द्वैत एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है- द्विवाद। यह वेदांत की रूढि़वादी हिंदू दार्शनिक प्रणाली का एक महत्वपूर्ण मत। इसके संस्थापक माधव थे, जिन्हें आनंदतीर्थ भी कहते हैं। वह दक्षिण भारत में आधुनिक कर्नाटक राज्य के थे, जहां उनके अब भी बहुत से अनुयायी हैं। अपने जीवनकाल में ही माधव को उनके शिष्य वायु देवता का अवतार मानते थे, जिन्हें दुष्टï शक्तियों द्वारा दार्शनिक शंकर को भेजे जाने के बाद भगवान विष्णु में अच्छाई की रक्षा के लिए पृथ्वी पर भेजा था। शंकर को अद्वैत मत का महत्वपूर्ण प्रतिपादक माना जाता है।
माधव का मत है कि विष्णु सर्वोच्च ईश्वर है। इस प्रकार वह उपनिषदों के ब्रह्मïा को वैयक्तिक ईश्वर के रूप में मानते हैं। जैसा कि रामानुज ने उनसे पहले माना था। माधव की पद्घति में तीन शाश्वत सात्विक व्यवस्थाएं हैं। परमात्मा की, आत्मा की और जड़ प्रकृति की। इसके अतिरिक्त ईश्वर के अस्तित्व को तार्किक प्रमाण से प्रदर्शित किया जा सकता है। यद्यपि धर्मग्रंथ ही उसकी प्रकृति की शिक्षा दे सकते हैं। ईश्वर को सभी सिद्घियों का सार और निराकार माना जाता है, जो सच्चिदानंद से बना है (अस्तित्व, जीवात्मा और परमानंद) माधव के लिए ईश्वर ब्रह्मïांड का कर्ता है, न कि उपादान, क्योंकि ईश्वर ने स्वयं को विभाजित कर विश्व का सृजन नहीं किया होगा। न ही किसी अन्य तरीके से, क्योंकि अगर ऐसा होता, तो यह उस सिद्घांत के विपरीत होता कि ईश्वर अपरिवर्तनीय है। इसके अलावा यह मानना ईशनिंदक भी होगा कि सर्वगुणसंपन्न ईश्वर अपने को बदल कर त्रुटिपूर्ण विश्व बना सकता है।
माधव की राय में व्यक्तियों की आत्माएं संख्या में अनंत है और आणविक अनुपातों में हैं। वे ईश्वर का भाग है और उसकी कृपा से अस्तित्व में हैं। अपने क्रियाकलापों में वे पूरी तरह ईश्वर के नियंत्रण में हैं। यह ईश्वर ही है, जो आत्मा को सीमित स्तर तक क्रियाकलाप की स्वतंत्रता देता है। यह स्वतंत्रता आत्मा के विगत कर्मों के अनुरूप दी जाती है।
अज्ञान को कई अन्य भारतीय दार्शनिकों की तरह माधव भी दोषपूर्ण ज्ञान मानते हैं, जिसे भक्ति के माध्यम से हटाया और सही किया जा सकता है। भक्ति कई तरीकों से की जा सकती है। धर्मग्रंथों के एकाग्रतापूर्ण अध्ययन से, निस्वार्थ कर्तव्य पालन या भक्ति के व्यावहारिक कार्यों से। भक्ति के साथ ईश्वर की प्रकृति में सहज अंतर्दृष्टिï होती है या विशेष प्रकार का ज्ञान हो सकता है। भक्ति श्रद्घालुओं के लिए लक्ष्य हो सकती है। विष्णु की आराधना उससे मिलने वाले परिणाम से अधिक महत्वपूर्ण है। द्वैत के अनुयायियों का वर्तमान केंद्र दक्षिण भारत के कर्नाटक में उडुपी में है, जिसकी स्थापना माधव ने ही की थी और यह मठाधीशों की श्रृंखला के अंतर्गत अनवरत बना रहे।