राष्ट्रीय

TWITTER/HIMANTABISWA
-प्रवीण शर्मा
असम में विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही राज्य बीजेपी के बड़े नेता और कद्दावर मंत्री हिमंत बिस्व सरमा काफी आक्रामक नज़र आ रहे हैं.
रविवार को सरमा ने ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के अध्यक्ष और असम की धुबरी सीट से सांसद बदरुद्दीन अजमल पर निशाना साधा है. उन्होंने अजमल को असम का दुश्मन बताया है.
सरमा ने कहा है, "बदरुद्दीन अजमल असम की राजनीति के सबसे ख़तरनाक दौर का प्रतिनिधित्व करते हैं. वे समाज सेवा के नाम पर कट्टरपंथी संगठनों से पैसा ला रहे हैं. वे एक ऐसा नेटवर्क तैयार कर रहे हैं जो असम की संस्कृति के लिए उपयुक्त नहीं है. वे हमारे दुश्मन हैं."
बाबर का शासन
कुछ वक्त पहले हिमंत बिस्व सरमा कह चुके हैं कि विपक्षी पार्टियां राज्य में बाबर का शासन लाना चाहती हैं. असम में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और फिलहाल राज्य में बीजेपी की सरकार है.
बदरुद्दीन अजमल की पार्टी का कांग्रेस के साथ असम के चुनावों को लेकर समझौता हो गया है. पिछले कुछ वक्त में बीजेपी और ख़ासतौर पर हिमंत बिस्व सरमा ने एआईयूडीएफ और बदरुद्दीन अजमल पर लगातार कड़े हमले किए हैं.
क्या इसकी वजह यह है कि बीजेपी को लग रहा है कि कांग्रेस और एआईयूडीएफ का गठबंधन उसके लिए एक मुश्किल साबित हो सकता है या पार्टी इन चुनावों को ध्रुवीकरण के जरिए जीतना चाहती है और इसीलिए इस तरह के बयान दिए जा रहे हैं.
TWITTER/HIMANTABISWA
कांग्रेस का गठबंधन और सीटों का गणित
असम विधानसभा में 126 सीटें हैं. असम की सत्ता से बीजेपी को हटाने के लिए कांग्रेस ने एआईयूडीएफ, भाकपा, माकपा, भाकपा (माले) और आंचलिक गण मोर्चा के साथ गठबंधन किया है.
2016 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 89 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 60 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.
कांग्रेस ने 122 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 26 सीटें जीती थीं, दूसरी ओर, एजीपी 30 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 14 पर जीत हासिल की थी.
बदरुद्दीन अजमल ने इन चुनावों में 74 सीटों पर चुनाव लड़ा और 13 सीटें जीतीं. दूसरी ओर, सीपीएम और सीपीआई (एमएल) को एक भी जीत पर जीत हासिल नहीं हुई थी.
ध्रुवीकरण की राजनीति
अजमल की पार्टी का जनाधार मुस्लिम बहुल इलाकों में है और पार्टी के ज़्यादातर विधायक इन्हीं सीटों से जीतकर आए हैं.
सरमा ने ये भी कहा कि जो लोग उन्हें राजनीति में अति ध्रुवीकरण करने वाला कहते हैं तो उन्हें इससे कोई दिक्कत नहीं है, बल्कि वे इससे खुश हैं.
उन्होंने कहा है, "मैं इस धरती पर भारतीय और असमिया संस्कृति की रक्षा करने के लिए अतिवादी है. मैं भारतीय राष्ट्रवाद को बचाने की कोशिश कर रहा हूं."
इससे पहले जनवरी में हिमंत बिस्व सरमा ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस के महागठबंधन और नई बनी क्षेत्रीय पार्टियों समेत समूचा विपक्ष राज्य में "बाबर का शासन" लाना चाहता है.
एआईयूडीएफ के विधायक हाफ़िज़ बशीर अहमद बताते हैं कि हिमंत बिस्व सरमा के बयानों और आरोपों में कोई दम नहीं है.
वे कहते हैं, "हिमंत बिस्व सरमा के बयान पूरी तरह से राजनीतिक हैं. बीजेपी की पूरी कोशिश इन चुनावों को हिंदू-मुसलमान के आधार पर ध्रुवीकृत करने की है."
हाफ़िज़ कहते हैं कि असम में 1.09 करोड़ मुसलमान हैं जिनमें से 46 लाख असमिया मुसलमान हैं. बीजेपी इन सभी को विदेशी बताती है और इन्हें हिंदुओं के ख़िलाफ़ बताती है. शुरुआत में इन बातों पर लोगों को थोड़ा आकर्षण था, लेकिन अब लोग इन बातों को महत्व नहीं देते हैं.
बदरुद्दीन अजमल के विदेश से सामाजिक कामों के नाम पर कट्टरपंथी संगठनों से फंडिंग लाने के हिमंत बिस्व सरमा के आरोपों पर हाफ़िज़ कहते हैं कि जब पहले ये आरोप लगाए गए थे तभी बदरुद्दीन अजमल ने इन्हें चुनौती दी थी वे इन आरोपों को साबित करें. लेकिन, ऐसा कुछ नहीं हुआ.
वे कहते हैं, "बाहर से होने वाली कोई भी फंडिंग गृह मंत्रालय की नजर में रहती है. इन फंडिंग के लिए एफसीआरए से मंजूरी लेनी होती है. अभी तक वे इसे साबित नहीं कर पाए हैं."
ध्रुवीकरण की कोशिशों पर हाफ़िज़ कहते हैं, "हमारा असेसमेंट है कि हमें पब्लिक का बड़ा समर्थन है. लोग चाहते हैं कि सेकुलर ताकतें एक साथ आएं और इसी के चलते कांग्रेस के साथ हमारा गठबंधन हुआ है."
एनआरसी और सीएए के मसले पर हाफ़िज़ कहते हैं, "विदेशी लोगों की समस्या को हल करने की लंबे वक्त से मांग थी. असम एकॉर्ड में भी मांग की गई थी कि एक सही एनआरसी आए और इस मसले को स्थायी तौर पर हल किया जाए. यह पूरा काम सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुआ है और राज्य सरकार का इसमें कोई दखल नहीं है.
हम मानते हैं कि इसी बुनियाद पर राज्य की समस्या को हल किया जा सकता है. लेकिन, बीजेपी जिस तरह से पूरे देश में लागू करना चाहती है और यहां इसमें देरी कर रही है, और जो उनके जो रिफ्यूजी हैं करोड़ों की संख्या में, ये उन लोगों को वोट बैंक बनाने के लिए किया जा रहा है."
TWIITER/HIMANTABISWA
खुद को राष्ट्रवादी साबित करने की कोशिश
हिमंत बिस्व सरमा पारंपरिक तौर पर बीजेपी या आरएसएस के आदमी नहीं हैं वे पहले स्टूडेंट लीडर थे और बाद में कांग्रेस के बड़े नेता रहे और लंबे वक्त तक कांग्रेस की सरकार में मंत्री रहे.
जानकार कहते हैं कि हेमंत बिस्व सरमा पर एक दबाव बीजेपी में खुद को साबित करने का भी है.
वरिष्ठ पत्रकार नवा ठकुरिया कहते हैं कि वे बीजेपी में 5-6 साल पहले ही आए हैं और वे खुद को बीजेपी का ज्यादा वफ़ादार और राष्ट्रवादी साबित करना चाहते हैं. शायद इस वजह से भी हिमंत बिस्व सरमा ज्यादा आक्रामक रूप से बोलते हैं.
वे कहते हैं, "असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल एक लो-प्रोफाइल शख्स हैं. सोनोवाल अभी भी आक्रामक तरीके से बात नहीं करते हैं."
ठकुरिया मानते हैं कि अभी भी सर्वानंद सोनोवाल पीएम नरेंद्र मोदी के पसंदीदा हैं.
लेकिन, हिमंत बिस्व सरमा की ताकत असम सरकार में बहुत ज्यादा है. मुख्यमंत्री सोनोवाल के पास दो-तीन विभाग हैं, जबकि सरमा के पास एजूकेशन, वित्त, हेल्थ, पीडब्ल्यू जैसे विभाग हैं और इस लिहाज से उनका कद बहुत बड़ा है. इसके अलावा, हिमंत को असम की गहराई से जानकारी है और वे फुल-टाइम राजनेता हैं.
ठकुरिया कहते हैं, "हिमंत ने काम भी काफी किए हैं और उनकी विज़िबिलिटी भी बहुत ज़्यादा है. इन वजहों से भी वे बीजेपी की जीत के लिए जोर लगा रहे हैं."
TWIITER/HIMANTABISWA
मुस्लिम वोटों का विभाजन
बीजेपी असम में दोतरफ़ा रणनीति पर काम कर रही है. एक तो पार्टी असम में हिंदुओं को एकजुट करने पर पिछले 5-6 वर्षों से काम कर रही है. दूसरी ओर, पार्टी मुसलमान वोटों में विभाजन पैदा करना चाहती है.
हिमंत बिस्व सरमा इसीलिए "विपक्ष राज्य में बाबर का शासन लाना चाहता है" जैसे आरोप लगाकर बांग्लादेशी मुसलमानों को टारगेट करना चाहते हैं. घरेलू और बाहरी के नाम पर मुसलमानों को बांटने की बीजेपी की रणनीति है.
ठकुरिया कहते हैं, "असमिया मुसलमानों को बीजेपी अपने साथ जोड़ना चाहती है. ये तबका कुछ हद तक बीजेपी को वोट भी देता है."
ठकुरिया कहते हैं कि दूसरी ओर, एआईयूडीएफ का जन्म मुस्लिमों और खासतौर पर बांग्लादेशी मुसलमानों की मदद के लिए हुआ था. पार्टी का कोर वोट बैंक भी मुस्लिम ही हैं. साथ ही कांग्रेस भी मुस्लिम वोटों पर ही फोकस कर रही है. एआईयूडीएफ और कांग्रेस दोनों ही मुस्लिम वोटों का विभाजन नहीं होने देना चाहती हैं.
साथ ही अगर असदुद्दीन ओवैसी असम के चुनावों में कूदने का ऐलान कर देते हैं तो ये भी बीजेपी के लिए मददगार साबित हो सकता है. बिहार में ओवैसी का नुकसान आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन को उठाना पड़ा है.
ठकुरिया कहते हैं कि बीजेपी ने बोडो, असम के मूल लोगों, नेपाली हिंदुओं जो कि खासी संख्या में असम में बसे हुए हैं, बाहर से बसे हिंदुओं और दूसरे इलाकों के लोगों को भारतीय और हिंदू की पहचान से एकजुट करने की जबरदस्त कोशिशें पिछले कुछ वक्त में की हैं और पार्टी काफी हद तक वह इसमें सफल भी रही है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में 27 जनवरी, 2020 को दशकों पुरानी बोडो समस्या के समाधान के लिये एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. इस समझौते के तहत अलग बोडोलैंड की मांग को खत्म कर स्वायत्त बोडोलैंड को माना गया है.
इसकी एक वजह यह भी है कि बीजेपी बोडो लोगों को भारतीय और हिंदू के नाम पर एकजुट कर पाने में कामयाब रही है. (bbc.com)