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सपने बिखर गए, अपने बिछड़ गए- छात्रा की तलाश में भटक रहे भाई-पिता, मासूम को मां की तलाश
05-Nov-2025 2:07 PM
सपने बिखर गए, अपने बिछड़ गए- छात्रा की तलाश में भटक रहे भाई-पिता, मासूम को मां की तलाश

छत्तीसगढ़' संवाददाता 

बिलासपुर, 5 नवंबर। मंगलवार की बिलासपुर-गतौरा के बीच हुई रेल दुर्घटना ने न केवल दर्जनों परिवारों की खुशियां लूट लीं, बल्कि शहर के दिल में एक गहरा जख्म छोड़ दिया है। अब जबकि हादसे को चौबीस घंटे से बीत रहे हैं, रेलवे ट्रैक तो साफ़ कर दिया गया है, लेकिन ज़मीन पर बिखरे जूते, किताबें, टिफिन बॉक्स, टूटी चूड़ियाँ और खून से सने कपड़े उस दर्द की गवाही दे रहे हैं, जो दर्जनों जिंदगियों पर टूटा।

मेमू लोकल ट्रेन मंगलवार की शाम गेवरा से बिलासपुर की ओर बढ़ रही थी। उसके डिब्बों में नौकरी से लौटते कर्मचारी, कॉलेज की छात्राएं, परिवार संग यात्रा कर रहे लोग, और रोजाना सफर करने वाले स्थानीय यात्री सवार थे। किसी को जरा भी अंदाज़ा नहीं था कि कुछ ही मिनटों में यह ट्रेन उनकी ज़िंदगी की आखिरी मंज़िल बन जाएगी।

चांपा से सफर कर रही प्रिया का पता नहीं

शाम करीब 4 बजे बिलासपुर स्टेशन पहुंचने के 10 मिनट पहले जोरदार धमाके के साथ ट्रेन पटरी से उतर गई। सामने खड़ी मालगाड़ी से इतनी भयानक टक्कर हुई कि लोहे का ढांचा माचिस के डिब्बे की तरह चिपक गया। दूर तक टक्कर की आवाज सुनी गई। बोगियों में बैठे लोग कुछ समझ पाते, इससे पहले ही चीख-पुकार मचने लगी।
इसी ट्रेन में गुरु घासीदास विश्वविद्यालय की छात्रा प्रिया चंद्रा सवार थी, जो सक्ती जिले के जैजैपुर ब्लॉक के ग्राम बहेराडीह की रहने वाली थी। सोमवार दोपहर वह चांपा स्टेशन से ट्रेन में बैठी थी। लेकिन हादसे के बाद से वह लापता है। उसके पिता और भाई बिलासपुर पहुंचकर प्रिया को अस्पतालों में ढूंढ रहे हैं। मगर उसका नाम न तो घायलों में है और न ही मृतकों में। परिवार की हालत बदहवास है।  

मां-मां पुकार रहा मासूम
रेस्क्यू के दौरान चकनाचूर डिब्बे के बीच से जब बचावकर्मी एक छोटे से बच्चे की चीख सुनते हैं, तो सब रुक जाते हैं। लगभग दो साल का बच्चा सीट और खिड़की के बीच फंसा मिला। उसके सिर में चोट आई है। उसे बाहर निकाल लिया गया है और इलाज चल रहा है।। वह बार-बार मां-मां पुकार रहा है, लेकिन उसकी मां का पता नहीं चल रहा है। फिलहाल रेलवे पुलिस की महिला स्टाफ व रेलवे के डॉक्टरों ने मासूम को निगरानी में रखा है।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हादसे के तुरंत बाद पूरा क्षेत्र सायरनों की आवाज से गूंज उठा। गतौरा के एक युवक ने बताया कि मैं अपने घर के पास था, आवाज इतनी भारी थी कि मेरे पैरों तले जमीन हिल गई। मानो आसमान से कोई बड़ा टुकड़ा किसी ने नीचे पटक दिया है।  भागते हुए जब मौके पर पहुँचा, तो कुछ देर के लिए समझ ही नहीं आया कि वह कैसे मदद कर सकता है।  

रेलवे और एनडीआरएफ की टीमों ने मौके पर पहुँचकर गैस कटर से बोगी के दरवाज़े काटे।
लोको पायलट विद्यासागर का शव इंजन में ही फंसा रहा। गैस कटर से उनका शव निकाला गया। जब काफी देर तक वह बिना हिले-डुले फंसे रहे तो ही बचाव दल ने उनको लेकर उम्मीद छोड़ दी थी।, जबकि सह पायलट रश्मि राज ने कूदकर जान बचाई। ट्रेन से कूदने की वजह से उन्हें भी गंभीर चोटें आई हैं।

क्षतिग्रस्त डिब्बे में सफर कर रहे एक दंपती एक दूसरे से लिपटे हुए ही मौत के आगोश में समा गए। यह दृश्य देखकर वहां लोगों की आंखें भर आईं। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे ही ट्रेन ने मालगाड़ी से टक्कर मारी, दोनों ने एक दूसरे को बचाने की कोशिश की। उसी क्षण सामने की लोहे की सीट उनके सिर से टकराई, और दोनों ने वहीं दम तोड़ दिया। जब बचाव दल अंदर पहुँचा, तो उनका हाथ अब भी एक-दूसरे के गले में था।  

सिम्स, अपोलो और जिला अस्पताल के गलियारों में घायलों का इलाज चल रहा है पर वहां आज सन्नाटा पसरा है। अधिकांश घायलों के परिजनों से संपर्क हो चुका है और वे अस्पताल पहुंच चुके हैं, मगर 11 में से 4 मृतकों की शिनाख्त अभी तक नहीं हो पाई है।
इस बीच क्षतिग्रस्त डिब्बे ट्रैक से हटा दिए गए हैं और पटरियों पर आवागमन सामान्य हो चुका है लेकिन इस जगह पर दुर्घटना की भयावहता को देखने के लिए लोग पहुंच रहे हं।


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