सामान्य ज्ञान
प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों में से एक ऋषि थे कश्यप ऋषि। हिंदु धर्म के ग्रंथों में कश्यप ऋषि के बारे में विस्तार पूर्वक उल्लेख प्राप्त होता है। कश्यप ऋषि को सप्त ऋषियों में स्थान प्राप्त हुआ था ।
ऐतरेय ब्राह्मण में इनके बारे में प्राप्त होता है कि उन्होंने ‘विश्वकर्मभौवन’ नामक राजा का अभिषेक कराया था। इसके अतिरिक्त शतपथ ब्राह्मण में प्रजापति को कश्यप कहा गया है। महाभारत एवं पुराणों में कहा गया है कि ब्रह्मा के छ: मानस पुत्रों में से एक ‘मरीचि’ थे जिन्होंने अपनी इच्छा से कश्यप नामक प्रजापति पुत्र को उत्पन्न किया था तथा कश्यप ने दक्ष प्रजापति की सत्रह पुत्रियों से विवाह किया।
सृष्टि के विकास की नींव में ऋषि कश्यप एक ऐसे ऋषि थे जिन्होंने कुल का विस्तार किया था। ब्रह्माजी के मानस पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र ऋषि कश्यप जिन्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। इनकी माता ‘कला’ था जो कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी। पुराणों अनुसार सुर-असुरों के मूल पुरुष ऋषि कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर स्थित था, जहां वे परब्रह्म परमात्मा कि तपस्या में लीन रहते थे। ऋषि कश्यप ने अनेक स्मृति-ग्रंथों की रचना की थी।
पुराणों के अनुसार सृष्टि की रचना के कर्ता ब्रह्माजी से दक्ष प्रजापति का जन्म हुआ और दक्ष प्रजापति को अपनी पत्नी असिक्नी से 66 कन्याएं प्राप्त हुईं थीं। जिनमे से तेरह कन्याएं ऋषि कश्यप की पत्नियां बनीं और मुख्यत: इन्हीं कन्याओं से सृष्टि का विकास एवं निर्माण हुआ माना गया और ऋषि कश्यप सृष्टिकर्ता कहलाए। इसी प्रकार भागवत के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी तेरह कन्याओं का विवाह ऋषि कश्यप के साथ किया था। ऋषि कश्यप की पत्नियों में शामिल हैं- अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और यामिन। ऋषि कश्यप के नाम पर गोत्र का निर्माण हुआ है यह एक बहुत व्यापक गोत्र है जिसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति के गोत्र का ज्ञान नहीं होता तो उसे कश्यप गोत्र का मान लिया जाता है।


