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नई दिल्ली, 12 दिसंबर भारतीय संसद भवन पर 13 दिसंबर को घातक आतंकी हमला हुआ था। हालांकि आतंकवादियों के इस हमले को नाकाम कर दिया गया था। इस हमले को विफल करने में सुरक्षाबलों व संसद के कई कर्मचारियों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए। शहीद हुए इन सभी लोगों की स्मृति में शुक्रवार को राज्यसभा ने गहरा सम्मान व्यक्त किया। सदन की कार्यवाही शुरू होते ही सभापति सी.पी. राधाकृष्णन ने इस दुखद दिवस का उल्लेख करते हुए पूरे सदन के साथ शहीदों को नमन किया। राज्यसभा में इन शहीदों के लिए मौन रखा गया। राज्यसभा के सभापति ने कहा कि कल 13 दिसंबर वह काला दिन है जब लोकतंत्र के सर्वोच्च संस्थान यानी भारतीय संसद भवन पर आतंकियों ने हमला किया था।
सभापति राधाकृष्णन ने कहा, “13 दिसंबर 2001 का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का अत्यंत वेदनापूर्ण दिन है। उस संसद भवन में कई सांसद और कर्मचारी मौजूद थे, लेकिन हमारे वीर सुरक्षा कर्मियों ने अपने अद्वितीय साहस, तत्परता और बलिदान से आतंकियों की योजना को विफल कर लोकतंत्र की मर्यादा की रक्षा की।" उन्होंने आगे कहा कि कई बहादुर जवान ऐसे थे जिन्होंने आतंकियों और इस ‘लोकतंत्र के मंदिर’ के बीच अपनी जान की परवाह किए बिना अडिग खड़े होकर गोलियां झेलीं। उनकी निस्वार्थ कर्तव्यनिष्ठा आज भी हम सभी को प्रेरित करती है। सभापति ने उन सभी सुरक्षा कर्मियों के बलिदान को याद किया जिन्होंने हमले को रोकते हुए प्राण न्योछावर किए। सभापति ने कहा कि इन सभी वीरों ने भारतीय लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। सभापति के अनुरोध पर राज्यसभा के सभी सदस्य अपने-अपने स्थान पर खड़े हो गए।
सदन में दो मिनट का मौन रखा गया, जिससे सदन गंभीर माहौल में शहीदों की स्मृति को नमन कर सके। गौरतलब है कि 13 दिसंबर 2001 की सुबह लगभग 11 बजकर 30 मिनट पर पांच आतंकियों ने एक नकली स्टिकर लगी कार से संसद परिसर में प्रवेश किया। हमलावरों ने यहां स्वचालित हथियारों से अंधाधुंध फायरिंग की। सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत मोर्चा संभालकर संसद भवन के मुख्य द्वार की ओर बढ़ रहे आतंकियों को रोक दिया। सुरक्षाबलों की कार्रवाई में सभी पांच आतंकवादी मारे गए। सुरक्षा कर्मियों की इस त्वरित कार्रवाई के कारण उस समय संसद भवन में मौजूद सैकड़ों सांसदों, कर्मचारियों और मीडिया प्रतिनिधियों की जान बच सकी। राज्यसभा सांसदों का कहना है कि उन शहीदों के प्रति हमारी कृतज्ञता शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती।
यह हमारा कर्तव्य है कि हम उनके बलिदान की भावना को जीवित रखते हुए अपने लोकतांत्रिक आदर्शों की रक्षा करें और उन्हें और मजबूत बनाएं। सदन के विभिन्न सदस्यों ने इस घटना की गंभीरता को याद करते हुए कहा कि संसद पर हमला केवल एक इमारत पर हमला नहीं था, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की आत्मा पर हमला था। उन्होंने शहीदों के परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की और कहा कि देश उनकी बहादुरी को कभी नहीं भूल सकता। --(आईएएनएस)


