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दुनिया पर बुलडोजर चलाते ट्रम्पस्क, चार साल में क्या-क्या बचेगा?
23-Feb-2025 5:06 PM
दुनिया पर बुलडोजर चलाते ट्रम्पस्क, चार साल में क्या-क्या बचेगा?

अमरीका ने यूएस-एड नाम का एक बहुत बड़ा फंड ऐसा है जिससे पूरी दुनिया के देशों में कई तरह के कामों के लिए मदद दी जाती थी। कई देशों में एड्स की जांच, और उसके इलाज का काम इसी से हो रहा था, और ट्रम्प सरकार ने आते ही अपने प्रमुख सलाहकार-सहयोगी एलन मस्क की सलाह पर यूएस-एड को खत्म ही कर दिया है, नतीजा यह निकला है कि अफ्रीका के कई देशों में मरीजों को दवाई की अगली खुराक भी नहीं मिल पाएगी। लेकिन इससे परे इस फंड से दुनिया के कई देशों में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए आर्थिक मदद की जाती थी, जो कि अमरीकी सरकार का एक अंतरराष्ट्रीय सरोकार भी बताया जाता है। जब कोई सरकार संपन्न रहती है, तो उससे यह उम्मीद की जाती है कि वह दुनिया में धार्मिक स्वतंत्रता, न्याय, लोकतंत्र, मानवाधिकार, महिला अधिकार जैसे बहुत से मूल्यों को आगे बढ़ाने का काम भी करे। अमरीका अपनी वैश्विक जिम्मेदारी के तहत यह सब काम करते आया है, और वहां राष्ट्रपति रिपब्लिकन रहें, या डेमोक्रेट, यह सिलसिला कभी बंद नहीं हुआ। लेकिन अब ट्रम्प और मस्क की यह जोड़ी, ट्रम्पस्क यह तय कर चुकी है कि अमरीका का एक डॉलर भी फिजूलखर्च नहीं किया जाएगा, और तमाम वैश्विक सरोकारों को फिजूलखर्ची करार देकर उसकी जांच करने की घोषणा भी की गई है। इस बीच ट्रम्प की कही इस बात की भी जांच हो रही है कि पिछले राष्ट्रपति जो बाइडन की सरकार ने भारत में मतदाता-जागरण के लिए पौने दो सौ करोड़ रूपए से ज्यादा की रकम भेजी थी। अब इंडियन एक्सप्रेस ने एक जांच करके यह बताया है कि यह रकम भारत नहीं आई थी, और इसे बांग्लादेश भेजा गया था ताकि वहां की सरकार को पलटा जा सके। जहां तक ट्रम्पस्क की कही हुई बात है, उसका सच से अनिवार्य रूप से कोई रिश्ता हो यह जरूरी नहीं है। अभी मीडिया के कैमरों के सामने ही एलन मस्क ने यह बताए जाने पर कि उन्होंने बिल्कुल ही गलत और झूठी जानकारी दी थी, यह कहा कि यह जरूरी नहीं है कि उनकी कही हर जानकारी सही हो। खुद राष्ट्रपति ट्रम्प की कही बातों में से अनगिनत बातों को अमरीकी मीडिया उजागर करते रहा है कि उनमें से कौन-कौन सी बात झूठी थी। लेकिन ट्रम्प ने कल फिर यह बात दोहराई है कि अमरीका से 21 मिलियन डॉलर भारत भेजे गए और उन्होंने मोदी का नाम लेते हुए यह कहा कि मेरे दोस्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारत को 21 मिलियन डॉलर भेजे गए ताकि अधिक मतदान करवाया जा सके। ट्रम्प यह बयान ऐसे हिसाब-किताब का एक पन्ना देखते हुए कैमरों के सामने दे रहे थे, और उन्होंने भारत में अब तक चल रही बहस को एक नया मोड़ दे दिया है जब उन्होंने यूएस-एड के ऐसे अनुदान के साथ मोदी का नाम जोड़ दिया। अब आदतन, पेशेवारना अंदाज में झूठ बोलने वाले ट्रम्पस्क के कोई क्या पूछ सकते हैं कि उनके बयान में सच क्या है?

फिर भी हम इस पर नहीं जा रहे कि यूएस-एड से भारत में कोई पैसा आया या नहीं आया, और आया तो किस संस्था के पास किस काम से आया। यह बात तो जाहिर है कि भारत जांच एजेंसियों के मजबूत ढांचे वाला एक देश है, और विदेशी दान-अनुदान पाने वाली हर संस्था अपने एक-एक रूपए के हिसाब के लिए भारत की कई जांच एजेंसियों के प्रति जवाबदेह रहती है। ऐसे में 182 करोड़ रूपए छोटी रकम नहीं होती जिसका हिसाब केन्द्र सरकार मांग न सके। इसी तरह का एक पूरा मंत्रालय ही ब्रिटिश सरकार में है जो कि दूसरे देशों में मदद का काम देखता है। खुद भारत सरकार दुनिया के कई देशों की अलग-अलग मदद करती है। भारत में केन्द्र और राज्य सरकारें, इन दोनों की ही बहुत सी एजेंसियां हैं, जो कि विदेशी दान पाने के लिए मिला हुआ रजिस्ट्रेशन खत्म करने लायक तथ्य सामने रखती हैं। और अमरीकी सरकार घोषित रूप से दुनिया के दूसरे देशों के कई किस्म के घरेलू मामलों पर अपने विचार सार्वजनिक रूप से रखते आई है जिनमें भारत में धार्मिक स्वतंत्रता में कथित कमी भी एक मुद्दा रहा है।

अमरीका जितना संपन्न और ताकतवर देश जिस तरह एक पल में दुनिया के सरोकारों से हाथ खींच बैठा है, वह मरीजों के नीचे से एकदम से पलंग खींच देने जैसा है। जरूरतमंद देशों के बहुत सारे काम अमरीकी मदद से ही होते थे, और अब खुद अमरीका के भीतर मदद के अधिकतर कामों को खत्म कर दिया गया है। एक-दो राज्यों की अदालतों ने ऐसे मनमाने फैसले के कुछ पहलुओं पर कुछ वक्त के लिए रोक लगाई है, और वहां पर यह बहस भी चल रही है कि क्या ट्रम्प के फैसले अमरीकी संविधान के खिलाफ हैं, और क्या इन फैसलों को अमरीकी अदालतें रोक भी सकती हैं? ऐसे माहौल में दुनिया की बहुत सी जरूरतें एकदम से अनाथ हो गई हैं, और विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर पेरिस जलवायु समझौते तक, और यूएस-एड तक, नए अमरीकी राष्ट्रपति ने एक सरोकारविहीन कारोबारी के जल्लादी रवैये से अपनी हर मानवीय और सामाजिक जिम्मेदारी खत्म कर ली है। सच तो यह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्थाओं से लेकर जलवायु परिवर्तन से जूझने, मानवाधिकार बचाने, लोकतंत्र मजबूत करने जैसे बहुत से काम करने वाली संस्थाएं अब जिंदगी खो बैठी हैं। किसी ने कल्पना नहीं की थी कि कोई अमरीकी राष्ट्रपति इस तरह मनमानी कर सकता है, और जरूरतमंदों को बेसहारा छोड़ सकता है।

दिक्कत यह भी है कि ट्रम्पस्क नाम की यह जोड़ी दौलत की ताकत, और कारोबारी-मनमानी से इतनी लैस है कि इसके सामने बाकी सबकी बोलती बंद है। कोई भी देश मुंह नहीं खोल सकते, खुद अमरीका के भीतर न सिर्फ विपक्ष की बोलती बंद है, बल्कि ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी ने भी होंठ सिल रखे हैं, और एलन मस्क एक संविधानेत्तर सत्ता की तरह बर्ताव कर रहा है। दूसरे देशों के घरेलू मामलों में टांग अड़ाने वाले, और अंडरवल्र्ड के अंदाज में जुल्मनुमा फतवे देने वाले ट्रम्प और मस्क बुलडोजर की तरह अमरीकी लोकतंत्र और इंसानियत दोनों को कुचले चले जा रहे हैं, और दुनिया को बस यही सोचने का हक रह गया है कि इस जोड़ी को चार बरस पूरे करने में कितना वक्त रह गया है। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अभी कुल एक महीना गुजरा है, और तीन साल ग्यारह महीने और गुजरते हुए हो सकता है कि यह दुनिया ही गुजर जाए। इस जोड़ी के रहते हुए अगर सब कुछ खत्म हो जाएगा, तो भी हैरानी की बात नहीं है।

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