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विकसित देशों में कैसे होता है कारों का क्रैश टेस्ट
22-May-2021 12:29 PM
विकसित देशों में कैसे होता है कारों का क्रैश टेस्ट

कारों को सुरक्षित बनाने के लिए विकसित देशों में कई कड़े नियम हैं. सडक़ पर आने से पहले कारों को क्रैश टेस्ट भी पास करना होता है। इस प्रक्रिया में कारों को विशेष तौर से कई दौर में टेस्ट किया जाता है ताकि वे सुरक्षित रह सके, जैसे कि-
 1. एनकैप और एडीएसी - जर्मन मोबाइल क्लब एडीएसी और यूरोपियन न्यू कार एसेसमेंट प्रोग्राम (यूरो एनकैप) यूरोप के कई देशों में माना जाता है। यूरोपीय बाजार में नया मॉडल उतारने से पहले कार कंपनियों को इनके टेस्ट पर खरा उतरना पड़ता है। इसमें कई तरह से कार की जांच की जाती है, उसके बाद ही गाड़ी को सडक़ पर उतरने की अनुमति दी जाती है। एनकैप की दुनिया भर में शाखाएं हैं।
2. फ्रंट क्रैश टेस्ट - सीधी टक्कर होने पर कार में सवार लोगों को क्या होगा, यह जानने के लिए फ्रंट क्रैश टेस्ट किया जाता है। कार की अगली दो सीटों पर इंसान जैसी डमी बैठाई जाती है। पिछली सीट पर सेफ्टी सीट के साथ बच्चा होता है। इसके बाद कार को 64 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से लोहे के ढांचे पर भिड़ाया जाता है। टक्कर को कई कैमरों से फिल्माया जाता है। इसका स्लो मोशन वीडियो भी बनाया जाता है। देखा जाता है, कार कितनी उछली, कितने एयरबैग खुले, कब खुले। बच्चे को क्या हुआ। गाड़ी के अंदर बैठायी डमी को कहां कहां कितनी चोट आई।
3. साइड क्रैश- फ्रंट क्रैश टेस्ट के बाद साइड क्रैश टेस्ट होता है। इसमें 50 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से आ रही एक फ्रंट लोडेड क्रैन जैसी गाड़ी को टेस्ट की जा रही कार पर साइड से मारा जाता है। साइड एयरबैग न हो तो इसके परिणाम घातक होते हैं।  
4.  पोल टेस्ट- इसमें कार को सामने और साइड से पोल से टकराया जाता है। इसके जरिये पोल या पेड़ से टकराने पर होने वाले असर का पता लगाया जाता है।
5. रोल ओवर टेस्ट- इस टेस्ट में गाडिय़ों को पलटाया जाता है। इस दौरान यह देखा जाता है पलटने पर साइड बॉडी और उलटने पर छत कितना दबाव बर्दाश्त कर सकते हैं। ज्यादातर विकसित देशों में बसों और सार्वजनिक वाहनों के लिए यह अनिवार्य टेस्ट है क्योंकि यहां मामला यात्री सुरक्षा का है।
6. कहां हैं भारतीय कारें- सुरक्षा के लिहाज से भारत में बिकने वाली ज्यादातर कारें अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरी नहीं उतरतीं। सस्ती और किफायती कार बनाने के चक्कर में कार कंपनियों को क्वालिटी से समझौता करना पड़ता है। भारत में बिकने वाली छोटी कारों में अब भी एयरबैग और एंटी ब्रेकिंग सिस्टम (एबीएस) नहीं होता।  एयरबैग सिर और छाती की चोट से बचाता है। वहीं एबीएस, तेज ब्रेक मारने पर पहियों को एक ही दिशा में लॉक नहीं होने देता है। भारत में बिकने वाली पांच कारें हाल ही में ग्लोबल एनकैप के टेस्ट में नाकाम रहीं। इनमें फ्रेंच कंपनी रेनो की क्विड, जापानी कंपनी सुजुकी की इको और सिलेरियो और हुंडई की इयोन शामिल है। ये तो छोटी या मझोली कारें हैं। महिंद्रा की एसयूवी और बेहद लोकप्रिय स्कॉर्पियो भी टेस्ट में फेल हो गई। भारत सरकार ने कहा है कि 2017 से भारत में भी कारों के लिए क्रैश टेस्ट रेगुलेशन लागू होगा। फिलहाल जो कारें सडक़ों पर हैं उनके लिए भी 2019 सेफ्टी चेक रेगुलेशन
 


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