दयाशंकर मिश्र

साथ-साथ!
20-Nov-2020 12:45 PM
साथ-साथ!

कोरोना ने हमारे बीच रिश्तों की कमजोर नींव को उजागर किया है. जीवन में संकट आते जाते रहते हैं. कोरोना वायरस भी जाएगा ही, लेकिन इसने हमारे जीवन के जिन गंभीर संकटों पर प्रश्न किए हैं, हमें उन्हें समय रहते सुलझाना चाहिए.


हम एक-दूसरे के साथ रहते हुए भी एक-दूसरे से दूर होते जाएं, तो इससे हमारी निकटता दूरी में बदलती जाती है. देशभर में कोरोना के आगमन के बाद हम लोग एक नए तरीके के जीवन में प्रवेश कर गए हैं. पहले हम कहते थे, एक-दूसरे के लिए समय नहीं. अब स्थिति यह हो गई है कि एक-दूसरे से दूरी के लिए छटपटाने लगे हैं. रिश्तों में कितनी ही निकटता क्यों न हो, लेकिन फिर भी निजता का ख्याल बहुत ही कोमल और जरूरी है. कोरोना ने हमारे बहुत सारे मिथक तोड़ दिए हैं. कोरोना ने हमें बता दिया है कि एक-दूसरे से बहुत अधिक निकटता के परिणाम कितने घातक हो सकते हैं. देशभर में जिस तरह से पारिवारिक अदालतों में घर के विवाद सामने आए हैं वह चौंकाने वाले तो हैं, लेकिन आश्चर्यचकित नहीं करते. बहुत-सी चीजों पर हम पर्दा डालते रहते हैं, लेकिन पर्दा डालते रहने से कुछ समय तक उससे नजर हटाई जा सकती है, लेकिन समस्या तो भीतर ही भीतर बढ़ती जाती है. हमारे परिवार और समाज में संवाद की कमी पर लंबे समय से ऐसे ही कुछ पर्दे डाले हुए थे.

परिवार में आर्थिक विषयों, संकट को लेकर पुरुषों का रवैया, महिलाओं की आर्थिक विषयों से दूरी इनमें से प्रमुख है. जीवन संवाद को इस बारे में देशभर से संदेश प्राप्त हुए हैं. जहां, पढ़े-लिखे और जागरूक परिवारों में भी यह देखा गया कि पुरुष आर्थिक संकट से खराब तरीके से जूझ रहे हैं, लेकिन इसे अपने जीवनसाथी से साझा करने में उन्हें शर्म महसूस होती है!

कोरोना के कारण लंबे समय तक घर में रहने से बहुत-सी बातचीत अनजाने में सार्वजनिक हो गई. इससे घर में तनाव बढ़ा. आर्थिक मामलों में भारतीय पुरुष स्वयं को बहुत अधिक जानकार मानने का भ्रम रखते हैं, जबकि स्थिति ठीक इसके उलट होती है.

मुझे यह कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं कि अधिकांश भारतीय परिवारों की खराब आर्थिक स्थिति का कारण पति-पत्नी में घर की अर्थव्यवस्था के प्रति पारदर्शिता की कमी और अपनी आर्थिक स्थिति का दिखावा करने की धारणा है. ‌‌हम दूसरों से तुलना में इतने अधिक व्यस्त हो जाते हैं कि अपनी असली स्थिति से बहुत दूर चले जाते हैं. एक छोटा-सा उदाहरण मैं आपसे साझा करता हूं, संभव है इससे मेरी बात अधिक स्पष्ट हो सके.

मेरे एक परिचित ने दोपहर में मुझे फोन किया. उनकी आवाज में थोड़ी चिंता थी, उन्होंने मुझसे कुछ वित्तीय सहायता मांगते हुए कहा कि उनकी पत्नी अस्पताल में हैं और कुछ रुपयों की आवश्यकता है. उनके द्वारा मांगी गई रकम मेरी सीमा के भीतर थी और मैंने तुरंत उन्हें उपलब्ध कराई. कुछ समय बाद मुझे पता चला कि उन्हें यह रकम सरलता से उनके अपने आस-पड़ोस से मिल सकती थी, लेकिन उन्होंने ऐसा इसलिए नहीं किया ताकि उनकी छवि एक मजबूत व्यक्ति की बनी रहे. इतना ही नहीं वह अनेक वर्षों से कर्ज लेकर खर्च कर रहे हैं, लेकिन उनकी पत्नी को इसकी कोई जानकारी नहीं थी. उनकी पत्नी बहुत सुलझी हुई महिला हैं. संयोगवश एक दिन हमारा मिलना हुआ, तो उन्होंने मुझसे कहा कि अगर कभी किसी तरह के वित्तीय सहयोग की जरूरत हो, तो मैं उन्हें जरूर बताऊं! मेरे साथ एक मित्र थे. उन्होंने हिम्मत करके सारा किस्सा उनसे बयान कर दिया, क्योंकि वह भी मित्र-मंडली का हिस्सा हैं. उसके बाद परिचित ने कहा कि वह अपनी छवि के प्रति बहुत सतर्क हैं. आसपास में प्रतिष्ठा बनी रहे, इसलिए उन्होंने उनसे मदद नहीं ली.

कोरोना ने हमारे बीच रिश्तों की कमजोर नींव को उजागर किया है. जीवन में संकट आते जाते रहते हैं. कोरोना वायरस भी जाएगा ही, लेकिन इसने हमारे जीवन के जिन गंभीर संकटों पर प्रश्न किए हैं, हमें उन्हें समय रहते सुलझाना चाहिए. (hindi.news18.com)
-दयाशंकर मिश्र

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