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‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 28 नवंबर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने लैब टेक्नीशियन के एक समूह द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें राज्य सरकार को सेवा नियमों में संशोधन कर प्रमोशन का मार्ग बनाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने साफ कहा कि नए पदों का सृजन, नियमों में संशोधन या कैडर संरचना तय करना पूरी तरह कार्यपालिका का अधिकार है। अदालत इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण निर्णयों, खासतौर पर 2008 के अरावली गोल्फ क्लब केस का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि आर्थिक व प्रशासनिक प्रभाव वाले निर्णय न्यायालय नहीं ले सकता। अदालत ने कहा कि वह स्वयं को कार्यपालिका की भूमिका में नहीं ला सकती और न ही सरकार को पद सृजन या भर्ती नियम संशोधन के लिए मजबूर कर सकती है।
यह याचिका छह लैब टेक्नीशियन, जिनमें डॉ. ओम प्रकाश शर्मा भी शामिल हैं, की ओर से दायर की गई थी। वे कई सरकारी कॉलेजों में पिछले 22 से 40 वर्षों से एक ही पद पर कार्यरत हैं। उनका तर्क था कि एमपी क्लास-तीन सर्विस रिक्रूटमेंट एंड प्रमोशन (महाविद्यालय शाखा) नियम 1974 में लैब टेक्नीशियन के लिए कोई प्रमोशन का रास्ता नहीं है, जिससे वे पूरे करियर में एक ही पद पर अटके रहते हैं।
राज्य सरकार की ओर से उपस्थित उप महाधिवक्ता एस.एस. बघेल ने दलील दी कि कैडर संरचना और नियम संशोधन कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र है। उन्होंने यह भी बताया कि याचिकाकर्ताओं को 2001, 2009 और 2019 में समयमान वेतनमान के रूप में वित्तीय प्रगति दी गई है, जो करियर में ठहराव दूर करने का मान्य तरीका है। इसलिए उन्हें कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ।
कोर्ट ने राज्य की दलील से सहमति जताते हुए कहा कि सिर्फ प्रमोशन न होने से याचिकाकर्ताओं को ऐसा कानूनी अधिकार नहीं मिल जाता कि न्यायालय सरकार को सेवा नियम संशोधित करने का निर्देश दे।
इस आधार पर हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि उसे 1974 के नियमों में बदलाव कराने का कोई विधिक आधार नहीं है।


