राष्ट्रीय

आलोक जोशी
उद्योगपति हर्षवर्धन गोयनका ने एक एक्सरे प्लेट की तस्वीर ट्वीट की. साथ में लिखा है हम उस एकमात्र व्यवसायी की कमी महसूस करेंगे, जिनका यह एक्सरे है. तस्वीर में है एक रीढ़ की हड्डी. एकदम सीधी रीढ़ की हड्डी.
यह हर्ष गोयनका की श्रद्धांजलि है, हमारे वक़्त के सबसे दमदार उद्योगपति राहुल बजाज को. बजाज ऑटो समूह के पूर्व चेयरमैन राहुल बजाज ने शनिवार को ८३ साल की उम्र में आख़िरी सांस ली.
हालांकि उससे पहले ८३ साल की ज़िंदगी में राहुल बजाज ने बहुत कुछ हासिल किया, बहुत से लोगों को बहुत कुछ दिया, बहुत से सपने देखे और लाखों लोगों के सपने पूरे भी किए, लेकिन एक लाइन में राहुल बजाज की पूरी जिंदगी को समेटना हो तो हर्ष गोयनका का यह ट्वीट काफ़ी है.
राहुल बजाज की पूरी ज़िंदगी इस बात की गवाह है कि कैसे ख़ुद को बुलंद रखके काम भी किया जाता है और अपने उसूलों पर बरकरार भी रहा जाता है.
उन्होंने अलग-अलग वक़्त पर उस दौर की सरकारों से, अपने देशी-विदेशी कारोबारी साथियों से, सरकारी नियम क़ायदों से या फिर अपने परिवार या समाज की तरफ़ से आ रहे दबावों से मुक़ाबला करते हुए हमेशा अपनी पीठ सीधी रखी और कभी बेलाग बात करने से परहेज भी नहीं किया.
ताजा उदाहरण करीब दो साल पहले का है, जब एक अख़बार के आयोजन में उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह के सामने साफ़-साफ़ कहा कि देश में डर का माहौल है. इसके लिए सरकार समर्थक लोगों ने तो उनकी घेराबंदी की ही ख़ुद उनके बेटे तक दबाव में आ गए और उन्होंने कहा कि शायद बजाज साहब को वो नहीं कहना चाहिए था जो उन्होंने कहा और अगर कहना भी था तो शायद उस मंच पर नहीं कहना चाहिए था.
यह तो सिर्फ़ एक उदाहरण था इस बात का कि कितने दबावों के बीच भी राहुल बजाज खरी खरी कहने से गुरेज़ नहीं करते थे. यह अकेला उदाहरण नहीं है. उनकी जिंदगी ही ऐसी तकरारों की एक लंबी दास्तान है.
एक गांधीवादी परिवार में जन्मे राहुल बजाज ने क़रीब आधी सदी तक एक ऐसा कारोबार चलाया जो भारत के सबसे बड़े उद्योग समूहों में से एक है. आज जब देश की सड़कों पर कारों की भरमार है, यह समझना आसान नहीं है कि जिस दौर में साइकिल की सवारी भी एक सपना हुआ करती थी, तब इस देश में स्कूटर बनाना और पूरे देश को उसकी आदत डलवा देना कितनी बड़ी चुनौती रही होगी.
लेकिन राहुल बजाज ने न सिर्फ़ यह चुनौती कबूल की बल्कि तमाम बंदिशों के बावजूद ऐसे स्कूटर बनाकर दिखाए जिनके लिए लोग आठ-आठ साल तक इंतज़ार करते थे.
अपने दम पर बनाकर दिखा "बजाज चेतक"
स्कूटर का पहला कारखाना बजाज ऑटो ने इटैलियन कंपनी पियाजियो के साथ मिलकर लगाया था. लेकिन एक वक़्त आया कि पियाजियो ने बजाज ऑटो के साथ लाइसेंसिंग एग्रीमेंट को आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया.
उनके क़रार की शर्त के हिसाब से आगे बजाज ऑटो वैसे स्कूटर बना भी नहीं सकता था. लेकिन तब राहुल बजाज के भीतर का गांधीवादी जाग उठा और उन्होंने पियाजियो के साथ समझौता टूटने के बाद भी स्कूटर बनाना जारी रखा.
बल्कि यही वक़्त था जब उन्होंने बजाज चेतक नाम का नया स्कूटर लॉन्च किया जो कुछ ही समय में बजाज का सबसे हिट स्कूटर साबित हुआ. इस मसले पर उन्हें पियाजियो के साथ अंतरराष्ट्रीय अदालतों में बहुत लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी लेकिन इरादे टस से मस नहीं हुए.
इसी वक़्त वो देश की सरकार से भी लोहा ले रहे थे. उनका कहना था कि अगर लोगों को स्कूटर चाहिए और हमारी कंपनी स्कूटर बना सकती है तो इसके लिए हमें सरकार से परमिट की ज़रूरत क्यों पड़नी चाहिए.
यह वक़्त था जब कंपनी पर इस बात के लिए जुर्माना लग जाता था कि उसे जितने स्कूटर बनाने की मंज़ूरी दी गई है, उसने उससे ज़्यादा कैसे बना दिए. जबकि दूसरी तरफ़ लाखों लोग स्कूटर पाने के लिए इंतज़ार में थे.
इस मसले पर और कई दूसरे मसलों पर भी सरकारों के साथ उनकी खींचतान चलती रहती थी. शायद यही वजह थी कि उद्योगपतियों के बीच भी वो ख़ासे लोकप्रिय थे और यह बिरादरी स्वाभाविक तौर पर उन्हें अपना नेता मानती थी.
उनके जुझारू स्वभाव का ही असर है कि उद्योग संगठन सीआईआई इतना तेज़ तर्रार संगठन बन पाया. राहुल बजाज अकेले ऐसे उद्योगपति हैं जो दो बार सीआईआई के अध्यक्ष रहे.
सीआईआई से जुड़े लोग राहुल बजाज को एक पितृपुरुष के तौर पर या बिरादरी के बुज़ुर्ग के रूप में ही देखते रहे हैं. जब दोपहिया वाहनों का कारोबार और दूसरे तमाम कारोबार विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिए गए तब राहुल बजाज का एक और ही रूप सामने आया.
अब तक उद्योगों पर तमाम पाबंदियां ख़त्म करने की वकालत करनेवाले राहुल बजाज और उनके तमाम साथी उद्योगपतियों को अब आशंका सताने लगी. उन्हें फ़िक्र थी कि सरकार विदेशी कंपनियों को ऐसी छूट दे रही है कि भारत के घरेलू उद्योग उनके सामने टिक नहीं पाएंगे. कारोबारियों का यह समूह बॉम्बे क्लब के नाम से मशहूर हो गया था और उनकी मांग थी कि भारतीय कंपनियों को विदेशी कंपनियों से मुक़ाबले के लिए सरकार कुछ और रियायतें दे ताकि विदेशी कंपनियों के साथ मुक़ाबला बराबरी का हो सके.
हालाँकि बाद में बजाज को भी कावासाकी के साथ हाथ मिलाना पड़ा ताकि वो हल्की मोटरसाइकिलों के मुक़ाबले में ठहर सके.
दुनिया के आर्थिक मंच पर भारत की आवाज़ मज़बूती से रखने के मामले में राहुल बजाज का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है. विश्व आर्थिक फोरम यानी डावोस सम्मेलन के भारतीय चैप्टर या इंडिया इकोनॉमिक समिट के आयोजन के पीछे भी उन्हीं का हाथ था.
इस आयोजन की शुरुआत से अभी तक राहुल बजाज ने लगातार इसे दिशा दिखाने और भारत की ज़मीनी हक़ीक़त से इसे जोड़े रखने का काम बख़ूबी निभाया.
"बेटों ने कारोबार से बाहर कर दिया"
दो साल पहले जिस आयोजन में उन्होंने गृह मंत्री को आईना दिखाया, वहीं उन्होंने यह भी कहा कि उनके बेटों ने उन्हें कारोबार से बाहर कर दिया है. अक्सर वो मज़ाक में भी कहा करते थे कि आजकल के बच्चे माँ बाप की सुनते कहाँ हैं.
लेकिन उनके बाद उनका कारोबार कैसे चलेगा इसका इंतज़ाम वो काफ़ी पहले कर चुके थे. अपने कारोबार से और साथ काम करनेवाले लोगों से उनका कितना लगाव था इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुणे के आलीशान कोरेगाँव पार्क इलाक़े को छोड़कर उन्होंने अपना घर अकुर्डी में वहीं बनवाया जहाँ उनका स्कूटर कारखान था.
लेकिन फिर इस कारोबार को उन्होंने पूरी तरह अपने बेटों के हवाले भी कर दिया और ख़ुद आख़िर तक देश दुनिया की फ़िक्र में लगे रहे.
राहुल बजाज अपनी शख्सियत के लिए याद किए जाएंगे, कभी न झुकनेवाली रीढ़ की हड्डी के लिए याद किए जाएंगे, अपने स्कूटरों और कारोबार के लिए याद किए जाएंगे, समाज कार्य के लिए याद किए जाएंगे. लेकिन सबसे ज़्यादा दिलों को याद रहेगा उनकी कंपनी का विज्ञापन - बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर, हमारा बजाज.