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जम्मू-कश्मीर: तीन ग्रामीणों की सेना की पूछताछ में मौत के बाद सेना प्रमुख पहुँचे पुंछ, क्या कह रहे हैं मृतकों के परिजन
26-Dec-2023 2:08 PM
जम्मू-कश्मीर: तीन ग्रामीणों की सेना की पूछताछ में मौत के बाद सेना प्रमुख पहुँचे पुंछ, क्या कह रहे हैं मृतकों के परिजन

माजिद जहांगीर

भारत के केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पुंछ ज़िले में चरमपंथी हमले के बाद भारतीय सेना ने पूछताछ के लिए 9 लोगों को ‘उठाया’ था.

इनमें से तीन की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद सेना ने घटना की जांच शुरू कर दी है.

पुलिस ने भी अज्ञात लोगों पर हत्या का मुक़दमा दर्ज किया है. ये लोग बफ़्फ़लौज़ इलाक़े के टोपा गाँव के रहने वाले थे.

इन मौतों के बाद इस इलाक़े में तनाव भरे हालात अभी तक बने हुए हैं. गाँव को चारों तरफ़ से सील किया गया है.

इस बीच भारतीय सेना के प्रमुख जनरल मनोज पांडे भी सोमवार को पुंछ पहुँचे और उन्होंने सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की. जनरल पांडे ने सेना से ऑपरेशन पेशेवर तरीक़े से चलाने ने के लिए कहा है.

आर्मी एडिशनल डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ पब्लिक इन्फर्मेशन ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल से ट्वीट कर कहा है, ''जनरल मनोज पांडे ने पुंछ सेक्टर का दौरा किया और उन्हें मौजूदा सुरक्षा स्थिति के बारे में जानकारी दी गई. आर्मी प्रमुख ने कमांडोज से बात की और सभी ऑपरेशन को प्रोफेशनल तरीक़े से संचालित करने का निर्देश दिया. जनरल पांडे ने सभी चुनौतियों के प्रति दृढ़ रहने के लिए प्रोत्साहित किया.''

जम्मू और कश्मीर के पुंछ ज़िले के बफ़्फ़लौज़ गांव में बीते गुरुवार को भारतीय सेना के दो वाहनों पर घात लगाकर चरमपंथी हमला हुआ था. इस हमले में सेना के चार जवान मारे गए थे और दो घायल हो गए थे.

इस चरमपंथी हमले के बाद सेना ने इस इलाक़े में सर्च ऑपरेशन शुरू किया है. इस बीच सेना ने इलाक़े के टोपा पीर गाँव से क़रीब नौ लोगों को पूछताछ के लिए गांव से उठा लिया था.

सेना ने जिन नौ स्थानीय लोगों को पूछताछ के लिए लिया था, उनमें से तीन के शव परिजनों को बीते शनिवार को सौंपे गए थे.

मारे गए तीन लोगों की पहचान शौकत अहमद, शब्बीर अहमद और सफ़ीर अहमद के रूप में हुई है. ये तीनों ही लोग स्थानीय गुज्जर समुदाय से हैं.

मारे गए लोगों के परिजनों ने सेना पर टॉर्चर करने का आरोप लगाया है.

सेना के कैंप से बाहर आईं चीखें

सफ़ीर अहमद के भई नूर अहमद ने अपने घर से बीबीसी को फ़ोन पर बताया, “हमारे घर से क़रीब चार किलोमीटर दूर बीते गुरुवार को सेना की गाड़ियों पर हमला हुआ था. हमले के अगले दिन सुबह हमारे पड़ोस में स्थित भारतीय सेना के कैंप से कुछ सैनिक गाँव में आ गए थे. वे मेरे भाई समेत नौ लोगों को अपने साथ कैंप में ले गए थे.''

''सेना का ये कैंप सफ़ीर के घर से क़रीब दो किलोमीटर दूर है. कैंप में ले जाने के बाद इन्हें वहां पीटा जाने लगा. कैंप के आस-पास रहने वाले लोगों ने जब चीखने कि आवाज़ें सुनीं तो कुछ महिलाएं कैंप की तरफ़ गईं. महिलाओ ने कैंप के अंदर जाने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें वहाँ से भगा दिया गया.''

''उन्हें कैंप के भीतर ही पीट-पीट कर मार दिया गया. तीनों की मौत के बाद उन्हें पास के दूसरे सेना कैंप ले जाया गया, जो इस कैंप से क़रीब दो किलोमीटर दूर है.”.

नूर अहमद ख़ुद बॉर्डर सिक्यरिटी फोर्स (बीएसएफ़) में सिपाही हैं.

सफ़ीर अहमद किसान थे और खेती करके अपना परिवार चलाते थे.

नूर दावा करते हैं, “ जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक डीएसपी ने शाम को क़रीब सात बजे मुझे फ़ोन करके बताया कि तीन लोगों की सेना के कैंप में मौत हो चुकी है. उसके बाद हम छह सेना के कैंप गए, जहाँ हमें बताया गया कि तीन लोगों की मौत हो गई है. कैंप के अंदर पुंछ के ज़िला अधिकारी, एसपी और सेना के कई अधिकारी मोजूद थे.''

नूर कहते हैं, ''तीनों का पोस्टमॉर्टम चल रहा था. पोस्टमॉर्टम के बाद हमें उनके चेहरे दिखाए गए. प्रशासन ने हमारी काफ़ी मदद की, लेकिन जिन लोगों ने हमारे लोगों को मारा, वो ज़ालिम थे. अगले दिन सुबह हमें शव सौंपे गए. जिसके बाद शवों को हमने अपने गाँव में दफ़न कर दिया.”

32 साल से बीएसएफ़ में नौकरी कर रहे नूर अहमद ने बहुत अफ़सोस के साथ कहा, “देश के लिए काम करने का अब ये सिला मिला है कि मेरे भाई को सेना की हिरासत में मार दिया गया.”

ये पूछने पर की शवों पर किस किस्म के निशान थे, उनका कहना था, “ शरीर पर ऐसी कोई जगह बची नहीं थी, जहाँ पर टॉर्चर के निशान नहीं थे. हमने उसके वीडियो बनाए हैं और फोटोग्राफी करके रखी है. उनको बहुत मारा गया था. उनकी गर्दनें टूट गई थीं.”

सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल

सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में ये दावा किया गया है कि ये मारे गए लोगों का वीडियो है, जिन्हें सेना की हिरासत में ले जाया गया था.

कुछ सेकंड के इस वीडियो में दो लोग बुरी तरह डंडों से पिटते हुए दिखाई देते हैं. वीडियो में दिख रहा है कि उनके ज़ख़्मों पर मिर्च पाउडर जैसा कुछ डाला जा रहा है.

इस वीडियो में सेना के कुछ जवानों को वर्दी में देखा जा सकता है. बीबीसी ने स्वतंत्र रूप से इस वीडियो की पुष्टि नहीं की है.

हालांकि, नूर अहमद ये दावा करते हैं कि जो वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है, वो गांव के उन्हीं लोगों का है, जिन्हें हिरासत में ले जाया गया था.

तीन लोगों की मौत के बाद जम्मू और कश्मीर के सूचना विभाग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स एक बयान जारी कर बताया है कि तीन लोगों की मौत के मामले में क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई है. लेकिन बयान में ये नहीं बताया गया की तीन लोगों की मौत कैसे हुई है.

इस बयान में कहा गया है, “पुंछ ज़िला के बफ़्फ़्लोज में तीन लोगों की मौत की ख़बर सामने आई है. मेडिकल के बाद क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई है. सरकार ने मारे गए लोगों के परिवारों के लिए मुआवज़े का एलान किया है.”

भारतीय सेना ने क्या कहा है?

भारतीय सेना ने भी एक्स पर एक बयान जारी कर बताया है कि मामले की जांच जारी है.

इस बयान में कहा गया है, “पुंछ-राजौरी सेक्टर के बफ़्फ़िलौज इलाक़े में 21 से 23 दिसंबर को आतंकवादी हमले के बाद सुरक्षाबलों का सर्च ऑपरेशन जारी है. इलाक़े में तीन आम नागरिकों की मौत की ख़बर भी मिली है, मामले की जांच जारी है. भारतीय सेना जांच में पूरा सहयोग और साथ देने के लिए पाबंद है.’’

बीबीसी ने जम्मू स्थित सेना के प्रवक्ता सुनील बरतवाल से इस मामले में जानकारी मांगी थी, लेकिन उनका कहना था कि सेना की तरफ़ से सिर्फ़ एक अधिकारिक बयान जारी किया गया है और उसके बाद से अभी तक कोई साझा करने लायक नई जानकारी उनके पास नहीं है.

जम्मू और कश्मीर पुलिस के डीजीपी रश्मि रंजन स्वाइन से भी बीबीसी ने इस संबंध में संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने भी कोई जवाब नहीं दिया.

रिपोर्टों के मुताबिक़ पुलिस ने इस मामले में अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ हत्या का मुक़दमा दर्ज किया है.

मारे गए लोगों के परिजनों ने बताया है कि उनके गांव टोपा पीर को चारों तरफ़ से पुलिस और सुरक्षाबलों ने सील कर दिया है. उनका ये भी दावा है कि किसी भी बाहरी व्यक्ति को गांव में आने की इजाज़त नहीं है.

मीडिया को भी गांव में जाने की अनुमति नहीं है. इस इलाक़े में इंटरनेट सेवा अब भी बंद है.

पूछताछ के लिए ले गए थे सेना के जवान

टोपा पीर एक पहाड़ी गाँव हैं, जिसमें क़रीब 50 घर हैं. यहाँ अधिकतर लोग खेती का काम करते हैं.

मारे गए एक दूसरे व्यक्ति शौकत अहमद के चाचा मोहम्मद सिद्दीक़ ने बताया कि उनके भतीजे को भी शुक्रवार सुबह सेना के जवानों घर से पूछताछ के लिए अपने साथ ले गए थे. सिद्दीक़ कहते हैं, “उसे नज़दीक़ के मॉल पोस्ट कैंप ले जाया गया था.”

शौक़त का घर कैंप से क़रीब दो किलोमीटर की दूरी पर है.

सिद्दीक़ का कहना था कि जिन नौ लोगों को सेना पूछताछ के लिए ले गई थी, उनमें लाल हसन भी शामिल थे.

उनका कहना था कि लाल हसन के सामने ही बुरी तरह से दूसरे लोगों को पीटना शुरू किया गया था. उनका कहना था की लाल हसन को सेना ने दिन के एक बजे छोड़ दिया था. सिद्दीक़ लाल हसन के हवाले से ये दावा करते हैं कि उनके सामने ही तीनों लोगों की मौत हो चुकी थी.

सिद्दीक़ बताते हैं कि जो बाक़ी पाँच लोग थे उनको भी बुरी तरह से पीटा गया है, जिनको अब सेना के अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती किया गया है.

उनका दावा है, “जब हम सेना के कैंप में शव लेने के लिए गए तो मैंने उनसे पूछा कि बाक़ी पाँच लोगों को कहाँ रखा गया है? जवाब में उनका कहना था कि हमने ज़िला अधिकारी को बता दिया है कि बाक़ी पाँच को हमने कहाँ रखा है. जब हमने ज़िलाधिकारी से कहा कि हमें हमारे लोगों को दिखाया जाए तब हमें उन घायल लोगों को दिखाया गया. उसी रात दो बजे हमारे साथ उन्हें सेना के अस्पताल ले जाया गया और वो तब से वहीं पर भर्ती हैं.”

शौक़त की बीते साल शादी हुई थी और उनकी पत्नी गर्भवती हैं.

सिद्दीक़ कहते हैं, “हमारी सरकार से ये माँग है की जिन्होंने हमारे लोगों का क़त्ल किया है, उन्हें सख़्त सज़ा मिलनी चाहिए.

वो कहते हैं, “हमें मुआवज़े का पैसा नहीं चाहिए, ना ही हम नौकरी चाहते हैं बल्कि जो ज़ुल्म हम पर किया गया, वैसा ही ज़ुल्म इन ज़ालिमों पर होना चाहिए, इन्हें नौकरी से निकाला जाना चाहिए और सलाख़ों के पीछे भेजा जाना चाहिए.”

गाँव वालों और सेना के रिश्तों पर बात करते हुए सिद्दीक़ का कहना था कि चरमपंथ के ख़िलाफ़ गांव के लोगों ने हमेशा सेना का साथ दिया है.

बेटे की मौत पर इंसाफ़ मांग रहा है पिता

तीस साल के साबिर की भी मौत पूछताछ के लिए बुलाये जाने के बाद हो गई. उनके पिता वली मोहम्मद ने बीबीसी से कहा, “मेरे बेटे की मौत ऐसी है, जैसे मेरे सीने में दो गोलियां मार दी गई हों. मैं सिर्फ़ इतना ही कह सकता हूं कि हमें इंसाफ़ मिलना चाहिए.”

साबिर अहमद के एक रिश्तेदार जावेद अहमद ने बताया की बीते शुक्रवार की सुबह साबिर को भी सेना के जवान उनके घर से बुला कर ले गए थे.

साबिर गांव में परचून की दुकान चलाते थे जबकि उनका एक भाई सेना के साथ पोर्टर का काम करता है.

जावेद ने बताया कि सेना के जवान हर दिन उनकी दुकान पर समान ख़रीदने आते थे. उनका कहना था, “साबिर अपने परिवार को चलाने वाला इकलौता सहारा था, उसके पिता विकलांग हैं.”

जावेद के मुताबिक़, जब कैंप कैंप से मारे गए लोगों को सेना के दूसरे कैंप ले जाया जा रहा था, तब वहां आसपास रहने वाली कई महिलाओं ने ये देखा था.

जावेद दावा करते हैं कि जब वो सेना के कैंप में शवों की पहचान के लिए गए तो वहां मौजूद सेना और प्रशासन के अधिकारियों से उन्होंने पूछा था कि ये सब कैसे हुआ लेकिन इसका कोई जवाब नहीं मिल सका.

जावेद कहते हैं, “कैंप में मौजूद एक ब्रिगेडियर ने हमसे कहा था कि उन्होंने ऐसी सेना पहले कभी नहीं देखी है.”

गुज्जर समदुाय के लिए काम करने वाले राजौरी के सामाजिक कार्यकर्ता गुफ़्तार अहमद कहते हैं, “इस हादसे की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसा हादसा दोबारा ना हो.” (bbc.com)


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