सामान्य ज्ञान

बांधनी कला
19-Mar-2021 12:14 PM
बांधनी कला

बांधनी कला , बांधकर अथवा गांठ लगाकर रंगाई करने का भारत में प्रचलित तरीका है। रेशमी अथवा सूती कपड़े के भागों को रंग के कुंड में डालने के पूर्व मोमयुक्त धागे से कसकर बांध दिया जाता है। बाद में धागे खोले जाने पर बंधे हुए भाग रंगहीन रह जाते हैं। यह तकनीक भारत के बहुत से भागों में प्रयोग की जाती है, लेकिन गुजरात  और राजस्थान में यह बहुत लंबे समय से प्रयोग में रही है। आज भी ये राज्य इस तकनीक के बेहतरीन काम के लिए जाने जाते हैं। इस तकनीक के सुरक्षित नमूने 18वीं सदी से पहले के नहीं हैं, जिससे इसके प्रारंभिक इतिहास का पता लगाना मुश्किल हो गया है।
बांधनी को बनाने में काफी मेहनत लगती  है और यह काम बहुधा युवा लड़कियों द्वारा किया जाता है, जो कपड़े पर निपुणता से कार्य करने के लिए लंबे नाखून रखती हैं। इसमें कपड़े को कई स्तरों पर मोडऩा, बांधना और रंगना शामिल हैं। अंतिम परिणाम लाल या नीले रंग की पृष्ठïभूमि पर सफेद अथवा पीली बिंदियों वाला वस्त्र होता है। इस कला में ज्यामितीय आकृतियां सबसे अधिक लोकप्रिय हैं, लेकिन पशुओं, मानवीय आकृतियों, फूलों तथा रासलीला आदि दृश्यों को भी कई बार शामिल किया गया है।
 

यजुर्वेद संहिता
यजुर्वेद हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ है । ये चार वेदों में से एक है । इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और मंत्र हैं । यजुर्वेद कर्मकाण्ड से जुड़ा हुआ है। इसमें विभिन्न यज्ञों (जैसे अश्वमेध) का वर्णन है। यजुर्वेद पाठ अध्वुर्य द्वारा किया जाता है। यजुर्वेद 5 शाखाओं में विभक्त् है- (1) काठक (2) कपिष्ठल (3)मैत्रियाणी (4)तैतीरीय (5) वाजसनेयीन ।
यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- कृष्ण यजुर्वेद (दक्षिण भारत) और शुक्ल यजुर्वेद (उत्तर भारत)। इसमें कर्मकाण्ड के कई यज्ञों का विवरण है। जिनमें प्रमुख हैं-अग्निहोत्र, अश्वमेध, वाजपेय, सोमयज्ञ, राजसूय, अग्निचयन।
 


अन्य पोस्ट