सामान्य ज्ञान
बलोच, बलौच या बलूच दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रान्त और ईरान के सिस्तान व बलूचेस्तान प्रान्त में बसने वाली एक जाति है। यह बलोच भाषा बोलते हैं, जो ईरानी भाषा परिवार की एक सदस्य है और जिसमें अति-प्राचीन अवस्ताई भाषा की झलक मिलती है (जो स्वयं वैदिक संस्कृत की बड़ी कऱीबी भाषा मानी जाती है। बलोच लोग क़बीलों में संगठित हैं। वे पहाड़ी और रेगिस्तानी क्षेत्रों में रहते हैं और आसपास के समुदायों से बिलकुल भिन्न पहचान बनाए हुए हैं। एक ब्राहुई नामक समुदाय भी बलोच माना जाता है, हालांकि यह एक द्रविड़ भाषा परिवार की ब्राहुई नाम की भाषा बोलते हैं।
बलोच आबादी पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रान्त , ईरान के सिस्तान और बलूचेस्तान प्रान्त में पाई जाती है। इसके अलावा पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रान्त के दक्षिणी भाग में भी बहुत से बलोच रहते हैं। अफग़़ानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ओमान, बहरीन, कुवैत और अफ्रीका के कुछ भागों में भी बलोच मिलते हैं। बलोच लोग अधिकतर सुन्नी इस्लाम के अनुयायी होते हैं। ईरान में शियाओं की बहुतायत है, इसलिए वहां इनकी एक अलग धार्मिक पहचान है।
बलोच कबीलों में बंटे होते हैं। हर कबीले का एक नाम होता है, जैसे कि बुगटी, मर्री, मेंगलस बिदेंदो, लांगो, बंगुलज़ई , मज़ारी , नुत्कानी , लग़ारी आदि।
बलोच लोगों में धार्मिक कट्टरवाद बहुत कम मिलता है और राष्ट्रीयता की भावना काफी प्रबल है। बलोचिस्तान के ईरानी और पाकिस्तानी दोनों हिस्सों में अलगाववादी विद्रोह समय-समय पर होते रहे हैं। ईरान में शिया-सुन्नी अलगाव को लेकर उनमें भिन्नता की भावना है। गाना-बजाना बलोचों की संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण है और इसमें ढोल का प्रयोग बहुत होता है (इसे बलोचिस्तान में दोहोल कहा जाता है)।


