तस्वीर एक मई, 2018 को मानपुर में हुए कार्यक्रम की है...
-सुदीप ठाकुर
कल शाम मानपुर से मित्र के एस कुंजाम ने संदेश भेजा कि देव प्रसाद आर्य नहीं रहे! कद्दावर आदिवासी नेता देव प्रसाद आर्य से हुई मुलाकातें सहसा याद आ गईं। यों तो उन्हें 1980-90 के दशकों के दौरान एकाधिक बार देखने का मौका मिला था। मगर उनसे लंबी बात करने का पहला मौका मिला था 2013 के छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव के दौरान। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के महाराष्ट्र तथा बस्तर से सटे घने जंगलों वाले मानपुर-मोहला क्षेत्र के उनके गांव हथरा में हुई मुलाकात आदिवासियों के संघर्ष के साथ ही इस अंचल की स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका को जानने-समझने का अवसर बन गई। बिना दूध की चाय के कई दौर के साथ हुई इस बातचीत में उन्होंने बताया था कि कैसे बेमेतरा में स्कूल की मास्टरी करते हुए वह कम उम्र में ही स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए थे और फिरंगी सरकार के अधिकारियों को धता बताकर प्रभात फेरियां निकालते थे। आखिरकार उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।
आजादी मिलने के कई वर्षों बाद उन्होंने मास्टरी छोड़ दी और राजनीति से जुड़ गए और उनकी प्रेरणा बने एक अन्य महान आदिवासी नेता लाल श्याम शाह।
लाल श्याम शाह मोहला पानाबरस के जमींदार थे और उन्होंने आदिवासियों के हक में लंबी लड़ाई लड़ी थी। उनके कई आंदोलनों में देव प्रसाद आर्य कंधे से कंधा मिलाकर उनके साथ थे। लाल श्याम शाह कभी किसी राजनीतिक दल का हिस्सा नहीं बने और उन्होंने दो बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चौकी विधानसभा से चुनाव जीता था। उन्होंने आदिवासियों के हक के लिए समय से पूर्व विधानसभा से इस्तीफा भी दिया। उनके बाद 1962 तथा 1967 में चौकी सीट से देव प्रसाद आर्य ने चुनाव जीता। देव प्रसाद आर्य प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में रहे। उनकी दलगत प्रतिबद्धता लाल श्याम शाह के आंदोलनों से उन्हें अलग नहीं कर सकी। मेरी किताब लाल श्याम शाह, एक आदिवासी की कहानी के सिलसिले में उनसे काफी बातें हुई थीं।
करीब सवा दो वर्ष पूर्व एक मई, 2018 को लाल श्याम शाह के 100वें जन्मदिन के मौके पर जब पानाबरस नागरिक समिति ने मेरी किताब को केंद्रित कर आदिवासी अधिकारों का सवाल विषय पर एक सम्मेलन आयोजित किया था, तो 90 वर्ष से अधिक उम्र होने के बावजूद देव प्रसाद आर्य जी न केवल उसमें आए थे, बल्कि अपनी दमदार आवाज से सभा को संबोधित भी किया था।
लाल श्याम शाह की तरह ही देव प्रसाद आर्य खांटी आदिवासी नेता थे, जिन्हें सत्ता के तमाम प्रलोभन कभी प्रभावित नहीं कर सके। सही मायने में उन्हें जीते जी वैसा सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। उनके निधन से छत्तीसगढ़ ने एक और कद्दावर नेता खो दिया...