सामान्य ज्ञान

हिमालय पर्वत की चोटियों में साल भर हिम जमी रहती है। इसलिए वहां पेड़-पौधे उग ही नहीं सकते। अगर हम हिम से घिरे इस ऊंचे इलाके से कुछ नीचे उतरें तो पहाड़ों की ढलानों पर मुलायम रसीली घास पाएंगे। यहां इतनी ठंड है कि पेड़ नहीं उग सकते हैं। मगर यहां पर घास भी गर्मी के महीनों में ही उग पाती है। इस घास वाले प्रदेश से और नीचे उतरने पर ही हमें पेड़ देखने को मिलेंगे। सबसे पहले नुकीली, सुईनुमा पत्तियों के कोणधारी पेड़ों के वन मिलेंगे। इनमें पाईन (चीड़) और देवदार के पेड़ प्रमुख है। देवदार का पेड़ बहुत ऊंचा (40 मीटर तक) होता है। कोणधारी वन के प्रदेश से नीचे उतरने पर चौड़े पत्तों के वन मिलते हैं जिनमें तरह-तरह के पेड़ होते हैं, जैसे ओक, बर्च आदि।
हिमालय पर खेती लायक जमीन बहुत कम है। खेतिहर भूमि की कमी के कारण पहाड़ों पर आबादी कम और बिखरी हुई है। यहां के लोग सदियों से पहाड़ो की ढलानों पर सीढ़ीनुमा खेत बनाकर खेती करते आए हैं। हिमालय के लोग सीढ़ीनुमा खेतों में चावल, मक्का, सब्जियां और फल उगाते हैं। जानकर आश्चर्य होगा कि इन खेतों में सब्जियां बहुत अच्छी होती है। शिमला के पहाड़ी आलू और शिमला मिर्च, सेब, आलू बुखारा, खुबानी, नाशपाती, आलूचा और चेरी जैसे फल हिमालय के पहाड़ों की ढलानों पर बहुत होते हंै।
हिमालय पर साढ़े चार हजार मीटर की ऊंचाई चढऩे पर पहाड़ों पर साल भर हिम जमी रहती है। इस पर्वतमाला की ऊंचाइयां हिम से ढंकी रहने के कारण ही इसका नाम हिमालय पड़ा। गर्मी के दिनों में यह हिम का विशाल भंडार पिघलने लगता है। ये हिम के भंडार पिघलने पर गंगा, यमुना जैसी बड़ी-बड़ी नदियों को जन्म देते हैं। आसमान को छूने वाली, चमकीली बर्फ से ढकी ये चोटियां हिमालय पर्वत की है। इन्हीं पर्वतों में दुनिया की सबसे ऊंची चोटियां हैं। यहीं से गंगा-यमुना, सिंधु-सतलज जैसी साल भर बहने वाली नदियां निकलती है।
हिमालय पर्वत पश्चिम से पूर्व तक 2.500 कि.मी. लंबा है। इसके पश्चिम छोर पर जम्मू-कश्मीर राज्य और पूर्वी छोर पर अरुणाचल प्रदेश पड़ता है। हिमालय की चोटियां समुद्र की सतह से लगभग 9 कि. मी. ऊपर हैं। हिमालय में भारत के अन्य प्रदेशों की तुलना में तापमान बहुत कम रहता है। गर्मी के दिनों में हिमालय के निचले हिस्सों में जरूर अधिक गर्मी पड़ती है, लेकिन ऊंचे हिस्सों में बहुत कम गर्मी पड़ती है। ठंड के महीनों में कड़ाके की ठंड पड़ती है। ऊंचे प्रदेशों में तापमान 0 डिग्री सेंटीग्रेड से भी कम हो जाता है। ऐसे में वहां हिमपात होता है, यानी बर्फ गिरती है। बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे तीर्थ स्थान बहुत ऊंचाई पर हैं - वहां जाड़े में खूब बर्फ जम जाती है और वहां के रास्ते बंद हो जाते हैं।
गंगा-यमुना, सिंधु-सतलज नदियां हिमालय के ऊंचे पहाड़ों को काटती हुई बहुत गहरी घाटियों से बहती हंै। बरसात और ठंड की ऋतुओं में ये नदियां बारिश का पानी लाती हैं। गर्मी में हिम से पिघला पानी इन नदियों में बहता है। इस तरह इन नदियों में साल भर भरपूर पानी रहता है। इसके विपरीत, दकन के पठार से निकली नदियों में गर्मी के समय पानी बहुत कम हो जाता है, क्योंकि दकन के पहाड़ों पर हिम नहीं है।
हिमालय पर्वत भारत के उत्तर में एक ऊंची दीवार की तरह खड़ा है। सागर से भाप भरी हवाएं, जो जून और जुलाई के महीनों में यहां पहुंचने लगती हैं, इस दीवार को फांदने के लिए ऊपर उठती हैं। ऊपर भाप भरी हवाएं ठंडी हो जाती हैं, तो भाप पानी की बूंदों में बदल जाती है और नीचे बारिश के रूप में गिरने लगती है। इस कारण हिमालय के कई हिस्सों में वर्षा ऋतु में तेज वर्षा होती है।
एकशरण संप्रदाय क्या था?
मध्यकालीन असम के महानतम धार्मिक सुधारक शंकरदेव द्वारा स्थापित संप्रदाय एकशरण संप्रदाय के नाम से जाना गया।
एकेश्वरवाद इनकी शिक्षाओं का सार था। इन्होंने सर्वोच्च देवता की महिला सहयोगियों (जैसे की लक्ष्मी, राधा, सीता आदि) को मान्यता प्रदान की थी और निष्काम भक्ति पर बल दिया। शंकरदेव के संप्रदाय में भागवत पुराण या श्रीमद्भागवत को गुरुद्वारों में ग्रंथ साहिब की भांति इस संप्रदाय के मंदिरों की वेदी पर श्रद्धापूर्वक प्रतिष्ठित किया जाता था। शंकरदेव मूर्तिपूजा एवं कर्मकांड दोनों के विरोधी थे। ये अकेले कृष्णमार्गी वैष्णव संत थे, जो मूर्ति के रुप में कृष्ण की पूजा के विरोधी थे। असम के महानतम वैष्णव संत होने के कारण वे असम के चैतन्य के रूप में प्रसिद्ध है।