राजनांदगांव

नए भाजपा अध्यक्ष पटेल के आगे चुनौतियों का अंबार
20-Oct-2022 2:33 PM
नए भाजपा अध्यक्ष पटेल के आगे चुनौतियों का अंबार

गुटबाजी से बिखरी पार्टी को अगले वर्ष विस चुनाव में जीत के लिए एकजुट करनी होगी राह आसान

प्रदीप मेश्राम

राजनांदगांव, 20 अक्टूबर (छत्तीसगढ़ संवाददाता )।  राजनांदगांव जिला भाजपा के नए अध्यक्ष मनोनीत किए गए रमेश पटेल के सामने चुनौतियों का अंबार खड़ा नजर आ रहा है। गुटबाजी से बिखरी भाजपा को संगठित करने के अलावा अगले वर्ष विधानसभा चुनाव में जीत की राह आसान करने के लिए पटेल को जोर लगाना होगा। उनकी पुरजोर कोशिश के सामने उनकी ही पार्टी के कई धड़े में बंटे नेता चुनौती खड़ी कर सकते हैं। उनकी राजनीतिक मोर्चे पर आसान नहीं होगी। सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की शुरू हो गई है कि इन तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए पटेल किस तरह का रूख अख्तियार करेंगे। भाजपा की राजनीति में पटेल को सांगठनिक रूप से दमदार माना जाता है। तीन बार शहर भाजपा अध्यक्ष रहते उन्होंने कार्यकर्ताओं के बीच अपनी छवि को लेकर एक अलग ही पहचान बनाई।

बताया जा रहा है कि सबसे पहले पटेल को  राजनांदगांव जिले की गुटीय लड़ाई को सम्हालने के लिए दमदारी से फैसले लेने पड़ेंगे। भाजपा के भीतर वरिष्ठ और दूसरी पंक्ति के नेताओं के बीच तालमेल बेपटरी हो गई है। 2018 के विस चुनाव में मिली करारी शिकस्त झेलने के बाद भाजपा सत्तारूढ़ कांग्रेस के सामने अब भी कमजोर स्थिति में है।

अगले साल के आखिरी में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को एक नए मुकाम में ले जाने की जिम्मेदारी के साथ पटेल को आपसी खींचतान में फंसे नेताओं को एक सूत्र में पिरोने के लिए कई तरह के उठापटक करने पड़ेंगे। भाजपा के भीतर न सिर्फ वरिष्ठ बल्कि युवा नेताओं में भी गुटबाजी पूरी तरह से हावी है।

अगले वर्ष के विधानसभा चुनाव को जीतने के लिए जिले के 4 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की हालत सियासी नजरिये से कांग्रेस की तुलना में कमतर है। पटेल के सामने भाजपा को राजनीतिक रूप में संगठित करने की एक बड़ी चुनौती के लिए सीमित समय मिलेगा। यानी एक साल के भीतर पार्टी को डैमेज कंट्रोल करने के लिए कार्यक्र्ताओं के पूर्ण सहयोग की जरूरत होगी। भाजपा के भीतर जिस तरह से उठापटक मची हुई है उसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि नए अध्यक्ष के सामने उनके ही पार्टी के नुमाईंदे अड़चने खड़ी करने में कोई कसर नहीं छोडेंगे।

पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निर्वाचन जिले का अध्यक्ष होना पटेल के लिए एक गौरव का विषय जरूर है, पर भाजपा की सियासत में नतीजों को लेकर सबकी उन पर नजर रहेगी। भाजपा का फार्मूला हाल ही के सालों में काफी बदला हुआ रूप में सामने आया है। यानी बेहतर नतीजों पर पार्टी की ओर से शाबासी मिलना तय है, लेकिन अस्त-व्यस्त सांगठनिक ढांचा होने पर पटेल को पार्टी नेतृत्व को जवाब भी देना होगा। पार्टी के जानकारों का कहना है कि पटेल की कार्यप्रणाली वैसे तो एक मोर्चे में सभी को तैनात करने का रहा है।  

सत्ता से बेदखल होने के बाद भाजपा की स्थिति स्थानीय राजनीति में काफी ढ़ीली हो गई है। आला नेताओं को किसी भी कार्यक्रम में बुलाए जाने का इंतजार रहता है। वहीं युवा भी पार्टी नेतृत्व से सम्मान को लेकर नजरें गड़ाए रहते हैं। यही कारण है कि ज्यादातर कार्यक्रम में भाजपा को गुटीय द्वंद ने कमजोर किया है। युवाओं की राजनीति का व्यापक असर आम  लोगों के दिमाग पर नहीं रहा। वहीं वरिष्ठ नेताओं ने उचित मान-सम्मान नहीं होने के कारण खुद को घरों तक सीमित कर लिया है।

पार्टी में गुटबाजी दूर करना चुनौती
 नए भाजपा अध्यक्ष पटेल के सामने गुटीय लड़ाई की शिकार पार्टी को एक स्वरूप देने की कठिन चुनौती होगी। राजनांदगांव की सियासत में भाजपा के भीतर कई नामचीन नेता हैं, जिन्हें एक करना बेहद ही चुनौतीपूर्ण कार्य है। पटेल वैसे तो संगठन में बेहतर काम करने के अनुभवी माने जाते हैं, लेकिन पार्टी के दूसरे नेता सत्ता की सियासत में माहिर रहे हैं।

यही कारण है कि सत्ता से बेदखल हुए नेताओं को संगठन में जोड़े रखना पटेल के लिए आसान नहीं होगा। पिछले चुनाव में भाजपा को अविभाजित राजनंादगांव जिले के कुल 6 में से एकमात्र राजनांदगांव विधानसभा में ही जीत से संतोष होना पड़ा था। मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी और खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले के पृथक होने के बाद जिले में 4 सीट रह गए हैं। ऐसे में चारो सीट पर जीत के लिए जमीनी स्तर पर पसीना बहाना होगा।

पार्टी के कई लोग मानते हैं कि जिलाध्यक्ष के रूप में पटेल को कड़े फैसले लेने होंगे। उन्हें खुद के फैसले को सच साबित करने की भी चुनौती होगी। ताकि पार्टी नेतृत्व को उनके अध्यक्ष बनाए जाने के सकारात्मक नतीजे सामने दिखने लगे। पटेल का कामकाज संगठन को मजबूत करने के अलावा बिखरे कार्यकर्ताओं को एक मंच में लाना का भी जिम्मा होगा। भाजपा के भीतर कार्यकर्ताओं में पिछली सरकार की नाराजगी अब तक दूर नहीं हुई है। रमन सरकार के आखिरी कार्यकाल में कार्यकर्ताओं ने पार्टी से मुंह मोड़ लिया था, जिसके चलते भाजपा का प्रदेश और स्थानीय स्तर पर सफाया हो गया था।
 


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