साहित्य/मीडिया

एक कवियित्री के मन की तकलीफें
17-Jun-2020 10:28 PM
एक कवियित्री के मन की तकलीफें

(लवली गोस्वामी हिंदी की एक सुपरिचित कवियित्री हैं, उन्होंने अभी फेसबुक पर यह लिखा..) 

हिंदी में लिखने के अक्सर पैसे नहीं मिलते. कविता/ निबन्धों के 5 सौ – हज़ार कुछ पत्रिकाओं को छोड़कर संपादक देने लायक नहीं समझते हैं. ऐसे में जब उत्साही युवा मित्र मुझसे पूछते हैं हिंदी में लिखने की और जीवन को जी सकने लायक चला पाने की क्या संभावना है ? मैं चुप हो जाती हूँ. क्योंकि मेरे पास कोई जवाब नहीं होता. सुन्दर प्रतिभाओं को पलायन करते निराश होते देखती हूँ. सोचती हूँ हिंदी में क्या कभी कोई बोर्हेस, कल्विनो, कुंदेरा नहीं हो पायेंगे?

उसपर हिंदी के नाशुक्रे पाठक हैं जो आपकी हर लाइन हर उक्ति अपने नाम से लगा देंगे लेकिन किताब खरीदने की और लेखक का नाम देने की बारी आने पर उनको न जाने क्या तकलीफ हो जाती है.

हिंदी के बलशाली समूह हैं जिनको क्रियेटिविटी और कविता के स्तर से कोई मतलब नहीं है, उनको हर दूसरे दिन उन्मादी ट्रोल्स की तरह आपसे सवाल करना है कि फलां सामाजिक मुद्दे पर आप क्यों नहीं बोले ? भले ही अतीत में आप लाख बोलते रहे हों. ये लोग इससे व्यवहार करेंगे जैसे असुरक्षित प्रेमी/प्रेमिका बार - बार सबके सामने आपसे आपके प्रेम का “प्रदर्शन” कराना ज़रूरी समझते हैं. अगर आपने यह प्रदर्शन हर दूसरे सप्ताह नहीं किया तो आप जन विरोधी हैं. लेकिन यही लोग आपका लिखा एक वाक्य पुनरुत्थानवादी विचारधारा के समर्थन में दिखा नहीं पायेंगे.

इतनी स्तरहीनता है, इतना शोर है, इतनी मजबूरियां है कि मैं किसी से कह नहीं पाती कि दोस्त सब छोड़ कर अपना जीवन साहित्य को समर्पित कर दो. करके भी क्या हासिल होगा? उपेक्षा, अपशब्द और दरिद्रता ?

वह दुश्चक्र है कि अच्छे कवियों को घर का किराया देने के लिए चिंतित होते देखती हूँ. महीने का खर्चा चलाने में माथे पर शिकन पड़ती है . घर वालों के ताने, परिवार का दुःख, साहित्यिक बहिष्कार, चरित्रहनन यही मिलता है हमारी भाषा के साहित्य में.

फिर भी लिखते जाना एक जिद है. एक साधना है. एक ज़रुरत है. इसलिए ज़ारी है.
-लवली गोस्वामी 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news