राष्ट्रीय
अदालत के आदेश पर उद्योगपति सज्जन जिंदल के खिलाफ मुंबई पुलिस ने बलात्कार का मामला दर्ज किया है. मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि मुंबई पुलिस ने कई महीनों तक पीड़िता की शिकायत का संज्ञान नहीं लिया.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि पीड़िता की शिकायत के मुताबिक जिंदल स्टील के अध्यक्ष सज्जन जिंदल ने जनवरी 2022 में उन पर यौन हमला किया. महिला ने मुंबई पुलिस के पास इस मामले की शिकायत फरवरी, 2023 में की.
लेकिन जब दिसंबर, 2023 तक पुलिस ने शिकायत पर कोई कदम नहीं उठाया तो पांच दिसंबर, 2023 को महिला ने बॉम्बे हाई कोर्ट के दरवाजे खटखटाए. इसके बाद 13 दिसंबर को पुलिस ने मामले में एफआईआर दर्ज की.
पुलिस का रवैया
14 दिसंबर को पुलिस ने अदालत को बताया कि पीड़िता का बयान रिकॉर्ड कर लिया गया है और आईपीसी की कई धाराओं के तहत बलात्कार समेत कई आरोपों पर मामला दर्ज कर लिया गया है.
अदालत ने पुलिस को जल्द जांच पूरी करने का आदेश दिया है. इस बीच सज्जन जिंदल के कार्यालय से एक बयान जारी किया गया जिसमें जिंदल ने इन आरोपों को "झूठा और निराधार" बताया और उनसे इनकार किया.
इस मामले से एक बार फिर भारत में पुलिस के रवैये को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं जिनमें नजर आता है कि लोग बार बार पुलिस के पास अपनी शिकायत लेकर जाते हैं लेकिन कई कारणों की वजह से पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करती या दर्ज करने में देर करती है.
इस समस्या के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एक ऐतिहासिक फैसले के तहत कुछ दिशा निर्देश दिए थे. 'ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार' के नाम से जाने जाने वाले इस मामले में आठ दिशा निर्देश दिए गए थे, जो सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस पर लागू होते हैं.
अदालत का आदेश
इस फैसले में स्पष्ट कहा गया था कि अगर किसी पुलिस अधिकारी को किसी 'संज्ञेय अपराध' की जानकारी मिलती है तो उसे एफआईआर दर्ज करनी ही चाहिए. इतना ही नहीं, अदालत ने एफआईआर न दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई किए जाने के भी आदेश दिए थे.
अगर जानकारी संज्ञेय अपराध की नहीं हो लेकिन संज्ञेय अपराध है या नहीं इसकी जांच की जरूरत लग रही हो तो इसके लिए जांच करनी चाहिए. मामला संज्ञेय अपराध का है या नहीं यह जानने के लिए की जाने वाली यह प्राथमिक जांच 15 दिनों से लेकर छह हफ्तों में पूरी हो जानी चाहिए.
इसके बावजूद कई राज्यों में एफआईआर को लेकर पुलिस के रवैये पर अभी भी सवाल उठते हैं. कभी राजनीतिक कारणों से तो कभी किसी को बचाने के लिए, पुलिस पर अक्सर एफआईआर दर्ज करने में देर करने के आरोप लगते हैं.
सज्जन जिंदल के मामले में अदालत के हस्तक्षेप के बाद पुलिस को मजबूर होना पड़ा, लेकिन बड़ी संख्या में लोगों को अदालतों से इस तरह का हस्तक्षेप भी हासिल नहीं हो पाता. (dw.com)