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मंगल ग्रह पर पहुंचा रोवर क्या करने गया है
18-Feb-2021 8:08 PM
मंगल ग्रह पर पहुंचा रोवर क्या करने गया है

अरबों डॉलर के खर्च और कई सालों की मेहनत के बाद अंतरिक्ष में सात महीने चलने वाला एक मिशन यह पता करने के लिए गया है कि क्या मंगल ग्रह पर कभी कोई जीवन था.

        (dw.com)

लाल ग्रह की धरती पर गुरुवार को उतरने की कोशिश कर रहा परसिवरेंस रोवर मंगल पर अतिसूक्ष्म जीवों के अवशेष की तलाश करेगा. इन जीवों का अस्तिव मंगल पर करोड़ों साल पहले रहा हो, ऐसी उम्मीद जताई जा रही है. वैज्ञानिकों का मानना है कि करोड़ों साल पहले मंगल की सतह की स्थिति आज की तुलना में गर्म और गीली रही होगी.

अगले कई सालों तक चलने वाले अभियान में वैज्ञानिक 30 चट्टानों और मिट्टी के नमूने बंद ट्यूबों में पृथ्वी पर लाएंगे जिन्हें 2030 तक यहां की प्रयोगशालाओं में परखा जाएगा. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर थॉमस त्सुरबुखेन का कहना है, "निश्चित रूप से यह उस सवाल का जवाब पाने की कोशिशों में एक अहम कदम है जो हमारे साथ कई सदियों से बना हुआ है: क्या इस ब्रह्मांड में हम अकेले हैं?”

सबसे बड़ा सबसे उन्नत रोवर

नासा के इस अभियान पर करीब 3 अरब डॉलर खर्च हो रहे हैं. मंगल ग्रह पर अब तक जितने रोवर भेजे गए हैं, परसिवरेंस उनमें सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा उन्नत है. स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल जितना बड़ा यह रोवर करीब एक टन वजनी है. इसमें सात फीट लंबी रोबोटिक बांहें लगी हुई हैं और कुल 19 कैमरों के साथ ही दो माइक्रोफोन भी मौजूद हैं. इसके साथ ही कई बेहत उन्नत उपकरण भी इस रोवर में हैं जो वैज्ञानिकों की इच्छा पूरी करने में मदद करेंगे.

अपने खोजी अभियान को पूरा करने से पहले इसे सात मिनट के एक बेहद जोखिम भरे रास्ते से गुजरना होगा. ये वे सात मिनट हैं जिनमें इसकी लैंडिंग मंगल ग्रह की सतह पर होगी. यह रास्ता और प्रक्रिया इतनी ज्यादा जोखिम वाली है कि अब तक महज आधे मिशन ही सफलता से मंगल ग्रह की जमीन तक पहुंच सके हैं.

गुरुवार को जीएमटी के हिसाब से शाम 8 बज कर 30 मिनट के कुछ ही पलों बाद अंतरिक्षयान मंगल ग्रह के वातावरण में 20,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दाखिल होगा. इस दौरान इस गर्मी से बचाने वाले कवच से सुरक्षा मिलेगी. इसके बाद यह एक छोटे से लीग के मैदान के आकार वाले सुपरसोनिक पैराशूट को काम पर तैनात करेगा. और तब आठ इंजन वाला जेट अपनी रफ्तार धीमी करता जाएगा जिसके बाद यह रोवर धीरे धीरे रस्सियों के सहारे जमीन पर उतारेगा.

जजेरो क्रेटर पर उतरेगा रोवर

इसे जजेरो क्रेटर पर उतारा जाना है जो बेहत उबड़ खाबड़ है लेकिन परसिवरेंस अपने नए उपकरणों की बदौलत दूसरे रोवरों की तुलना में ज्यादा सटीकता से उतरने में सक्षम है. इस वजह से बेहतर नतीजों की उम्मीद की जा रही है. 

वैज्ञानिक मानते हैं कि करीब 3.5 अरब साल पहले क्रेटर में एक नदी बहती थी जो आगे जा कर झील से मिल जाती थी और इस तरह से एक डेल्टा का क्षेत्र बना. मिशन के डेपुटी प्रोजेक्ट साइंटिस्ट केन विल्फोर्ड का कहना है, "हमारे पास इस बात के पक्के सबूत हैं कि मंगल ग्रह पर सुदूर अतीत में जीवों का वास था.” इससे पहले के अभियानों का लक्ष्य यह पता लगाना था कि मंगल ग्रह कभी जीवन के अनुकूल था या नहीं लेकिन परसिवरेंस यह पता लगाने गया है कि मंगल ग्रह पर जीवन था या नहीं.

इसी साल यह अपनी पहली खुदाई शुरू करेगा. इंजीनियरों ने इसे पहले समतल डेल्टा के इलाके में भेजने की योजना बनाई है. इसके बाद यह प्राचीन झील के किनारों पर जाएगा और आखिर में क्रेटर के किनारों पर.

परसिवरेंस की गति 0.1 मील प्रति घंटा है जो धरती पर चलने वाली गाड़ियों की तुलना में बहुत कम है लेकिन यह अपने पूर्ववर्ती रोवरों की तुलना में काफी तेज है. इस गति से चलने के दौरान ही यह नए उपकरणों की सहायता से कार्बनिक पदार्थों की खोज करेगा, रासायनिक घटकों का खाका तैयार करेगा और लेजर के जरिए चट्टानों को जलाएगा ताकि उनसे बनी भाप का विश्लेषण किया जा सके.

अंतरिक्ष जीवविज्ञानी इस अभियान का ख्वाब कई दशकों से देख रहे थे. शानदार तकनीक के बावजूद नमूनों को पृथ्वी पर वापस लाना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि नमूनों में फेरबदल होने की आशंका है. उदाहरण के लिए प्राचीन सूक्ष्मजीवों के जीवाश्म अवक्षेपण के कारण पैदा होने वाले पैटर्न जैसे भी दिख सकते हैं.

कई और प्रयोग करेगा रोवर

असल अभियान शुरु करने के पहले नासा कई और लुभावने प्रयोग करने वाला है. रोवर में एक छोटा सा हैलीकॉप्टर ड्रोन भी रखा गया है जो मंगल पर पहली बार हैलीकॉप्टर उड़ाने की कोशिश के लिए है. इस हैलीकॉप्टर को ऐसे वातावरण में उड़ानें भरने की कोशिश करनी है जिसका घनत्व पृथ्वी की तलना में महज एक फीसदी है. इसकी कामयाबी दूसरे ग्रहों पर की जाने वाली खोज में नई क्रांति लाएगी.

इसके अलावा रोवर में एक और उपकरण है जो मंगल ग्रह पर मौजूद प्राथमिक कार्बन डाइ ऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदल सकता है. ठीक वैसे ही जैसे पृथ्वी पर पेड़ पौधे करते हैं. इसके पीछे विचार यह है कि भविष्य में मंगल ग्रह पर जाने वाले इंसानों के लिए धरती से

ऑक्सीजन लेकर जाने की जरूरत नहीं रहेगी. रोवर पर लगे माइक्रोफोन मंगल ग्रह पर मौजूद आवाजों को रिकॉर्ड करने की कोशिश करेंगे जो अब तक के रोवर नहीं कर सकेंगे.

परसिवरेंस अब तक का सिर्फ पांचवा ऐसा रोवर है जो मंगल पर उतरेगा. 1997 में पहली बार यह काम हुआ था और अब तक के सारे रोवर अमेरिका ने भेजे हैं. हालांकि यह स्थिति जल्दी ही बदल सकती है. चीन ने एक अंतरिक्षयान मंगल ग्रह की ओर भेजा है, जो पिछले हफ्ते मंगल की कक्षा में पहुंचा. यह यान मंगल पर एक स्थिर रोबोट और एक रोवर मई में उतारेगा.

एनआर/आईबी (एएफपी, एपी)

 


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