सुनील कुमार

यादों का झरोखा-1 : शुरुआत दिग्विजय से
30-Jul-2020 5:33 PM
यादों का झरोखा-1 : शुरुआत दिग्विजय से

इस कॉलम का आज पहला दिन, छत्तीसगढ़ के राज्य बनने के, और रायपुर के राजधानी बनने के पहले दिन से शुरू कर रहा हूं। अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह उस वक्त छत्तीसगढ़ के भी सबसे लोकप्रिय कांग्रेस नेता थे। वैसे तो यहां नेता बड़े-बड़े थे, श्यामाचरण शुक्ल, और विद्याचरण शुक्ल दोनों मौजूद थे, दोनों ताकतवर भी थे। आज इस बात को पढक़र दोनों की आत्मा को कुछ ठेस पहुंचेगी कि दिग्विजय सिंह वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ के बाहर के नेता होते हुए भी इस राज्य में सबसे लोकप्रिय कांग्रेस नेता थे। नेता तो मोतीलाल वोरा भी थे, जो दिग्विजय के काफी पहले मुख्यमंत्री रह चुके थे, और कांग्रेस हाईकमान के बहुत करीबी हो गए थे, लेकिन वे भी लोकप्रियता में दिग्विजय के पासंग नहीं बैठते थे। ऐसे में राज्य बनने के पहले, और बनने का फैसला हो जाने के बाद एक दिन दिग्विजय भोपाल से रायपुर आए। उन्होंने कम्युनिटी हॉल, जहां पर अभी पुलिस मुख्यालय और राजभवन दाएं-बाएं बन गए हैं, वहां पर एक बैठक ली। बैठक में सभी तबकों के लोगों को बुलाया गया, और उनकी राय ली गई कि शहर में कहां क्या बनाया जाए। मौजूद लोग लोगों की भावनाएं एकदम उफान पर थीं, यह राज्य बनने जा रहा है यह बात एकदम से लोगों के गले नहीं उतर रही थी, हालांकि वह संसद के रास्ते, और उसके भी पहले दिग्विजय की विधानसभा के रास्ते हकीकत बन चुकी थी। 

दिग्विजय खुद कुछ पिघले हुए थे, और उन्हें मालूम था कि वे कुछ ही दिन इस इलाके के मुख्यमंत्री हैं, हालांकि उन्होंने खुद पहल करके अविभाजित मध्यप्रदेश की विधानसभा में छत्तीसगढ़ को राज्य बनाने का प्रस्ताव पास करवाया था। कम्युनिटी हॉल में मैं भी मौजूद था, और दिग्विजय सिंह को मैंने घर आने का न्यौता दिया कि इसके बाद पता नहीं वे समारोह में ही आएंगे या कब आएंगे। अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में वे एक बार मेरे घर आएं, ऐसा मैं इसलिए भी चाहता था कि सुख-दुख में वे उस अखबार के साथ खड़े रहे थे जिसमें मैं काम करता था, और मैं कुछ नाजुक मौकों का भागीदार भी था। 
उन्होंने तुरंत हॉं कहा, मैं मोटरसाइकिल से घर लौटा, और कुछ देर बाद दिग्विजय का काफिला वहां आ गया। उनके साथ अफसरों की गाडिय़ां भी थीं, और कांग्रेस के भी बहुत से नेता साथ आए थे। लेकिन यह दिग्विजय की भलमनसाहत थी कि उन्होंने साथ आए तमाम लोगों को बरामदे में ही रोक दिया, और भीतर अकेले ही आए। बैठक में बैठकर वे तीन लोगों के छोटे से परिवार से बात करते रहे, और जब उन्हें एक नॉनअल्कोहलिक वाईन पेश की गई, तो वे कुछ हड़बड़ाए, और फिर जोरों का ठहाका लगाते हुए मेरे बेटे से बोले- अब तुम मुझे वाईन पिलाना सिखा रहे हो...!

मेरे डिजाइन किए हुए घर को वे खूब देर तक खड़़े देखते रहे, साथ में तस्वीरें खिंचवाईं, और एक व्यस्त दौरे के बीच जिसे काफी कहा जा सकता है, उतना वक्त गुजारकर वे गए। 

फोटो : पीटीआई

लेकिन एक मुख्यमंत्री के रूप में उनकी उदारता का मुझे पहले भी तजुर्बा हो चुका था। इसके काफी पहले जब मेरी मॉं गुजरीं, तब देर रात फोन पर लगी, नई-नई आंसरिंग मशीन पर उनका रिकॉर्ड किया हुआ मैसेज मिला कि उन्हें मॉं के गुजरने की खबर से तकलीफ हुई है, और अगले दिन उन्हें रायपुर आना था, और वे घर आएंगे। इसके बाद उस वक्त रायपुर-भिलाई के आईजी सीपीजी उन्नी का फोन आया कि सीएम कल एयरपोर्ट से सीधे मेरे घर पहुंचेंगे। 

अगले दिन वे आए, एयरपोर्ट से सीधे घर आए, एक ही दिन पहले अंतिम संस्कार हुआ था, तो पूरा परिवार घर पर ही थे। आते ही उन्होंने परिवार के उन तमाम लोगों के पैर छुए जो कि उनसे बड़े थे, और जितनी देर बैठे, किसी तरह की राजनीतिक चर्चा नहीं की, सिर्फ परिवार से बात की, और फिर निकले। 
उनका एक और तजुर्बा अभी कुछ बरस पहले का, जब उनकी पत्नी का कैंसर से निधन हो गया था, और अमृता से उनकी दूसरी शादी हुई थी। अमृता राज्यसभा टीवी पर एक बहुत अच्छी पत्रकार रह चुकी थीं, और उसके कुछ कार्यक्रमों में मैंने हिस्सा लिया था, इसलिए उनसे मेरा टेलीफोन और टीवी का परिचय था। उन दिनों मैं स्लिपडिस्क की वजह से बिस्तर पर था, और मैसेंजर पर ही अमृताजी से बात हुई थी। उनसे दिग्विजय को पता लगा कि मैं ऐसी तकलीफ में हूं तो उन्होंने खबर करवाई कि डोंगरगढ़ से देवी दर्शन करने के बाद लौटकर वे घर आएंगे। वे आए, खासी देर बैठे, वे खुद स्लिपडिस्क से गुजरे हुए थे, इसलिए उनके पास देने के लिए बहुत सारी नसीहतें थीं। यहां से लौटने के बाद वे नर्मदा परिक्रमा के लिए निकलने वाले थे, और उस बारे में भी देर तक बात होती रही। 
छत्तीसगढ़ की राजनीति के बारे में अपने तजुर्बे को लिखते हुए आज अचानक यह भी याद पड़ रहा है कि भोपाल के वक्त से अब तक, दिग्विजय सिंह ने सुख-दुख के मौकों पर रिश्ता रखा, साथ निभाया, और उनके खिलाफ पिछले अखबार में जितना तेजाबी मैंने लिखा था, मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने कभी उसका कोई हिसाब चुकता नहीं किया। दूसरी तरफ उनसे अधिक सीनियर छत्तीसगढ़ के बहुत से कांग्रेस नेताओं का तजुर्बा इससे बहुत अलग रहा, जो न सुख में साथ रहे, न दुख में साथ रहे, और न उनसे ऐसी कोई उम्मीद ही रही, कोई कमी भी नहीं खली।
 
दिग्विजय सिंह बुनियादी रूप से एक अच्छे इंसान, रिश्तों और पहचान का खूब ख्याल रखने वाले नेता हैं, और यही वजह है कि वे आज भी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के अधिकतर नेताओं से अधिक लोकप्रिय हैं, और इस प्रदेश के पूरे संगठन में उनका खूब सम्मान है। जिस वक्त वे अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, उस वक्त भी वे छत्तीसगढ़ में इतने नेताओं को, प्रमुख सामाजिक व्यक्तियों को, अखबारनवीसों को नाम से जानते और बुलाते थे जितना छत्तीसगढ़ के बाकी तमाम दिग्गज कांग्रेस नेता मिलकर भी नहीं जानते थे। उनके बारे में कई और बातें फिर कभी। 
-सुनील कुमार

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