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बार-बार भीड़ के निशाने पर क्यों आ जाती है बिहार पुलिस
16-Apr-2021 9:56 PM
बार-बार भीड़ के निशाने पर क्यों आ जाती है बिहार पुलिस

सदैव आपकी सुरक्षा में तत्पर का दावा करने वाली बिहार पुलिस पर पब्लिक के हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. मॉब लिंचिंग की इन घटनाओं से पुलिस का इकबाल कमजोर तो होता ही है, आम आदमी का भरोसा भी कमतर होता जाता है.

 डॉयचे वैले पर मनीष कुमार की रिपोर्ट-

हाल के दिनों में ऐसी घटनाओं में खासा इजाफा हुआ है. मामला चाहे वारंटी को गिरफ्तार करने का हो या अतिक्रमण हटाने का हो या फिर शराब के धंधेबाजों को पकड़ने का, पुलिस को लोगों का कोपभाजन बनना पड़ता है. कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिनमें ना सिर्फ पुलिसकर्मी घायल हुए और उनके वाहन क्षतिग्रस्त हुए बल्कि उनकी जान तक चली गई.

जनवरी महीने में बिहार में पश्चिम चंपारण के रामनगर थाना क्षेत्र के मधुबनी गांव में शराब के धंधेबाजों को पकड़ने गई पुलिस पर ईंट-पत्थरों से हमला किया गया. कई पुलिसकर्मी घायल हो गए, उन्हें अपनी गाड़ी तक छोड़कर भागना पड़ गया. पश्चिम चंपारण जिले के मझौलिया में शराब तस्करों को पकड़ने गई पुलिस पर महिलाओं ने हमला कर दिया. कई घायल हुए और पुलिस की दो गाड़ियां भीड़ की भेंट चढ़ गईं.

इसी तरह, सीतामढ़ी जिले के मेजरगंज थाना क्षेत्र में शराब की खेप आने की सूचना पर पहुंचे दारोगा दिनेश राम की गोली मारकर हत्या कर दी गई. मधुबनी के पंडौल थाना क्षेत्र में अतिक्रमित जमीन को खाली कराने गई पुलिस पर अतिक्रमणकारियों ने जमकर पथराव किया. स्थिति बिगड़ती देख पुलिस को आंसू गैस के गोले तक छोड़ने पड़े. इसी तरह मधुबनी जिले के एक गांव में छेड़खानी के आरोप में पकड़ कर पीटे जा रहे युवक को उग्र लोगों के कब्जे से छुड़ाने गई पुलिस पर लोगों ने पथराव कर दिया. किसी तरह पुलिस युवक को भीड़ के चंगुल से छुड़ा सकी.

इसी तरह इस माह की दस तारीख को बाइल लुटेरे को पकड़ने गए किशनगंज टाउन थानाध्यक्ष अश्विनी कुमार को उन्मादी भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला. हालांकि यह घटना समीपवर्ती पश्चिम बंगाल के उत्तरी दिनाजपुर जिले के ग्वालपोखर थाना क्षेत्र अंतर्गत पंतापाड़ा में हुई. हद तो यह हुई कि पुलिस पर हमले के लिए मस्जिद से एलान किया गया था. गांव में चोर-डाकू घुस आने की बात कहकर भीड़ जुटाई गई. उन्मादी भीड़ ने शोर मचाते हुए पुलिस टीम पर हमला बोल दिया. भीड़ का मिजाज देख अश्विनी कुमार के साथ गए अन्य पुलिसकर्मी भाग खड़े हुए लेकिन वे भीड़ के कब्जे में आ गए. पीट-पीटकर उनकी जान ले ली गई. हालांकि इस मामले उनके साथ गए सभी पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया. लेकिन, इसका एक पहलू यह भी है अपनी जान बचाकर भागना उनकी मजबूरी थी, जैसा कि निलंबित किए इंस्पेक्टर मनीष कुमार ने कहा भी. पश्चिम बंगाल की एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस घटना का जिक्र किया.

पुलिससेसहायतादूरकीकौड़ी

ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं जो पुलिस के लिए कड़ी चुनौती हैं. लोग कानून को हाथ में लेने से डर नहीं कर रहे. कहीं न कहीं यह पुलिस-पब्लिक के बीच बिगड़ते रिश्ते का परिणाम है जो यह बताता है कि लोगों का पुलिस पर विश्वास घट रहा है. समाजशास्त्री एके वाजपेयी कहते हैं, "अगर आपका मोबाइल फोन चोरी हो जाता है तो उसके खोने का गम आपको उतना नहीं सताता है, जितना आप एफआईआर करवाने की बात सोचकर परेशान होते. आप सोचते हैं, पता नहीं पुलिसवाले उल्टे झिड़की दे दें. कमोबेश देशभर के थाने का यही हाल है. आपकी सेवा में सदैव तत्पर का नारा केवल पुलिस की गाड़ियों पर लिखने के लिए है. व्यावहारिक तौर पर काफी परेशानियां हैं जो अंतत: आम जनता में पुलिस के प्रति शत्रुता का भाव पैदा करती है."  

वहीं पत्रकार सुमित शेखर ऐसी घटनाओं की सबसे बड़ी वजह भ्रष्टाचार को मानते हैं. वह कहते हैं, ‘‘आम जनता अच्छी तरह समझ गई है कि पुलिस बिना पैसे लिए कुछ नहीं करती है. पीड़ित व्यक्ति पर उलटे कार्रवाई हो जाती है अगर दोषी पक्ष ने पैसा दे दिया हो. इसलिए हर कार्रवाई को लोग संदेह की नजर से देखते हैं. भले ही वह विधिसम्मत भी क्यों न हो.''

यह भी सही है कि राज्य में शराबबंदी लागू के होने के बाद पुलिस पर हमले में काफी इजाफा हो गया है. फल-फूल रहे शराब के अवैध कारोबार को पुलिस की शह मिली हुई है. एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी कहते हैं, ‘‘शराब का कोई धंधेबाज जब पुलिस को पैसा देता है तो इसकी एवज में चाहता है कि उसके यहां छापा नहीं पड़े, वह निर्बाध तरीके से अपना काम करे. ऐसा तो संभव नहीं है कि आप पैसा भी लें और उसे परेशान भी करें. इसलिए शराब के मामले में ऐसे हमले लगातार हो रहे हैं.''

पुलिस हिरासत में रहे एक सिंचाईकर्मी संजय की मौत पर भागलपुर जिले के गोपालपुर विधानसभा क्षेत्र से जदयू विधायक नरेंद्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल तो यहां तक कहते हैं, ‘‘नीतीश कुमार ने भले ही शराबबंदी कानून लागू कर दिया लेकिन मैं दावे से कहता हूं कि कोई भी पुलिस पदाधिकारी ऐसा नहीं है जो शराब नहीं पीता है. शराब पीकर ही पुलिसवालों ने उसे बेरहमी से मारा, जिससे उसकी मौत हो गई.'' ऐसी घटनाएं आम लोगों में पुलिस के साख को कमजोर ही करती हैं और यही आक्रोश की उपज का कारण बनती हैं.

संवादहीनताभीहमलेकाबड़ाकारण

बिहार के वर्तमान पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) एसके सिंघल से पूर्व राज्य पुलिस के मुखिया रहे गुप्तेश्वर पांडेय साफ कहते हैं, ‘‘पुलिस पर हमले का मतलब कहीं ना कहीं कम्युनिकेशन गैप है. पुलिस पर विश्वास का अभाव है. आम जनता को यह समझना चाहिए कि पुलिस हमारे हित के लिए है, हमारी मदद के लिए है और हमारी सेवा के लिए है. यह भरोसा रहेगा तो पुलिस पर हमला नहीं होगा.''

पूर्व डीजीपी पांडेय कहते हैं, ‘‘पुलिस को इस रूप में प्रशिक्षित करना होगा कि तुम शासन करने के लिए नहीं हो, जनता की सेवा करने के लिए हो, उनके मालिक नहीं हो. अगर ऐसा होगा, तब धीरे-धीरे पुलिस की नई सकारात्मक छवि बनेगी.'' वहीं बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार सिंह कहते हैं, ‘‘सच है कि पुलिस के प्रति लोगों की धारणा बदली है. इसके लिए दोनों ही उत्तरदायी हैं. लोगों को जागरूक किया जाए, उन्हें कानून की जानकारी दी जाए. पुलिस को भी समझना होगा कि हम जनता के लिए हैं और जनता को भी यह समझना होगा कि पुलिस हमारे लिए है, तभी स्थिति सुधर सकेगी.''

नीतीश कुमार के मुख्यमंत्रित्व काल के शुरुआती दिनों में पूर्व डीजीपी अभयानंद को स्पीडी ट्रायल चलाकर भारी संख्या में अपराधियों को सलाखों के पीछे भेज कानून व्यवस्था की स्थिति में व्यापक सुधार करने का श्रेय दिया जाता है. वह कहते हैं, ‘‘जैसे एक अपराधी पकड़ा जाता है और रात में पुलिस उसे उठाकर ले जाती है तो आज उसके परिवार या समाज को संशय रहता है कि पता नहीं जिंदा लौटेगा या नहीं. इसी तरह अगर किसी मामला विशेष में वांछित कोई पकड़ाता है तो उसे भी यह संशय रहता है कि उस पर कहीं और पांच केस न लाद दिया जाए. देखिए, पुलिस अगर लीगल प्रोसेस से अपना काम करेगी तो ऐसा कतई नहीं होगा. हर हाल में आपसी भरोसे का होना जरूरी है.'' (dw.com)

 


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