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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पुलिस गौसेवा कर रही है या गौ-मालिकों की सेवा?
अभी एक पत्रकार ने फेसबुक पर सडक़ों पर बैठे जानवरों के लिए आवारा पशु लिख दिया, तो बहुत से लोग उस पर टूट पड़े, और लिखने लगे कि गौमाता को आवारा पशु लिखा है। भावनाओं के ऐसे सैलाब के इस देश में अभी छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पुलिस ने दस हजार गौवंश के गले में रेडियम कॉलर बेल्ट लगाने की मुहिम चालू की है। पुलिस ने प्रेसनोट में लिखा है कि बारिश में आवारा मवेशी अधिकतर साफ जगह की तलाश में सडक़ पर झुंड बनाकर बैठते हैं जिसके कारण दुर्घटना की आशंका रहती है। इसे ध्यान में रखते हुए पुलिस ने आवारा मवेशियों के गले में रात को चमकने वाले रेडियम कॉलर बेल्ट लगाकर हादसों को काबू करने का अभियान चालू किया है। पुलिस का कहना है कि इससे गाडिय़ों की रौशनी से दूर से ही मवेशी दिख जाएंगे, और इससे इंसानों की मौतें भी रूकेंगी, और गौवंश की रक्षा भी होगी। पुलिस के इसी प्रेसनोट में बताया गया है कि जिले में 2024 में ऐसी 19 दुर्घटनाओं में 6 लोगों (इंसानों) की मौत हुई, और दो गंभीर रूप से घायल हुए। 2025 के पहले 6 महीनों में 12 दुर्घटनाएं हुईं, 6 मौतें हुईं, और 2 लोग घायल हुए। आंकड़े बड़े दुखदायी, लेकिन दिलचस्प है। पिछले पूरे साल में जितने मरे और घायल हुए थे, ठीक उतने ही अब 6 महीनों में हो चुके हैं। अब पिछले 15 दिनों से ट्रैफिक पुलिस के अधिकारी-कर्मचारी मवेशियों के गले में रेडियम कॉलर बेल्ट बांध रहे हैं, और 1500 से अधिक मवेशियों को इसे बांधा जा चुका है।
राजधानी पुलिस की इस कार्रवाई को इस रौशनी में देखा जाना चाहिए कि अभी छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट सडक़ों पर मवेशियों को लेकर सुनवाई और नोटिस का शायद अर्धशतक पूरा कर चुका है, और ऐसा लगता है कि ये रेडियम पट्टे हाईकोर्ट में सरकारी वकील की मदद करने के लिए लगाए जा रहे हैं, इन्हें गायों के गले में कम लगाया जा रहा है, हाईकोर्ट जजों की आंखों पर अधिक लगाया जा रहा है, ताकि उन्हें हकीकत न दिखे। सच तो यह है कि आवारा मवेशी कहे जाने वाले ये जितने भी जानवर हैं, इनके कोई न कोई मालिक हैं। जो लोग अपने जानवरों को बांधकर रखने के बजाय उन्हें खाने के लिए छुट्टा छोड़ देते हैं, और चारों तरफ जमीन गीली होने की वजह से बेबसी में ये जानवर सूखी सडक़ पर आकर बैठते हैं, गाडिय़ोंतले खुद भी कुचलकर मारे जाते हैं, और ऐसे हादसों में इंसानी जिंदगियां भी जाती हैं। ऐसे में इन जानवरों को पालने और छोड़ देने वाले लोगों की गिरफ्तारी होनी चाहिए, लेकिन गिरफ्तारी होती है गाड़ी चलाने वालों की, जिनमें से कई जेल जाते हैं, और कई इस धरती को छोडक़र ऊपर चले जाते हैं।
पुलिस की बहुत सारी कार्रवाई ऐसी रहती है मानो उसे चुनाव लडऩा है। पुलिस को उसे मिले अधिकारों के तहत जहां कार्रवाई करनी चाहिए, वहां वह समाजसेवा, गौसेवा, और इंसान की सेवा करने में लग जाती है। जो लोग हेलमेट लगाकर नहीं चल रहे हैं, उन्हें पुलिस कहीं पर गुलाब भेंट करती है, कहीं पर उन्हें हेलमेट भेंट कर देती है। जिन लोगों पर जुर्माना लगना चाहिए, उन्हें मुफ्त का हेलमेट मिल रहा है। गायों के मालिकों को जेल जाना चाहिए, तो सडक़ पर गाड़ी चलाने वाले बेकसूर लोगों को ऐसे हादसों में जेल भेजा जाता है, और गौ-मालिकों को छोड़ दिया जाता है। आज हर कस्बे में एक-एक, दो-दो ऐसे गौ-मालिक गिरफ्तार हो जाएं, तो सडक़ों पर एक जानवर न दिखे, लेकिन हाईकोर्ट में अपनी सक्रियता साबित करने के लिए पुलिस रेडियम के बेल्ट पहनाते घूम रही है। हो सकता है इसके बाद पुलिस सडक़ के किनारे थानों में आवारा मवेशियों, कम से कम गौवंशियों, या गायों के लिए खाने का इंतजाम भी करते दिखेगी, ताकि जानवर सडक़ों पर न जाएं। अधिकतर थानों के पास अहाते हैं, या कम से कम जमीन हैं, या पुलिस इतनी ताकत रखती है कि किसी भी जमीन को घेरकर वहां पर किसी से जानवरों के लिए बाड़ा बनवाकर कम से कम गौवंशी जानवरों को वहां रखे, चारा खिलाए, पानी का इंतजाम करे, और हो सके तो पशु चिकित्सक को भी वहीं रख ले। पुलिस चाहे तो कई हवालातियों को गौसेवा में लगा सकती है, और थाना बहुत सारे पुण्य का भागीदार हो सकता है। अगर थानों को गौशाला में बदल दिया जाए, तो राज्य सरकार के ऊपर से गौठान या गौशाला बनाने का दबाव भी कम हो जाएगा, और पुलिस को भी स्वर्ग में अपने लिए बेहतर क्वार्टर पाने की एक राह मिल जाएगी। हाईकोर्ट के जज भी सडक़ रास्ते से आते-जाते यह देख सकते हैं कि सरकार की तरफ से पुलिस थानों में जान लगा दे रही है, गौसेवा के लिए फरार वारंटियों को पकडक़र थानों में हवालाती बनाकर उनसे काम करवा रही है। पुलिस अगर इतना करने लगेगी तो यह तय है कि सडक़ हादसे कम हो जाएंगे, यह एक अलग बात है कि बाकी जुर्म का क्या होगा। बात अभी धार्मिक भावना की है, गौसेवा की है, हाईकोर्ट की नाराजगी दूर करने की है।
सडक़ों पर इंसान मारे जा रहे हैं, और उनकी जिंदगी लेने के जिम्मेदार गौ-मालिक छुट्टे घूम रहे हैं। यह एक अजीब किस्म का इंसाफ है। हाईकोर्ट सरकार से कुछ करवा तो नहीं पा रहा है, लेकिन जजों की आंखों पर रेडियम पट्टी बांधने के लिए पुलिस जरूर काफी कुछ कर रही है। इस अंदाज का इलाज अगर सरकारी अस्पतालों में भी अगर होने लगे, तो वहां पहुंचे जख्मी के जख्मों की सिलाई और मरहम पट्टी के पहले उसके हाथ-पांव के नाखूनों पर रेडियम पॉलिश लगाया जाएगा ताकि सडक़ पर रात-बिरात वह दुबारा कुचला न जाए। हम हाईकोर्ट की सहनशक्ति की तारीफ करते हैं, और उसके बेअसर होने के दुख में हम सहभागी हैं।