दयाशंकर मिश्र
अपने भीतर कोमलता और रिक्तता को बनाए रखना बहुत जरूरी है। दूसरों के लिए मन में जगह बनाए बिना अपने लिए भी प्रेम को बचाए रखना मुश्किल हो जाएगा!
हम अक्सर ऐसी स्मृतियों को मिटाने की कोशिश में रहते हैं जो हमारे अंतर्मन को परेशान करती रहती हैं। किसी को भी खत्म करने की कोशिश असल में उसके बहुत सारे रूपों को जिंदा करने जैसी है। पूरी तरह किसी भी चीज का होना बड़ा ही मुश्किल है। जीवन, केवल आंकड़ों में बंटा हुआ नहीं है। केवल आंकड़ों के आधार पर जिंदगी को समझना संभव नहीं। हम कोशिश तो जरूर करते हैं, लेकिन जीवन के अतिरिक्त दूसरे क्षेत्रों में ही ऐसा कर पाना संभव होता है। जिंदगी में हमेशा आर या पार जैसा कुछ नहीं होता। कुछ ऐसा होता है, जो दोनों के बीच अटका रहता है।
जीवन को थामने वाली बहुत सी चीजें हमसे छूटकर भी नहीं छूटतीं। मन से स्मृतियों की धूल तो झाड़ी जा सकती हैं, लेकिन कुछ गहरे निशान ऐसे होते हैं, जो हमेशा साथ रहते हैं। उनको मिटाना संभव नहीं होता। हां, भुलाने की ओर बढ़ा जा सकता है। इसके लिए पहले हमें यह स्वीकार करना ही होगा कि इसे मिटाया नहीं जा सकता। हां, धीरे-धीरे विस्मृत किया जा सकता है। आहिस्ता-आहिस्ता उससे बाहर जाया जा सकता है!
प्रकृति के अलावा किसी में पूर्णता नहीं। न तो बुद्धि में पूर्णता है, न ही बुद्धि से बाहर। एक छोटा-सा किस्सा सुनिए!
बचपन में मेरे साथ एक बड़ा अनूठा सहपाठी था। एक बार शिक्षक महोदय ने उसकी पिटाई कर दी। माहौल ही कुछ ऐसा रहता था कि शिक्षक की पिटाई के लिए वह छात्र ही सबसे उपयुक्त था। उसके माता-पिता का स्पष्ट विचार था कि बच्चों को ऐसे ही ठीक किया जा सकता है। शारीरिक रूप से वह काफी तंदुरुस्त था। इसलिए छोटी-मोटी हिंसा को सरलता से झेल जाता था। एक दिन गुरुजी का मन कुछ बदला हुआ था। वह पिटाई करने के ‘मूड’ में नहीं थे। उन्होंने उससे कहा, ‘तुम पूरी तरह गधे हो!’ हमारे मित्र का मूड भी कुछ दूसरा था, ‘उसने कहा था, ‘’ाप मेरी झूठी तारीफ न करें। आप ही तो कहते हैं संसार में कुछ भी पूर्ण नहीं! तो मैं पूरी तरह गधा कैसे हुआ! आप मेरी झूठी तारीफ मत कीजिए!’
उसके इस बोधवाक्य से कक्षा में हंगामा हो गया। उस दिन के बाद गुरु जी ने कई दिन बिना बात के ही अपना हिसाब-किताब बराबर किया। संभव है, वह हमारे बीच स्थापित करना चाहते हों कि केवल वही पूर्ण हैं! हम सब तो इस बात को जानते थे, केवल उन्हें ही भ्रम था!
पूर्णता का भ्रम, हमारे जीवन के सबसे कठिन, खतरनाक भ्रम में से एक है। पूरी जिंदगी हम इसमें उलझे रहते हैं। कभी हमें लगता है कि हमें किसी की ओर देखने की जरूरत नहीं। न सुनने, न समझने की। जीवन में इस तरह एक किस्म की कठोरता घर करती जाती है। हमारा रास्ता अकेला और कठोर होता चला जाता है। इसलिए, अपने भीतर कोमलता और रिक्तता को बनाए रखना बहुत जरूरी है। दूसरों के लिए मन में जगह बनाए बिना, अपने लिए प्रेम को बचाए रखना मुश्किल हो जाएगा! (hindi.news18.com)
-दयाशंकर मिश्र