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योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर उत्तर प्रदेश के कई जिलों में कथित घुसपैठियों की पहचान का अभियान चलाया जा रहा है. अधिकारियों के सामने मुश्किल ये है कि ज्यादातर लोगों के पास वैध दस्तावेज हैं.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट
बिहार विधानसभा चुनाव में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी और रोहिंग्या का मामला काफी चर्चा में रहा. बीजेपी नेताओं ने 'घुसपैठिया' कहकर उन्हें राज्य से बाहर करने को एक मुद्दा बनाया.
बिहार में चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के पीछे भी इसे ही बड़ी वजह बताया. बिहार चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में यह मुद्दा काफी जोर पकड़ने लगा, खासकर तब जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके खिलाफ सघन अभियान चलाने का आदेश दिया.
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मुख्यमंत्री ने 22 नवंबर को राज्य के सभी 75 जिलों के जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि घुसपैठियों की पहचान करें, हर जिले में अस्थायी डिटेंशन सेंटर बनाएं और दस्तावेजों के सत्यापन के बाद उन्हें उनके मूल देश में डिपोर्ट करें. गत 2 दिसंबर को लखनऊ, कानपुर, वाराणसी समेत राज्य के 17 नगरीय निकायों को रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठियों की विस्तृत सूची तैयार करने का आदेश जारी हुआ और राज्य के सभी 18 मंडलों में डिटेंशन सेंटर बनाने का निर्देश भी जारी किया गया.
आम लोगों से मुख्यमंत्री की अपील
इस क्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य के लोगों से भी सहयोग की अपील की है. प्रदेशवासियों के नाम अपने पत्र में उन्होंने लिखा, "उत्तर प्रदेश की सुरक्षा, सामाजिक संतुलन और सुदृढ़ कानून-व्यवस्था हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है. प्रदेश में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों के विरुद्ध सख्त और निर्णायक कार्रवाई प्रारंभ की गई है. मैं प्रदेश की जनता से अपील करता हूं कि सतर्क रहें और घरेलू अथवा व्यावसायिक कार्यों में किसी भी व्यक्ति को नियोजित करने से पूर्व उसकी पहचान अवश्य सुनिश्चित करें."
मुख्यमंत्री के आदेश के बाद राजधानी लखनऊ समेत कई जिलों में अवैध रूप से रहने वाले कथित विदेशी नागरिकों की पहचान के अभियान चलने लगे. लखनऊ में मेयर सुषमा खर्कवाल खुद कई इलाकों में झुग्गियों में रह रहे लोगों के पास गईं और उनके पहचान पत्र जांचे.
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नगर निगम, पुलिस और खुफिया एजेंसियां मिलकर इन बस्तियों में रह रहे लोगों की पहचान और दस्तावेजों का सत्यापन कर रही हैं. कई जगहों पर मेयर खुद जांच टीम के साथ पहुंच रही हैं. निगम अधिकारियों का कहना है कि ऐसे कई लोग नगर निगम में संविदा पर साफ-सफाई का काम करते हैं, लेकिन जब से यह अभियान चल रहा है कई सफाईकर्मी फरार हो गए हैं.
डीडब्ल्यू से बातचीत में लखनऊ की मेयर सुषमा खर्कवाल ने बताया, "दस्तावेज मांगने पर कई लोग गायब हो जा रहे हैं, भाग जा रहे हैं. यह स्थिति गंभीर संदेह पैदा करती है. हमें आशंका है कि ये सभी रोहिंग्या या बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं क्योंकि जो सही लोग हैं और जिनके पास दस्तावेज हैं, वो इस तरह नहीं भागेंगे. हमने आम लोगों से भी अपील की है कि किसी भी संदिग्ध गतिविधि की जानकारी तुरंत प्रशासन को दें."
मेयर ने दावा किया कि अवैध रूप से बसी झुग्गियों में ज्यादातर पश्चिम बंगाल या फिर असम के लोग हैं. इसीलिए प्रशासन उनके आधार कार्ड और दूसरे पहचान पत्रों के साथ ही एनआरसी रिकॉर्ड (असम के संदर्भ में) भी जांच रहा है.
वहीं, पुलिस विभाग के एक बड़े अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इन अवैध बस्तियों में रहने वाले ज्यादातर लोगों के पास सभी जरूरी कागजात हैं. ऐसे में उन्हें घुसपैठिया या अवैध नागरिक बता पाना बड़ा मुश्किल है. उनके मुताबिक, "आधार कार्ड के अलावा दूसरे पहचान पत्र मसलन- राशन कार्ड, एनआरसी रिकॉर्ड, मतदाता पहचान पत्र सब कुछ हैं इन लोगों के पास. मुश्किल से 10-5 पर्सेंट लोग ऐसे होंगे, जिनके पास ये दस्तावेज न हों."
"वैध या अवैध" की पहचान करना मुश्किल
अधिकारियों का दावा है कि बांग्लादेश के कई लोग, असम या पश्चिम बंगाल का निवासी होने का दिखावा करते हैं और अवैध तरीके से पहचान संबंधी कागजात हासिल कर लेते हैं. इन्हीं कागजातों के साथ साफ-सफाई, ईंट भट्टों, कारखानों वगैरह में काम करते हैं.
पश्चिमी यूपी के बरेली जिले में अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए जमीनी स्तर पर जांच की जा रही है. ऐसी बस्तियों में अधिकारियों की टीम लोगों से अपने कागजातों को सत्यापित कराने की अपील कर रही है.
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बरेली के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अनुराग आर्य के मुताबिक, "फर्जी आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र या अन्य जाली कागजातों के साथ पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति पर आपराधिक कार्रवाई की जाएगी. नए साल की शुरुआत में एक विशेष सत्यापन अभियान के दौरान पहचाने गए संदिग्ध व्यक्तियों की क्रॉस-चेकिंग भी की जाएगी."
9 दिसंबर को वाराणसी में भी कथित अवैध प्रवासियों के खिलाफ सघन अभियान चलाया गया और छापेमारी की गई. अभियान का नेतृत्व वाराणसी के अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (क्राइम) सरवन टी कर रहे थे.
एडीसीपी सरवन टी का कहना था, "पूरे वाराणसी कमिश्नरेट में अवैध रोहिंग्या और बांग्लादेशी लोगों की जांच की जा रही है. सिगरा थाना क्षेत्र में करीब 35 अवैध घुसपैठियों के होने की सूचना हमें मिली थी, जिसके बाद टीम ने वहां 9 दिसंबर को जांच की. पता चला कि ये लोग पश्चिम बंगाल के हैं और पिछले तीन-चार साल से रह रहे हैं. पड़ताल की जा रही है. उनके दस्तावेज भी वेरिफाई किए जा रहे हैं. ज्यादातर पहचान पत्र पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के हैं. यदि इन लोगों के किसी गैरकानूनी गतिविधियों या अपराध में लिप्त होने की जानकारी मिलती है, तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी."
सरकार पर आरोप
उत्तर प्रदेश में पिछले आठ साल के दौरान करीब 200 की संख्या में कथित बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को यूपी एटीएस गिरफ्तार कर चुकी है. जिलों की पुलिस भी कार्रवाई करती रहती है और फिर इन्हें वापस भेजने यानी डिपोर्ट करने की कवायद होती है.
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न्यायिक प्रक्रिया पूरी करने में काफी समय लगता है. इसकी वजह ये है कि ज्यादातर के पास वैध दस्तावेज होते हैं और अदालत में ये 'घुसपैठिये' साबित नहीं हो पाते. राज्य सरकार अब तक कई बार घुसपैठियों पर कार्रवाई करने के निर्देश दे चुकी है, लेकिन कुछ दिनों की जांच-पड़ताल के बाद मामला ठंडा पड़ जाता है.
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव कथित घुसपैठियों के खिलाफ अभियान को राजनीति से प्रेरित बताते हैं. मीडिया से बातचीत में उन्होंने सरकार के इस अभियान की आलोचना की.
अखिलेश यादव ने कहा, "लखनऊ में कोई घुसपैठिया नहीं है, बल्कि घुसपैठ के नाम पर भाजपा के लोग जांच कर रहे हैं. आखिर यह अधिकार उन्हें किसने दिया है? जिन अधिकारियों ने घुसपैठियों के आधार कार्ड और दूसरे कानूनी दस्तावेज बनवाए, उनके खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई हुई? लखनऊ के सांसद खुद देश के रक्षामंत्री हैं. यदि यहां घुसपैठिए बस गए तो प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और रक्षामंत्री क्या कर रहे थे? यह सब गरीबों को बेवजह अपमानित और परेशान करने के लिए किया जा रहा है."


