दयाशंकर मिश्र
परस्पर विश्वास और प्रेम का पुल कितना ही मजबूत क्यों न हो, अगर उस पर संवाद का रंगरोगन न किया जाए, तो देर-सबेर दीमक लगने ही लगती है!
कई बार हम बहुत अधिक नजदीकी रिश्ते में संवाद को अनदेखा करते रहते हैं। एक साथ रहने, समय बिताने और साथ भोजन करने का यह अर्थ यह नहीं है कि हम हमेशा एक दूसरे के मन को ठीक से पढ़ पाएं। मन के भीतर चल रही उठापटक तक पहुंचने के लिए उससे कहीं अधिक आगे पहुंचना जरूरी है। इस तरह के अनेक अनुभव मिलते हैं, जब हमें पता चलता है कि किसी ऐसे व्यक्ति ने जीवन में अप्रिय निर्णय ले लिया, जिसकी इस तरह की कोई संभावना ही नहीं थी। फिर किसी दिन हमें पता चलता है, अरे! यह क्या हो गया। उसके बारे में तो कभी इस तरह सोचा ही नहीं था। वह भी ऐसा कदम उठा सकता है/सकती है! इसीलिए जीवन संवाद में हम सबसे अधिक जोर इस बात पर देते हैं कि हम एक-दूसरे के मन को शक्ति प्रदान करते रहें। परस्पर मन टटोलते रहें। ऐसा न हो कि भीतर कुछ घुटन चल रही हो, लेकिन हमें उसका एकदम अंदाजा ही न हो।
आज का संवाद खास है। अगर आपके छोटे भाई हैं, तो आप इस संवाद को जरूर पढ़ें। अगर आप खुद छोटे हैं, तो यह आपके लिए ही है।
इंदौर से जीवन संवाद के सुधी पाठक राजेश ठाकुर ने लिखा कि बहुत दिनों से वह महसूस कर रहे थे कि उनका छोटा भाई कुछ परेशानी में है, लेकिन जब भी वह बात करते, तो वह टाल देता- ‘मैं एकदम ठीक हूं, आप बेकार परेशान हो रहे हैं।’ राजेश, कोशिश तो कर रहे थे बात करने की, लेकिन आपसी रिश्तों का संकोच, परंपरावादी संयुक्त परिवार के कारण खुलकर बात कर पाने में हिचक रहे थे।
जब उनसे मेरी बात हुई, तो मैंने उन्हें विनम्रतापूर्वक सुझाव दिया कि इस काम में अपनी पत्नी को भी शामिल करें। उन्होंने बताया था कि उनकी पत्नी, छोटे भाई और उसकी पत्नी के बीच बहुत ही मधुर संबंध हैं। थोड़ी हिचक के बाद उन्होंने इस बात को स्वीकार कर लिया। वह, उनकी पत्नी और भाई चार घंटे के लिए एकदम अलग जगह मिले। बिल्कुल इत्मिनान से। बिना गुस्से में आए। एक-दूसरे को सुना गया। गलतियों को स्वीकार किया गया। आगे का रास्ता बुना गया। जबसे बातचीत हुई दोनों भाई सुकून में हैं।
परस्पर विश्वास और प्रेम का पुल कितना ही मजबूत क्यों न हो, अगर उस पर संवाद का रंगरोगन न किया जाए, तो देर-सबेर दीमक लगने ही लगती है!
संवाद से गुजरने के बाद राजेश ने बताया कि उनका भाई दस साल से बस इसी कोशिश में है कि किसी तरह रातोंरात अमीर बन जाए। दस साल से वह किसी एक काम में ध्यान देने की जगह रोज ही नए काम की तैयारी में जुटा रहता है। इसी कारण उसने अपनी शानदार नौकरी छोड़ दी थी। उसे अपने दोस्तों की तरह बिजनेस में अपार सफलता की संभावना दिख रही थी। उसके बाद उसे शुरुआती सफलता तो नहीं मिली, लेकिन वह आने वाली सफलता को संभालने की स्थिति में भी नहीं था। उसके पास पैसे खूब आए। जमकर आए, लेकिन दूसरों से नकल की होड़, स्वयं को सबसे बेहतर साबित करने की वजह से बेपनाह खर्च बढ़ते गए। हर छह महीने में नए दोस्त बनते गए। यहां तक कि एक समय ऐसा आया, जब राजेश खुद ही भाई से उपेक्षित महसूस करने लगे, लेकिन उनकी पत्नी की समझबूझ से दोनों भाइयों का रिश्ता टूटने से बचता रहा!
आज जब छोटा भाई कर्ज में डूबने की कगार पर है, तो वही बड़ा भाई उसे किनारे पर लाने के प्रयास कर रहा है, जिसे दोस्तों की भीड़ के बीच अकेला छोड़ दिया गया था।
यह संवाद छोटे-बड़े से अधिक एक-दूसरे के लिए दिल में जगह बचाए और बनाए रखने के लिए है। इसे हमेशा ध्यान में रखें! (hindi.news18.com)
-दयाशंकर मिश्र