राष्ट्रीय

शहबाज़ अनवर
शामली से, 15 जुलाई। भारत के अलग-अलग राज्यों से आने वाले कांवड़ यात्री हर साल यूपी के शामली ज़िले से होकर गुज़रते हैं.
ये कांवड़ यात्री अपने सफ़र में यमुना में स्नान करते हैं और यहां रहने वाले मुसलमान गोताखोर इनकी हिफ़ाज़त करते हैं.
ये कहानी उन मुसलमान गोताखोरों की है जो लगभग दस सालों से कांवड़ यात्रियों के लिए यमुना स्नान को सुरक्षित बना रहे हैं.
ये मुस्लिम मल्लाह तैराक पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से यमुना के अलग-अलग घाटों पर अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं.
शामली ज़िले की कैराना तहसील के सीओ अमर दीप मौर्य ने बताया है कि ये तैराक पिछले कुछ सालों में कई लोगों की जान बचा चुके हैं.
वह कहते हैं, "कैराना में यमुना के अलग-अलग घाटों पर तैनात ये मुसलमान तैराक पिछले एक दशक में कई लोगों की जान बचा चुके हैं. हालांकि, अब तक बचाए गए लोगों की संख्या का आधिकारिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है."
कैराना तहसील के सीओ अमर दीप मौर्य भी इन तैराकों की ओर से लोगों को डूबने से बचाने की पुष्टि करते हैं
क्या है पूरा मामला
उत्तर प्रदेश के शामली ज़िले की कैराना तहसील में यमुना नदी के कई घाट पड़ते हैं.
हर साल भारत के अलग-अलग राज्यों से कांवड़ यात्रा करने वाले लोग इन घाटों से होकर गुज़रते हैं.
स्थानीय निवासी नवदीप कुमार कहते हैं, "गर्मियों के समय अक्सर ऐसा होता है कि कांवड़िए इन तटों पर नहाने के लिए रुक जाते हैं. ऐसे में उनके साथ घटनाएं भी होती हैं. प्रशासन की तरफ़ से यहां पुलिस के जवानों और गांव मवी एहतमाल तिमाली और रामडा के 25 मुसलमान गोताखोरों को सुरक्षा के लिहाज़ से लगाया जाता है."
इन गोताखोरों को ज़िला पंचायत की ओर से तैनात किया जाता है.
ज़िला पंचायत ठेकेदार प्रताप सिंह ने बीबीसी से कहा, "इस बार और कोरोना काल से पहले भी एक बार मैं ही इन 25 मुस्लिम गोताखोरों की ड्यूटी लगाता आ रहा हूं. इनको तैनात करने का ठेका जिला पंचायत शामली की तरफ़ से मिलता है. उन्हें एक उचित मेहनताना भी दिया जाता है."
एक सवाल के जवाब में वह कहते हैं, "ये सभी तैराक अपने कार्य में निपुण हैं. इस बार इनकी ड्यूटी 4 जुलाई से लेकर 15 जुलाई तक लगी है. ये लोग अपनी जान की बाज़ी लगाकर कांवड़ियों की हिफ़ाज़त करते हैं."
वह कहते हैं, "आस-पास के गांव में कोई और इतना शानदार तैराक नहीं है, इसलिए इस गांव के युवाओं को ही गोताख़ोरी के लिए मुस्तैद किया जाता है. ये सभी खेवट मल्लाह बिरादरी से हैं."
थाना कोतवाली प्रभारी निरीक्षक विपिन मौर्य कहते हैं, "सुरक्षात्मक दृष्टि से इन युवा निजी तैराकों की ड्यूटी लगी हुई है. कोई यदि असुरक्षित स्थान पर पहुंचता है तो ये उन्हें वहां ना जाने के लिए निर्देश देते रहते हैं. घाटों पर फ़्लड पीएसी भी तैनात रहती है."
'पैसों की नहीं इंसानी जान की परवाह'
मवी एहतमाल तिमाली गांव के बारे में सभी लोगों को मालूम है कि यहां मल्लाह बिरादरी के तमाम लोग रहते हैं.
ग्राम प्रधान के पति ज़ाहिद कहते हैं, "इस गांव की आबादी क़रीब तीन हज़ार है. गांव मुस्लिम बहुल्य है. इस गांव में हर घर में तैराक हैं और वे दूर-दूर तक अपने इस काम के लिए जाने जाते हैं."
"सिर्फ कांवड़ यात्रा ही नहीं बल्कि यमुना किनारे लगने वाले मेलों में भी इन युवाओं को सुरक्षा के लिए लगाया जाता है. बाढ़ आदि की स्थिति में भी उन्हें तैनात किया जाता है. हर साल कई लोगों को ये तैराक बचाते हैं."
वह कहते हैं, "इन्हें मिलने वाले 300 या 400 रुपये के मेहनताने की बात नहीं है, बल्कि आपसी सौहार्द क़ायम करने की ख़ातिर ये युवा इन घाटों पर तैनात रहते हैं. इतने पैसों में क्या होता है, लेकिन ये युवा जिस तरह इंसानियत की ख़िदमत कर रहे हैं, वो बड़ी बात है."
'हम आपसी सौहार्द की ख़ातिर जान दांव पर लगाते हैं'
युवा तैराकों के टीम लीडर दिलशाद अहमद और कुछ अन्य तैराकों से बीबीसी ने बात की है.
उन्होंने बातचीत में कहा कि उन्हें मिलने वाला पैसा नाकाफ़ी होता है, लेकिन जो सौहार्द है, वो मायने रखता है.
दिलशाद अहमद ने बीबीसी से कहा, "देखिए जितने पैसे हमको यहां ड्यूटी में मिलते हैं, उससे अधिक पैसे हम अपने परंपरागत काम में कमा सकते हैं. लेकिन हम ये सोचते हैं कि गंगा स्नान करने वाले लोग इंसान हैं, उनकी जान अगर हम बचा रहे हैं तो यह हमारे लिए ख़ुशनसीबी है."
"हमारे बाप दादा भी ये काम करते थे, लेकिन पिछले एक दशक से अधिक समय से मैं खुद तमाम लोगों की जान बचा चुका हूं. नदी में डूबे शवों को भी हम बाहर निकालते हैं. जब किसी की जान हम बचाते हैं तो जब वह ख़ुशी से हमारे गले लगता है, तब हमें बहुत ख़ुशी मिलती है."
एक अन्य तैराक गुलशाद बीबीसी से कहते हैं, "हमारे घरों में तो बच्चे भी शानदार तैराक हैं. हम पानी के भीतर एक से डेढ़ मिनट तक अपनी सांस रोके रखते हैं, कुछ इससे ज़्यादा भी रोक लेते हैं."
"नदी में काफी गहराई में जाकर हम लोगों को पानी के अंदर से निकालते हैं, हमारी इसी ख़ूबी के चलते, जब कभी भी कोई घटना होती है, तो हमें बुलाया जाता है. हम दूसरे की जान बचाने में अपनी जान की परवाह नहीं करते हैं. हालांकि, हमारी मां, पत्नी इस काम को छोड़ने के लिए ज़िद करती हैं."
"जिंदगी बचाने में हम हिंदू या मुसलमान नहीं देखा करते हैं, हमारे लिए इंसानियत सबसे बड़ी चीज़ है. अब तक हम सौ से अधिक लोगों की जान बचा चुके हैं, इनमें बच्चों और युवाओं की संख्या सबसे अधिक है."
वह ये भी बताते हैं कि कई बार नदी में डूबने वाले लोगों की संख्या ज़्यादा होती है.
एक अन्य तैराक दिलशाद कहते हैं, "इस समय यमुना अपने उफान पर है, पानी का बहाव बहुत तेज़ है, पानी की सन्नाटे दार तेज़ आवाज़ और ऊंची-ऊंची पटारें डराने के लिए काफी हैं."
"लेकिन जब इंसानों को बचाने और कर्तव्य की बात आती है तो हम बिल्कुल नहीं डरते. हालांकि, कई बार हमें भी डर रहता है कि पता नहीं पानी के नीचे क्या हो, नीचे किसी जाल में, रेत में या किसी अन्य चीज़ में न फंस जाएं पर हमारा अभियान जारी है."
दिलशाद हैं कॉमर्स ग्रेजुएट तो अफ़ज़ाल पॉलीटेक्निक
इन 25 तैराकों में शामिल दिलशाद अहमद ने कॉमर्स में स्नातक तक की पढ़ाई की है.
वहीं, अफ़ज़ाल ने पॉलीटेक्निक की पढ़ाई की है.
दिलशाद बीबीसी से कहते हैं, "मैंने कॉमर्स स्ट्रीम में स्नातक किया है, लेकिन पैसों के अभाव के चलते मैं आगे की पढ़ाई नहीं कर पाया. आर्थिक स्थिति ज़्यादा बेहतर नहीं है."
"हम अपने बच्चों को भी पढ़ाना तो चाहते हैं, लेकिन पैसा नहीं होने के कारण उन्हें आगे बढ़ाने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं."
अफ़ज़ाल अहमद ने हरियाणा के कैथल में एक सरकारी कॉलेज से पॉलीटेक्निक की पढ़ाई की है. हालांकि, दूसरे वर्ष में ही उन्होंने पढ़ाई को छोड़ दिया क्योंकि उनके घर की आर्थिक स्थिति ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया.
अफज़ाल ने बीबीसी से कहा, "मैंने पॉलिटेक्निक की पढ़ाई दूसरे साल से छोड़ दी थी. घर की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं थी क्योंकि मुझे हरियाणा में रहकर पढ़ाई करनी होती थी, तो वहां किराए पर घर लेना और तमाम अन्य ख़र्चे घर वाले बर्दाश्त नहीं कर पाए, लेकिन मैं अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाऊंगा."
बचाए गए लोगों का आंकड़ा नहीं मौजूद
पानीपत की रहने वाली प्रेमलता हरिद्वार से कांवड़ लेकर वापस लौटी हैं. उन्होंने कहा, "देखिए यहां गोताखोरों की अच्छी व्यवस्था है, वैसे, गोताखोरों की ही बचाने की ज़िम्मेदारी नहीं होती है, बल्कि गंगा स्नान करने वाले लोगों को ख़ुद भी चाहिए कि वे सुरक्षित स्थानों पर ही गंगा स्नान करें."
अलग-अलग स्थानों पर तैनात ये तैराक तमाम लोगों की जान तो बचा चुके हैं, लेकिन इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा ना तो पुलिस के पास है और ना ही इन तैराकों के पास है. कैराना के सीओ अमर दीप मौर्य भी इन तैराकों की ओर से लोगों को डूबने से बचाने की पुष्टि करते हैं लेकिन उनके पास भी बचाए गए लोगों की संख्या नहीं है. (bbc.com/hindi)