सामान्य ज्ञान
खिलाडिय़ों के डोपिंग करने के विवाद अब आम होते जा रहे हैं । डोपिंग कोई नई बात नहीं है। मुकाबले में दूसरों को हराने के लिए प्राचीन ग्रीक खिलाडिय़ों के भी ऐसा करने की कहानियां हैं। एक खिलाड़ी का कॅरिअर आम तौर पर काफी छोटा होता है। अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में होने के समय ही वे अमीर और मशहूर हो सकते हैं। इसी जल्दबाजी में कुछ खिलाड़ी अक्सर डोपिंग के जाल में फंस जाते हैं।
बीमार आदमी के लिए दवा जरूरी हो सकती है लेकिन एथलीट जब दवा लेते हैं तो उसके असर और इस्तेमाल के कानूनी पहलू पर ध्यान देना होता है। जैसे कि दर्दनाशक दवाई इबुप्रोफेन की जगह अगर कोई खिलाड़ी मॉर्फीन का इस्तेमाल करे तो वह डोपिंग की श्रेणी में आएगा, क्योंकि वह आम दवा से कहीं भारी और नशीली है और उस पर प्रतिबंध है।
डोपिंग में आने वाली दवाओं को पांच श्रेणियों में रखा गया है जिनमें स्टीरॉयड सबसे आम हैं। हमारे शरीर में स्टीरॉयड पहले से ही पाया जाता है लेकिन कुछ पुरुष एथलीट मांसपेशियां और पौरुष बढ़ाने के लिए स्टेरॉयड के इंजेक्शन लेते हैं। इसके साइट इफेक्ट के तौर पर पुरुषों में स्तनों का उभरना एवं हृदय और तंत्रिका तंत्र पर बुरा असर देखा गया है । उत्तेजक पदार्थ शरीर को चुस्त और दिमाग को तेज कर देते हैं। इनका इस्तेमाल प्रतियोगिता के दौरान प्रतिबंधित हैं लेकिन कुछ खिलाड़ी इसे खेल से पहले लेते हैं जिससे शरीर में ज्यादा ऊर्जा का संचार होता है। वर्ष 1994 फुटबॉल विश्व कप के दौरान अर्जेंटीनियाई खिलाड़ी मैराडोना ऐसे ही उत्तेजक पदार्थ एफेड्रीन के इस्तेमाल के दोषी पाए गए थे। स्टीरॉयड की ही तरह पेप्टाड हार्मोन भी शरीर में मौजूद होते हैं। इसलिए इनका अलग से सेवन शरीर में असंतुलन पैदा करता है। डायबिटीज के मरीजों के लिए जीवन रक्षक हार्मोन इंसुलिन को अगर स्वस्थ व्यक्ति ले तो शरीर से वसा घटती है और मांसपेशियां बनती हैं। इसके ज्यादा इस्तेमाल से शरीर में ग्लूकोज का स्तर अचानक काफी घट सकता है। ऐसे में शरीर जल्दी थकता है और हार्मोनों का तालमेल बिगड़ता है।
नार्कोटिक या मॉर्फीन जैसी दर्दनाशक दवाइयां डोपिंग में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती हैं। इनके इस्तेमाल से बेचैनी, थकान और नींद जैसे लक्षण हो सकते हैं। सिर दर्द और उल्टी भी इनसे होने वाले नुकसान हैं। इनकी लत पडऩे की भी काफी संभावना होती है। कई बार इन दवाइयों के सेवन से यह भी मुमकिन है कि खिलाड़ी खुद को कम दर्द के अहसास में ज्यादा चोटिल कर लें। डाइयूरेटिक्स के सेवन से शरीर पानी बाहर निकाल देता है जिससे कुश्ती जैसे खेलों में कम भार वाली श्रेणी में घुसने का मौका मिलता है। डाइयूरेटिक्स का इस्तेमाल हाई ब्लड प्रेशर के इलाज में होता है, लेकिन अगर शरीर से अचानक पानी बाहर निकल जाए तो रक्तचाप भी कम हो जाता है।
ब्लड डोपिंग एक दशक पहले ही पकड़ में आई। आम तौर पर ब्लड कैंसर के मरीजों का खून समान ब्लड ग्रुप के खून से बदलना पड़ता है। ऐसे मरीजों के लिए किशोरों का खून सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि उसमें लाल रुधिर कणिकाओं की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे शरीर में ज्यादा ऊर्जा का संचार होता है, लेकिन कुछ खिलाड़ी प्रदर्शन बेहतर करने के लिए किशोरों का खून चढ़ाते रहे, जिसे ब्लड डोपिंग कहा जाता है।
वल्र्ड एंटी डोपिंग एजेंसी और जर्मनी की नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी, डोपिंग को रोकने के लिए इससे होने वाले नुकसान के बारे में जागरुकता फैलाने का काम कर रही हैं।