नारायणपुर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
नारायणपुर, 6 दिसंबर। नारायणपुर जिले के ओरछा ब्लॉक के कोंगे ग्राम पंचायत का आश्रित गांव बिनागुंडा है। यहां 27 परिवार के 200 आदिवासी परिवार रहते हैं। इस गांव में बांस-बल्ली से स्कूल तो बनाया गया है, लेकिन खपरैल की छत वाले झोपड़ीनुमा स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं पहुंच रहे हैं। इसके चलते इस शिक्षा सत्र में अब तक पढ़ाई ही शुरू नहीं हो पाई। बताया जा रहा है कि इस गांव में 60 से अधिक बच्चे हैं।
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि कांकेर जिला के प्राथमिक शाला कंदाड़ी में बिनागुंडा के आदिवासी बच्चों का एडमिशन कराया गया था, लेकिन अक्टूबर में बच्चों को दूसरे जिले नारायणपुर का बताते हुए स्कूल से निकाल दिया गया है।
इस संबंध में ओरछा के बीईओ डीबी रावटे ने कहा कि वहां के पदस्थ शिक्षक द्वारा जीरो दर्ज संख्या का प्रतिवेदन कार्यालय में जमा किया है। इसमें ग्रामीणों का भी हस्ताक्षर है।
वहीं इस संबंध में बीईओ कोयलीबेड़ा देव कुमार शील ने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया कि मेरे आदेश के पश्चात बिनागुंडा के 3 बच्चों को एडमिशन ले लिया गया है।
स्थानीय ग्रामीण सुक्कू, पंडरु, मनकू पद्दा ने कहा कि पहले स्कूल में दो-तीन महीने में एक बार शिक्षक स्कूल आते थे, लेकिन अब तो सत्र ही समाप्त होने वाला है। अब तक स्कूल में शिक्षक नहीं पहुंचे हैं। इसके चलते अब तक पढ़ाई ही शुरू नहीं हो पाई है।
आगे बताया कि बच्चों के भविष्य को देखते हुए जुलाई में कंदाड़ी गांव के प्राथमिक स्कूल में प्रवेश के लिए गए। कंदाड़ी के हेडमास्टर ने दूसरे जिले के बच्चे कहकर नारायणपुर बीईओ से आदेश मंगवाया। दूसरे जिले के बच्चे कहकर अक्टूबर में बिना कोई सूचना दिए बच्चों को स्कूल से निकाल दिया गया।
ग्रामीणों के भी हस्ताक्षर
अपढ़ गांववालों के हस्ताक्षर कराकर टीचर ने स्कूल को ही बंद करा दिया। जंगल और पहाड़ों से घिरे बिनागुंडा गांव में कागजों पर ही विकास हो गया है। यहां सरकारी भावनों का निर्माण अधूरा है, जिसमें स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र भी शामिल है।
बिनागुंडा गांव के करीब 38 बच्चे दूर-दूर के आश्रमों में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन गांव में रहने वाले आदिवासी बच्चे पढ़ाई से पूरी तरह से वंचित हैं। बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए पालकों ने अपने बच्चों का प्रवेश कराया था, अब उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया।
5 साल में मात्र एक दिन गर्म भोजन व रेडी-टू-ईट मिला
सरकार भले ही कुपोषण की मुक्ति के लिए कई योजनाएं चला रही हो, लेकिन इन योजनाओं का लाभ बिनागुंडा के बच्चों को नहीं मिल रहा है। अति कुपोषित बच्चे गांव में होने के बावजूद भी महिला एवं बाल विकास विभाग ध्यान नहीं दे रहा। गांव में 5 साल से आंगनबाड़ी संचालित है, लेकिन 5 साल में बच्चों को मात्र एक दिन गर्म भोजन और एक बार रेडी-टू-ईट आहार मिला है।
ग्रामीणों ने बताया कि गांव में कई बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित है, लेकिन यहां इलाज की कोई सुविधा नहीं है। यहां से लगभग 15 से 20 किलोमीटर दूर छोटे बेठिया गांव में इलाज के लिए जाते हैं, लेकिन वहां भी सरकारी सुविधा पर्याप्त नहीं है।