सामान्य ज्ञान
गिर ,पश्चिमी गुजरात की निम्न पर्वतश्रेणी है। यह दक्षिणी काठियावाड़ प्रायद्वीप यानी पश्चिमी-मध्य भारत का हिस्सा है। यह श्रेणी अत्यधिक ऊबड़-खाबड़ है और दक्षिण में समुद्र की ओर तीखी ढलान तथा उत्तर में भीतरी भूमि की ओर अपेक्षाकृत कम निचली है। यहां से उत्तर दिशा में निचली, संकरी, विभक्त पर्वतश्रेणी फैली हुई है, विशाल गिरनार पहाडिय़ों में गोरखनाथ शिखर (1,117 मीटर) स्थित है, जिसे एक मृत ज्वालामुखी माना जाता है। गिर पर्वतश्रेणी की एक पहाड़ी पर गिरनार का प्राचीन जैन मंदिर (ऐतिहासिक नाम रौवट या उलाड़थेट) होने के कारण इस पर्वतश्रेणी को पवित्र माना जाता है। यह मंदिर एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह पर्वतश्रेणी साल और ढाक के वृक्षां से भरे जंगलों से ढकी हुई है। गिरनार की पहाडिय़ों से पश्चिम और पूर्व दिशा में भादस, रोहजा, शतरूंजी और घेलो नदियां बहती हैं।
गिर पहाडिय़ों पर मुख्यत: भील और डुबला लोगों का निवास है। विरल आबादी वाले इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में जीविका के लिए की जाने वाली कृषि की प्रधानता है। यहां की फसलों में अनाज, मूंगफली और कपास शामिल हैं। बड़े पैमाने पर कुछ उद्योग हैं, जिनमें वस्त्र तथा लोहे व इस्पात के फर्नीचर का निर्माण होता है। कुटीर उद्योगों में बढ़ईगिरी, लकड़ी पर नक्काशी, पीतल के बर्तनों पर वार्निश का काम, कढ़ाई और ऊन की बुनाई शामिल है। एशियाई सिंहों के लिए विख्यात गिर वन राष्टï्रीय उद्यान इसी क्षेत्र में स्थित है। खंबलिया, धारी विसावदर, मेंदरदा ओर आदित्याणा यहां के प्रमुख नगर हैं।
चार्वाक
चार्वाक जिसे लोकायत भी कहा जाता है। यह एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है सामान्यत: विश्व में फैले हुए या सांसारिक। चार्वाक संभवत: किसी प्रधान समर्थक के नाम पर आधारित, पवित्र शास्त्र वेदों, आत्म-अनश्वरता और परलोक की अवधाराणाओं को नकारने वाला भौतिकवादी उपदार्शनिक भारतीय मत है।
ज्ञान (प्रमाण) के मान्यता प्राप्त साधनों में चार्वाक सिर्फ प्रत्यक्ष अनुभव को स्वीकार करते हैं। उन्होंने पूर्ण अवसरवाद का पक्ष लिया और साहित्य में उन्हें कई बार राजकुमारों को संबोधित करता हुआ दिखाया गया है, जिसमें वह आग्रह करते हैं कि वे सिर्फ स्वहित में ही कार्य करें। इस प्रकार उन्होंने ऐसा बौद्घिक वातावरण बनाया, जिसमें कौटिल्य के अर्थशास्त्र जैसी कृति की रचना हो सकी। एक वैकल्पिक और अधिक सुदृढ़ ऐतिहासिक मान्यता यह हो सकती है कि लोकायत आम आदमी की प्राथमिक अभिरुचि-सांसारिक, अस्तित्व के साथ जुड़ी दैनंदिन क्रियाएं अधिक भौतिक समृद्घि तथा अन्य से संबंध रखने वाले विभिन्न मतों के लिए उपयोग में लाया जाने वाला एक विस्तृत शब्द था। सांख्य और योग मतों के विपरीत वे भौतिकवादी थे। चार्वाक लोकायत का अपेक्षाकृत अतिवादी रूप था। हालांकि मध्यकालीन युग तक वैचारिक मत के रूप में चार्वाक या लोकायत का लोप हो चुका था, लेकिन जैन, बौद्घ और शास्त्रीय हिंदू दर्शन साहित्य में इसके खंडन के विस्तृत प्रयासों से किसी जमाने में इसकी महत्ता प्रमाणित होती है। यही साहित्य इस सिद्घांत की जानकारी के प्रमुख स्त्रोत भी हैं।


