सामान्य ज्ञान
गूलर का पेड़ लगभग पूरी दुनिया में मिलता है। पके हुए गूलर की सब्जी बनाई जाती है। गूलर की छाया ठंडी और सुखकारी होती है। गूलर की लकड़ी बहुत मजबूत और चिकनी होती है। गूलर के फलों का आकार अंजीर के फल जैसा होता है। गूलर के पेड़ के पास कुंआ होने से पानी जल्दी निकल आता है। गूलर की छाया में खुदे हुए कुंए का पानी बहुत गुणकारी होता है और इसमें बहुत से रोगों का नष्ट करने के गुण पाए जाते हैं।
गूलर की प्रकृति ठंडी होती है और यह यह घाव को भरने वाला होता है। यह रुखा और स्वाद में मीठा, फीका और भारी होता है। यह कफ , पित्त, अतिसार और योनि रोग को ठीक करता है। गूलर की छाल की प्रकृति ठंडी होती है। इसके छाल में दूध भरा रहता है और यह स्वाद में फीकी होती है। यह गर्भ के लिए लाभकारी और घावों को भरने वाली होती है। कच्चे गूलर स्तंभक, फीके और गुणकारी होते हैं। यह प्यास को खत्म करने वाला, पित्त, कफ और रक्त विकार को भी दूर करने वाला होता है।
गूलर के फल स्वाद में फीका और मीठा होता है। यह पेट में कीड़े पैदा करने वाला होता है। इसकी प्रकृति ठंडी होती है। खून की खराबी, पित्त, जलन , सांस रोग और बेहोशी को यह नष्ट करता है। यह भूख को बढ़ाने वाला होता है। यह कफ को उत्पन्न करने वाला और भोजन के प्रति रुचि बढ़ाने वाला होता है। यह प्यास और थकावट को दूर करने वाला होता है। यह सूखी खांसी और जकडऩ को दूर करता है। गूलर की लकड़ी के राख को गर्मी के मौसम में घावों पर लगाने से लाभ होता है।
पुराने गूलर स्वाद में फीके और खट्टे होते हैं। यह शरीर में मांस की वृद्धि करने वाला होता और यह खून की खराबी को दूर करता है। गूलर का पका फल खाने में मीठा होता है। मीठा होने के कारण इसमें बहुत जल्दी कीड़े लग जाते हैं।
यूनानी चिकित्सा के अनुसार गूलर दूसरे दर्जे में गर्म और पहले दर्जे में गीला होता है। यह आंखों के रोल, सीने के दर्द, सूखी खांसी, गुर्दे, तिल्ली के दर्द, सूजन, खूनी बवासीर, खून की खराबी, रक्तातिसार, कमर दर्द और फोड़े- फुंसियों को ठीक करने में लाभकारी होता है। आर्युवेद के अनुसार गूलर स्वाद में मीठा, कसैला, भारी और इसकी प्रकृति ठंडी होती है। पित्त, कफ, रक्त विकार को यह नष्ट करने वाला होता है। गर्भ से संबंधित रोग, रक्त प्रदर, मधुमेह, आंखों के रोग, अतिसार ,सूखा रोग, पेशाब से संबंधित रोग और प्रमेह रोह को यह ठीक कर सकता है। इसके सेवन से शरीर में ताकत में वृद्धि होती है और हड्डियों को जोडऩे में यह लाभकारी है।
वैज्ञानिक मतानुसार गूलर के फल में कार्बोहाइड्रेट 49 प्रतिशत, रंजक द्रव्य 8.5 प्रतिशत, भस्म 6.5 प्रतिशत, अलब्युमिनायड 7.4 प्रतिशत, वसा 5.6 प्रतिशत, आद्र्रता 13.6 प्रतिशत पाई जाती है। इसमें कुछ मात्रा में फास्फोरस और सिलिका भी पाया जाता है। इसकी छाल में 14 प्रतिशत टैनिन और दूध में 4. से 7.4 प्रतिशत तक रबड़ होता है।
विभिन्न भाषाओं में गूलर के नाम- हिन्दी- गूलर, अंग्रेजी- क्लस्तर फिग, कंट्री फिग, संस्कृत- उदुम्बर, मराठी- उम्बर, गुजराती-उम्बरो, बंगाली- यज्ञडम्बर, तेलुगू- अधिचेट्टु, फारसी- अंजीरे, अरबी जमीज, उर्दू- डिमरी, लैटिन- फाइकस ग्लोमेराटा।


