-आदेश कुमार गुप्त
अगले हफ़्ते से जापान के टोक्यो शहर में ओलंपिक खेलों का बिगुल बज उठेगा. भारत भी अपने 120 से अधिक खिलाड़ियों के साथ पूरे जोश के साथ खेलों के इस महाकुंभ में हिस्सा लेगा.
भारतीय खेमें में 26 एथलीट हैं. एथलेटिक्स मुक़ाबले 31 जुलाई से शुरू कर 9 अगस्त तक खेले जाएंगे.
भारतीय एथलेटिक्स टीम में टोक्यो का टिकट अंतिम समय में हासिल करने वाले शॉटपट खिलाड़ी तेजिन्दर पाल सिंह तूर भी हैं.
अंतिम समय पर मिला टोक्यो का टिकट
तेजिन्दर पाल सिंह तूर ने पिछले महिने पटियाला में हुई इंडियन ग्रॉ प्री में 21.49 मीटर का थ्रो करते हुए टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वॉलिफ़ाई किया. टोक्यो जाने के लिए 21.10 मीटर तक थ्रो करना आवश्यक था.
तेजिन्दर ने न केवल इस बाधा को आसानी से पार किया बल्कि सबको हैरान करते हुए अपने ही पुराने और एशियाई रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया.
उनसे पहले एशियाई रिकॉर्ड सऊदी अरब के सुल्तान अब्दुल मजीद अल हेब्शी के नाम था जो उन्होंने साल 2009 में 21.13 मीटर के थ्रो के साथ अपने नाम किया था. पटियाला में रिकॉर्ड बनाने से पहले तेजिन्दर का रिकार्ड 20.92 मीटर की दूरी तक थ्रो करने का था.
तेजिन्दर पाल सिंह तूर इस साल की शुरुआत से ही ओलंपिक में जगह बनाने की कोशिश में लगे थे लेकिन वे नाकाम हो रहे थे. मार्च के महीने में भी उन्होंने पटियाला में ही हुई इंडियन ग्रॉ प्री में हिस्सा लिया लेकिन ओलंपिक के लिए क्वॉलिफ़ाई नहीं कर सके.
एशियाई खेलों में स्वर्ण
तेजिन्दर पाल सिंह का नाम तब सबने जाना जब 2018 जकार्ता एशियन गेम्स में उन्होंने 20.75 मीटर थ्रो कर शॉटपट का स्वर्ण पदक जीता. यह जीत उन्हें नेशनल रिकॉर्ड के साथ मिली.
तेजिन्दर से 2018 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भी पदक की उम्मीद थी लेकिन फ़ाइनल में वे 19.42 मीटर थ्रो के साथ आठवें स्थान पर रहे. इसकी वजह तेजिन्दर उन्हीं दिनों कैंसर से जूझते अपने पिता की बीमारी को मानते हैं, जिसने उनके मन पर गहरा असर डाला था.
तेजिन्दर ने साल 2017 से कामयाबी का मुँह देखना शुरू कर दिया था. उन्होंने पटियाला में हुई फेडेरेशन कप नेशनल सीनियर एथलेटिक्स मीट में 20.40 मीटर तक गोला फेंका. इसके बावजूद वह विश्व चैंपियनशिप में भाग लेने से चूक गए क्योंकि उसके लिए क्वालिफ़िकेशन स्टैंडर्ड 20.50 मीटर था.
साल 2017 में ही तेजिन्दर पाल ने भुवनेश्वर में हुई एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 19.77 मीटर के थ्रो के साथ रजत पदक जीता. वहॉ वह 0.03 मीटर के मामूली अंतर से स्वर्ण पदक जीतते जीतते रह गए, लेकिन साल 2019 में उन्होंने दोहा में हुई एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता.
पिता ने देखा शॉटपट खिलाड़ी बनाने का सपना
तेजिन्दर पाल को शॉटपट में माहिर बनाने का काम उनके कोच मोहिन्दर सिंह ढिल्लो ने किया.
तेजिन्दर को इस बात का अफ़सोस है कि पहली बार ओलंपिक खेलों में उतरते हुए उनके पिता उन्हें नहीं देख सकेंगे क्योंकि अब वे उनके बीच नहीं हैं.
उनके पिता कर्म सिंह ने ही उन्हें शॉटपट में आने की सलाह दी थी, जबकि तेजिन्दर की पहली पसंद क्रिकेट खेलना था और वह मोगा में एक क्लब के सदस्य भी थे.
तेजिन्दर पाल के चाचा ख़ुद शॉटपट खिलाड़ी रहे, इसलिए पिता कर्म सिंह भी चाहते थे कि वह टीम गेम की जगह व्यक्तिगत खेल चुनें.
हाथ की चोट और कोरोना ने डराया
तेजिन्दर यह भी मानते हैं कि टोक्यो का टिकट मिलने के बाद उन्होंने राहत की सांस ली है.
आख़िरी समय पर टोक्यो जाने को लेकर वह कहते हैं कि उनके हाथ में चोट थी जिसकी वजह से वह दो तीन महीने थ्रो नहीं कर सके. इसी वजह से वह मार्च महीने में हुई इंडियन ग्रॉ प्री और फेडेरेशन कप में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सके.
चोट से उबरने के लिए उन्हें हाथ पर प्लास्टर कराना पड़ा. दो तीन प्रतियोगिताओं में निराशाजनक प्रदर्शन से दबाव बनने लगा. रही सही कसर कोरोना की दूसरी लहर और उसके बाद लगे लॉकडाउन ने पूरी कर दी. कुछ टूर्नामेंट तो रद्द भी हो गए.
इस दौरान भारतीय एथलेटिक्स महासंघ और साई ने उनकी लगातार मदद की. तेजिन्दर पाल को मन में यह डर भी लगने लगा था कि वह टोक्यो जा भी पाएँगे या नहीं क्योंकि ईरान में होने वाली प्रतियोगिता टल गई.
इसके अलावा जून महीने में कज़ाखस्तान जाना था वह भी रद्द हो गया. तेजिन्दर को तो पटियाला में हुई इंडियन ग्रॉ प्री के होने पर भी संदेह होने लगा था. वह भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं कि सब ठीक हो गया.
22 मीटर थ्रो करना है लक्ष्य
तेजिन्दर पाल कहते हैं कि टोक्यो के लिए उनका चयन रैंकिंग के आधार पर हो सकता था, लेकिन वह व्यक्तिगत रूप से क्वॉलिफ़ाई करना चाहते थे. अगर वह अपने वर्तमान प्रदर्शन को टोक्यो में दोहरा दें ख़ासकर एक मीटर अधिक के थ्रो के साथ तो उन्हें पदक भी मिल सकता है.
ऐसी संभावना को लेकर तेजिन्दर कहते हैं कि 22 मीटर थ्रो पर पदक की उम्मीद बनती है लेकिन ओलंपिक में सब पर दबाव होगा.
टोक्यो में 22 मीटर थ्रो क्या वह कर ही देंगे? इसे लेकर तेजिन्दर कहते हैं कि फ़रवरी में वह अभ्यास के दौरान आसानी से ऐसा कर पा रहे थे. अगर उन दिनों कोई प्रतियोगिता हुई होती तो वह तभी ऐसा कर देते.
एशियाई खेलों में मिले स्वर्ण से बदली ज़िंदगी
एशियाई खेलों में साल 2018 में मिले स्वर्ण पदक को तेजिन्दर पाल अपनी ज़िंदगी का टर्निग पॉइंट मानते है. उससे लोग उन्हें जानने लगे और वित्तीय मदद भी मिली. उसी के आधार पर उन्हें अर्जुन पुरस्कार मिला.
राष्ट्रमंडल खेलों में मिली नाकामी का कारण तेजिन्दर उन्हीं दिनों अपने पिता की बीमारी को मानते हैं. उनके मन में हर समय यही चल रहा था कि उनके पिता को कुछ हो ना जाए. तेजिन्दर पाल एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक लेकर अपने घर पहुँच ही रहे थे कि उसी दौरान उनके पिता का निधन हो गया.
तेजिन्दर कहते हैं कि उन दिनों उनके परिवार वाले उनके पिता की सेहत को लेकर कभी पूरी बात इसलिए नहीं बताते थे कि कहीं वह अभ्यास छोड़कर वापस ही न आ जाएं.
तेजिन्दर मानते हैं कि उन दिनों परिवार की आर्थिक हालत भी सहीं नहीं थी. तब उनके कोच मोहिन्दर सिंह ढिल्लो ने उनकी बेहद मदद की और हौसला दिया कि अच्छा करते रहो.
टोक्यो में कोरोना के कारण लगने वाले प्रतिबंधों के बीच अपने संभावित प्रदर्शन को लेकर तेजिन्दर पाल कहते हैं कि वहॉ जाकर ही वास्तविकता का पता चलेगा. मास्क लगाकर खेलना वह आसान नहीं मानते.
वह पटियाला में ही अभ्यास कर रहे हैं लेकिन बढ़ती गरमी को लेकर परेशान भी हैं. हालांकि अपनी फ़िटनेस से वे संतुष्ट हैं.
ओलंपिक में आज तक एथलेटिक्स में भारत को कोई पदक न मिलने को लेकर वह कहते हैं कि इस बार पदक आने की उम्मीद है. वह रोज़ाना तीन घंटे सुबह और तीन घंटे शाम को अभ्यास कर रहे हैं.
रियो ओलंपिक में शॉटपुट प्रतियोगिता में अमेरिका के रेयान क्रूज़र ने 22.52 मीटर के साथ स्वर्ण, अमरीका के ही जॉय कोवक्स ने 21.78 मीटर के साथ रजत और न्यूज़ीलैंड के टॉम्स वॉल्श ने 21.10 मीटर के थ्रो के साथ कांस्य पदक जीता था.
ऐसे में तेजिन्दर पाल सिंह तूर का वर्तमान प्रदर्शन टोक्यो में पदक की उम्मीद तो जगाता है. (bbc.com)