सामान्य ज्ञान
बृहस्पति एक ग्रह है जिसे देवताओं का गुरु कहा जाता है। बृहस्पति का महाकाय लाल धब्बा पृथ्वी से पिछले 300 वर्षों से कुतुहुल का विषय रहा है। यह लाल धब्बा एक 12000& 25000 किमी का अंडाकार क्षेत्र है जो 2 पृथ्वी को अपने में समा सकता है। कुछ अन्य छोटे लेकिन ऐसे ही धब्बे दशकों से देखे गए हंै। अवरक्त किरणों के निरीक्षण और घूर्णन की दिशा से पता चलता है ये महाकाय लाल धब्बा एक उच्च दबाव क्षेत्र है जिसके बादल कुछ ज्यादा ही ऊंचे और आसपास के क्षेत्रों से ठंडे हंै। ऐसे ही क्षेत्र शनि और नेपच्युन पर भी देखे गए हैं। यह अभी तक अज्ञात है कि ये उच्च दबाव के क्षेत्र इतने लम्बे समय तक कैसे बने रहते हैं।
बृहस्पति सूर्य से जितनी ऊर्जा प्राप्त करता है उससे ज्यादा ऊर्जा उत्सर्जित करता है। बृहस्पति का आंतरिक भाग गर्म है, केन्द्रक का तापमान शायद 20 हजार डिग्री केल्विन है जोकि गुरुत्वीय संपीडऩ से उत्पन्न है। बृहस्पति सूर्य के जैसे नाभिकीय संलयन से ऊर्जा नहीं बना सकता है क्योंकि गुरुत्वीय संपीडऩ से प्राप्त ऊर्जा नाभिकीय संलयन प्रारंभ करने के लिये पर्याप्त नहीं है। केन्द्र की यह ऊर्जा बृहस्पति से बाहर नहीं निकल पाती है और बादलों के जटिल प्रवाह को नियंत्रित करती है। शनि और नेपच्युन बृहस्पति के जैसे ही है लेकिन युरेनस कुछ अलग है।
बृहस्पति अपने व्यास मे उतना ही बड़ा है जितना एक गैस ग्रह हो सकता है। यदि उसमे और द्रव्यमान डाला जाए तब भी वह गुरुत्वीय संपीडऩ से उतना ही बड़ा रहेगा। एक तारा इससे ज्यादा बड़ा अपने आतंरिक (नाभिकिय उर्जा) उर्जा श्रोत से ही इससे बड़ा हो सकता है। लेकिन बृहस्पति को तारा बनने के लिये अपने द्रव्यमान से 80 गुणा ज्यादा द्रव्यमान चाहीये।
बृहस्पति का एक विशाल चुंबकीय क्षेत्र है जो कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। इसका चुंबकीय क्षेत्र 65 करोड़ किमी (शनि की कक्षा से बाहर तक) फैला हुआ है। बृहस्पति के चंद्रमा उसके चुंबकीय क्षेत्र के अंदर ही है। इस चुंबकीय क्षेत्र के कारण बृहस्पति के वातावरण में कुछ उच्च ऊर्जायुक्त कण फंसे रह जाते हैं जो की अंतरिक्ष यान, अंतरिक्ष यात्रियों को हानि पहुंचा सकते हंै। यह पृथ्वी के वान एलन पट्टे के जैसा ही है लेकिन काफी उच्च क्षमता का और मानव के लिये घातक हैं।


