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आरटीआई में पीएम मोदी के साथ सेल्फ़ी पॉइन्ट का खर्च बताने के बाद रेलवे ने बदले नियम, जानकारी देने वाला अधिकारी बदला
04-Jan-2024 1:23 PM
आरटीआई में पीएम मोदी के साथ सेल्फ़ी पॉइन्ट का खर्च बताने के बाद रेलवे ने बदले नियम, जानकारी देने वाला अधिकारी बदला

रेलवे स्टेशनों पर बनाए गए सेल्फ़ी पॉइन्ट को लेकर हुए विवाद के बाद भारतीय रेलवे ने सूचना का अधिकार क़ानून (आरटीआई) के तहत जानकारी देने के ज़ोनल रेलवे के नियमों को और कड़ा कर दिया है.

अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू में छपी एक ख़बर के अनुसार, नए नियमों के अनुसार अब आरटीआई के सभी जवाबों को ज़ोनल रेलवे के महाप्रबंधक या मंडल रेलवे प्रबंधक मंजूरी देंगे, जिसके बाद ही वो जवाब दिया जाएगा.

अख़बार लिखता है कि बीते साल दिसंबर 27 को छपी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि रेलवे स्टेशन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर वाले वाले स्थायी सेल्फ़ी बूथ की लागत 6.25 लाख रुपये है जबकि इस तरह के अस्थायी बूथ की लागत 1.25 लाख रुपये है.

ये सूचना प्रसारण मंत्रालय के तहत केंद्रीय संचार ब्यूरो द्वारा अनुमोदित लागत है. अख़बार के अनुसार एक आरटीआई के जबाव में ये जानकारी दी गई थी.

एडवाइज़री में क्या है?
अख़बार लिखता है कि 28 दिसंबर 2023 को रेलवे बोर्ड ने ज़ोनल रेलवे के सभी महाप्रबंधकों को एक एडवाइज़री भेजी है.

इसमें कहा गया है, "ज़ोनल रेलवे और अन्य फ़ील्ड यूनिटों के संभाले जाने वाले आरटीआई आवेदनों के जवाब की गुणवत्ता ख़राब हो गई है."

"कई मामलों में आरटीआई का जवाब देने की समय-सीमा को पार किया गया, जिसका नतीजा ये हुआ कि फर्स्ट एपेलेट ऑथॉरिटी और केंद्रीय सूचना आयोग के पास लोगों ने बड़ी संख्या में अपीलें दायर कीं. इससे न केवल अतिरिक्त काम बढ़े बल्कि संस्था की भी बदनामी हुई."

अख़बार लिखता है कि 28 दिसंबर 2023 को रेलवे बोर्ड ने ज़ोनल रेलवे के सभी महाप्रबंधकों को एक एडवाइज़री भेजी है.

इसमें कहा गया, ऐसा देखा गया है कि "ज़ोनल रेलवे और अन्य फ़ील्ड यूनिटों के संभाले जाने वाले आरटीआई आवेदनों के जवाब की गुणवत्ता ख़राब हो गई है."

"कई मामलों में आरटीआई का जवाब देने की समय-सीमा को पार किया गया, जिसका नतीजा ये हुआ कि फर्स्ट एपेलेट ऑथॉरिटी और केंद्रीय सूचना आयोग के पास लोगों ने बड़ी संख्या में अपीलें दायर कीं. इससे न केवल काम बढे़ बल्कि संगठन की भी बदनामी हुई."

अख़बार लिखता है कि एडवाइज़री में कहा गया है कि इस समस्या को सुलझाने के लिए क़ानून में जवाब देने की जो समय-सीमा दी गई है, उसका पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए.

इसमें कहा गया है, "आरटीआई जवाबों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए आरटीआई के सभी जवाबों को ज़ोनल रेलवे के महाप्रबंधक (जीएम) या मंडल रेलवे प्रबंधक मंज़ूरी (डीआरएम) देंगे. वहीं आरटीआई क़ानून के तहत फर्स्ट अपील के उत्तर में दिए जाने वाले जवाबों को भी संबंधित ज़ोनल रेलवे के महाप्रबंधक (जीएम) या मंडल रेलवे प्रबंधक मंजूरी देंगे."

क्या है मामला?
आरटीआई क़ानून 2005 के तहत के पूछे गए सवालों के जवाब देने के लिए रेलवे ने सूचना अधिकारी और मुख्य सूचना अधिकारी नियुक्त किए हैं.

दक्षिण रेलवे में सूत्रों के हवाले से अख़बार ने लिखा है कि क़ानून के तहत जीएम या डीआरएम की न तो एपेलेट ऑथोरिटी और न ही संबंधित ऑथोरिटी के रूप में इसमें कोई भूमिका है.

आरटीआई आवेदन के जिस जवाब को लेकर विवाद हुआ वो जानकारी मध्य रेलवे के डिप्टी महाप्रबंधक अभय मिश्रा ने साझा की थी. उन्होंने एक रेवले के एक पूर्व कर्मचारी अजय बोस के आरटीआई सवाल के जवाब में ये जानकारी साझा की थी.

जानकारी साझा किए जाने के बाद अभय मिश्रा के वरिष्ठ अधिकारी मध्य रेलवे के सूचना अधिकारी शिवाजी मानसपुरे को सात महीने के पद पर रहने के बाद हटा दिया गया. आमतौर पर किसी व्यक्ति को इस पद पर दो साल के लिए नियुक्त किया जाता है.

शिवाजी मानसपुरे के ट्रांसफर से जुड़ी मीडिया रिपोर्टों का ज़िक्र करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा, "शहंशाह की रज़ा, सच का इनाम सज़ा!"

हालांकि अख़बार लिखता है कि रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों ने आरटीआई जवाब को शिवाजी मानसपुरे के ट्रांसफर से जोड़ने की बात को अफ़वाह कहा और कहा कि ऑपरेशन कारणों से उनका ट्रांसफर किया गया है.

नाम न छापने की शर्त पर एक रेलवे अधिकारी ने कहा कि नए दिशानिर्देशों का आरटीआई के जवाब से कोई लेना-देना नहीं है.

वहीं आरटीआई के ज़रिए सवाल पूछने वाले अजय बोस ने अख़बार को बताया कि "दक्षिणी, पश्चिमी और उत्तरी रेलवे से भी थ्री-डी सेल्फ़ी बूथ पर किए गए खर्च पर जानकारी के लिए आरटीआई भेजी थी लेकिन उसका जवाब नहीं मिला."

रानी झांसी रोड से मंदिर और मज़ार को हटाया

दिल्ली में सड़कों से अतिक्रमण हटाने को लेकर चल रहे अभियान के तहत पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेन्ट (पीडब्ल्यूडी) ने रानी झांसी रोड के पास बने एक मंदिर और एक मज़ार को हटा दिया है.

अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर के अनुसार इस सप्ताह की शुरुआत में विभाग ने एक नोटिस जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि मज़ार सड़क पर है जिस कारण पैदल चलने वालों को परेशानी होती है.

एक जनवरी को मज़ार को दिए एक नोटिस में लिखा था, "उक्त संपत्ति पीडब्ल्यूडी के 'रोड राइट ऑफ़ वे' का उल्लंघन है. ये अतिक्रमण पैदल चलने वालों की राह में मुश्किल पैदा करता है, इस अनाधिकृत अतिक्रमण को दो जनवरी तक खुद ही हटा दें. ऐसा न हुआ तो सरकार आगे की कार्रवाई बिना और नोटिस दिए करेगी."

अख़बार के अनुसार पुलिस ने भी पुष्टि की है कि बुधवार सवेरे 4 बजे से लेकर सवेरे 8 बजे तक अतिक्रमण हटाने का काम किया गया, इस दौरान वहां पीडब्ल्यूडी कर्मचारियों की मदद के लिए पुलिस की दो कंपनियां तैनात की गई थीं.

एक अन्य अधिकारी ने पुष्टि की की जिन दो ढांचों को हटाया गया उनमें एक मंदिर और एक मज़ार शामिल थे.

दिल्ली में बीते कुछ वक्त से ट्रैफिक जाम कम करने की कोशिश में सड़क और फुटपाथ से अतिक्रमण हटाने की मुहिम चल रही है

विधायकों ने जताया हेमन्त सोरेन पर भरोसा

झारखंड मुक्ति मोर्चा के सहयोगी दलों के विधायकों की एक बुधवार को एक बैठक हुई जिसमें विधायकों मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के प्रति एकजुटता दिखाई.

जनसत्ता में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार विधायकों ने कहा कि हेमन्त सोरेन इस्तीफ़ा नहीं देंगे और सीएम के पद पर काम करना जारी रखेंगे.

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने हेमन्त सोरेन को एक समन भेजा था जिसके बाद पैदा हुई राजनीतिक परिस्थिति रपर बात करने के लिए बैठक बुलाई गई थी.

ये बैठक सीएम हेमन्त सोरेन की अध्यक्षता में हुई. बैठक में सीएम के भेजे गए समन और सरकार के भविष्य पर चर्चा हुई. विधायकों ने सीएम पर भरोसा जताया है और कहा है कि मौजूदा सरकार को कोई ख़तरा नहीं है.

बुधवार को ईडी ने झारखंड में कथित अवैध खनन में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच के तहत सीएम हेमन्त सोरेन के प्रेस सलाहकार, साहिबगंज जिले के अधिकारियों और एक पूर्व विधायक के परिसरों में छापेमारी की थी.

सीएम दफ्तर में सूत्रों के हवाले से अख़बार लिखता है कि ईडा के समन का जवाब देने की हेमन्त सोरेन की समयसीमा पांच जनवरी को समाप्त होगी. सोरेन को जारी किया गया ये सातवां समन है, जिसे बीते साल दिसम्बर में जारी किया गया था.

इससे पहले भेजे गए छह समन को नज़रअंदाज़ करते हुए सोरेन ने कहा था कि केंद्र सरकार उनकी राज्य सरकार को अस्थिर करना चाहती है.

श्रमजीवी ट्रेन धमाका मामले में दो और को मौत की सज़ा

28 जनवरी 2005 को श्रमजीवी ट्रेन में हुए धमाके के मामले की सुनवाई करते हउए उत्तर प्रदेश की एक कोर्ट ने दो लोगों को मौत की सज़ा सुनाई है. इनमें से एक बांग्लादेश से हैं.

अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स लिखता है कि एडिशनल सेशल कोर्ट जज राजेश कुमार राय की कोर्ट ने बांग्लादेश के नागरिक हिलालुद्दीन उर्फ़ हिलाल और पश्चिम बंगाल के नागरिक नफ़ीकुल बिस्वास को मौत की सज़ा सुनाई है.

10 पन्ने के अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि "उन मासूम लोगों से अभियुक्तों की कोई दुश्मनी नहीं थी. अभियुक्तों ने डर फैलाने के उद्देश्य से साजिश कर के आपराधिक काम को अंजाम दिया. उनके प्रति सहानुभूति दिखाने की कोई वजह नहीं."

अख़बार लिखता है कि 2005 में जोनपुर स्टेशन के पास पटना-नई दिल्ली श्रमजीवी एक्सप्रेस में धमाका हुआ था जिसमें 14 लोगों की मौत हुई थी जबति 62 लोग घायल हुए थे.

इस मामले में दो लोग एक सफेद सूटकेस लेकर जौनपुर से ट्रेन में चढ़े थे. कुछ वक्त बाद दोनों खाली हाथ चलती ट्रेन से बाहर कूद गए. इसके कुछ मिनट बाद धमाका हुआ.

जांचकर्ताओं का कहना था कि धमाके में आरडीएक्स का इस्तेमाल हुआ था, जिसे ट्रेन के डिब्बे के टॉयलेट में रखा गया था.

इस मामले में जिला सरकारी वकील और रेलवे पुलिस ने सात लोगों के ख़िलाफ़ मामला बनाया था. इनमें आलमगीर उर्फ़ रॉनी, ओबेदूर रहमान, हिलालुद्दीन उर्फ़ हिलाल, नफ़ीकुल बिस्वास, ग़ुलाम पचदानी याह्या, कंचन उर्फ़ शरीफ़ और डॉक्टर सईद शामिल हैं.

इस मामले में साल 2016 में कोर्ट ने आलमगीर और ओबेदूर रहमान को मौत की सज़ा सुनाई थी, इन दोनों के मामले में फिलहाल हाई कोर्ट अपील की सुनवाई कर रहा है.

मामले से जुड़े दो अभियुक्त- ग़ुलाम पचदानी याह्या और कंचन एक एनकाउंटर में मारे गए जबकि सईद अभी फरार है. (bbc.com)


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