राष्ट्रीय

-अरविंद छाबड़ा
बीते नौ फ़रवरी को बीजेपी के पंजाब प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा स्थानीय कार्यकर्ताओं से मिलने फ़िरोज़पुर पहुंचे. वहां कोई अप्रिय स्थिति नहीं बने इसके लिए स्थानीय पुलिस को तैनात किया गया था. इसके बावजूद प्रदर्शन करने वालों ने अश्विनी शर्मा के ख़िलाफ़ नारे लगाए.
शर्मा अपनी कार में बैठकर जब जाने लगे थे कि अज्ञात प्रदर्शनकारियों ने उनकी कार पर हमला कर दिया. शर्मा वहां से सुरक्षित निकलने में कामयाब ज़रूर हुए लेकिन उनकी कार को नुक़सान हुआ. शर्मा को फ़ज़िल्का ज़िले के अबोहर शहर में भी ऐसे ही विरोध का सामना करना पड़ा.
इससे पहले आठ फ़रवरी को पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता विजय संपाला अपने पार्टी उम्मीदवारों का प्रचार करने के अभियान पर निकले थे. प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने उनकी कार रोककर नारेबाज़ी शुरू कर दी. पुलिस ने बीच बचाव करके उन्हें शहर से बाहर निकाला. इससे उनका प्रचार अभियान बाधित हुआ.
नवां शहर में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा की एक सभा होनी थी. लेकिन सभा शुरू होने से पहले वहां विरोध करने वाले लोग जमा हुए हैं. पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन विरोध प्रदर्शन करने वालों ने सभा स्थल तक जाने की सड़क को बंद कर दिया. आख़िर में अश्विनी शर्मा को अपनी सभा स्थगित करनी पड़ी.
भटिंडा में बीजेपी उम्मीदवार जतिन कुमार साहिल और मोहन वर्मा के पोस्टर, बैनर इत्यादि को लोगों ने काले रंग से पोत दिया था. दोनों इसके ख़िलाफ़ पुलिस के पास अपनी शिकायत लेकर भी गए. पंजाब में स्थानीय निकाय चुनावों में अब बहुत दिन नहीं रह गए हैं.
वहीं दूसरी ओर बीजेपी नेताओं को राज्य भर में विरोध -प्रदर्शन का सामना करना पड़ रहा है. पार्टी नेता या तो अपने घरों के अंदर रहने को विवश हैं या फिर वे अपने अभियान को गुपचुप ढंग से चलाने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि उनका विरोध प्रदर्शन करने वाले लोग हर जगह पहुँच जा रहे हैं.
पंजाब में बीजेपी के पोस्टर पर पोती गई कालिख
दरअसल, केंद्र सरकार ने पिछले साल जून में तीन कृषि क़ानून का प्रस्ताव अध्यादेश के तौर पर लाया और तब से पंजाब में बीजेपी नेताओं को ऐसे ही विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ रहा है.
सरकार ने इन अध्यादेशों को सितंबर में क़ानून के तौर पर पारित करा लिया और इसके बाद दिल्ली में किसानों का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ. वहीं, दूसरी ओर पंजाब में बीजेपी नेताओं के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू हुए. राज्य में 14 फ़रवरी को स्थानीय निकाय के चुनाव होने हैं, ऐसे में आख़िरी दौर के प्रचार में भी वे चाहकर पूरी ताक़त नहीं झोंक पा रहे हैं.
चुनाव की अहमियत
इन चुनावों में आठ नगर निगमों और 109 नगरपालिका और नगर पंचायतों के चुनाव और उपचुनाव होने हैं. पंजाब में किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद ये किसी भी स्तर के चुनाव का पहला मौक़ा है और इसे राज्य में सक्रिय सभी राजनीतिक दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इन चुनावों के बाद अगले साल की शुरुआत में ही राज्य विधानसभा के चुनाव होने हैं. मौजूदा समय में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की सरकार है.
2015 में अकाली दल और बीजेपी का गठबंधन सत्ता में था, तब स्थानीय निकाय चुनावों में गठबंधन को ही जीत हासिल हुई थी. इस बार अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी अकेले चुनाव मैदान में है. पहले तो बीजेपी कई जगहों पर उम्मीदवार तलाशने में भी मुश्किल हुई है. करीब 2300 वॉर्ड में पार्टी 670 वॉर्डों में अपने उम्मीदवार खड़े कर सकी और इन उम्मीदवारों को अपना प्रचार करने में भी काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.
बीजेपी नेताओं की कार को घेरते प्रदर्शनकारी
हालांकि, दिलचस्प यह है कि बीजेपी के अलावा दूसरी पार्टी के लोगों ने भी विरोध प्रदर्शन की शिकायतें की हैं. नौ फरवरी को शिरोमणि अकाली दल के एक प्रतिनिधिमंडल ने पंजाब के राज्यपाल से मुलाक़ात की.
इस प्रतिनिधिमंडल ने अपने कई नेताओं पर कथित हमले की शिकायत राज्यपाल से की. साथ ही उनसे अनुरोध किया कि वे राज्य सरकार से "कांग्रेसी गुंडों पर लगाम लगाने का आदेश दें, क्योंकि भिखीविंड सहित कई जगहों पर जगहों पर सशस्त्र लोगों ने पुलिस की मौजूदगी में अकाली दल के नेताओं पर हमले किए हैं." इस प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल को यह भी बताया कि कई जगहों पर अकाली समर्थकों की गाड़ियों को भी नुक़सान पहुंचाया गया है.
शिरोमणि अकाली दल नेता दलजीत सिंह चीमा ने बीबीसी पंजाबी को बताया, "हमारा विरोध कोई किसान यूनियन नहीं कर रही है. हमें कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की हिंसा का सामना करना पड़ रहा है. कुछ जगहों पर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने हमारे उम्मीदवारों को नामांकन भरने से भी रोका है जबकि कुछ जगहों पर हमारे कार्यकर्ताओं के साथ हिंसा की है."
पोस्टर पर पुती कालिख
विपक्षी पार्टी के आरोपों को बहुत ज्यादा महत्व नहीं देते हुए राज्य के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा है, "तथाकथित शहरी पार्टी निकाय चुनावों में आधे से ज़्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े नहीं कर पा रही है. कल्पना कीजिए की ग्रामीण पंजाब में इनकी क्या स्थिति होगी. आप सड़कों पर क्या देख रहे हैं. जिसे ये लोग कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का काम बता रहे हैं वह आम किसानों का ग़ुस्सा है. यह ग़ुस्सा उनके किसान विरोधी अहंकारी रवैए के ख़िलाफ़ है."
किसानों की राय
किसान यूनियनों की ओर से स्पष्टता से कहा जा रहा है कि वे लोग केवल बीजेपी का विरोध कर रहे हैं. किसान नेता सुखदेव सिंह कोकरी ने कहा, "कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन के सिलसिले में हमलोगों ने बीजेपी के मुख्य नेताओं का भी विरोध करने का फ़ैसला किया था. हमलोग ना तो किसी पार्टी के इर्दगिर्द घूम रहे हैं और ना ही किसी पार्टी का समर्थन कर रहे हैं. लेकिन हमलोग केवल बीजेपी का विरोध कर रहे हैं."
किसानों के किसी तरह की तोड़फोड़ में शामिल होने के सवाल पर किसान नेता ने दावा किया कि किसान केवल शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहा है. उन्होंने कहा, "किसानों को स्पष्ट निर्देश है. बड़ी संख्या में प्रदर्शन करें लेकिन इस दौरान किसी नेता पर कोई हमला ना करें, ना ही किसी तरह की तोड़फोड़ करें."
इमेज स्रोत,BJP
पंजाब में बीजेपी नेताओं को हर दिन विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ रहा है लेकिन इसका दोष सीधे तौर पर किसानों पर थोपने से बच रही है. अपने ऊपर हुए हमले और विरोध प्रदर्शन के लिए कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को ज़िम्मेदार ठहराते हुए बीजेपी के पंजाब प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने बताया, "किसान कहीं भी संलिप्त नहीं हैं. राज्य सरकार की ओर से प्रायोजित लोग गड़बड़ियां कर रहे हैं. पुलिस पूरी तरह से राज्य सरकार से मिली हुई है और क़ानून व्यवस्था बनाए रखने के बजाए मूकदर्शक बनी हुई है."
बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे मनोरंजन कालिया ने बीबीसी पंजाबी से कहा, "विरोध प्रदर्शन को देखते हुए हम लोगों ने चुनाव अभियान के तरीके को लो प्रोफाइल कर लिया. बाहर निकलकर अभियान करने के बजाय हम लोगों से उनके घरों में मिलने जाने लगे. खुली जगह पर सभा करने से विरोध प्रदर्शन करने वाले जमा हो जाते और हमने उनके साथ किसी तरह का विवाद से बचने का रास्ता चुना."
पोस्टर पर पुती कालिख
इमेज स्रोत,BJP
हालांकि कई उम्मीदवार मानते हैं कि आक्रामक विरोध प्रदर्शन के चलते उनका चुनावी अभियान प्रभावित हो रहा है और इसका असर नतीजे पर भी पड़ सकता है.
हालांकि वरिष्ठ नेता विजय संपाला ने उम्मीद जताई है कि पार्टी जल्दी ही इस दौर से उबर आएगी. उन्होंने बीबीसी पंजाबी से कहा, "यह पार्टी के लिए एसिड टेस्ट जैसा है. लेकिन हमने 1980 और 90 के शुरुआती दौर में भी काफ़ी मुश्किलें देखी थीं. पार्टी इससे उबर आएगी."
विजय संपाला ने इन विरोध प्रदर्शनों के लिए कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को ज़िम्मेदार ठहराया. हालांकि पार्टी ने अब तक पुलिस या चुनाव आयोग से कोई शिकायत क्यों नहीं दी है, इस सवाल के जवाब में संपाला ने कहा, "पार्टी की ओर से लोग राज्य निर्वाचन आयोग में जाकर मिले थे लेकिन अभी तक कुछ नहीं किया गया है. पुलिस से शिकायत का क्या मतलब जब पुलिस सत्तारूढ़ दल के अधीन काम कर रही है."
किसका राजनीतिक फ़ायदा?
किसान खुले तौर पर बीजेपी की आलोचना कर रहे हैं, लेकिन वे खुले तौर पर किसी भी दूसरी पार्टी के समर्थन की बात नहीं कर रहे हैं. ऐसे में सवाल यही है कि किस पार्टी को फ़ायदा होगा?
पंजाब यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर आशुतोष कहते हैं, "मेरे ख्याल से ज्यादातर नतीजे कांग्रेस पार्टी के पक्ष में होंगे क्योंकि निकाय चुनावों में लोग आम तौर पर उस पार्टी को वोट देते हैं जिसकी सरकार होती है. इन चुनावों का अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों पर कोई असर नहीं होगा. अगर कांग्रेस बुरी तरह हारती है तो यह उसकी पकड़ खोने का स्पष्ट संकेत होगा. अगर जीतती है तो यह सामान्य बात होगी."
किसानों की ओर से किसी भी पार्टी को समर्थन नहीं करने की बात को आशुतोष महत्वपूर्ण मानते हैं. उनके मुताबिक राज्य में पिछले कुछ सालों में अकाली दल की स्थिति ख़राब हुई है, लिहाजा निकाय चुनाव के नतीजे दिलचस्प होंगे.
पंजाब यूनिवर्सिटी में ही राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर खालिद मोहम्मद बताते हैं, "अगर निकाय चुनावों में आम आदमी पार्टी ने अपनी थोड़ी बहुत मौजूदगी दिखायी तो यह उसके रेस में बने रहने का संकेतक होगा.
हालांकि प्रोफेसर खालिद मोहम्मद निकाय चुनावों के आने वाले विधानसभा चुनाव पर कोई असर नहीं होने की प्रोफेसर आशुतोष के तर्क से सहमत नहीं हैं. प्रोफेसर मोहम्मद कहते हैं, "चुनाव जीतने वालों को आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ता मिलेंगे. पार्टी लोगों से कह पाएगी कि उन्हें निकाय चुनावों में जीत मिली है और स्थितियां उनके पक्ष में है." (bbc.com)