सामान्य ज्ञान
1 फरवरी 2003 का दिन भारत के लिए भी मायूसी लेकर आया था। इस दिन अंतरिक्ष से अपनी 16 दिन की यात्रा पूरी कर लौट रहा कोलंबिया यान नष्ट हो गया था। जिसमें भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला की भी मौत हो गई थी।
इस हादसे में अमेरिका, भारत और पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई थी। इस हादसे में भारतीय मूल की अमेरिकी कल्पना चावला सहित सात अंतरिक्ष यात्री सदा के लिए आकाश के हो गए। इनमेेंं अंतरिक्ष वैज्ञानिक रिक डी., विलियम सी., माइकल पी. एंडरसन, कल्पना चावला, डेविड एम. ब्राउन, लॉरेल क्लार्क और इलान रेमन शामिल थे।
इस हादसे के बाद फ्लोरिडा के अंतरिक्ष स्पेस स्टेशन का झंडा आधा झुका दिया गया। आसमान से अंतरिक्ष यान का थोड़ा बहुत मलबा टेक्सास और लुईजियाना के आस पास गिरा। नासा भावुक हो गया। सात अंतरिक्ष यात्रियों में दो महिलाएं थीं, लॉरेल क्लार्क और कल्पना चावला। हरियाणा के करनाल में पैदा हुई कल्पना चावला बच्चियों और महिलाओं के लिए मिसाल बनीं। भारत में पढ़ाई करने के बाद अमेरिकी एजेंसी में काम करने वाली चावला का यह दूसरा अंतरिक्ष दौरा था।
कोलंबिया स्पेस शटल को मिशन एसटीएस 107 के तहत 11 जनवरी 2001 को अंतरिक्ष स्टेशन में भेजा जाना था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। 16 जनवरी 2003 को जब यह मिशन अंतरिक्ष की ओर रवाना हुआ उससे पहले इस मिशन को करीब बारह बार रद्द करना पड़ा था। इसके पीछे कई तकनीकी खामियां जुड़ी थी।
जिस वक्त कोलंबिया यान केनेडी स्पेस स्टेशन से रवाना हुआ उसके 81 सैकेंड के बाद ही यान से लगे एक्सटरनल टैंक पर लगा एक फॉम का हिस्सा टूट कर गिर गया था। यान की रफ्तार बेहद तेज होने की वजह से यह इतनी तेजी से यान के पिछले विंग से टकराया की वह टूट गया। लेकिन इसको यान में बैठे अंतरिक्ष यात्री नहीं जान पाए। बावजूद इसके नासा को यह बात पता चल चुकी थी। उन्हें इस बात का अंदाजा हो चुका था कि अब इस मिशन का वापस लौटना नामुकिन है। यह अंदाजा सही साबित हुआ और एक बड़ा हादसा हो गया।
भक्तिकाल
हिन्दी साहित्य का मध्य काल भक्तिकाल के नाम से प्रसिद्ध है। इस अवधि में कबीर, रैदास ,गुरु नानक, दादूदयाल सुंदरदास, मलूकदास, कुतबन, मंझन, जायसी, उसमान, सुंदरदास, परमानंददास, कुंभनदास, नंददास, हितहरिवंश , हरिदास, रसखान, धु्रवदास, मीराबार्ई, तुलसीदास, अग्रदास, नाभादास आदि ने अपनी भक्तिपूर्ण रचनाओं से हिंदी साहित्य को एक से बढक़र एक रचनाएं दीं ।
इन कवियों के आराध्यों के नाम में भले ही अंतर है, लेकिन समर्पण की भावना सभी में विद्यमान है । भक्तिकाल का आरंभ 14वीं- 15 वीं शताब्दी में माना जाता है।


