सामान्य ज्ञान
ज्वालामुखी में विस्फोट हो सकता है, वो हमेशा जलता दिख सकता है और मुरझाया भी हो सकता है। तीनों ही स्थितियों में ज्वालामुखी ख़ूबसूरत लैंडस्कैप बनाते हैं। दुनिया भर में फैले ऐसे ही 14 लैंडस्कैप पर एक नजऱ-
सल्फऱ का नीला धुंआ- इंडोनेशिया के पूर्वी जावा में स्थित है कावा ईजेन ज्वालामुखी। 2600 मीटर ऊंचे ज्वालामुखी के शीर्ष पर इसका मुहाना है। सल्फ़ूरिक एसिड की झील 200 मीटर गहरी है। जब इससे लावा निकलता है तो तेज़ तापमान से सल्फ़ूरिक गैसों का तापमान भी बढ़ता है। फिर ये गैसें हवा में मौजूद ऑक्सीजन के संपर्क में आते ही नीला धुंआ बनाती हैं।इससे ऐसा लगाता है कि नीला लावा ज्वालामुखी ने निकल रहा है।
बेसॉल्ट (बाजालत) कॉलम-जब ज्वालामुखी पिघलने के बाद ठंडा होना शुरू होते हैं तो लावा भी जमने लगता है और उसमें दरारें भी आने लगती हैं। कई बार लावा कॉलम के आकार में लंबवत जमने लगता है. मतलब कूलिंग सरफ़ेस पर ये कॉलम एकदम खड़े नजर आते हैं।
स्टैच्यू ऑफ़ लव- लाखों साल पहले तुर्की के गोरेम के निकट ज्वालामुखी के विस्फोट से काफ़ी ज़्यादा लावा निकला। समय के साथ धूप-पानी के पडऩे से लावा की परत में कई मीनार जैसी बनावट खड़ी हो गईं। इसे चिमनी भी कह सकते हैं। इसका आकार पुरुष लिंग की तरह है। इसी वजह से तुर्की के कापाडुकिया को लव वैली के नाम से भी जाना जाता है।
स्नाइडर कोन्स- ज्वालामुखी के विस्फोट के दौरान ज्वालामुखी से निकली गैसें सभी दिशा में फैलती हैं, लेकिन जहां पर सुराख होता है उस दिशा में तेजी से लावा बाहर निकलता है। कई बार लावा इतने दबाव के साथ बाहर निकलता है कि उससे लावा फाउंटेन बन जाता है। इससे निकलने वाला लावा कई बार 500 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच जाता है। लावा के नीचे आने से पहले ही वह जमने लगता है। इस दौरान आक्सीजन के संपर्क से और आद्रता के चलते ये लाल रंग के हो जाते हैं।
लावा ट्यूब्स-ज्वालामुखी के विस्फोट से निकलने वाला लावा कई चैनलों में बाहर निकलाता हैन प्रत्येक चैनल के लावा का ऊपरी हिस्सा छत्त की तरह हो जाता है और जल्दी से जमने लगता है, लेकिन निचले हिस्से से लावा का प्रवाह होता रहता है। ताज़ा लावा के आने से वो और आगे बढ़ता है और जमने से अछूता रहता है। लावा ट्यूब्स के नहीं होने से लावा ज्वालामुखी के मुहाने पर ही जम जाता है।
हायड्रोथर्मल फ़ील्ड्स-उत्तर-पूर्व इथियोपिया के डालोल ज्वालामुखी के आसपास का दृश्य बेहद शानदार है। सफ़ेद, गुलाबी, लाल, पीला, हरा, स्लेटी और काले साल्ट से भरा इलाका। ऊपर ज्वालामुखी के मुहाने से निकलता गर्म झरना....यहां औसतन तापमान हमेशा 30 डिग्री से ज्यादा रहता है। यहां के क्रिस्टल अलग अलग आकार और साइज के होते हैं।
वोलकेनिक बम- जब ज्वालामुखी फटता है तो बड़े पैमाने पर लावा निकलता है। जमीन पर टकराने से पहले ये लावा जम सकता है। ये बम जैसे आकार में भी जम सकता है जो काफी दूरी तय करके गिरता है और जमीन पर गिरने के बाद तेज़ी से लुढक़ता है। ये किसी तोप के गोले जैसा होता है. यह पांच से छह मीटर डायमीटर का हो सकता है। इस ज्वालामुखी का लावा प्रति सेकेंड 200 से 400 मीटर की रफ़्तार से चलता है। ये वोल तो उसे ही पिलो लावा कहते हैं. चौंकिए नहीं, तकिए के आकार का लावा


