सामान्य ज्ञान
तिलहनी फसलों में तोरिया अर्थात लाही की खेती कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। तोरिया 90 से 95 दिन के बीच तैयार हो जाती है, इसकी बुवाई का उपयुक्त समय 15 से 30 सितंबर तक रहता है।
तोरिया के लिए जल निकास वाली हल्की दोमट मिट्टी अति उत्तम रहती है, इसकी बुवाई के लिए खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। तोरिया तिलहनी फसल है, इसलिए इसमें सल्फर युक्त उर्वरकों जैसे सिंगिल सुपर फास्फेट का उपयोग करना चाहिए। सिंगिल सुपर फास्फेट उपलब्ध न होने पर जिप्सम का प्रयोग किया जा सकता है। तोरिया में मृदुरोमिल आसिता और सफेद फफोला रोग के प्रकोप की संभावना रहती है, जिसकी रोकथाम के लिए रिडोमिल की छह ग्राम मात्रा प्रति किग्रा बीज की दर से प्रयोग करना चाहिए।
केंद्र सरकार ने वर्ष 2015-16 में विपणन किए जाने वाले उचित औसत गुणवत्ता (एफएक्यू) के तोरिया के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को प्रति क्विंटल 3020 रुपए के स्तर पर बरकरार रखने का निर्णय लिया है।
हमारे देश में तोरिया रबी की फसल है। गेंहूं, मक्का और दालों के साथ मिश्रित फसल के रूप में इसकी पैदावार ली जाती है। इसके बीज मुख्य फसल के साथ एकान्तर पंक्तियों में अथवा खेत में छिटका कर बोये जाते हैं। तोरिया की फसल को पकने में 85 से 100 दिन लग जाते हैं। तोरिया की विभिन्न किस्मों में तेल की मात्रा 30 से 48 फीसदी तक होती है। तोरिया का तेल मुख्य रूप से खाने के काम आता है।


