राष्ट्रीय
इमरान क़ुरैशी
सोचिए अगर आप किसी लिफ्ट में फंस जाएं, वो भी कुछ देर के लिए नहीं, बल्कि 42 घंटों के लिए.
जिसकी कल्पना कर आप डर जाते है, वो आपबीती है 59 साल के रविंद्रन नायर की.
बीते शनिवार दोपहर से सोमवार सुबह तक रविंद्रन लिफ्ट में फंसे रहे. रविंद्रन नायर, केरल में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (सीपीआई) की उल्लूर यूनिट के प्रभारी हैं.
लिफ्ट में फंसने के बाद रविंद्रन पर जो बीती, उन्होंने बीबीसी के सहयोगी पत्रकार इमरान क़ुरैशी को इस बारे में विस्तार से बताया. पढ़िए-
चार महीने पहले बाथरूम में गिरने की वजह से मेरी कमर में तकलीफ़ हुई थी और उसके बाद से ही मेरी दिनचर्या एक जैसी हो गई थी.
मैं और मेरी पत्नी श्रीलेखा, तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल की दूसरी मंज़िल पर ऑर्थोपेडिक्स स्पेशलिस्ट को दिखाने जाते हैं.
बीते शनिवार को हम समय पर वहां पहुंच गए थे क्योंकि दस बजे मेरी पत्नी को दफ़्तर जाना था. मैं अपनी पीठ का एक्सरे कराने गया था, क्योंकि पिछले हफ्ते कोल्लम जाने की वजह से उसमें बहुत दर्द हो रहा था.
एक्सरे देखने के बाद डॉक्टर ने मुझे ब्लड टेस्ट रिपोर्ट दिखाने के लिए कहा और मेरी पत्नी को अहसास हुआ कि वो तो घर पर ही छूट गई है. मैं घर गया और रिपोर्ट लेकर आया.
इसकी वजह से मुझे काम पर जाने में देरी हो रही थी. 12 बजे चुके थे जबकि मुझे वहां एक बजे तक पहुंचना था.
मेरी पत्नी अस्पताल की ही कर्मचारी थी. तो मैंने वो लिफ्ट चुन ली जो स्टाफ़ के लिए थी.
'मुझे लगा कि मैं ज़िंदा नहीं बचूंगा'
केरल का तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल.
मैं लिफ़्ट नंबर 11 में 12 बजकर पांच मिनट के आसपास दाख़िल हुआ तो पता चला कि उसमें कोई अटेंडेंट नहीं है.
लेकिन अंदर सब कुछ सामान्य ही था. फिर मैंने दूसरे फ्लोर पर जाने के लिए बटन दबाई और उसके बाद कुछ सामान्य नहीं रहा.
हुआ ये कि लिफ़्ट दूसरे फ्लोर के पास तक पहुंची और फिर धड़ाम से नीचे आ गई और दोनों फ्लोर के बीच फंस गई.
मैंने इमर्जेंसी नंबर मिलाया, जो लिफ्ट में लिखा हुआ था.
अलार्म तो बज रहा था, लेकिन कही से कोई रेस्पांस नहीं मिल रहा था.
मैंने अपनी पत्नी समेत कई लोगों को फोन मिलाया जो मेरी मदद के लिए आ सकते थे. लेकिन नेटवर्क में दिक्क़त थी.
इसके बाद मेरी घबराहट बढ़ी और आवाज़ करने के लिए मैं लिफ्ट को ज़ोर से मारने लगा.
तभी उस अंधेरे में मेरा फोन कहीं गिरा और उसने काम करना बंद कर दिया.
मैं चिल्ला-चिल्लाकर दरवाज़ा खोलने की कोशिश करता रहा.
वहां रोशनी बिल्कुल नहीं थी, लेकिन कुछ छेद थे, जिनसे मैं सांस ले सकता था.
घबराकर मैं लिफ्ट में ही यहां से वहां टहलने लगा.
मैं बार-बार अलार्म बेल बजा रहा था कि कोई तो इसे सुन ले और मेरी मदद के लिए आ जाए. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि दिन है या रात है.
अंदर घुप्प अंधेरा था, थक-हारकर मैं सो गया.
मुझे लग रहा था कि मैं ज़िंदा नहीं बचूंगा. मुझे अपने पत्नी, बच्चों और परिवार की चिंता होने लगी.
मुझे अपने दिवंगत माता-पिता और पुरखों का ख्याल आया.
लेकिन फिर मैंने अपना मानसिक संतुलन दोबारा हासिल किया और अपना ध्यान दूसरी बातों पर लगाया, ताकि मैं इससे बाहर निकल सकूं.
रविंद्रन के पास ब्लड प्रेशर की एक या दो टेबलेट जेब में रखी थीं.
लेकिन पानी नहीं होने की वजह से वो इन्हें खा नहीं सकते थे और उनका मुंह इतना सूखा हुआ था कि वो इसे निगल भी नहीं सकते थे.
तभी उन्हें अहसास हुआ कि कोई तो लिफ्ट को ठीक करने आएगा.
रविंद्रन ने बताया, “लेकिन ऐसा हुआ लगभग 42 घंटे बाद और तब सोमवार सुबह के लगभग छह बज रहे थे. लिफ्ट ऑपरेटर ने दरवाज़ा खोलकर मुझसे कूदने के लिए कहा. मैं बहुत थका हुआ था और नीचे लेटा हुआ था.”
परिवार ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई
रविंद्रन नायर
रविंद्रन की पत्नी श्रीलेखा ने बीबीसी को बताया, “एक अंजान नंबर से मुझे फोन आया और दूसरी तरफ़ रविंद्रन थे. उन्होंने मुझे बताया कि वो लिफ़्ट में फंस गए थे. वो चाहते थे कि मैं आकर उन्हें घर ले जाऊं.”
हालांकि इस दौरान श्रीलेखा और उनके दो बेटे गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा चुके थे क्योंकि रविवार सुबह से उनका फ़ोन भी नेटवर्क से बाहर बता रहा था.
उनके बेटे हरिशंकर ने बताया, “कई बार वो हॉस्पिटल से सीधे काम पर चले जाते थे, इसलिए हमने रविवार सुबह तक इंतज़ार किया. फ़ोन टूट चुका था, इसलिए पुलिस को उनकी जीपीएस लोकेशन भी नहीं मिल रही थी.”
रविंद्रन ग़ुस्से में थे या कैसी हालत थी उनकी, इस सवाल पर उनकी पत्नी श्रीलेखा कहती हैं, “वो हमेशा ही शांत स्वाभाव के थे. लेकिन कभी-कभी इस पूरे घटनाक्रम के बारे में बात करते हुए उन्हें बहुत ग़ुस्सा आ जाता है. ऐसा किसी हार्ट पेशेंट के साथ होता तो क्या होता या उनकी जगह कोई गर्भवती महिला होती तो क्या होता. वो बार बार यही कहते हैं.”
'ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कड़ा एक्शन लिया जाएगा'
केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीणा जॉर्ज ने मंगलवार को अस्पताल में रविंद्रन नायर से मुलाक़ात की, जहाँ उनका इलाज चल रहा है.
स्वास्थ्य मंत्री के कार्यालय ने घटना पर बयान जारी कर कहा है कि घटना के लिए ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ बिना किसी नरमी के कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
श्रीलेखा कहती हैं कि अस्पताल के अधिकारियों के साथ-साथ स्वास्थ्य मंत्री ने भी इस घटना के लिए “उनसे माफ़ी मांगी” है.
इस सिलसिले में तीन लिफ्ट टेक्नीशियंस को निलंबित कर दिया गया है और केरल के स्वास्थ्य विभाग ने जांच के आदेश दिए हैं.
लिफ़्ट को लेकर क्या हैं नियम
केरल का तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज.
हर राज्य में एक लिफ्ट निरीक्षक होता है जो मुख्य विद्युत निरीक्षक के अधीन काम करता है.
केरल लिफ्ट और एस्केलेटर अधिनियम, 2013 के अनुसार, निरीक्षक लाइसेंसिंग अधिकारी है.
निरीक्षकों से उम्मीद की जाती है कि वे उचित निरीक्षण के बाद किसी भवन में लिफ्ट या एस्केलेटर लगाने के लिए लाइसेंस जारी करेंगे.
लिफ्ट या एस्केलेटर लगाना और उसमें सुधार का काम सक्षम व्यक्तियों को सौंपा जाना चाहिए.
हर लाइसेंस को सालाना निरीक्षण के बाद और निश्चिचत शुल्क देकर नए सिरे से बनाना होता है. अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर 1,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाता है.
नाम न छापने की शर्त पर महत्वपूर्ण पद पर रहे एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने बीबीसी हिंदी से बात की.
उन्होंने बताया, ''इस मामले में कर्नाटक में भी केरल जैसा क़ानून है. लेकिन संबंधित दफ़्तर में इतने कम अधिकारी हैं कि उनके लिए प्रत्येक बिल्डिंग का दौरा करना और निरीक्षण करना संभव नहीं है.''
अधिकारी कहते हैं, ''मैं हाल ही में एक चार मंजिला इमारत की तीसरी मंजिल पर रहने वाले किसी व्यक्ति से मिलने गया था. लिफ्ट अचानक दूसरी और तीसरी मंजिल के बीच रुक गई. तंग लिफ्ट में दो महिलाएं थीं. उनमें से एक महिला तुरंत गिर गईं और दूसरी को उल्टी होने लगी. दोनों सदमें में थीं.''
अधिकारी का यह अनुभव बस एक उदाहरण है और इस उदाहरण से आप रविंद्रन नायर के अनुभव की कल्पना कर सकते हैं. (bbc.com)