महासमुन्द

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 6 सितम्बर। महासमुंद जिले के विकासखंड बागबाहरा ग्राम पंचायत ढोंड़ की महालक्ष्मी आदिवासी महिला स्वसहायता समूह की महिलाएं बांस से खूबसूरत गुलदस्ते, सूपा, टोकरी बनाती हैं। बांस के प्रति यहां के लोगों की रुचि को देखते हुए स्थानीय महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बांस शिल्प और काष्ठ कला का प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षित प्रमिला कमार अब अपनी बाड़ी के बांस का उपयोग बखूबी करती हैं। समूह की महिलाओं के साथ विभिन्न प्रकार की बांस की सामग्री गुलदस्ते, सूपा, टोकरी आदि बनाकर अपनी आमदनी में इजाफ ा कर रही है।
प्रमिला कमार ने इस काम की शुरुआत खुद की बाड़ी के बांस से की। हालांकि मिशन द्वारा उन्हें अब बांस उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि अधिक लाभ मिल सके। जिला प्रशासन ने उसकी बांस शिल्प कला को लेकर विशेष प्रयास किया और वन विभाग ने भी बातचीत कर वन डिपो से बांस की खेप भेजना शुरू किया। यह प्रक्रिया आज भी जाारी है। ताकि समूह की महिलाएं कलात्मक चीजों के जरिए अपना बेहतर जीवन यापन कर सके। स्थानीय लोगों को इसका नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
गौरतलब है कि जिले में कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार की पहल पर कौशल उन्नयन के स्वरोजगारोन्मुखी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। वैसे प्लास्टिक के सामानों का उपयोग बढऩे और सहज उपलब्धता के कारण इस शिल्प की बिक्री पर भी असर पड़ा है, बांस के सामानों की पूछपरख कम होने लगी है फिर भी महासमुंद मुख्यालय सहित ग्रामीण इलाकों के स्थानीय निवासियों एवं आदिवासी महिलाओं को बांस कला के साथ-साथ उनकी अभिरुचि और स्थानीय बाजार मांग के अनुसार अन्य कला में प्रशिक्षण देकर हुनरमंद बनाया जा रहा है।
महासमुंद जिला पंचायत ने भी मापदण्ड के आधार पर 18 वर्ष से 30 साल उम्र के साक्षर लोगों को उनकी अभिरूचि के अनुसार प्रशिक्षण देकर उन्हें सूपा, टोकरियां, कंधे पर ढोई जाने वाली बहगी, मछली फंसाने वाला जाल के साथ ही घरेलू सजावट की वस्तुएं मसलन फूलदान, हैंडबैग आदि बनाने के प्रशिक्षण देने की ठानी है। कलेक्टर डोमन सिंह और जिला पंचायत के सीईओ आकाश छिकारा चाहते हैं कि जिले की ग्रामीण और शहरी महिलाएं आत्मनिर्भर हों। इससे परिवार में खुशहाली आएगी और पीढिय़ां अच्छी तरह से पढ़ लिख सकेंगी। इनका मानना है कि महिलाएं परिवार का आधार स्तंभ बन सकती हैं। विपरीत परिस्थितियों से निपटने का हौसला उनमें भरपूर होता है। उन्हें दरकार है तो बस एक हुनर का जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। यही वजह है कि इन महिलाओं द्वारा निर्मित सामानों को सरकारी प्रदर्शनी, आसपास के बाजारों और मड़ई मेलों में स्टाल लगाकर महिलाएं अपने हुनर से पैसे कमाती हैं।
गौरतलब है कि बांस की कलाकृतियां प्रदेश में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी खासा लोकप्रिय है। बांस शिल्प की कलाकृतियां शहरों, गांवों में अधिकांश घरों में देखी जा सकती है। यह काफी सस्ता, सुलभ एवं लोकप्रिय है। ग्रामीण-आदिवासी महिलाएं बांस शिल्प के उपयोग और महत्व को बखूबी जानती और पहचानती हैं। लिहाजा वे बांस से अनेक उपयोगी एवं मनमोहक सामग्रियां तैयार करती हंै। बांस की खूबसूरत टोकरियां, रंगबिरंगी सूपा, कई तरह की डिजाईनों वाली चटाईयां, रोजमर्रा के कई तरह के घरेलू उपयोग की चीजें बनाकर वे बाजारों में बेचती हैं। इस जरिए से उनकी आय में मुनाफा हुआ है।