में करना होगा।
वैसे इस मौके पर यह सवाल उठता है कि क्या चुनावी राजनीति जाति, बिरादरी का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है? क्या प्रत्याशी और मतदाता विकास कार्यों से ज्यादा ऐसे समीकरणों में ही उलझे रहेंगे?
यात्रियों का इंजन पर कब्जा
प्रयागराज महाकुंभ की आस्था की लहर ने रेलवे की व्यवस्था को हिला कर रख दिया है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण ट्रेनों में पैर रखने तक की जगह नहीं बची। हालात इतने बिगड़ गए कि लखनऊ जंक्शन पर जगह न मिलने से नाराज श्रद्धालु बरेली-प्रयागराज एक्सप्रेस के इंजन के सामने खड़े हो गए, जिससे लोको पायलट को मजबूर होकर ट्रेन रोकनी पड़ी। वाराणसी में तो स्थिति और गंभीर हो गई जब श्रद्धालुओं ने ट्रेन के इंजन पर ही कब्जा जमा लिया। जीआरपी को काफी मशक्कत करनी पड़ी, तब जाकर लोग नीचे उतरे। हरदोई में भी हालात बेकाबू हो गए। श्रद्धालुओं ने ट्रेन में प्रवेश न मिलने पर हंगामा खड़ा कर दिया और गुस्से में आकर कोचों में तोडफ़ोड़ कर दी। इधर शनिवार देर रात वाराणसी कैंट में करीब 1:30 बजे जब प्रयागराज जाने वाली ट्रेन पहुंची, तो उसमें पहले से ही इतनी भीड़ थी कि नए यात्रियों के लिए कोई जगह नहीं बची। ऐसे में 20 से अधिक श्रद्धालु इंजन में चढ़ गए और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। लोको पायलट के बार-बार कहने के बावजूद किसी ने दरवाजा नहीं खोला, जिसके बाद जीआरपी को बुलाना पड़ा। पुलिसकर्मियों ने जबरन यात्रियों को नीचे उतारा।
हरदोई में प्रयागराज जाने वाली ट्रेन जब प्लेटफॉर्म पर रुकी, तो अंदर बैठे श्रद्धालुओं ने दरवाजे नहीं खोले। कुछ नाराज यात्रियों ने तो गुस्से में ट्रेन पर पथराव तक कर दिया, जिससे कई शीशे टूट गए। इसके बाद भी दरवाजा नहीं खुला, करीब 2,000 श्रद्धालु स्टेशन पर ही छूट गए। बिलासपुर जोनल रेलवे की ओर से भी प्रयागराज के लिए लगातार नई ट्रेनों की घोषणा हो रही है, मगर जाहिर है कि यात्रियों की संख्या के लिहाज से ये काफी कम हैं।
नौ फरवरी : आजादी के बाद पहली जनगणना की तैयारी
नयी दिल्ली, 9 फरवरी। जनगणना हर दस वर्ष में मनाया जाने वाला एक ऐसा राष्ट्रीय उत्सव है, जिसमें देश के हर हिस्से में रहने वाले हर नागरिक को शामिल किया जाता है। देश में 1871 के बाद से हर दसवें बरस जनगणना होती थी।
इस लिहाज से 1947 में विभाजन और देश आजाद होने के बाद 1951 में हुई जनगणना कहने को तो अपने आप में नौवीं जनगणना थी, लेकिन यह आजादी के बाद की पहली जनगणना थी। आजाद भारत की जनगणना के इतिहास में नौ फरवरी का खास महत्व है, क्योंकि इसी दिन जनगणना के लिए सूची बनाने का काम शुरू किया गया था।
देश दुनिया के इतिहास में नौ फरवरी की तारीख पर दर्ज महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है:-
गीता की क़सम!
वैसे तो अदालतों में धार्मिक ग्रंथ गीता की शपथ लेते सुना, और देखा जा सकता है। मगर चुनाव में भी गीता की शपथ लेते देखा जा रहा है। रायपुर नगर निगम के एक वार्ड प्रत्याशी डॉ. विकास पाठक, लाल कपड़े में गीता लपेटकर घर-घर जा रहे हैं, और उनके सामने गीता की शपथ लेकर वार्ड की हर समस्याओं को हल करने का वादा कर रहे हैं। देश-प्रदेश में कई चुनाव हुए लेकिन पहली बार किसी प्रत्याशी को ऐसी शपथ लेते देखा गया।
पाठक कांग्रेस में थे पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दी। इस पर वो पार्टी से बगावत कर चुनाव मैदान में कूद गए हैं, और आज ही उन्हें निष्कासित किया गया। पाठक के चुनाव प्रचार के तौर तरीके की खूब चर्चा हो रही है। मगर मतदाता उन पर भरोसा करते हैं या नहीं, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
जेल के बाद अब चुनाव प्रचार
रायपुर की धर्मसंसद में महात्मा गांधी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने, और राजद्रोह के आरोप में 95 दिन जेल में गुजारने वाले विवादास्पद कालीचरण महाराज की निकाय चुनाव में एंट्री हुई है। कालीचरण महाराज ने दो दिन पहले रायपुर के एक भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार भी किया।
कालीचरण महाराज के खिलाफ रायपुर में राजद्रोह का प्रकरण दर्ज हुआ था, और वो रायपुर के सेंट्रल जेल में थे। यहां रायपुर में उनके बड़ी संख्या में अनुयायी हैं। इन्हीं में से एक भाजपा प्रत्याशी बद्री गुप्ता ने कालीचरण महाराज को चुुनाव प्रचार के लिए आमंत्रित किया था। बद्री गुप्ता शहीद राजीव पांडे वार्ड से चुनाव लड़ रहे हैं।
कालीचरण महाराज ने दिन भर बद्री गुप्ता के साथ गली-मोहल्लों में भाजपा का प्रचार किया। उनका काफी स्वागत भी हुआ। उन्होंने हिन्दुत्व के लिए भाजपा को जिताने की अपील की। दिन भर प्रचार करने के बाद शाम को महाराष्ट्र चले गए। विवादास्पद कालीचरण महाराज का मतदाताओं पर कितना असर होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
कांग्रेस नेताओं के पोस्टर लिए निर्दलीय!!
अंबिकापुर नगर निगम के एक वार्ड में कांग्रेस आखिरी तक प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाई। इस वार्ड को रफी अहमद किदवई वार्ड के नाम से जाना जाता है। यहां शत-प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं, और कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। मगर आखिरी तक दावेदारों में सहमति नहीं बन पाई, और इस वजह से किसी को बी-फार्म जारी नहीं किया जा सका। खास बात यह है कि यहां आधा दर्जन प्रत्याशी चुनाव मैदान में है, जिनमें से दो निर्दलीय प्रत्याशी, टी.एस.सिंहदेव और मेयर प्रत्याशी डॉ.अजय तिर्की की तस्वीर लगाकर वोट मांग रहे हैं।
हु्आ यूं कि कांग्रेस ने अंबिकापुर नगर निगम को 8 जोन में बांट रखा है। इनमें से एक जोन के प्रभारी श्रम कल्याण बोर्ड के पूर्व चेयरमैन शफी अहमद हैं। शफी अहमद के जोन के अंतर्गत रफी अहमद किदवई वार्ड आता है।
रफी अहमद किदवई वार्ड पिछड़ा वर्ग आरक्षित है। यहां से कांग्रेस के दावेदारों में पहले पिछड़ा वर्ग की सर्टिफिकेट को लेकर विवाद चलता रहा। बताते हैं कि शफी अहमद ने हसन पठान को प्रत्याशी बनाने की सिफारिश की थी, इसके अलावा सरफराज और रशीद पेंटर नामक दो और दावेदार थे।
बाकी दो दावेदार ने हसन को टिकट देने की खिलाफत कर रहे थे। पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस.सिंहदेव ने सभी दावेदारों से आपस में चर्चा कर नाम सुझाने के लिए कहा था लेकिन अंत तक सहमति नहीं बन पाई, आखिरकार यहां बी-फार्म किसी को जारी नहीं किया गया। अब दो निर्दलीय प्रत्याशी शाहिद और सरफराज, टी.एस. सिंहदेव की तस्वीर लगाकर वोट मांग रहे हैं। खास बात यह है कि इस वार्ड को भाजपा आज तक जीत नहीं पाई है। यहां इस बार भाजपा को कांग्रेस का अधिकृत प्रत्याशी नहीं होने से थोड़ी उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है। देखना है आगे क्या होता है।
सरकारी सिस्टम में छिपे कोचिये
राज्य में शराब को लेकर तीन अहम खबरें सामने हैं। सिमगा और बेमेतरा में पुलिस और आबकारी विभाग की कार्रवाई में करीब 1500 पेटी अवैध शराब जब्त की गई, जिसकी अनुमानित कीमत लगभग एक करोड़ रुपये बताई जा रही है। पकड़ी गई शराब कथित तौर पर मध्यप्रदेश से तस्करी कर लाई गई थी।
दूसरी ओर, बिलासपुर के लोफंदी गांव में शराब पीने से 7 लोगों की मौत हो गई, जबकि 4 की हालत गंभीर बनी हुई है। आशंका जताई जा रही है कि यह जहरीली अवैध शराब थी।
तीसरी खबर प्रदेश के आबकारी विभाग की बैठक की है। सचिव ने चिंता जताई है कि सरकारी शराब दुकानों की बिक्री लक्ष्य से कम हो रही है। उन्होंने आने वाले दिनों में बिक्री बढ़ाने का निर्देश जारी कर दिया गया है।
पंचायत और नगरीय चुनाव को देखते हुए पुलिस और आबकारी विभाग लगातार छापेमारी कर रहे हैं। इसके बावजूद अवैध शराब का कारोबार जारी है। दिलचस्प बात यह है कि जहां तस्करी और अवैध शराब की खपत बढ़ रही है, वहीं सरकारी दुकानों की बिक्री घटती जा रही है। इसका सीधा मतलब है कि लोग सरकारी शराब का विकल्प तलाश रहे हैं, भले ही इसके लिए उन्हें अपनी जान जोखिम में क्यों न डालनी पड़े।
सरकार जब शराब की कीमत बढ़ाती है, तो उसका मुनाफा भी बढऩा चाहिए। जब शराब की बिक्री ठेकेदारों के पास थी, तब कीमतों पर कुछ नियंत्रण था। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने शराब ठेका अपने हाथ में लेते हुए दावा किया था कि पृथ्वी पर कोचिए नजर नहीं आएंगे'। हकीकत यह है कि कोचिए अब भी सक्रिय हैं, तस्करी भी जारी है, बस इन्हें संरक्षण देने वाले चेहरे बदल गए हैं।
पहले शराब ठेकेदार आबकारी विभाग की मिलीभगत से अवैध कारोबार चलाते थे, लेकिन अब आबकारी अफसर और मैदानी कर्मचारी खुद इस पर नियंत्रण रख रहे हैं। हालिया छापों में यह सामने आया है कि अवैध शराब सिर्फ कोचियों के जरिए ही नहीं, बल्कि बार में भी महंगे ब्रांड के नाम पर तस्करी की शराब बेची जा रही है।
अगर सरकारी शराब दुकानों की बिक्री घट रही है और अवैध शराब व तस्करी बढ़ रही है, तो यह सरकार की नीति और क्रियान्वयन की विफलता है। ऐसे में महज बिक्री बढ़ाने का लक्ष्य तय करने से समस्या हल नहीं होगी। सरकार को यह समझना होगा कि लोग सरकारी दुकानों से शराब क्यों नहीं खरीद रहे? क्या कीमतें ज्यादा हैं? क्या गुणवत्ता को लेकर अविश्वास बढ़ रहा है? जब तक इन बिंदुओं पर मंथन नहीं होगा, तस्करी और अवैध शराब का कारोबार फलता-फूलता रहेगा।
बड़े-बड़ों को छोटा-छोटा जिम्मा
नगरीय निकायों में भाजपा प्रत्याशी कई जगहों पर कड़े मुकाबले में फंस गए हैं। इस तरह का फीडबैक मिलने के बाद पार्टी के क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल, और पवन साय सरगुजा संभाग के दौरे पर निकले हैं। उन्होंने पहले चिरमिरी में पार्टी नेताओं के साथ बैठक की, और फिर अंबिकापुर जाकर पार्टी नेताओं के साथ बैठक की। उन्होंने प्रदेश के पदाधिकारियों को एक-एक वार्ड की जिम्मेदारी भी दी है।
चिरमिरी में तो भाजपा के मेयर प्रत्याशी रामनरेश राय के लिए स्थानीय संगठन के नेता पूरी तरह एकजुट नहीं हो पा रहे हैं। रामनरेश राय, स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के करीबी माने जाते हैं। न सिर्फ चिरमिरी, बल्कि मनेन्द्रगढ़ नगर पालिका में भी भाजपा की स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर है। यहां पिछले दो चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। जामवाल, और साय ने जायसवाल व अन्य नेताओं के साथ मंत्रणा की, और आने वाले दिनों में प्रचार की रूपरेखा तैयार की, ताकि पार्टी के पक्ष में अनुकूल माहौल बन सके।
दूसरी तरफ, अंबिकापुर में प्रदेश पदाधिकारी अनुराग सिंहदेव, अखिलेश सोनी, और अन्य को एक-एक वार्ड का प्रभार गया है। उन्हें साफ तौर पर बता दिया गया है कि पार्टी प्रत्याशी उनके वार्डों से हारे, तो उनकी (प्रभारी) हार मानी जाएगी। जामवाल, और साय के तेवर का असर देखने को मिल रहा है, और स्थानीय प्रमुख नेता गलियों की खाक छानने को मजबूर हो गए हैं। चुनाव में क्या कुछ होता है, यह तो 15 तारीख को ही पता चलेगा।
चुनाव और फ्रिज-वाशिंग मशीन
रायपुर नगर निगम के कई वार्डों में पैसा पानी की तरह बह रहा है। कुछ जगहों पर निर्दलीय प्रत्याशी भी दिल खोलकर पैसा खर्च कर रहे हैं। इन सबके बीच कांग्रेस के एक दिग्गज वार्ड प्रत्याशी ने मतदाताओं को लुभाने के लिए स्कीम लॉन्च की है। कांग्रेस प्रत्याशी ने बल्क में वोट डलवाने वाले प्रमुख नेता को फ्रिज-वाशिंग मशीन गिफ्ट करने का वादा किया है। साथ ही हर मतदाता को दो हजार देने की बात कही है।
वार्ड प्रत्याशी के लिए चुनाव खर्च की कोई सीमा नहीं है। ऐसे में अभी से नगदी बंटना शुरू हो गया है। यही नहीं, कुछ जगहों पर वोट न करने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है। दरअसल, कई इलाकों के वोटर पार्टी विशेष के परम्परागत समर्थक माने जाते हैं। ऐसे वोटरों को रोकने के लिए प्रतिद्वंदी दल के लोग अभी से जुट गए हैं। विधानसभा, और लोकसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत ग्रामीण इलाकों की तुलना में काफी कम रहा है। नगरीय निकाय चुनाव में मतदान का प्रतिशत क्या रहता है, इस पर निगाहें टिकी हुई है।
दवा घोटाले की जड़ें दूर तक
सीजीएमएससी में दवा खरीद घोटाले की पड़ताल चल रही है। सरकार की एजेंसी ईओडब्ल्यू-एसीबी ने घोटाले के प्रमुख सूत्रधार, और बड़े सप्लायर से रिमांड में लेकर पूछताछ कर रही है। जांच में तीन आईएएस अफसर भीम सिंह, चंद्रकांत वर्मा, और पद्मिनी भोई भी घेरे में आ गए हैं। चर्चा है कि देर सवेर सीजीएमएससी बोर्ड के लोग भी घेरे में आ सकते हैं। आठ साल पहले रमन सरकार ने सीजीएमएससी का गठन किया था। इसके माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों, और सरकारी अस्पतालों के लिए दवा खरीद होती है। दिलचस्प बात यह है कि सीजीएमएससी से जुड़ी फाइलें शासन स्तर तक नहीं पहुंचती है। ये अलग बात है कि विभाग प्रमुख का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से दखल रहता है।
पिछली सरकार में सीजीएमएससी बोर्ड का गठन किया गया था, और बोर्ड के अनुमोदन के बाद ही खरीदी होती रही है। बोर्ड में तत्कालीन विधायक डॉ. प्रीतम राम और डॉ. विनय जायसवाल प्रमुख सदस्य थे। अब जांच आगे बढ़ेगी, तो दोनों विधायकों तक पहुंच सकती है। विनय जायसवाल, खुद मेयर का चुनाव लड़ रहे हैं। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
न समारोह, न प्रचार, सीधे भुगतान
राज्य के किसानों का बोनस का इंतजार आखिरकार खत्म हो गया। धान बेचते समय उन्हें सिर्फ समर्थन मूल्य का भुगतान किया गया था, जिससे वे चिंतित थे कि बाकी रकम कब मिलेगी, मिलेगी भी या नहीं। यह आशंका बेवजह नहीं थी, क्योंकि इससे पहले डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में दो साल का बोनस रोक दिया गया था। माना गया था कि 2018 के चुनाव में भाजपा की हार का यह एक बड़ा कारण था।
इसी को ध्यान में रखते हुए 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने न सिर्फ 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदी का वादा किया, बल्कि रुका हुआ बोनस देने की भी घोषणा की थी। सरकार बनते ही सुशासन दिवस पर 25 दिसंबर 2023 को यह बकाया राशि दे दी गई।
इस बार भी धान खरीदी के दौरान किसानों की चिंता बनी हुई थी, जो फरवरी के पहले सप्ताह में खत्म हो गई है। सरकार ने वादे के मुताबिक 800 रुपये प्रति क्विंटल की अतिरिक्त राशि किसानों के खातों में पहुंचने लगी है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि इस बार किसानों को बोनस देने के लिए किसी तरह का समारोह नहीं रखा गया। कांग्रेस सरकार के समय राजीव गांधी किसान न्याय योजना के भुगतान पर बड़े आयोजन होते थे, जबकि 2023 में भाजपा सरकार ने भी सुशासन दिवस पर ऐसा किया था। इस बार चुनाव आचार संहिता लागू होने की वजह से ऐसा न हुआ हो, लेकिन किसानों को इससे खास फर्क नहीं पड़ता।
राशि खाते में पहुंचने से किसानों में खुशी है। संयोग यह है कि जल्द ही जिला पंचायत चुनावों का मतदान होने वाला है। ऐसे में बोनस की यह रकम कुछ न कुछ असर जरूर डालेगी।
निमंत्रण में छिपा खतरा
ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचने के लिए हर वक्त अलर्ट रहना जरूरी हो गया है। पुलिस और बैंक लगातार सतर्क रहने की सलाह देते हैं, लेकिन ठग हर दिन नया तरीका ढूंढ निकालते हैं। वे इस बात की गहरी रिसर्च करते हैं कि किस तरह के ट्रेंड चल रहे हैं, ताकि उसी बहाने लोगों को जाल में फंसाया जा सके।
आजकल शादी-ब्याह के निमंत्रण वाट्सएप पर भेजने का चलन बढ़ गया है। इन्हें आकर्षक बनाने के लिए वीडियो फाइल भी शेयर की जाती हैं। लेकिन अगर आप बिना सोचे-समझे ऐसी किसी फाइल को खोलते हैं, तो ठगी के शिकार हो सकते हैं।
रायपुर पुलिस के पास ऐसे कुछ मामले सामने आए हैं, जिनमें शादी का निमंत्रण भेजने के बहाने लोगों को ठगा गया। इसको देखते हुए पुलिस ने आम जनता को सतर्क रहने की सलाह दी है। चाहे वह शादी-ब्याह, बर्थ डे के निमंत्रण के आमंत्रण ही क्यों न हों, अनजान लिंक और फाइल खोलने से पहले पूरी जांच करें, वरना साइबर ठगों के जाल में फंस सकते हैं।
चुनाव प्रचार में शिवजी !!
नगरीय निकाय चुनाव के बीच कांकेर में पंडित प्रदीप मिश्रा का शिव महापुराण की कथा चल रही है। कथा में भारी भीड़ उमड़ रही है। खास बात ये है कि कांकेर जिले में पिछले कई चुनावों में भाजपा का सुपड़ा साफ हो गया था। कांकेर नगर पालिका अध्यक्ष का पद तो भाजपा पिछले 25 साल से नहीं जीत पाई है। इस बार भाजपा यहां चुनाव जीतेगी या नहीं, इसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं।
चुनाव प्रचार की शुरूआत में कांग्रेस बेहतर स्थिति में रही है। वजह यह है कि निकाय-पंचायतों में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी रखने के खिलाफ समूचे बस्तर में सर्व पिछड़ा समाज का बड़ा आंदोलन हुआ था। आंदोलन का केन्द्र बिन्दु कांकेर जिला मुख्यालय रहा है। इसके अलावा ईसाई, और मुस्लिम वोटर भी कांकेर में अच्छी खासी संख्या में हैं। ये कोर वोटर माने जाते हैं।
इससे परे भाजपा ने पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए अनारक्षित कांकेर नगर पालिका अध्यक्ष पद पर पिछड़ा वर्ग से प्रत्याशी दिए हैं। इन सबके बीच शिवमहापुराण कथा सुनने के लिए जिस तरह लोगों की भीड़ उमड़ी है, उससे भाजपा को बड़ी उम्मीदें हैं। कुल मिलाकर यहां पार्टी हिन्दुत्व कार्ड खेल रही है। शुक्रवार को कथा का समापन होगा। इसके चार दिन बाद मतदान है। तब माहौल भाजपा के पक्ष में रहेगा या नहीं, यह तो 15 तारीख को चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
छोटा चुनाव हाई प्रोफाइल
सीएम विष्णुदेव साय के विधानसभा क्षेत्र की कुनकुरी नगर पंचायत में कांग्रेस ने ताकत झोंक दी है। नगर पंचायत इलाके में मतांतरित आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। यही वजह है कि कांग्रेस यहां विशेष रूप से ध्यान दे रही है। कांग्रेस ने नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर युवक कांग्रेस नेता विनयशील को चुनाव मैदान में उतारा है। जबकि भाजपा ने सुदबल यादव को टिकट दी है।
कांग्रेस यहां चुनाव जीतकर प्रदेश में एक मैसेज देने की कोशिश में जुटी हुई है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने कुनकुरी में चुनावी सभा लेकर माहौल बनाने की कोशिश की है। मगर सामाजिक समीकरण अनुकूल होने के बाद भी कांग्रेस की राह कठिन हो गई है। वजह यह है कि सीएम के इलाके में पिछले 13 महीने में काफी काम हुए हैं। सीएम खुद एक बार सभा लेकर जा चुके हैं। यहां भाजपा प्रत्याशी के चुनाव प्रचार की कमान सीएम की पत्नी कौशल्या साय ने संभाल रखी है।
सीएम की पत्नी जनपद की पदाधिकारी भी रह चुकी हैं। लिहाजा, इलाके के लोग उनसे परिचित भी हैं, और वो जहां भी प्रचार के लिए जा रही हैं, उनके साथ सेल्फी लेने के लिए महिला-युवाओं की भीड़ जमा हो जा रही है। कुल मिलाकर छोटे से नगर पंचायत में चुनावी मुकाबला हाई प्रोफाइल हो गया है।
पत्रकार की हत्या पर संसद में चर्चा'
बस्तर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या का मामला संसद में उठा। आजाद समाज पार्टी के सांसद चंद्रशेखर आजाद ने लोकसभा में देशभर में दलितों, आदिवासियों और सच बोलने का साहस रखने वालों पर बढ़ते अत्याचार का मुद्दा उठाया। वे राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपनी पार्टी की ओर से वक्तव्य दे रहे थे।
आजाद ने कहा कि पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं। मुकेश चंद्राकर ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई, जिसके कारण उनकी हत्या कर दी गई। ऐसी स्थिति में कौन पत्रकार ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर पाएगा?
आजाद उत्तर प्रदेश की नगीना सीट से सांसद हैं, लेकिन उन्होंने न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि अन्य राज्यों में हुई अत्याचार की घटनाओं का भी अपने भाषण में जिक्र किया।
बलौदाबाजार उपद्रव को लेकर उनकी पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं पर पुलिस-प्रशासन ने कार्रवाई की है। छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान सांसद आजाद ने आरोप लगाया कि इस मामले की आड़ में दलित और पिछड़े समाज के निर्दोष लोगों को निशाना बनाया गया और उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा के अलावा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) तीसरी सबसे प्रभावी राजनीतिक ताकत रही है, लेकिन पिछले दो चुनावों में उसका जनाधार कमजोर हुआ है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा के दो विधायक चुने गए थे, लेकिन इस बार 2023 में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। उत्तर प्रदेश में भी 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे सिर्फ एक सीट पर सफलता मिली। इन परिस्थितियों में बहुजन समाज पार्टी से जुड़े लोग चंद्रशेखर आजाद को मायावती के संभावित विकल्प के रूप में देखने लगे हैं। छत्तीसगढ़ में जब बसपा ने अपना आधार बढ़ाया था, तब पिछड़ा वर्ग भी उसके साथ था। संसद में अपने भाषण के दौरान आजाद ने ओबीसी के लिए क्रिमीलेयर की व्यवस्था समाप्त करने की भी मांग रखी।
इन सभी पहलुओं को देखते हुए यह साफ दिखाई देता है कि चंद्रशेखर आजाद की नजर बसपा के पारंपरिक वोट बैंक पर है और आने वाले चुनावों में इसका असर देखने को मिल सकता है।
नेता हवा में, उम्मीदवार मिट्टी में
कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के लिए एक हेलीकॉप्टर किराए पर लिया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व सीएम भूपेश बघेल हेलीकॉप्टर से प्रचार के लिए प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में जा रहे हैं। ये अलग बात है कि विशेषकर पार्टी के वार्ड प्रत्याशी संसाधनों की कमी का रोना रो रहे हैं, और उन्हें संसाधन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी मेयर प्रत्याशियों पर छोड़ दिया गया है।
वार्ड प्रत्याशियों को संसाधन मुहैया कराना एक तरह से मेयर प्रत्याशियों की मजबूरी भी है। वजह यह है कि वार्ड प्रत्याशी मजबूत होंगे, तो इसका फायदा मेयर प्रत्याशियों को मिलेगा। वैसे भी समय कम रह गए हैं, और हर गली-मोहल्ले तक मेयर प्रत्याशी का पहुंच पाना संभव नहीं है। इससे परे कई जगहों पर कई वार्डों में निर्दलीय भी मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं। इनमें से ज्यादातर कांग्रेस के ही बागी हैं। ऐसे में मेयर प्रत्याशी निर्दलीयों का साथ लेने की भी कोशिश कर रहे हैं। देखना है कि कांग्रेस के मेयर प्रत्याशियों को इसका कितना फायदा मिलता है।
54 विभाग, अवर सचिव, एसओ दोगुने
सोमवार को मंत्रालय कैडर में हुए अवर सचिवों की पदोन्नति के बाद यही स्थिति हो गई है । विभागों में डेढ़ दो गुने से अधिक अवर सचिव अनुभाग अधिकारी हो गए हैं । अब जीएडी के पास समस्या यह आ खड़ी हुई है कि इन्हें कौन सा काम दिया जाए या बैठे बिठाए जीएडी पूल में रिजर्व रखकर वेतन दिया जाए। पूरी सरकार 54 विभागों से चलती है। और उसे गवर्नमेंट बिजनेस रूल के हिसाब से अवर सचिव ही संचालित करते हैं, आईएएस या अन्य नहीं।
राज्य मंत्रालय में सांख्येत्तर पद लेकर धड़ाधड़ पदोन्नति तो दे दी गई या ले ली गई । लेकिन अब सभी पदोन्नति के समक्ष काम का संकट आ खड़ा हुआ है। खासकर इस अवर सचिव, अनुभाग अधिकारी कैडर में। कैडर में अवर सचिव के 52 पहले से कार्यरत हैं और अब परसों 21 और बना दिए गए ।
विभाग हैं 54। अब जीएडी इनके लिए काम की तलाश कर रहा है। क्योंकि लोनिवि,पीएचई,वन,ऊर्जा, कृषि जैसे तकनीकी विभागों में उनके मूल कैडर के भी अवर सचिव तकनीकी सेक्शन सम्भाल रहे हैं । तो कई विभागों में डिप्टी कलेक्टर अवर सचिव बन बैठें हैं। उन्हें बाहर कर मंत्रालय कैडर के इन नए नवेलों को नियुक्त नहीं किया जा सकता। क्योंकि बहुतेरे मैट्रिकुलेट और तकनीकी ज्ञान से मामले में जीरों होते हैं।
ऐसे में इन्हें रिजर्व पूल में रखकर, हर रिटायरमेंट के बाद नियुक्ति देने के अलावा विकल्प नहीं हैं। तब तक ये रोज आफिस आकर बिना काम के रोजी पकाएंगे। जैसे कलेक्टरों को बिना विभाग के मंत्रालय में पदस्थ करने की परंपरा पिछली सरकार से चली आ रही। हालांकि यह भी बताया गया है कि कुछ को लूप लाइन में डालने के लिए संस्कृति प्रकोष्ठ, एनआरआई सेल उपयुक्त माने जा रहे हैं। 21 लोगों के अवर सचिव बनने के बाद दूसरा संकट अनुभाग अधिकारियों का आ खड़ा हुआ है। यह कैडर भी ओवर लोडेड है।
विभागों से लगभग दोगुने 97 पहले से कार्यरत हैं और 6 माह पहले पदोन्नत डेढ़ दर्जन और हो गए। और अब एसओ से अवर सचिव बनने से एकाएक 18 विभाग बिना एसओ के हो गए हैं। अब भला, अवर सचिव बनने के बाद इनसे एसओ का काम तो नहीं लिया जा सकता। ऐसे में इनकी पूर्ति के लिए नीचे के ग्रेड 1 बाबूओं को भी समयपूर्व पदोन्नति देनी होगी। यानी 6 माह में दूसरा प्रमोशन। और उधर सरकार के कुछ विभागों का मैदानी अमला बिना प्रमोशन के रिटायर होने मजबूर किया जाता है।
महंत का निशाना किस पर?
नगरीय निकाय चुनाव के प्रचार के बीच नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत के बयान से पार्टी के भीतर खलबली मची है। डॉ. महंत ने कह दिया है कि कांग्रेस विधानसभा का चुनाव पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव की अगुवाई में लड़ेगी। नेता प्रतिपक्ष ने एक तरह से प्रदेश कांग्रेस में बदलाव की तरफ इशारा किया है। हालांकि सिंहदेव ने महंत के बयान से पल्ला झाड़ा है, और कहा कि यह उनकी व्यक्तिगत राय है। और बदलाव का कोई भी फैसला हाईकमान लेता है।
महंत, पार्टी के सबसे अनुभवी नेता हैं। उनके बयान के मायने तलाशे जा रहे हैं। कई लोग पीसीसी में बड़े बदलाव की तरफ इशारा कर रहे हैं। ऐसी चर्चा है कि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को बदला जा सकता है। दरअसल, बैज को विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई थी, ताकि वो चुनाव प्रचार में पूरा समय दे सकें, मगर वो खुद अडक़र विधानसभा चुनाव लड़ गए, और हार गए। विधानसभा चुनाव में हार के बाद लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा। कोरबा को छोडक़र बाकी सारी लोकसभा सीटें पार्टी हार गई।
इधर, नगरीय निकाय चुनाव में भी पार्टी के आसार अच्छे नहीं दिख रहे हैं। टिकट वितरण में गड़बड़ी सामने आई है। कई जगहों पर बैज का पुतला फूंका गया है। पहली बार ऐसा हुआ है जब एक नगर पंचायत अध्यक्ष समेत 33 वार्डों में भाजपा प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए हैं। इसके लिए भी प्रदेश कांग्रेस के चुनाव प्रबंधन में जिम्मेदार माना जा रहा है। चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट भी खफा हैं। ऐसे में महंत के बयान के बाद बैज के भविष्य को लेकर हल्ला उड़ा है, और बदलाव की बात कही जा रही है, तो वह बेवजह नहीं है।
सरकारी अस्पताल निजी हाथों में?
पिछले वर्ष नवंबर में बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण की बैठक में लिए गए निर्णय के परिपालन में राज्य सरकार ने यहां के 240-बेड वाले सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल का संचालन स्वयं करने के बजाय नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एनएमडीसी) को सौंप दिया। यह अस्पताल केंद्र सरकार की योजना के तहत बनाया गया है, जिसमें राज्य सरकार ने भी 40 प्रतिशत खर्च वहन किया है। राज्य सरकार ने इसे एनएमडीसी को इस विश्वास के साथ सौंपा कि एक केंद्रीय उपक्रम के पास होने से इसका बेहतर प्रबंधन होगा। अब स्थिति यह है कि एनएमडीसी ने स्वयं इसे संचालित करने के बजाय निजी कंपनियों के लिए टेंडर जारी कर दिया है। यानी, संचालन और मेंटेनेंस अब निजी हाथों में सौंपे जाने की प्रक्रिया में है। इस टेंडर को लेकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। नगरनार प्लांट की स्थापना के समय एनएमडीसी ने बस्तर के आदिवासियों और गरीब तबके के लिए एक आधुनिक अस्पताल स्थापित करने का आश्वासन दिया था। जिला प्रशासन ने इसके लिए जमीन भी आवंटित कर दी थी, लेकिन दो दशक बीत जाने के बावजूद यह अस्पताल धरातल पर नहीं उतर सका। जो एनएमडीसी, जो एक नया अस्पताल समय पर नहीं बना सकी, उसे एक बड़े सेटअप वाले सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल को संचालित करने की जिम्मेदारी दे दी गई।
सरकार और एनएमडीसी भले ही यह दावा कर रहे हैं कि निजी हाथों में संचालन जाने के बावजूद मुफ्त इलाज की सुविधा बरकरार रहेगी, लेकिन स्थानीय लोगों में संशय बना हुआ है। इधर, बिलासपुर के समीप कोनी में एक मल्टीस्पेशियलिटी अस्पताल की इमारत बनकर तैयार हो चुकी है। मार्च 2023 में उसका औपचारिक उद्घाटन किया गया, मगर एक वर्ष बीतने के बावजूद अब तक वहां ओपीडी से अधिक सुविधा शुरू नहीं हो पाई हैं। करोड़ों की मशीनें धूल खा रही हैं, स्टाफ और तकनीकी विशेषज्ञों की भर्ती पूरी नहीं हुई है।
सरकार पहले ही विभिन्न सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के लिए निजी अस्पतालों के साथ अनुबंध करती आ रही है, अब अरबों रुपये खर्च कर बनाए गए अपने ही अस्पतालों को चलाने से पीछे हट रही है? यदि यही सिलसिला चल निकला तो सरकारी अस्पतालों का भविष्य क्या होगा?
गर्मी की मिठास तैयार हो रही
छत्तीसगढ़ की नदियां केवल जल संसाधन ही नहीं, बल्कि किसानों के लिए आजीविका का महत्वपूर्ण साधन भी हैं। खासतौर पर गर्मी के मौसम में महानदी, शिवनाथ, इंद्रावती, खारून और हसदेव जैसी प्रमुख नदियों के किनारे किसान बड़े पैमाने पर वाटरमेलन (कलिंदर) की खेती करते हैं।
जनवरी से फरवरी के बीच बुवाई करने वाले किसान अप्रैल-मई तक अच्छी उपज प्राप्त कर लेते हैं। कलिंदर की मांग गर्मी में अत्यधिक बढऩे से यह नकदी फसल के रूप में किसानों को अच्छा लाभ देती है।
नदी तटों पर इस खेती के लिए सिंचाई और उर्वरक की कम आवश्यकता होती है क्योंकि मिट्टी में नमी बनी रहती है। तरबूज की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिसमें तापमान 25 से 32 डिग्री सेल्सियस के बीच हो। अकेले महासमुंद जिले में लगभग एक हजार एकड़ में तरबूज की खेती की जाती है, और इसकी मांग कोलकाता जैसे बड़े शहरों में भी है। मगर, छत्तीसगढ़ में भी दूसरे राज्यों से अलग वैरायटी के कलिंदर आ रहे हैं, जो आकार में छोटे व सस्ते भी हैं। हालांकि, जल स्तर में गिरावट और अवैध रेत उत्खनन से यह खेती प्रभावित हो रही है। नदियों को संरक्षित और और खेती को प्रोत्साहित किया जाए, तो यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को अधिक सशक्त बना सकती है। यह तस्वीर कसडोल के पास महानदी की है, जिसमें जहां तक नजर जा रही है, कलिंदर की खेती दिखाई दे रही है।
...और तीरथ करने भेजा
बाड़ ही जब खेत चरने लग जाए तो रखवाली कौन करे, यह कहावत कांग्रेस नेताओं पर फिट बैठती दिख रही है। प्रदेश में कई जगहों पर कांग्रेस नेताओं पर टिकट बेचने के आरोप लग रहे हैं, और कोरबा में तो प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज का पुतला भी फूंका गया। इस बार नगरीय निकायों के 33 कांग्रेस के वार्ड प्रत्याशियों ने चुपचाप नामांकन वापस लिए, तो कई चौंकाने वाली जानकारी छनकर सामने आ रही है।
सुनते हैं कि बसना के नगर पंचायत अध्यक्ष प्रत्याशी को बिठाने में कांग्रेस के एक स्थानीय प्रमुख नेता ने भूमिका निभाई है। यह बात छनकर सामने आई है कि भाजपा के चुनाव प्रबंधकों ने पहले चुपचाप दो निर्दलीय प्रत्याशियों के नामांकन वापस करा लिए। इसके बाद आम आदमी पार्टी, और बसपा प्रत्याशी पर डोरे डाले।
दोनों दलों के प्रत्याशियों ने भी सरेंडर कर दिया। भाजपा के प्रबंधक पहले ही एक स्थानीय दिग्गज कांग्रेस नेता के संपर्क में थे, और ये वो नेता हैं जिन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी तय करने में अहम भूमिका निभाई थी।
बताते हैं कि कांग्रेस प्रत्याशी तो पहले चुनाव लडऩे के लिए तैयार नहीं थीं, लेकिन किसी तरह समझाइश देकर उन्हें नामांकन दाखिल करा दिया गया। और आखिरी क्षणों में महिला प्रत्याशी से नामांकन वापस कराकर पति के साथ उन्हें तीर्थाटन के लिए भेज दिया गया। भाजपा प्रत्याशी डॉ. खुशबू अग्रवाल निर्विरोध निर्वाचित हुई है।
नगर पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में अंतागढ़ उपचुनाव की याद ताजा की है। तरीके भी वही थे, और लेनदेन भी उसी अंदाज में हुआ है। मगर फिलहाल इसके कोई पुख्ता सुबूत सामने नहीं आए हैं। ये अलग बात है कि बसना नगर में हर किसी की जुबान में लेनदेन की चर्चा है। देर सबेर यह मामला गरमाएगा। देखना है आगे क्या होता है।
निर्दलियों के आसार दिख रहे
रायपुर नगर निगम में इस बार वर्ष-2009 के चुनाव की तरह बड़े पैमाने पर निर्दलीय चुनाव जीतकर आ सकते हैं। कांग्रेस के आधा दर्जन से अधिक बागी चुनाव मैदान में हैं, जिनकी स्थिति फिलहाल मजबूत दिख रही है। न सिर्फ रायपुर बल्कि कई निकायों में बागी बेहतर दिख रहे हैं। भाजपा में भी कुछ इसी तरह की समस्या है।
कांग्रेस ने इस चुनाव में प्रत्याशी की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखकर टिकट बांटी है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि कई जगहों पर स्थानीय कार्यकर्ता पार्टी के बागी प्रत्याशियों का साथ दे रहे हैं। वर्ष-2009 के निकाय चुनाव में रायपुर में 10 निर्दलीय पार्षद चुनकर आए थे। इस बार भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति बन सकती है। न सिर्फ रायपुर बल्कि अंबिकापुर, दुर्ग, और नांदगांव में भी कांग्रेस के कई निर्दलीय प्रत्याशियों की स्थिति मजबूत दिख रही है।
भाजपा में भी अंबिकापुर, और कई निकायों में निर्दलीय प्रत्याशी मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं। फिर भी भाजपा ने काफी हद तक अपने बागियों को मनाने में कामयाब रही है। अब आगे क्या होता है, यह तो नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
पहलवानों की अगली पीढ़ी अखाड़े में
आखिरकार पूर्व केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह की बेटी मोनिका सिंह ने सूरजपुर जिले की जिला पंचायत सदस्य क्रमांक-15 से नामांकन भर दिया है। मोनिका भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़ रही हैं। उन्होंने नामांकन दाखिले के दौरान जोरदार शक्ति प्रदर्शन किया।
रेणुका सिंह भरतपुर-सोनहत सीट से विधायक हैं। जबकि मोनिका अपनी मां के पुराने विधानसभा क्षेत्र प्रेमनगर के क्षेत्र से चुनाव लड़ रही हैं। बताते हंै कि रेणुका सिंह ने अपनी बेटी को अधिकृत प्रत्याशी घोषित करने के लिए स्थानीय प्रमुख नेताओं से चर्चा भी की थी। मगर विधायक भुवन सिंह मरावी इसके लिए तैयार नहीं हुए। इसके बाद उन्होंने बागी तेवर दिखा दिए हैं।
दिलचस्प बात यह है कि इसी क्षेत्र से सतवंत सिंह चुनाव मैदान में हैं, जो कि दिवंगत कांग्रेस नेता तुलेश्वर सिंह के बेटे हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में रेणुका सिंह, और तुलेश्वर सिंह आपस में टकराते रहे हैं। उनकी राजनीतिक अदावत चर्चा में रही है। अब दूसरी पीढ़ी के सदस्य आपस में भिड़ रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
नैक घोटाले पर सीबीआई की चोट
1994 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्च शिक्षा की गुणवत्ता जांचने के लिए राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) की स्थापना की। इसका उद्देश्य विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की शिक्षा व्यवस्था को तय मानकों पर परखना था, ताकि बेहतर प्रदर्शन करने वाले संस्थानों को अधिक अनुदान मिल सके। इससे न केवल शिक्षण संस्थानों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी, बल्कि छात्रों को भी सही कॉलेज चुनने में सहूलियत मिली।
शुरुआत में नैक मूल्यांकन के लिए चार मापदंड थे, जिन्हें 2022 में बढ़ाकर आठ कर दिया गया। इसमें शिक्षण सुविधाएं, शिक्षकों का शोध कार्य, परीक्षा परिणाम, आधारभूत ढांचा, वेतन व्यवस्था, छात्र सुविधाएं और संपूर्ण शैक्षणिक वातावरण शामिल थे। नैक की टीम इन सभी पहलुओं का निरीक्षण कर रिपोर्ट तैयार करती और संस्थान को सीजीपीए के आधार पर ग्रेड देती थी। नैक टीम में विशेषज्ञों और अनुभवी प्रोफेसरों को शामिल कर प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की कोशिश की गई।
मगर, समय के साथ नैक प्रणाली में गड़बडिय़ां शुरू हो गईं। कई कॉलेज और विश्वविद्यालय अच्छे ग्रेड के लिए जोड़तोड़ में लग गए। फर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर, दिखावटी फैकल्टी, औपचारिकतावश एल्युमनी गठन और महज कागजों में लाइब्रेरी निर्माण जैसे हथकंडे अपनाए जाने लगे। इससे कई ऐसे निजी संस्थान ए-प्लस और ए-प्लस-प्लस ग्रेड पाने में सफल हो गए, जिनकी शैक्षणिक गुणवत्ता संदिग्ध थी। इस उच्च ग्रेडेशन के कारण उन्हें यूजीसी से अधिक फंड मिलने लगा और वे इसका फायदा उठाकर एडमिशन फीस भी बढ़ाने लगे।
हाल ही में सीबीआई ने देशभर में छापेमारी कर एक दर्जन से अधिक प्रोफेसरों को गिरफ्तार किया है। इन पर आरोप है कि इन्होंने कॉलेज और विश्वविद्यालय संचालकों से मोटी रिश्वत लेकर ग्रेडेशन बांटे। इस घोटाले में छत्तीसगढ़ का नाम भी सामने है। अटल बिहारी विश्वविद्यालय के पूर्व निदेशक और नैक इंस्पेक्शन टीम के चेयरमैन रहे समरेंद्र नाथ साहा को बिलासपुर के कोनी स्थित उनके निवास से गिरफ्तार किया गया। वर्तमान में वे एक निजी विश्वविद्यालय के कुलपति हैं।
इधर, यूजीसी ने जनवरी 2024 में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सुझाव पर नैक ग्रेडेशन प्रणाली को समाप्त करने का निर्णय ले लिया। सत्र 2025-26 से शिक्षण संस्थानों को ऑनलाइन एक प्रोफॉर्मा भरना होगा, जिसमें वे अपनी सुविधाओं, इंफ्रास्ट्रक्चर और फैकल्टी की जानकारी देंगे। ग्रेडेशन के बजाय अब संस्थानों को एक से पांच तक का लेवल दिया जाएगा। यहां तक कि सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय, आईआईटी, आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों को भी आकलन की इस नई प्रक्रिया से गुजरना होगा।
सीबीआई की यह कार्रवाई तब हुई जब नैक प्रणाली पहले ही खत्म की जा चुकी है। शायद घोटाले में शामिल लोग यह सोचकर निश्चिंत हो गए थे कि अब उनके द्वारा दिए गए ग्रेड की जांच नहीं होगी। लेकिन जांच एजेंसी ने पुरानी फाइलें खोल दी हैं। अब देखना है कि आगे किन-किन लोगों पर शिकंजा कसेगा, क्योंकि खबरों के अनुसार कई और प्रोफेसर और रिश्वत देने वाले विश्वविद्यालय, कॉलेजों के अधिकारी जांच के दायरे में हैं।
बारातियों जैसे मजे
नगरीय निकायों में प्रत्याशियों का प्रचार अब रफ्तार पकड़ रहा है। रायपुर नगर निगम में तो कई निर्दलीय प्रत्याशी प्रचार के मामले में भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशियों से आगे नजर आ रहे हैं। शहर के बीचों-बीच एक वार्ड में निर्दलीय प्रत्याशी को फूलगोभी चुनाव चिन्ह मिला है।
पिछले दो दिनों में निर्दलीय प्रत्याशी ने अपने वार्ड के हर घर में दो-दो फूलगोभी भिजवा दी है। वो अब तक दो टन फूलगोभी बांट चुके हैं। सब्जी के बहाने प्रचार भी हो गया है। आखिरी के दो तीन दिनों में कुछ इसी तरह फूलगोभी बंटवाने का प्लान है।
प्रत्याशी की सोच है कि मतदाताओं को चुनाव चिन्ह याद रहेगा, और वो चुनाव जीत जाएंगे। इससे परे वार्ड के एक अन्य निर्दलीय प्रत्याशी को चुनाव चिन्ह गुब्बारा मिला हुआ है, और वो चुनाव चिन्ह हर घर तक पहुंचाने के लिए गली मोहल्लों में गुब्बारे उड़वा रहे हैं।
इसी तरह रायपुर दक्षिण की हाईप्रोफाइल वार्ड में एक दिग्गज प्रत्याशी की तरफ से बस्तियों में सुबह नाश्ते से लेकर लंच, और डिनर तक की व्यवस्था की गई है। प्रत्याशी की तरफ से सारी सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है, और बस्ती के लोग रोज पार्टी कर रहे हैं। चुनाव के चलते हर गली मोहल्ले में कुछ नया हो रहा है। प्रत्याशियों को इसका कितना फायदा मिलता है, यह चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
वोटर लिस्ट की उलझन
निगम चुनाव इस बार वार्डों के नए परिसीमन के तहत हो रहे है। इससे वार्डों का पूरा एरिया बदल गया है। उदाहरण स्वरूप पिछले चुनाव में जिसने टिकरापारा में वोट डाला था अब वो भाठागांव में डालेगा। और बहुतों को अब तक पता भी नहीं है कि उनका नाम किस वार्ड के वोटर लिस्ट में है। ऐसे में किसी बूथ में वार्ड का कौन कौन सा इलाका शामिल है उसकी सूचना देने यह सही उपाय हो सकता है। इसके बाद भी वोटर लिस्ट की गड़बड़ी से परेशानी तय है।
वोटिंग के दिन 11 फरवरी को मतदाताओं का भटकना और इसकी खीझ, झल्लाहट में वोट न डालकर घर लौटना भी तय है। वैसे भी बहुतायत वोटर मानते हैं कि चुनाव जीतने के बाद पार्षद काम करते नहीं, चक्कर कटवाते हैं और बिना पैसे के काम करते नहीं। निगम का अमला मल्टी पोस्ट ईवीएम के प्रचार में उलझा हुआ है तो पार्टियों के बूथ एजेंट, प्रत्याशियों के प्रचार में। देखना होगा कि वोटर की समस्या कैसे दूर होगी।
कोचिंग संस्थानों की बाढ़
बिलासपुर शहर का गांधी चौक इलाका छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए एक खास केंद्र बन गया है। इसे छत्तीसगढ़ का छोटा- मोटा नई दिल्ली स्थित मुखर्जी नगर समझ सकते हैं। यहां कोचिंग संस्थानों, पुस्तकालयों, किराए के मकानों और छात्रों का नेटवर्क विकसित हो रहा है। यहां लगभग 30-35 कोचिंग संस्थान, उतने ही पुस्तकालय और किताब दुकानें हैं, जो आगे बढ़ते हुए दयालबंद इलाके से शहर की सीमा तक पहुंच गया है। शायद यह छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा कोचिंग हब है। यहां आने वाले छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। हजारों छात्र किराये के कमरों, हॉस्टलों, कोचिंग संस्थानों और लाइब्रेरियों के सहारे अपने भविष्य की दिशा तय कर रहे हैं। कोचिंग उद्योग के साथ ही इस इलाके में सहायक व्यवसायों की भी बाढ़ आ चुकी है।
हालांकि, इस तरह के कोचिंग हब में छात्रों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ उनकी सुरक्षा और सुविधाओं की बात भी उठती है। पिछले वर्ष दिल्ली के कोचिंग संस्थानों में बदइंतजामी के कारण तीन छात्रों की मौत हो गई थी। छात्रों की सुरक्षा, उनके रहने की स्थिति, और कोचिंग संस्थानों में सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित करना प्रशासन और संस्थान संचालकों की प्राथमिकता होनी चाहिए। गांधी चौक जैसे इलाकों में भीड़भाड़ और असुरक्षित परिस्थितियों के कारण छात्रों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि कमरों की कमी, असुरक्षित और अपंजीकृत हॉस्टल और कोचिंग सेंटर की कम जगह पर ज्यादा से ज्यादा युवाओं की क्लास लेना। जिस तरह से मोटी फीस प्रतियोगी छात्रों से ली जा रही है, अधिकांश में उसके अनुरूप सुविधाएं भी नहीं हैं। यहां पर कोरबा, जांजगीर ही नहीं, रायपुर, भिलाई-दुर्ग तथा दूसरे राज्यों के ग्रामीण इलाकों के छात्र भी मिल जाएंगे। कोटा, नागपुर के कई नामी कोचिंग इंस्टीट्यूट ने भी बिलासपुर में अपने स्टडी सेंटर खोल दिए हैं। शहर के अलग-अलग छोर पर प्राइवेट लाइब्रेरी भी चल रही हैं। गांधी चौक का तेजी से उभरना शिक्षा क्षेत्र के लिए अच्छा संकेत हो सकता है, लेकिन सवाल बना हुआ है कि इतनी बड़ी संख्या में छात्रों के लिए जरूरी व्यवस्थाएं और सुरक्षा इंतज़ाम कितने पुख्ता हैं? यहां के हॉस्टल और कोचिंग संस्थान अग्नि सुरक्षा, ट्रैफिक व्यवस्था आदि मानकों का पालन कर रहे हैं या नहीं? क्या मकान मालिक छात्रों को उचित रहने की सुविधा दे रहे हैं?
घूस देने वाला भी नपेगा!
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में हाईकोर्ट में ही नौकरी लगाने के नाम पर 7.5 लाख रुपये की धोखाधड़ी के आरोपी की जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने निर्देश दिया कि रिश्वत देने वाले के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए। अब कोरबा पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए रिश्वत देने की शिकायत करने वाले संजय दास के खिलाफ भी अपराध दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 172, 173 और 174 के तहत रिश्वत देना और लेना दोनों गंभीर अपराध हैं, जिनमें अधिकतम सात साल तक की सजा का प्रावधान है। कोरबा के इस मामले में रिश्वत देने वाले आरोपी ने रकम सीधे बैंक खाते में जमा कराई और कुछ धनराशि मोबाइल वॉलेट के माध्यम से ट्रांसफर की। संभवत: उसने यह सावधानी इसलिए बरती ताकि रिश्वत का पुख्ता सबूत उसके पास मौजूद रहे और नौकरी का झांसा देने वाला व्यक्ति रकम लेने से इनकार न कर सके। लेकिन यही सबूत अब उसी के गले की फांस बन गया है।
छत्तीसगढ़ में नौकरी के नाम पर धोखाधड़ी के मामले लगातार सामने आते हैं। हालांकि कानून में स्पष्ट प्रावधान हैं, फिर भी अधिकांश मामलों में पुलिस केवल रिश्वत लेने वालों पर ही कार्रवाई करती है, देने वालों को नजरअंदाज कर देती है। कोरबा पुलिस ने हाईकोर्ट के निर्देश पर इस चिन्हित मामले में तो कार्रवाई कर दी, लेकिन अन्य मामलों का क्या? आमतौर पर लोग स्वेच्छा से रिश्वत देते हैं और जब काम नहीं बनता, तो पुलिस के पास शिकायत लेकर पहुंच जाते हैं। अगर हाईकोर्ट के आदेश का हर मामले में सख्ती से पालन हो, तो पुलिस का ही बोझ हल्का होगा। लोग भी रिश्वत देने से पहले कई बार सोचेंगे कि कानून का शिकंजा उन पर भी कस सकता है।