सामान्य ज्ञान
भारत में गंडक तथा गंगा नदियों से घिरा बिहार का उत्तरी मैदानी हिस्सा तिरहुत कहलाता है। इसके अन्तर्गत पश्चिमी चम्पारन, पूर्वी चम्पारन, मुजफ्फरपुर, सीतामढी, शिवहर तथा वैशाली जिला शामिल है। तिरहुत शब्द तीरभुक्ति अर्थात नदी का किनारा से उत्पन्न हुआ है। अतीत में राजर्षि जनक द्वारा शासित विदेह प्रदेश जिसमें हिमालय की तराई में पूर्वी नेपाल से लेकर गंगा के उत्तर का सारा मैदानी भाग शामिल था, तिरहुत कहलाया। बाद में वैशाली महाजनपद यहाँ के गौरवशाली इतिहास में जुड़ गया। जैन धर्म के तीर्थंकर भगवान महावीर तथा बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध की चरणधूलि से यह भूमि आप्त है।
गंगा, गंडक तथा कोशी नदियों से घिरा सघन आबादी वाला मैदानी हिस्सा सन 1856 तक बंगाल प्रांत में भागलपुर प्रमंडल का अंग था। संथाल विद्रोह के पश्चात तिरहुत को पटना प्रमंडल में मिला दिया गया। 1875 में दरभंगा को तिरहुत से अलग कर स्वतंत्र जिला बना दिया गया। 19 वीं सदी के उत्तरार्ध में इस क्षेत्र में अकाल पडऩे के बाद बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एंड्रू फ्रेजर को तिरहुत को अलग प्रशासनिक इकाई बनाने की आवश्यकता महसूस हुई। जनवरी 1908 में भारत के तत्कालिन गवर्नर जेनरल की मंजूरी मिलने के पश्चात तिरहुत प्रमंडल बना जिसमें सारण, चम्पारन, मुजफ्फरपुर तथा दरभंगा जिलों को रखते हुए मुजफ्फरपुर को मुख्यालय बनाया गया।
वर्तमान में तिरहुत प्रमंडल भारत में सबसे ज्यादा जनसंख्या घनत्व वाला क्षेत्र है। लगभग समूचा भौगोलिक क्षेत्र मैदानी है जिसमें हिमालय से उतरकर गंगा में मिलने वाली नदियों का जाल बिछा है। जमीन काफी उपजाऊ है इसलिए शीतोष्ण कटिबंध में उगने वाले लगभग सभी फसल यहाँ उपजाए जाते है। आम, लीची, केला तथा शहद के उत्पादन में तिरहुत का स्थान अद्वितीय है।
उर्वरक विभाग
उर्वरक विभाग रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के अधीन है जिसके अध्यक्ष केबिनेट मंत्री हैं। केबिनेट मंत्री की सहायता के लिए एक राज्य मंत्री भी होते हैं। उर्वरक विभाग का मुख्य उद्देश्य देश में कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए सस्ती कीमतों पर पर्याप्त मात्रा में और समय पर उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है। जहां तक उर्वरक उद्योग का संबंध है, इस विभाग की मुख्य गतिविधियों में समग्र क्षेत्रीय योजना बनाना एवं विकास करना तथा उद्योग का विनिमयन करने के साथ-साथ उत्पादों का मूल्य-निर्धारण और वितरण करना शामिल है। इस विभाग के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र के 9 उपक्रम और एक बहुराज्य सहकारी सोसायटी है।
इस विभाग के अंतर्गत उर्वरक उद्योग समन्वय समिति (एफआईसीसी) नामक एक संबद्ध कार्यालय भी है जिसके अध्यक्ष कार्यकारी निदेशक हैं। एफआईसीसी का गठन प्रारंभ में वर्ष 1977 को तत्कालीन प्रतिधारण मूल्य-सह-राजसहायता योजना (एनपीएस) को प्रशासित और संचालित करने के उद्देश्य से किया गया था। आरपीएस के इकाई विशिष्ट दृष्टिकोण के स्थान पर वर्ष 2003 से नई मूल्य-निर्धारण योजना (एनपीएस) नामक एक स्कीम लागू की गई थी ताकि व्यापक आंतरिक दक्षता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा प्राप्त की जा सके। यूरिया संबंधी योजना को प्रशासित करने के लिए एफआईसीसी को नई मूल्य निर्धारण योजना के अंतर्गत बनाए रखा गया है।