राष्ट्रीय

मनोज पाठक
पटना, 4 फरवरी | बिहार में मंत्रियों, जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर अमर्यादित टिप्पणी करने पर कानूनी कार्रवाई के सरकारी फरमान के बाद पुलिस द्वारा जारी ताजा आदेश को लेकर सियासत थमने का नाम नहीं ले रही है। पुलिस ने हालांकि इस पर सफाई देते हुए कहा कि इसकी गलत व्याख्या की जा रही है। इधर, विपक्ष इस पर लगातार सवाल उठा रहा है।
बिहार पुलिस महानिदेशक एस के सिंघल ने एक फरवरी को अपने एक आदेश में कहा, यदि कोई व्यक्ति किसी विधि व्यवस्था की स्थिति, विरोध प्रदर्शन, सड़क जाम, इत्यादि मामलों में संलिप्त होकर किसी अपराधिक कृत्य में शामिल होता है और उसे इस कार्य के लिए पुलिस द्वारा आरोप पत्रित (चार्जशीट) किया जाता है, तो उनके संबंध में चरित्र सत्यापन प्रतिवेदन में विशिष्ट एवं स्पष्ट रूप से प्रविष्टि की जाए। ऐसे व्यक्तियों को गंभीर परिणामों के लिए तैयार रहना होगा क्योकि उनमें सरकारी नौकरी, ठेके आदि नहीं मिल पाएंगें।
उल्लेखनीय है कि सरकारी ठेके में चरित्र सत्यापन को अब अनिवार्य कर दिया गया है। इसके अलाव पासपोर्ट, हथियार के लाइसेंस, सरकारी संविदा की नौकरियां, पेट्रोल पंप, गैस एजेंसी, विभिन्न प्रकार के लाइसेंस, किसी भी प्रकार के सरकारी सहायता प्राप्त करने वाले एनजीओ, संस्था में पदाधिकारी, बैंक या सरकारी संस्थाओं से ऋण लेने के समय जैसे कई कार्योंके लिए पुलिस सत्यापन की आवश्यकता पड़ती है।
विपक्ष का कहना है कि सरकार के खिलाफ आंदोलन करने वालों पर पाबंदी लगाने के लिए यह कार्रवाई की जा रही है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार खुद जयप्रकाश नारायण आंदोलन से निकल कर आए हैं। ऐसे में उनकी सरकार में यह आदेश समझ से परे है।
पूर्व सांसद और राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी कहते हैं, यह वही नीतीश कुमार हैं जिन्होंने 1983 में बिहार में कांग्रेस सरकार द्वारा लाए गए प्रेस बिल का विरोध किया था। वह लोहिया और जेपी के सच्चे शिष्य नहीं हो सकते, जिन्होंने इसके लिए लड़ाई लड़ी।
इससे पहले पिछले महीने आर्थिक अपराध इकाई के अपर पुलिस महानिदेशक नैयर हसनैन खान ने सरकार के सभी प्रधान सचिव और सचिव को एक पत्र लिखकर कहा था कि ऐसी सूचना प्रकाश में आ रही है कि व्यक्तियों, संगठनों द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार, मंत्रियों, सांसद, विधायक एवं सरकारी अधिकारियों के संबंध में आपत्तिजनक एवं भं्रातिपूर्ण टिप्पणियां की जाती हैं। यह कानून के प्रतिकूल है तथा साइबर अपराध की श्रेणी में आता है।
इसके लिए ऐसे व्यक्तियों, समूहों के विरूद्ध विधि सम्मत कार्रवाई की जानी जरूरी है।
आर्थिक अपराध इकाई, आर्थिक अपराध के साथ-साथ साइबर अपराध का नोडल संस्थान है। उन्होंने पत्र में कहा है कि ऐसी सूचना मिलने पर आर्थिक अपराध इकाई को इसकी सूचना दी जाए, जिससे आर्थिक अपराध इकाई द्वारा जांच कर कार्रवाई की जा सके।
इधर, गृह विभाग ने भी 25 जनवरी को पुलिस महानिदेशक और सभी विभागों के प्रमुखों को भेजे एक पत्र में कहा था कि राज्य के विभिन्न विभाग, निगम, निकायस्तर पर संविदा या ठेका के लिए चरित्र प्रमाण पत्र आवश्यक है। आदेश में यह भी कहा गया है कि जो पहले से कार्य कर रहे हैं, उनसे भी चरित्रप्रमाण पत्र मांगा जाए।
इधर, बिहार के अपर पुलिस महानिदेशक (विधि व्यवस्था) जितेंद्र कुमार ने कहा, बिहार पुलिस के आदेश की गलत व्याख्या की जा रही है। यह आदेश आंदोलन करने के लोकतांत्रिक अधिकारों पर अंकुश नहीं है। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि अगर कोई इस तरह के विरोध प्रदर्शन के दौरान किसी भी आपराधिक गतिविधि में शामिल है, तो यह किसी के चरित्र प्रमाणपत्र में उल्लेख किया जाएगा। (आईएएनएस)