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भारत का पहला आम चुनाव
09-Apr-2021 12:06 PM
भारत का पहला आम चुनाव

भारत में पहली बार वर्ष 1952 में लोकसभा का गठन हुआ। पहले लोकसभा चुनावों के बाद  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस  364 सीटों के साथ सत्ता में आई। इस चुनाव में कुल पड़े वोटों का 45 प्रतिशत कांग्रेस ने प्राप्त किया था। पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए। उनकी पार्टी ने कुल 75.99 प्रतिशत मत प्राप्त किए थे। 17 अप्रैल, 1952 को गठित हुई इस लोकसभा ने 4 अप्रैल, 1957 तक का अपना कार्यकाल पूरा किया।
स्वतंत्र भारत में चुनाव होने से पहले जवाहरलाल नेहरू के दो पूर्व कैबिनेट सहयोगियों ने कांग्रेस के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए अलग राजनीतिक दलों की स्थापना कर ली। एक ओर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अक्टूबर, 1951 में  भारतीय जनसंघ  की स्थापना की, वहीं दूसरी ओर बी. आर. अम्बेडकर ने  अनुसूचित जाति महासंघ को पुनर्जीवित किया।
पहले आम चुनाव कुल 489 निर्वाचन क्षेत्रों में आयोजित किए गए। इन आम चुनावों में 26 भारतीय राज्यों का प्रतिनिधित्व किया गया। देश की प्रथम लोकसभा के अध्यक्ष जी. वी. मावलंकर थे। इस लोकसभा में 677 बैठकें हुईं, जो अब तक हुई बैठकों की उच्चतम संख्या है।
भारत की प्रथम लोकसभा ने 17 अप्रैल, 1952 से 4 अप्रैल, 1957 तक अपना कार्यकाल पूरा किया।
1951-52 को हुए आम चुनावों में मतदाताओं की संख्या 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 थी, जिनमें से 15 फ़ीसदी साक्षर थे। वर्ष 2014 में यह संख्या बढक़र 81 करोड़ 45 लाख 91 हजार 184 हो गई है। इस प्रकार कुल वृद्धि 4.7 गुना है।
पहले आम चुनाव में संसद की 497 सीटों के साथ-साथ राज्यों की विधानसभाओं के लिए भी चुनाव हुए,  लेकिन जहां संसद में कांग्रेस पार्टी को पूर्ण बहुमत हासिल हुआ वहीं कुछ राज्यों में इसे दूसरे दलों से ज़बर्दस्त टक्कर मिली।  मद्रास, हैदराबाद और त्रावणकोर में कांग्रेस पार्टी बहुमत हासिल करने में विफल रही जहां उसे कम्युनिस्ट पार्टी ने कड़ी टक्कर दी। 
 हालांकि इन चुनावों में हिंदू महासभा और अलगाववादी सिख अकाली पार्टी को मुंह की खानी पड़ी। पहले चुनाव के बाद से ही कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) ने दक्षिणी राज्यों में जनसमर्थन बढ़ाना शुरू कर दिया जिसके नतीजे 1957 में हुए चुनाव में उसे मिले। त्रावणकोर-कोचिन और मालाबार को मिला कर बने केरल में कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आई।
नेहरू के समय में एक और अहम फ़ैसला भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का था। इसके लिए राज्य पुनर्गठन क़ानून (1956) पास किया गया।  आज़ादी के बाद भारत में राज्यों की सीमाओं में हुआ यह सबसे बड़ा बदलाव था. इसके तहत 14 राज्यों और छह केंद्र शासित प्रदेशों की स्थापना हुई। इसी क़ानून के तहत केरल और बॉम्बे को राज्य का दर्जा मिला। संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ा गया जिसके तहत भाषाई अल्पसंख्यकों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिला। इसी वर्ष पांडिचेरी, कारिकल, माही और यनम से फ्रांसीसी सत्ता का अंत हुआ।
 

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