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यूरो जोन का 18 वां सदस्य लातविया
06-Jan-2021 12:45 PM
यूरो जोन का 18 वां सदस्य लातविया

लातविया या लातविया गणराज्य   उत्तरपूर्वी यूरोप में स्थित एक देश है और उन तीन बाल्टिक गणराज्यों में से एक है जिनका द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भूतपूर्व सोवियत संघ में विलय कर दिया गया। इसकी सीमाएं लिथुआनिया, एस्टोनिया, बेलारूस, और रूस से मिलती हैं। यह आकार की दृष्टि से एक छोटा देश है और इसका कुल क्षेत्रफल 64 हजार 589 वर्ग किमी  है। 
लातविया यूरो जोन का 18वां सदस्य 2 जनवरी 2014 को बन गया।  यूरो जोन में आने के पूर्वानुमान में देश के गरीबों, आम और अमीर जनता तीनों ने क्रेडिट रेटिंग को उठाने में मदद किया। लातविया की अर्थव्यवस्था 2008 से 2010 के दौरान एक चौथाई कम हो गई थी, लेकिन इसके बाद यूरोपीय संघ में इसकी अर्थव्यवस्था में सबसे तीव्र वृद्धि हुई। वर्ष 2012 में लातविया सरकार द्वारा सरकारी खर्चों और मजदूरी में कटौती और यूरोप में बेहद सख्त कार्यक्रम के मद्देनजर कर में बढ़ोतरी के बाद इसमें 5.6 फीसदी वृद्धि हुई।  लातविया हाल ही में यूरोपीय संघ में सबसे तेजी से बढऩे वाली अर्थव्यवस्था बनने के लिए वित्तीय संकट से उभरा है।
लातविया ने वर्ष 1991 में सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की। वर्ष 2004 में वह यूरोपीय संघ और नाटो में शामिल हुआ। बीस लाख की आबादी वाले इस देश में रूसी मूल के करीब 30 फीसदी लोग हैं और इसका सकल घरेलू उत्पाद 28 अरब डॉलर वार्षिक है।
लातविया इस मुद्रा क्षेत्र का चौथा सबसे छोटा देश है और इसका स्थान साइप्रस इस्टोनिया और माल्टा से ऊपर है। इस्टोनिया 2011 ने यूरो जोन में शामिल  हुआ जबकि लुथियाना का लक्ष्य वर्ष 2015 तक इसमें शामिल होने का है।
 

समुद्र  में मीठा पानी  

वैज्ञानिकों ने ऑस्ट्रेलिया , चीन , उत्तरी अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका के तटों के पास समुद्र के नीचे स्वच्छ जल के भंडारों का पता लगाया है। ये मीठा पानी है।  ये इतने बड़े हैं कि इनसे दुनिया को जल संकट से निजात दिलाने में मदद मिल सकती है। 
नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में समुद्री तल के नीचे कई किलोमीटर तक फैले क्षेत्र में करीब पांच लाख घन किलोमीटर पानी मौजूद है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पानी कम लवणता का है और इससे दुनिया के समुद्री तटों पर बसे शहरों को जल आपूर्ति की जा सकती है। ऑस्ट्रेलिया की फलाइंडर्स युनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट के वैज्ञानिक डॉ. विंसेंट पोस्ट का मानना है कि इस पानी की मात्रा पिछली एक सदी के दौरान जमीन से निकाले गए पानी से सौ गुना ज्यादा है। 
समझा जाता है कि समुद्र के खाने पाने के बीच मौजूद इन जलाशयों का निर्माण हजारों वर्षों के दौरान हुआ है। शुरू-शुरू में औसत समुदी स्तर आज की तुलना में बहुत नीचे था और समुदी तट दूर तक फैले हुए थे। बारिश का पानी जमीन में समा जाता था। समुद्री तटों की यह जमीन अब समुद्र के नीचे है। ऐसा पूरी दुनिया में हुआ है। करीब 20 हजार  वर्ष पहले जब धु्रवीय टोपियां पिघलनी शुरू हुईं तो समुद्र का जल स्तर भी बढऩे लगा। तब ये इलाके समुद्र में डूब गए थे। आश्चर्यजनक बात यह है कि समुद्र के खारे पानी का इन जलाशयों पर कोई असर नहीं हुआ है क्योंकि ये जलाशय मिट्टी की कई परतों से ढंके हुए हैं। 
 


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