राजनांदगांव

राजनांदगांव, 5 अगस्त। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने बुधवार को कहा कि हम यह नहीं जानते कि हमारे भीतर कितनी शक्ति है। हम उस शक्ति को जागरूक करने की कोशिश नहीं करते। हम निर्धारित पात्र (रोल)् में ही डूबे रहते हैं। हमें उस पात्र से बाहर निकलकर जागरूक होने की जरूरत है। अगर व्यक्ति यह सोचे कि मुझे जागृत रहना है] तो वह व्यक्ति हमेशा सचेत रहता है।
स्थानीय समता भवन में संतश्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमें अपने पात्र की ही चिंता रहती है। हर व्यक्ति अपने रोल में इतना डूब जाता है कि वह अपने पात्र से बाहर निकलना ही नहीं चाहता। उन्होंने कहा कि हमें प्रसन्न करना है तो किसे प्रसन्न करें! उन्होंने कहा कि हमें तीर्थंकर भगवान को प्रसन्न करना चाहिए। हमारे भीतर इतनी समर्पण की भावना आनी चाहिए। प्रत्येक कार्य की शुरुआत में व्यक्ति में उत्साह रहता है] किंतु उसके बाद वह उत्साह खत्म हो जाता है। उन्होंने कहा कि यह उत्साह दीर्घकाल तक रहना चाहिए और निरंतर रहना चाहिए।
संतश्री ने कहा कि यदि किसी कार्य में लगन हो तो यह उत्साह दीर्घकाल तक बना रहता है और निरंतर रहता है । बशर्ते कि उस कार्य का निश्चय होना चाहिए। व्यक्ति को जीवन के प्रति आशान्वित रहना चाहिए। हमारे भीतर की शक्ति को जागृत करने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहिए। व्यक्ति को किसी कार्य को पूरा करने की इच्छा होनी चाहिए। संत श्री ने कहाा कि हमारी प्रार्थना तब पूरी होती है, जब हमें प्रार्थना करने में आनंद आने लगे। किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए उसका दीर्घकाल उत्साह, निश्चय और उस कार्य के प्रति लगन व श्रद्धा आवश्यक है। यह जानकारी विमल हाजरा ने दी।