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राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित पंचुराम सागर की शिल्प मावली माता, झिटकु-मिटकु बना आकर्षण का केंद्र
रायपुर, 03 नवंबर। नवा रायपुर में आयोजित भव्य राज्योत्सव के शिल्पग्राम में छत्तीसगढ़ की पारंपरिक ढोकरा कला (बेलमेटल शिल्प) को देखने बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं। लॉस्ट वैक्स तकनीक से तैयार होने वाली बस्तर की यह प्राचीन कला आज भी अपनी मौलिक पहचान बचाए हुए है। शिल्पग्राम में लोग ढोकरा शिल्प की मूर्तियों, सजावटी वस्तुओं और पारंपरिक आकृतियों को देखने और खरीदने पहुंच रहे हैं।
स्थानीय कला को मिल रहा है बढ़ावा
प्रदेश के हर जिले से आए शिल्पकारों को इस आयोजन में अपनी कला प्रदर्शित करने का बेहतरीन अवसर मिला है। कलाकारों को न केवल मंच मिला है, बल्कि नए बाजार और नए खरीदारों तक पहुंच भी मिली है।
ढोकरा कला के प्रति लोगों का काफी उत्साह
कोंडागांव के भेंलवापदरपारा से आए राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त कलाकार पंचुराम सागर ने बताया कि राज्योत्सव जैसे भव्य आयोजन में कलाकारों को पहचान और सम्मान मिलता है। उन्होंने कहा कि लोगों में ढोकरा कला के प्रति काफी उत्साह है और वे इस कला की निर्माण प्रक्रिया और महत्व के बारे में भी पूछ रहे हैं। श्री सागर की लोकप्रिय कृतियां मावली माता, झिटकु-मिटकु और महाराणा प्रताप जैसे उत्कृष्ट शिल्प को लोग खूब पसंद कर रहे हैं।
बस्तर के चिलकुटी गांव से आईं कु. उर्मिला की कृति ‘आदन झाड़’ भी दर्शकों को आकर्षित कर रही है, जो उनके लिए रोचकता का विषय भी बन रही। उर्मिला ने बताया कि यह कृति बस्तर की परंपरा और प्रकृति से जुड़ी है। इसमें दीमक भिंभोरा और आदमकद शेर की आकृति जनजातीय संस्कृति और प्रकृति संरक्षण का संदेश देती है।
सारंगढ़ से आए मिनकेटन बघेल, कृष्णचंद और रायगढ़ के एकताल के रघु झारा भी अपनी झारा शिल्प के साथ शिल्पग्राम आए हैं, इनके स्टॉल्स पर भी अच्छी भीड़ देखी जा रही है। झारा शिल्पकारों द्वारा निर्मित
झारा शिल्प लोगों को लुभा रहा है l
बिलासपुर जिले के सीपत से आए रमेश कुमार धुलिया अपनी बांस शिल्प कृतियों टुकनी, पर्रा, की-होल्डर और फ्लॉवर पॉट के साथ लोगों का ध्यान खींच रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्योत्सव के माध्यम से उन्हें अपनी कला को अधिक लोगों तक पहुंचाने का अवसर मिला है और लोग भी खुशी से खरीदारी कर रहे हैं।


